नई दिल्ली: डेनमार्क की फार्मास्युटिकल कंपनी नोवो नॉर्डिस्क हफ्ते में एक बार ली जाने वाली अपनी इंसुलिन दवा, आईकोडेक के लिए अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन में रेगुलेटरी अप्रूवल के लिए आवेदन करने को तैयार है. पिछले हफ्ते जारी मौजूदा वित्तीय वर्ष के पहले क्वार्टर की रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गई.
सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि संभावना है कि इस वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में इसको मंजूरी मिल सकती है, इसके बाद व्यावसायिक उपयोग के लिए उपलब्ध होने वाली यह दुनिया की पहली सप्ताह में एक ली जाने वाली दवा होगी.
शोधकर्ता और चिकित्सक समान रूप से Icodec को दुनिया भर के लाखों मधुमेह रोगियों के लिए संभावित गेम-चेंजर के रूप में देखते हैं जिन्हें इंसुलिन थेरेपी की आवश्यकता होती है. वर्तमान उपचार के लिए दैनिक इंसुलिन इंजेक्शन की आवश्यकता होती है, या कुछ रोगियों के लिए प्रति दिन कई इंजेक्शन लगते हैं.
भारत में दवा के आगमन की काफी उम्मीद है, जिसे अक्सर “दुनिया की मधुमेह राजधानी” कहा जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 18 वर्ष से अधिक आयु के अनुमानित 77 मिलियन यानी 7.7 करोड़ लोग टाइप-2 डायबिटीज़ से पीड़ित हैं, इसके अलावा अन्य 25 मिलियन यानी ढाई करोड़ प्रि-डायबिटिक्स हैं.
टाइप-1 डायबिटीज़ आमतौर पर आनुवांशिक होता है और जीवन में जल्दी प्रकट होता है, जबकि टाइप-2 डायबिटीज़ जीवन शैली से जुड़ा होता है और कई सालों तक खराब जीवन शैली के बाद यह होता है.
भारत सहित नौ देशों में 80 साइटों पर आयोजित किए गए Icodec को लेकर सेफ्टी और प्रभावकारिता के लिए 52-सप्ताह के तीसरे चरण के नैदानिक परीक्षणों के अंतिम परिणाम पिछले सप्ताह द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित किए गए थे.
लैंसेट आर्टिकिल के अनुसार, निष्कर्षों से पता चला है कि बेसल-बोलस रेजिमेन (एक दिन में कई इंजेक्शन) पर लंबे समय से टाइप-2 मधुमेह वाले लोगों में, जब इस इंसुलिन का प्रयोग किया गया तो ग्लाइसीमिक कंट्रोल के मामले में इसका वही प्रभाव दिखा जो कि दिन में एक बार इंसुलिन लेने पर देखा जाता था. इसके अलावा, निष्कर्षों से यह भी पता चला कि दवा के साथ सेफ्टी को लेकर कोई बड़ी चिंताजनक बातें नहीं थीं.
फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पिटल फॉर डायबिटीज एंड एलाइड साइंसेज के चेयरमैन डॉ अनूप मिश्रा ने दिप्रिंट को बताया, “वर्तमान में, सबसे लंबे समय तक काम करने वाला इंसुलिन केवल 24 घंटे काम करता है और कई मरीज इसे रोजाना लेने से हिचकते हैं.
उन्होंने कहा,”सप्ताह में एक बार इंसुलिन एक बड़ी उपलब्धि होगी.”
हालांकि, भारत में नोवो नॉर्डिस्क के एक प्रवक्ता ने संपर्क करने पर कहा कि भारत में दवा कब लॉन्च की जा सकती है, इस पर अभी कोई अपडेट नहीं है.
प्रवक्ता ने दिप्रिंट के सवालों के जवाब में कहा, “हम नोवो नॉर्डिस्क इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ लगभग 1.5 मंथ्स इन हैंड (एमओएच) स्टॉक और जैसे ही यह भारत में लॉन्च होता है अपने डिस्ट्रीब्यूटर एबॉट के साथ लगभग 2.5 एमओएच स्टॉक रखेंगे.”
प्रवक्ता ने कहा, “कुल मिलाकर, देश स्तर पर लगभग 4 एमओएच स्टॉक बनाए रखा जाएगा.”
यह भी पढ़ेंः बॉर्नविटा विवाद के बीच पैकेज्ड फूड पर स्टार रेटिंग के फैसले पर FSSAI करेगा दोबारा विचार
कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस साल फरवरी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा की थी कि आईकोडेक भारत में 2025 तक उपलब्ध हो सकता है.
इंजेक्शन से तो नहीं बचेंगे, पर इलाज में होगी आसानी
चेन्नई स्थित डॉ. मोहन डायबिटीज स्पेशलिटी सेंटर के अध्यक्ष और मुख्य मधुमेह विशेषज्ञ डॉ. वी. मोहन के अनुसार, इंसुलिन एक हॉर्मोन है और 1921 में इसकी खोज के बाद से इसने मधुमेह से पीड़ित लाखों लोगों की जान बचाई है.
उन्होंने बताया”हालांकि, एक चीज जिससे लोगों को डर लगता है वह है खुद को हर दिन इंजेक्ट करना लेकिन अगर इसे टेबलेट के रूप में खाया जाए तो प्रोटीन होने के नाते पेट में मौजूद हाइड्रोक्लोरिक एसिड की वजह से यह नष्ट हो जाता है. इसलिए, इसे बायपास करने और इसे सीधे ब्लड में लाने के लिए, इन सभी वर्षों में इंसुलिन का इंजेक्शन लगाना पसंदीदा तरीका रहा है.”
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “जाहिर है, जिन लोगों को हर दिन इंसुलिन लेना पड़ता है, अगर इसे कम बार लेने के तरीके से बदला जा सके तो यह एक बड़ा वरदान साबित होगा.”
फार्मा कंपनियां धीमी गति से रिलीज होने वाली (लंबे समय तक काम करने वाली) इंसुलिन पर काम कर रही हैं जिसे सप्ताह में एक बार इंजेक्ट किया जा सकता है.
मोहन के अनुसार, Icodec जैसी दवाएं, हालांकि, टाइप-2 मधुमेह वाले लोगों के लिए अधिक फायदेमंद हो सकती हैं – ऐसे मधुमेह रोगियों में जिन्हें बेसल-बोलस रेजिमन पर लंबे समय तक काम करने वाले एक दिन में इंसुलिन का सिर्फ एक इंजेक्शन लेने की जरूरत होती है.
उन्होंने कहा, “डायबिटीज के टाइप-1 इंसुलिन-आश्रित डिपेंडेंट वाले बच्चों और वयस्कों के लिए, उन्हें एक दिन या उससे अधिक में चार इंजेक्शन की आवश्यकता होती है – एक हर बार भोजन के साथ शॉर्ट-ऐक्टिंग (इंसुलिन) और दूसरा, दिन में एक बार दिया जाने वाला लंबे समय तक चलने वाला इंसुलिन.”
उन्होंने कहा, टाइप 1 मधुमेह वाले ऐसे लोगों में, सप्ताह में एक बार दी जाने वाली यह इंसुलिन, भोजन के साथ हर बार दी जाने वाली शॉर्ट-एक्टिंग इंसुलिन को प्रतिस्थापित करने में सक्षम नहीं होगी, लेकिन लंबे समय तक काम करने वाले इंसुलिन को प्रतिस्थापित करने में सक्षम हो सकता है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
यह भी पढ़ेंः ‘दायरे से बाहर की गतिविधियों में शामिल’, NCPCR ने राज्यों को UNICEF के साथ काम नहीं करने को कहा, लिखा पत्र