नई दिल्ली: कोर्ट द्वारा नियुक्त एक एक्सपर्ट ग्रुप, अब कोविड-19 मरीज़ों के लिए, सही मात्रा में ऑक्सीजन की मांग का मूल्यांकन कर रहा है, लेकिन मरीज़ों का एक बड़ा समूह ऐसा है, जो देश में पहले से दबाव में चल रहे ऑक्सीजन संसाधनों पर, अतिरिक्त दबाव डालने जा रहा है.
लंग फाइब्रोसिस उन मरीज़ों के बीच एक सबसे आम समस्या है, जो सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण से उबरे हैं, और कोविड मुक्त घोषित किए जाने के बाद भी, ऐसे बहुत से मरीज़ों को लंबे समय तक, ऑक्सीजन की ज़रूरत बनी रहती है.
नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ वीके पॉल ने कहा, ‘जैसा कि हम अपने रोज़ाना के अनुभव से जानते हैं, घाव का निशान एक सामान्य टिशू से अलग होता है. ये भी पता है कि कोविड फेफड़ों को घायल करता है. जब फेफड़ा ठीक होता है, तो उसका कुछ हिस्सा फाइब्रोसिस बन जाता है- घाव का निशान रेशेदार नेचर का होता है. इसे लंग फाइब्रोसिस कहते हैं, और इस तरह से प्रभावित हुए फेफड़ों के हिस्से, काफी हद तक निष्क्रिय हो जाते हैं’.
पॉल ने दिप्रिंट से कहा, ‘फेफड़ों का फाइब्रोसिस ठीक होने में, या तो बहुत लंबा समय लगता है, या वो ठीक होता ही नहीं है. फाइब्रोसिस की गंभीरता को देखते हुए, कुछ मरीज़ों को ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ सकती है. फाइब्रोसिस आमतौर पर इनफेक्शन ख़त्म होने के, दूसरे या तीसरे हफ्ते में बनना शुरू होता है’.
ये बात अब अच्छे से स्थापित हो चुकी है, कि कोविड फेफड़ों को गंभीर क्षति पहुंचाता है, और यही कारण है कि सीटी स्कैन्स को, नैदानिक उपकरण के तौर पर, अब व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने लगा है.
डॉक्टरों का कहना है कि बहुत से मरीज़ों में, जिनके आरटी-पीसीआर टेस्ट निगेटिव होते हैं, स्कैन्स से अकसर कोविड से हुए नुक़सान का पता चल जाता है. फाइब्रोसिस फेफड़ों के ठीक होने की प्रक्रिया का हिस्सा होता है. डॉक्टरों का कहना है कि मरीज़ों को दो-तीन हफ्ते के लिए, ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ सकती है, लेकिन ये ज़रूरत तीन महीने तक भी बढ़ सकती है.
चिकित्सा साहित्य में ये बात अच्छे से दर्ज है, कि लंग फाइब्रोसिस कोविड के बाद की जटिलता होती है.
मिस्र के शोधकर्त्ताओं ने पिछले महीने, इजिप्शियन जर्नल ऑफ रेडियोलॉजी एंड न्यूक्लियर मेडिसिन के एक लेख में लिखा, ‘प्रोग्रेसिव फाइब्रोटिक लंग बीमारी, कोविड-19 पल्मोनरी निमोनिया के संभावित परिणामों में से एक है, और ये बेहद चिंताजनक दीर्घ-कालिक जटिलता है. पल्मोनरी फाइब्रोसिस फेफड़े में शिथिलता पैदा कर देता है, जो ग़ैर-परिवर्तनीय होती है’.
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कोविड के बाद मरीज़ों की ऑक्सीजन पर निर्भरता ज्ञात है
पहली लहर के पीक के बाद,लंग इंडिया में प्रकाशित एक समीक्षा में, मुम्बई के हिंदूजा अस्पताल के पल्मोनरी मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ ज़रीर उदवाड़िया ने लिखा: ‘7 महीने की छोटी सी अवधि में, सार्स-सीओवी-2 ने 5 करोड़ से अधिक लोगों को संक्रमित किया है, और 12 लाख से ज़्यादा लोगों की जान ले चुका है. इससे ठीक हो गए बहुत से गंभीर मरीज़ों में, विनाशकारी पल्मोनरी फाइब्रोसिस पैदा हो गई है, जिनपर डॉक्टरों को तुरंत तवज्जो देकर संभालने की ज़रूरत है’.
उन्होंने आगे कहा: ‘फाइब्रोसिस सांस संबंधित किसी भी संक्रमण के प्रति, शरीर की प्रतिक्रिया होती है, और दुनिया भर के चेस्ट फिज़ीशियंस के पास, भारी संख्या में ऐसे मरीज़ आ रहे हैं, जो अपने गंभीर कोविड-19 निमोनिया से उबर गए हैं, लेकिन अब गंभीर लंग फाइब्रोसिस का शिकार हैं, और ऑक्सीजन पर निर्भर हैं’.
उसके बाद से ये संख्या कई गुना बढ़ गई है, और ऐसे बहुत से मरीज़ों को, या तो मजबूरन घर पर ऑक्सीजन का बंदोबस्त करना पड़ा है, या मुख्य रूप से ऑक्सीजन के लिए, उन्हें बार बार अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ते हैं.
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में कंसल्टेंट मेडिसिन, डॉ एस चटर्जी ने कहा, ‘पहली वेव में हमने कोविड के बाद, लंग फाइब्रोसिस के बहुत मामले देखे थे. ये लहर अभी नई है और अगले कुछ हफ्तों में पता चलेगा, कि लंग्स कितनी बुरी तरह प्रभावित हैं. पिछली लहर में हमने ऐसे बहुत से मरीज़ देखे, जिन्हें ऑक्सीजन पर रखना पड़ा, कुछ मामलों में तो लंग प्रत्यारोपण का प्रयास भी किया गया’.
उन्होंने आगे कहा, ‘इस बार संक्रमित हो रहे मरीज़ों की संख्या बहुत अधिक है, और पिछली बार की अपेक्षा, ऐसे मरीज़ों का अनुपात भी बहुत अधिक है, जिन्हें ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ रही है. आमतौर पर, क़रीब 15 प्रतिशत मरीज़ों को, ठीक होने के बाद ऑक्सीजन सपोर्ट चाहिए होती है, लेकिन हमें अभी देखना है, कि इस बार ये संख्या कितनी रहती है’.
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