नई दिल्ली: राजधानी की जेलों में सज़ा काट रहे 87 प्रतिशत क़ैदी, अभी भी टीका लगवाने के पात्र नहीं हैं, चूंकि दिल्ली सरकार 45 वर्ष से कम आयु के क़ैदियों के लिए, अभी टीके नहीं खोल रही है, इससे जेल अधिकारियों के सामने एक गंभीर चुनौती खड़ी हो गई है, जो क़ैदियों के बीच कोविड प्रकोप को कम करने में जूझ रहे हैं.
पिछले एक महीने में, कोविड-19 से संक्रमित होने वाले, क़ैदियों और जेल स्टाफ की संख्या तेज़ी से बढ़ी है. 14 अप्रैल को, 70 क़ैदी और 11 जेल स्टाफ कोविड पॉज़िटिव थे. 7 मई तक पॉज़िटिव मामलों की संख्या बढ़कर 535 पहुंच गई थी. इसमें 176 जेल स्टाफ भी शामिल थे.
जेल अधिकारियों द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, फिलहाल दिल्ली की तीन जेलों- तिहाड़, मंडोली और रोहिणी- में बंद कुल 19,500 क़ैदियों में, केवल 2,500 क़ैदी जो 45 वर्ष से अधिक के हैं, टीकाकरण के पात्र हैं. बाक़ी 17,000 क़ैदी, जो क़ैदियों की कुल आबादी का 87 प्रतिशत हैं, अभी भी वैक्सीन लगाए जाने के पात्र नहीं हैं.
जेल महानिदेशक संदीप गोयल ने पिछले सप्ताह, दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर स्वीकृति मांगी थी, कि 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी क़ैदियों को, टीके लगाने दिए जाएं.
गोयल ने कहा, ‘हमने इस मामले को दिल्ली सरकार के साथ उठाया है, क्योंकि अधिकांश क़ैदी 45 वर्ष से कम आयु के हैं. सरकार से मंज़ूरी देने के लिए कहा गया है, उसके जवाब का इंतज़ार है’.
दिप्रिंट ने फोन और लिखित संदेशों के ज़रिए, दिल्ली सरकार के मीडिया कॉर्डिनेटर प्रीतम पाल, आम आदमी पार्टी प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज, और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के सलाहकार शालीन मिश्रा से जानना चाहा, कि 45 वर्ष से कम के क़ैदियों के लिए, टीकाकरण अभी तक क्यों नहीं खोला गया है, लेकिन इस ख़बर के छपने तक, कोई जवाब हासिल नहीं हुआ था.
इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली की जेलों में कोविड के फैलाव को रोकने के लिए, एक आदेश जारी किया है. सुझाए गए उपायों में पैरोल को बढ़ाना, और गिरफ्तारियां कम करना शामिल हैं.
जेल अधिकारियों ने जेलों में बंद कोविड पॉज़िटिव क़ैदियों का, इलाज भी शुरू कर दिया है, ताकि मरीज़ों की देखभाल सुनिश्चित की जा सके.
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‘टीकाकरण है समाधान’
जेलों में कोविड मामलों के उछाल से चिंतित होकर, शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में भीड़ कम करने के लिए, एक विस्तृत आदेश जारी किया.
शीर्ष अदालत का एक निर्देश ये था, कि ऐसे अपराधों में जिनकी सज़ा सात साल से कम है, जब तक आवश्यक न हो, तब तक पुलिस को अभियुक्त की गिरफ्तारी नहीं करनी चाहिए. कोर्ट ने अधिकारियों को ये सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया, कि क़ैदियों को उचित चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराई जाएं, और ऐसे सभी क़ैदियों के पैरोल बढ़ा दिए जाएं, जिन्हें महामारी की पहली लहर के दौरान रिहा किया गया था.
लेकिन, एक वरिष्ठ जेल अधिकारी ने, नाम न बताने की शर्त पर कहा, कि ‘जेल के अंदर वायरस को क़ाबू करने का, सबसे अच्छा तरीक़ा यही था, कि तेज़ी के साथ हर किसी को टीका लगा दिया जाए. अगर ज़रूरी संख्या में डोज़ भेज दिए जाएं, तो इसे किया जा सकता है’.
अभी तक, 45 वर्ष से अधिक आयु के 2,500 क़ैदियों में से, 912 का टीकाकरण पूरा किया जा चुका है. तिहाड़ जेल में 650 क़ैदियों को टीके लगाए गए हैं, जबकि रोहिणी में 112, और मंडोली में 150 क़ैदियों को, टीके लगाए जा चुके हैं.
दिल्ली सरकार के पास शहर की जेलों में मौजूद क़ैदियों के आंकड़े मौजूद हैं, जिनके आधार पर वैक्सीन के डोज़ स्वीकृत किए जाते हैं.
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अपने यहां इलाज
मामलों में उछाल से निपटने के लिए, क़ैदियों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग सुनिश्चित करने, या टेस्टिंग बढ़ाने के अलावा, जेल अधिकारियों ने अधिकांश संक्रमित मरीज़ों को, बाहर के अस्पतालों में भेजने की बजाय, अपने ही अस्पतालों में भर्ती करना शुरू कर दिया है. अधिकारियों का मानना है, कि इससे बेहतर देखभाल सुनिश्चित की जा सकेगी.
दो अस्पताल हैं – एक तिहाड़ की 3 नंबर जेल में, और दूसरा मंडोली की जेल नंबर 13 में- जिनका इस्तेमाल हल्के और मध्यम लक्ष्ण वाले मरीज़ों के, इलाज के लिए किया जा रहा है.
गोयल ने कहा, ‘पहले हम सभी संक्रमित क़ैदियों को, जेल के बाहर के अस्पतालों में भेज रहे थे. अब हम उनमें से बहुत से मरीज़ों का इलाज, अपने ख़ुद के अस्पतालों में कर रहे हैं, जिससे सही देखभाल सुनिश्चित हो जाती है’.
जेल महानिदेशक ने ये भी कहा, कि क़ैदियों को टीका लगाने से काफी फायदा पहुंचा है.
गोयल ने कहा, ‘उपलब्ध संसाधनों के साथ, हमने बड़े पैमाने पर टीकाकरण की कोशिश की है. तीनों जेलों में टीकाकरण शुरू हो चुका है, और हम सभी क़ैदियों को कवर करना चाहते हैं, ताकि वायरस को फैलने से रोका जा सके’. उन्होंने आगे कहा, ‘यही कारण है कि हमने दिल्ली सरकार से अनुरोध किया है, कि इसे (टीकाकरण) सभी क़ैदियों के लिए खोल दिया जाए’.
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