नई दिल्ली: केंद्र ने राज्यों को भेजे एक नए पत्र में रैपिड एंटीजन टेस्ट (आरएटी) का अत्यधिक इस्तेमाल किए जाने पर आपत्तियां जताई हैं और राज्यों से कहा है कि वे कोविड-19 के कुल टेस्ट में रैपिड टेस्ट की संख्या केवल 30-40 प्रतिशत तक ही सीमित रखें.
राज्यों को स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण और सचिव, स्वास्थ्य अनुसंधान डॉ. बलराम भार्गव की ओर से भेजे गए संयुक्त पत्र में कहा गया है, ‘आरएटी का उपयोग प्री-सिमप्टमैटिक या अर्ली-सिमप्टमैटिक लोगों के मामले में जांच के लिए ही किया जाना चाहिए, जहां वायरल लोड अधिक होने की उम्मीद है. ऐसे मरीजों में जिनमें लक्षणों की शुरुआत हुए 5-7 दिन बीत चुके हों, उनकी जांच में इसके इस्तेमाल की सिफारिश नहीं की जाती है. आरएटी को आरटीपीसीआर से ज्यादा तरजीह नहीं दी जानी चाहिए. राज्यों में आरएटी का इस्तेमाल 30 से 40% तक सीमित रहना चाहिए.’
दिप्रिंट की तरफ से पिछले महीने किया गया एक आकलन बताता है कि बिहार में हुए 88 प्रतिशत टेस्ट आरएटी हैं, जबकि केरल में यह आंकड़ा 63 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 60 प्रतिशत है.
रैपिड एंटीजन टेस्ट में कोरोना निगेटिव आने की संभावना ज्यादा रहती है, यही वजह है कि प्रोटोकॉल के तहत सिमप्टमैटिक लोगों में आरएटी निगेटिव आने पर आरटीपीसीआर टेस्ट कराना अनिवार्य है. विशेषज्ञों का कहना है कि संभव है किसी रैपिड एंटीजन टेस्ट से 50-60 प्रतिशत तक मामलों में संक्रमण का पता न लग सके.
हालांकि, इसका सस्ता और जल्द नतीजे बताना वाला होना—दो ऐसे तथ्य है जिन्होंने कई कमियों के बावजूद तमिलनाडु को छोड़कर अधिकांश राज्यों के लिए इसे टेस्ट का पसंदीदा विकल्प बना दिया है.
पिछले महीने, जब दिल्ली ने एक बार फिर कोविड की लहर का सामना किया तो सरकार से जिन चीजों को सुधारने के लिए कहा गया, उनमें से रैपिड एंटीजेन टेस्ट पर बढ़ती निर्भरता भी शामिल थी.
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आरएटी किट की गुणवत्ता को लेकर चिंता
सिविल सेवा के दो सबसे वरिष्ठ अधिकारियों की तरफ से लिखे गए इस पत्र में मौजूदा समय में उपलब्ध आरएटी किट की गुणवत्ता में कमी होने की संभावनाएं भी बताई गई है.
भूषण और डॉ. भार्गव ने लिखा, ‘आईसीएमआर पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक हर राज्य में आरएटी की तुलना में आरटीपीसीआर में पॉजिटिविटी की दर ज्यादा पाई गई है. इसकी कई वजह हो सकती हैं जैसे आरएटी का अनुचित इस्तेमाल, क्षेत्र या अलग-अलग बैच में असंगतता आदि. इस मुद्दे पर हाल में आईसीएमआर में कोविड-19 पर नेशनल टास्क फोर्स के लैबोरेटरी उपसमूह की बैठक में चर्चा की गई थी.’
आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के अनुसार, आरएटी के लिए न्यूनतम स्वीकार्य मानदंड, जिन्हें प्रयोगशाला सेटअप में भेजे बिना संबंधित जगह पर ही उपयोग किया जाना है, में 50 प्रतिशत की न्यूनतम संवेदनशीलता और 95 प्रतिशत की न्यूनतम विशिष्टता है.
संवेदनशीलता वास्तव में पॉजीटिव पाए जाने की क्षमता मापने का तरीका है, जबकि विशिष्टता वास्तविक निगेटिव पता लगाने की क्षमता है.
लैबोरेटरी सेटअप में होने वाले आरएटी और जिनमें सैंपल को वायरल ट्रांसपोर्ट मीडियम में ट्रांसफर करने की जरूरत पड़ती है, में न्यूनतम स्वीकार्य संवेदनशीलता 70 प्रतिशत है और न्यूनतम स्वीकार्य विशिष्टता 99 प्रतिशत है.
18 नवंबर तक आईसीएमआर ने विभिन्न कंपनियों के 50 आरएटी किट को मान्यता दी थी.
आईसीएमआर ने विभिन्न बैच में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए आरएटी वेंडर्स को अलग से लिखा है.
9 दिसंबर को लिखे पत्र में कहा गया है, ‘आईसीएमआर ने बार-बार दोहराया है कि आरएटी का इस्तेमाल आईसीएमआर की टेस्टिंग रणनीति का एल्गोरिथम के हिसाब से ही किया जाना चाहिए. मामलों में चूक की कोई गुंजाइश न रहने देने के लिए आरएटी का उपयोग करने वाले राज्यों को एल्गोरिदम का कड़ाई से पालन करना चाहिए. राज्य अपने यहां होने वाले आरएटी की बैच टेस्टिंग प्रक्रिया को लेकर संभावनाएं तलाश सकते हैं.’
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