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Friday, 22 November, 2024
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कोवैक्सीन की आपूर्ति, ट्रायल ग्रुप साइज़- छोटे बच्चों के कोविड वैक्सीन में देरी की क्या है वजह

हर महीने कोवैक्सीन का उत्पादन 5.5 से 6.5 करोड़ के बीच है और 15 से 18 वर्ष आयु वर्ग के किशोरों के पूर्ण टीकाकरण के लिए देश को कम से कम 15 करोड़ खुराक की आवश्यकता है.

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नई दिल्ली: कोवैक्सीन की उपलब्धता और क्लिनिकल ट्रायल के लिए समान उम्र के बच्चों के समूह के आकार को लेकर होने वाली दिक्कतें कम उम्र के समूहों (15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों) के बीच कोविड टीकाकरण अभियान शुरू होने में बाधा की एक बड़ी वजहें हैं. सरकार से जुड़े शीर्ष सूत्रों ने दिप्रिंट से बातचीत में यह जानकारी दी है.

ट्रायल डेटा के आधार पर ड्रग कंट्रोलर की तरफ से 2 से 18 वर्ष आयु वर्ग के लिए कोवैक्सीन के इस्तेमाल को अनुमोदित किया गया है और इस समय यही एकमात्र कोविड वैक्सीन है जिसे सरकार ने 15 से 18 वर्ष आयुवर्ग के लिए शुरू किए गए टीकाकरण कार्यक्रम में इस्तेमाल करने की मंजूरी दी है.

प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) के ताजा बयान के मुताबिक, देश में टीकाकरण के पात्र बच्चों में 70 प्रतिशत को अब तक पहली खुराक दी जा चुकी है और दोनों खुराक पाने वाले बच्चों का आंकड़ा 24 प्रतिशत है.

सूत्रों ने कहा कि कोवैक्सीन निर्माता भारत बायोटेक ‘वैक्सीन उत्पादन की लंबी और जटिल प्रक्रिया’ की वजह से मौजूदा समय में हर माह केवल 5.5 करोड़ से 6.5 करोड़ खुराक ही बना पा रही है. 15 से 18 वर्ष के आयु वर्ग की 7.5 करोड़ आबादी (गत दिसंबर में राज्यों को लिखे एक पत्र में स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण द्वारा साझा किए गए अनुमान) को वैक्सीन की दो खुराक के साथ टीका लगाने के लिए भारत को कम से कम 15 करोड़ खुराक की आवश्यकता है.

कोवैक्सीन का इस्तेमाल स्वास्थ्य कर्मियों, फ्रंटलाइन वर्कर और वरिष्ठ नागरिकों के लिए एहतियाती खुराक (टीके की तीसरी खुराक) के लिए भी किया जा रहा है. चूंकि भारत में मिश्रित टीकों की अनुमति नहीं दी जाती है, तो यदि किसी व्यक्ति को पहली-दूसरी खुराक के तौर पर कोवैक्सीन का शॉट मिला हो तो उसे बाद की खुराक में भी वही टीका लग सकता है, ऐसे में वैक्सीन के पर्याप्त स्टॉक की जरूरत होती है. वहीं, स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों का यह भी कहना है कि पहली खुराक लेने वालों में कोवैक्सीन की मांग बढ़ रही है.


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‘लंबी और जटिल निर्माण प्रक्रिया’

कोविड के खिलाफ छोटे बच्चों के टीकाकरण में देरी का कारण पूछे जाने पर स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘टीके हैं कहां? कोवैक्सीन की आपूर्ति अभी भी 5 से 6 करोड़ (खुराक प्रतिमाह) के दायरे में है. आगे टीकाकरण शुरू करने और इस पर किसी भी तरह की भ्रम की स्थिति से बचने के लिए सबसे पहले तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जिनके टीकाकरण की घोषणा कर रखी गई है, उनके लिए तो पर्याप्त संख्या में टीके उपलब्ध हों. अब ऐसा तो है नहीं कि वयस्कों के लिए कोवैक्सीन का इस्तेमाल बंद हो गया है.’

अधिकारी ने कहा, ‘हमें एहतियाती खुराक के लिए पर्याप्त टीके चाहिए होंगे और फिर ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जो पहली खुराक लेने के दौरान कोवैक्सीन की ही मांग कर रहे हैं. वयस्कों में लगभग 8-10 प्रतिशत के टीकाकरण में कोवैक्सीन का इस्तेमाल हो रहा है और ऐसे में हर महीने इसकी लगभग दो-तीन करोड़ (खुराक) की जरूरत होगी.’

अधिकारियों ने बताया कि इसकी तुलना में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया निर्मित कोविशील्ड का मासिक उत्पादन 28-30 करोड़ खुराक के करीब है.

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने बताया कि कोवैक्सीन का प्रतिमाह उत्पादन करीब 5.5 से 6.5 करोड़ खुराक के बीच रहता है जिसकी एक बड़ी वजह वैक्सीन निर्माण की प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल होना है.

अधिकारी ने कहा, ‘इसमें सबसे अहम यह होता है कि लैब में पर्याप्त वायरस विकसित किए जाएं और फिर यह सुनिश्चित किया जाए कि हर बैच में कोई वायरस जीवित न बचे. यदि एक भी जीवित वायरस रहता है तो पूरा बैच नष्ट करना पड़ता है. जबसे उन्होंने उत्पादन बढ़ाना शुरू किया है तबसे दो बार ऐसा हुआ जब इस वजह से पूरे बैच को नष्ट करना पड़ा.’


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15 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए दो टीके स्वीकृत

भारत में अभी ऐसे दो कोविड टीके हैं जिन्हें 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को लगाया जा सकता है. जहां कोवैक्सीन को दो साल से ज्यादा उम्र के बच्चों में उपयोग के लिए अनुमोदित किया गया है, वहीं 12 वर्ष या इससे ज्यादा उम्र के बच्चों को जायडस कैडिला द्वारा निर्मित जायकोव-डी टीका लगाने की मंजूरी दी जा चुकी है. हालांकि, अभी सर्वसम्मत राय यही है कि जायकोव-डी केवल वयस्कों के लिए इस्तेमाल की जाए. यद्यपि यह वैक्सीन बिहार (आपूर्ति हासिल करने वाला पहला राज्य) पहुंचनी शुरू हो गई है, लेकिन अभी सरकारी टीकाकरण कार्यक्रम में इसका इस्तेमाल नहीं किया गया है. जायकोव-डी दुनिया की पहली डीएनए वैक्सीन है.

एक अधिकारी ने कहा, ‘यह एकदम नया विकल्प है, इसलिए माना जा रहा है कि बच्चों को देने से पहले देखा जाए कि वयस्कों में इसका क्या असर होता है.’ बायोलॉजिकल ई द्वारा निर्मित एक अन्य कोविड वैक्सीन कॉर्बेवैक्स को भी छोटे बच्चों (15 वर्ष से कम) के लिए इस्तेमाल करने के लिए अनुमोदित किया गया है लेकिन वैक्सीन की डिलीवरी शुरू होना अभी बाकी है.

अधिकारी ने कहा, ‘देश के विभिन्न हिस्सों में कॉर्बेवैक्स की पहली खेप पहुंचना 20 फरवरी से शुरू हो जाने की उम्मीद है. टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के कोविड कार्यकारी समूह ने छोटे बच्चों के लिए कोवैक्सीन और कॉर्बेवैक्स के इस्तेमाल पर केवल एक बैठक में विचार किया है. छोटे बच्चों से जुड़े कोवैक्सीन डेटा को लेकर कुछ चिंताएं हैं क्योंकि 15 साल से कम उम्र के बच्चों का समूह वास्तव में काफी छोटा है. इस पर बाद की बैठकों में विचार किया जाएगा और हम देखेंगे कि तब क्या सिफारिशें की जाती हैं, यदि उनकी तरफ से छोटे बच्चों के लिए कॉर्बेवैक्स के इस्तेमाल की सिफारिश नहीं की गई तो हम वयस्कों के लिए भी इसका इस्तेमाल प्रशासित कर सकते हैं.’

बच्चों में कोवैक्सीन के ट्रायल पर भारत बायोटेक का बयान, उम्र के हिसाब से समूहों का ब्योरा देता है. इसमें कहा गया है, ‘ट्रायल के दौरान आरटी-पीसीआर और ईएलआईएसए टेस्टिंग के जरिये 976 सब्जेक्ट में सार्स-कोव-2 की जांच की गई. इनमें से 525 पात्र प्रतिभागी नामांकित किए गए. उम्र के लिहाज से प्रतिभागियों को तीन समूहों में बांटा गया. पहले समूह में 12-18 वर्ष (एन=175) आयु वर्ग के बच्चे शामिल किए गए और दूसरे समूह में 6-12 वर्ष (एन=175), और तीसरे समूह में 2-6 वर्ष (एन=175) आयु वर्ग के बच्चे शामिल किए गए.’ इसमें ‘एन=175’ का मतलब है कि प्रत्येक समूह में 175 प्रतिभागी थे.


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तीसरी खुराक को लेकर चिंताएं

इस बीच, फिलहाल इस सवाल पर बहस जारी है कि स्वास्थ्य के लिहाज से जोखिम वाली श्रेणी में आने वाले लोगों के बजाये सभी भारतीयों को एहतियाती खुराक दी जानी चाहिए या नहीं. सरकार में विशेषज्ञों के एक वर्ग का मानना है कि अब तीसरी खुराक देने— जबकि देश के अधिकांश हिस्सों में तीसरी लहर घट रही है— आने वाले समय में भारत के विकल्पों को सीमित कर सकती है, खासकर ऐसी स्थितियों में जब कोई नया वैरिएंट सामने आ जाए.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘किसी को भी यह समझने की जरूरत है कि इम्यूनिटी कैसे काम करती है. हम जिन टीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनमें सीरोकनवर्जन एमआरएनए टीकों की तुलना में अधिक है और ये टीके लंबे समय तक प्रभावी रहते हैं. यदि हम अभी तीसरी खुराक देते हैं और इम्यून सिस्टम बढ़ा देते हैं तो भी आठ-नौ महीने बाद अगर कोई नया वैरिएंट आ गया तो हमें इसके वांछित नतीजे नहीं मिलेंगे. यह तर्क का सिर्फ एक पहलू हैं. हम अभी भी सभी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं और जल्द ही अंतिम निर्णय पर पहुंच जाएंगे.’

बहरहाल, तीसरी खुराक देने की प्रक्रिया को सीमित रखने से बड़ी संख्या में उन बच्चों के लिए कोवैक्सीन की अधिक खुराक उपलब्ध हो सकेंगी जिन्हें अभी तक टीके की एक भी खुराक नहीं मिली है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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