नई दिल्ली: आखिर कितनी भयानक है भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर?
अगर आप कुल मौतों और मामलों की संख्या देखें, तो उनमें उछाल ज़रूर है लेकिन प्रतिशत के तौर पर ये बहुत अधिक डरावना नज़र नहीं आता.
भारत की बढ़ती हुई केस मृत्यु दर, जो मौतों की संख्या को कुल मामलों के प्रतिशत के तौर पर दर्शाती है- 1.2 है. लेकिन मामलों की भारी संख्या को देखते हुए ये आंकड़ा अपेक्षा के अनुरूप कम है.
स्थिति की गंभीरता को बेहतर ढंग से समझने के लिए दिप्रिंट ने इस महीने की शुरूआत से (जब मामलों में उछाल शुरू हुआ), भारत में मौतों की संख्या पर नज़र डाली और उसकी तुलना पंद्रह दिन पहले दर्ज हुए मामलों से की. इस समय सीमा के भीतर पता चला है कि भारत में किसी कोविड-19 मरीज़ की बीमारी का पता चलने और उसकी मौत के बीच औसतन पंद्रह दिन का अंतर है.
नतीजे चौंकाने वाले हैं. तुलना से पता चलता है कि भारत में हुई मौतें, पंद्रह दिन पहले सामने आए मामलों के प्रतिशत के तौर पर बढ़ती हुई केस मृत्यु दर से अधिक थी.
हमने ये हिसाब दिल्ली और महाराष्ट्र के लिए भी लगाया, जो देश के दो बहुत अधिक मामलों वाले क्षेत्र हैं. एक ओर जहां दिल्ली में ये प्रतिशत कहीं अधिक था, महाराष्ट्र में इसमें थोड़ी कमी दिखाई दी- ये रुझान संकेत देते हैं कि स्वास्थ्य ढांचा बीमारी से कैसे निपट रहा है.
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दिल्ली में उछाल, भारत में चढ़ाव
राष्ट्रीय राजधानी में औसतन हर रोज़ 25,000 नए मामले सामने आ रहे हैं. महामारी की पूरी अवधि के दौरान, इसकी केस मृत्यु दर (सीएफआर) फिलहाल 1.47 प्रतिशत है.
लेकिन, जब आप मौतों को दो हफ्ता पहले सामने आए, मामलों के प्रतिशत के रूप में देखते हैं, तो तस्वीर बदल जाती है.
राष्ट्रीय राजधानी में मंगलवार को दर्ज हुईं 240 मौतें, 4 अप्रैल को दर्ज किए गए 4,033 नए मामलों का 5.9 प्रतिशत हैं. सोमवार को हुईं 161 मौतें, 3 अप्रैल को दर्ज 3,567 नए मामलों का 4.5 प्रतिशत हैं. इसी तरह रविवार की 167 मौतें, 2 अप्रैल के 3,584 मामलों का 4.6 प्रतिशत हैं.
होली (29 मार्च) के दिन, मौतों का ये प्रतिशत उछलकर 10.4 पहुंच गया. ऐसा इसलिए हुआ कि रोज़ाना के मामले घटकर लगभग आधे रह गए क्योंकि त्योहार की छुट्टी पर टेस्टिंग कम की गई.
राष्ट्रीय स्तर पर पिछले हफ्ते (13-19 अप्रैल) के मौत के आंकड़ों का अगर उससे एक हफ्ता पहले (29 मार्च-4 अप्रैल) के मामलों से हिसाब लगाया जाए, तो ये प्रतिशत 1.6 और 1.9 के बीच बैठता है, जो कि राष्ट्रीय सीएफआर 1.2 से काफी अधिक है.
मंगलवार सुबह भारत में कुल 1,783 और सोमवार सुबह हुईं 1,619 मौतें दोनों, उन 1,03,558 तथा 93,249 मामलों का 1.7 प्रतिशत हैं, जो 15 दिन पहले क्रमश: 3 और 4 अप्रैल को दर्ज हुए थे. 28 तथा 29 मार्च के होली सप्ताहांत पर, जब रोज़ाना के पॉज़िटिव मामले काफी कम थे, ये प्रतिशत बढ़कर क्रमश: 1.8 तथा 1.9 हो गया.
रुझान तथा महाराष्ट्र के आंकड़ों को समझना
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में, लाइफ कोर्स एपीडीमियॉलजी के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ गिरिधर बाबू का कहना है कि ज़रूरी नहीं है कि बढ़ी हुई सीएफआर से पहली और दूसरी लहर की मृत्यु दरों के अंतर का पता चल जाए.
उन्होंने आगे कहा, ‘जैसे-जैसे मामले बढ़ते हैं और हर रोज़ विभाजक बढ़ता है, सीएफआर में कमी आ जाती है. लेकिन दूसरी ओर मौतों की उछाल में एक अंतराल है और ये बीमारी का पता चलने और मौत के बीच औसत समयावधि पर निर्भर करता है और अलग-अलग जगहों पर इसमें फर्क़ हो सकता है’.
‘मसलन कर्नाटक में, पहली लहर के दौरान ये अंतराल 17 दिन का था. दूसरी तरफ, सीएफआर भले ही कम हो जाए, लेकिन दूसरी लहर के विशाल आकार को देखते हुए मौतों की निर्पेक्ष संख्या ज़्यादा हो सकती है. जैसे-जैसे अस्पताल की सुविधाओं पर बोझ बढ़ेगा, इसमें बदलाव भी आ सकता है’.
महाराष्ट्र से, जहां मामलों की संख्या में ज़बर्दस्त उछाल देखने को मिला है, कुछ अच्छी खबर है. पिछले हफ्ते (11-17 अप्रैल) में दो हफ्ता पहले दर्ज हुए मामलों के प्रतिशत के रूप में मौतों की संख्या में पहली बार कमी के संकेत दिख रहे हैं.
मंगलवार को 380 मौतों की संख्या, 4 अप्रैल को दर्ज हुए 57,074 मामलों का 0.66 प्रतिशत थी, जबकि सोमवार की 522 मौतें, 3 अप्रैल को दर्ज 49,447 मामलों का 1.05 प्रतिशत थीं. रविवार की 441 मौतें, 2 अप्रैल को दर्ज हुए 47,917 मामलों का 0.92 प्रतिशत थीं. महाराष्ट्र की कुल सीएफआर फिलहाल 1.65 प्रतिशत है.
ये एक माना हुआ तथ्य है कि आमतौर पर मामलों में उछाल के कुछ दिन बाद, मौतों की संख्या भी बढ़ने लगती है, ये कहना था जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर सोशल मेडिसिन एंड कम्यूनिटी हेल्थ के प्रोफेसर राजीब दासगुप्ता का.
उन्होंने समझाया, ‘इस चरण में जो चीज़ महत्वपूर्ण है, वो ये कि इस बार कई नए वेरिएंट्स चलन में हैं और अगर आप ये दलील मान भी लें कि वो पिछले वेरिएंट्स से ज़्यादा घातक नहीं हैं, तो भी इस दावे के समर्थन में कोई डेटा पब्लिक डोमेन में नहीं हैं’.
लेकिन, कुछ भौगोलिक क्षेत्रों में मौतों की संख्या ज़्यादा हो सकती है, हालांकि उसे आंकड़ों में दिखने में समय लगेगा, भले ही श्मशान गृह और कब्रिस्तान में भीड़ बढ़ रही हो.
मृत्यु दर को प्रभावित करने वाले, दूसरे फैक्टर्स के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘दूसरा पहलू ये है कि भले ही ये ज़्यादा घातक न हो लेकिन ज़्यादा संक्रामक होने की वजह से, वायरस मामलों की संख्या को बहुत बढ़ा देगा जिससे मेडिकल ढांचे पर दबाव बढ़ जाएगा. चिकित्सा सेवाओं में देरी से भी मौतें बढ़ सकती हैं, भले ही वायरस खुद इतना अधिक घातक न हो’.
दिल्ली फिलहाल एक ऐसे दौर से गुज़र रही है जिसमें उसका चिकित्सा ढांचा, जैसा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने खुद स्वीकार किया, डगमगा रहा है.
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