नई दिल्ली: सिकिल सेल बीमारी के लिए जीन थेरेपी लेंटिग्लोबिन के पहले व दूसरे चरण के ट्रायल से पता चला है कि इसके जरिए इस आनुवंशिक बीमारी के लक्षणों को खत्म किया जा सकता है. इस बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं है. अगर यह काफी रोगियों के ऊपर लागू होता है तो यह इस बीमारी के लिए विश्व का पहला इलाज साबित होगा.
पहले व दूसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल के अध्ययन के लिए, जिसके रिजल्ट द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (एनईजेएम), बर्मिंघम में अलबामा विश्वविद्यालय, पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय और अन्य संस्थानों में गुरुवार को प्रकाशित किए गए थे, के शोधकर्ताओं ने 35 रोगियों में चिकित्सा की सुरक्षा और प्रभावकारिता का मूल्यांकन किया.
सिकल सेल एनीमिया रक्त से जुड़ी एक आनुवंशिक बीमारी है जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं अर्धचंद्राकार हो जाती हैं. इसकी वजह से लगातार संक्रमण, हाथों और पैरों में सूजन, दर्द, थकान, और किशोरावस्था के लक्षण देरी से आते हैं.
बीमारी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन उपचार के जरिए आमतौर पर लक्षणों को नियंत्रित करने की कोशिश की जाती है – जैसे कि संकट के दौरान दर्द की दवाओं, बैक्टीरियल इन्फेक्शन को रोकने के लिए एंटीबायोटिक्स और टीके, व खून चढ़ाने जैसे उपायों का सहारा लिया जाता है.
जनजातीय मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, सिकिल सेल रोग भारत में आदिवासियों के बीच व्यापक है, जहां अनुसूचित जनजाति समुदायों के बीच जन्म लेने वाले 86 बच्चों में से लगभग एक इससे पीड़ित है.
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एंटीसिकलिंग हीमोग्लोबिन का निरंतर उत्पादन
2015 में, यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने लेंटीग्लोबिन को ‘ब्रेकथ्रू थेरेपी डेजिगनेशन’ प्रदान किया. ब्रेकथ्रू थेरेपी पदनाम ऐसी दवा को दिया जाता है जो गंभीर या जीवन के लिए घातक स्थिति का इलाज करता है और प्रारंभिक क्लिनिकल साक्ष्य दिखाता है कि दवा उपलब्ध उपचारों पर पर्याप्त सुधार प्रदर्शित कर सकती है.
लेंटिग्लोबिन रोगी की हेमटोपोइएटिक स्टेम कोशिकाओं में एक जीन दाखिल करवाता है – जो प्रयोगशाला में सभी प्रकार की रक्त कोशिकाओं में विकसित होता है. फिर इन संशोधित कोशिकाओं को रोगी के शरीर में वापस डाल दिया जाता है.
जीन – जिसे बीटा-ग्लोबिन के रूप में जाना जाता है – HbAT87Q नाम का एक एंटीसिकलिंग हीमोग्लोबिन का उत्पादन करता है, जो लाल रक्त कोशिकाओं की सिकलिंग को रोकता है या इसका विरोध करता है.
अध्ययन में, लेंटिग्लोबिन इन्फ्यूजन के बाद टीम ने तमाम गंभीर वासो-ऑक्लुसिव घटनाओं की संख्या को भी देखा – जिसमें अर्धचंद्राकार लाल रक्त कोशिकाएं रक्त प्रवाह को इस स्तर तक अवरुद्ध कर देती हैं कि टिश्यू में ऑक्सीजन पहुंचना बंद हो जाता है.
टीम ने पाया कि एक बार लेंटिग्लोबिन से उपचार किए जाने के बाद अधिकांश लाल कोशिकाओं में HbAT87Q का निरंतर उत्पादन हुआ, जिससे हेमोलिसिस (लाल रक्त कोशिकाओं का विनाश) कम हो गया और गंभीर वासो-ऑक्लुसिव घटनाओं को पूरी तरह से कम किया जा सका.
मुश्किल और महंगा उपचार
इसी से संबंधित एक संपादकीय (एनईजेएम में प्रकाशित) में, बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में मेडिसिन के प्रोफेसर और एमडी मार्टिन स्टीनबर्ग ने कहा कि जबकि अध्ययन मेंत पाया गया कि रोगियों में अब सिकल सेल रोग के लक्षण नहीं थे, लेकिन ज्यादातर के लाल रक्त कोशिकाओं का जीवनकाल सामान्य से कम हो गया था. लंबी अवधि में इससे कुछ जटिलताएं हो सकती हैं.
स्टीनबर्ग ने कहा कि चूंकि इलाज काफी महंगा और मुश्किल है इसलिए इसका पूरे जीवन तक चलने वाला और रोग को खत्म करने वाला होना चाहिए ताकि मरीज इसके लिए मन बना सकें.
उन्होंने कहा, ‘इस बिंदु पर, हम अभी तक नहीं जान सकते हि यह कितना लंबा कारगर होगा, लेकिन इस अध्ययन के आधार पर संभावनाएं अच्छी लगती हैं’
हालांकि, स्टीनबर्ग ने स्वीकार किया कि किसी भी अत्यधिक प्रभावी जीन थेरेपी से दुनिया भर में सिकिल सेल रोग वाले अधिकांश लोगों के स्वास्थ्य में सुधार नहीं होगा.
आगे उन्होंने कहा,’इस बीमारी के अधिकांश रोगी अफ्रीका और भारत में रहते हैं जहां लोगों की पहुंच अत्यधिक तकनीकी हेल्थ केयर के मामले में लोगों की पहुंच सीमित है. इसके लिए खाई जाने वाली दवाओं की जरूरत है जो कि भ्रूण के हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ा सकें. इससे इस बीमारी से सबसे अधिक पीड़ित आबादी को लाभ होने की अधिक संभावना होगी.
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