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Thursday, 25 April, 2024
होमहेल्थनीति आयोग ने कहा- मुम्बई के फीवर क्लीनिक्स और झारखंड के को-बॉट्स कोविड के कुछ सबसे अच्छे उपाय

नीति आयोग ने कहा- मुम्बई के फीवर क्लीनिक्स और झारखंड के को-बॉट्स कोविड के कुछ सबसे अच्छे उपाय

भारत में कोरोनावायरस का पहला केस सामने आने के क़रीब 11 महीने बाद, नीति आयोग ने मूल्यांकन किया है, कि वायरस से बचने के लिए, राज्यों ने किस रह नए रास्ते निकाले.

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नई दिल्ली: धारावी के फीवर क्लीनिक्स, जिन्होंने एशिया के सबसे बड़े स्लम में कोविड-19 पर क़ाबू पाने में मदद की, गुजरात की मोबाइल वैन्स जिन्होंने महामारी के दौरान ग़ैर-कोविड आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराईं और आंध्र प्रदेश का कॉन्टेक्ट-ट्रेसिंग एप, जो मोबाइल टावर की लोकेशंस से पॉज़िटिव मरीज़ के रास्ते का पता लगा लेता है- इन सबको कोविड-19 के खिलाफ उठाए गए सबसे अच्छे उपायों के संग्रह में जगह दी गई है, जिसे नीति आयोग ने तैयार किया है.

आगरा और भीलवाड़ा मॉड्ल्स के कुछ अंश भी, जो आगरा के हॉटस्पॉट बनने से पहले महामारी के शुरू में आदर्श की तरह पेश किए गए थे, इस डॉक्युमेंट में शामिल किए गए हैं, जिसका शीर्षक है मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट ऑफ कोविड-19 प्रैक्टिसेज़ फ्रॉम इंडियन स्टेट्स एंड यूनियन टेरिटरीज़.

अपनी प्रस्तावना में, नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा है कि इस ग्रंथ का उद्देश्य, ‘उन प्रथाओं पर ध्यान देना है, जिनकी जड़ें हमारी वास्तविकताओं में हैं’.

प्रस्तावना में कहा गया है, ‘हर राज्य से पहिए का फिर से अविष्कार करने की अपेक्षा से बेहतर है कि ऐसी प्रथाओं को फैलाया जाए, जिससे कि वो एक दूसरे से सीख सकें, और समान समस्याओं के मिलकर हल ढूंढ़ सकें’.

जुलाई में सभी राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों को, एक ईमेल भेजा गया था, जिसमें उनसे अनुरोध किया गया था कि ऐसी किसी भी प्रैक्टिस या मॉडल्स को साझा करें, जो उनके विचार में कोविड-19 को कम करने और उसके प्रबंधन में उपयोगी साबित हुई हैं. संग्रह में राज्यों की ओर से भेजी गई जानकारी और उससे जुड़े केस स्टडीज़, पेपर्स, तथा ढूंढ़कर निकाले गए अन्य साहित्य को शामिल किया गया है.

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तकनीक का अहम योगदान

कोविड मरीज़ों के संभावित संपर्कों का पता लगाने के लिए, केरल के जीपीएस पर आधारित रूट मैप्स से लेकर, झारखंड के को-बॉट्स तक, कई राज्यों ने तकनीक का अलग-अलग सीमा तक इस्तेमाल किया.

झारखंड में 25,000 रुपए की लागत से तैयार, 45 किलोग्राम वज़न ढोने की क्षमता वाले को-बॉट्स, सहायक स्वास्थ्य कार्यकर्ता और कोविड मरीज़ों के बीच, कम से कम संपर्क रखने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. कोविड अस्पतालों में को-बॉट्स मरीज़ों को दवाएं, भोजन और पानी देने का काम करते हैं.

नीति आयोग के डॉक्युमेंट में कहा गया है, ‘इस मशीन को 200 फीट की रेंज में, रिमोट से चलाया जा सकता है. को-बॉट्स वाइ-फाई कैमरे और माइक्रोफोन से लैस होते हैं, आराम से चल सकते हैं, और रिमोट के साथ दोतरफा कम्युनिकेशन कर सकते हैं’. उसमें आगे कहा गया है, ‘ये वॉटर प्रूफ भी होते हैं, जिससे किसी मरीज़ के संपर्क में आने के बाद, इन्हें सैनिटाइज़ करना आसान होता है. इसके अलावा, इनके अंदर एक अल्ट्रासॉनिक बाधा चेतावनी प्रणाली भी लगी होती है’.

तमिलनाडु में एक अस्पताल ने छह परतों वाला एक प्रोटेक्शन मॉडल तैयार किया जो आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर आधारित था. मदुराई के मीनाक्षी मिशन हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर ने, ऑपरेशन थिएटर्स में स्वास्थ्यकर्मियों को, हुड और ब्लू-टूथ स्टेथोस्कोप के ज़रिए, कम्प्रेस्ड मेडिकल ग्रेड हवा पहुंचाने के लिए, ‘तंजौर एयर बैरियर टेकनीक’ का इस्तेमाल किया.

अस्पताल ने एक छह परतों वाला प्रोटेक्शन मॉडल लागू किया, जो एआई और रोबोटिक्स की मदद से, आने वाले लोगों में (टेम्प्रेचर देखने के लिए स्मार्ट इन्फ्रारेड एआई हेल्मेट्स, स्मार्ट फीवर क्लीनिक्स, और स्मार्ट थर्मल सर्वेलेंस कैमरे) लक्षणों का पता लगाने, स्टरिलाइज़िंग सुविधाएं देने, और संपर्क की ज़रूरत के बिना, मरीज़ों के इलाज में मदद करता है.

नोएडा में स्वास्थ्य सुविधाओं में ऑक्सीजन की सघनता के स्तर को नियमित करने के लिए, चार तरह के मास्क इस्तेमाल किए जाते थे- सामान्य मास्क 30 प्रतिशत ऑक्सीजन सप्लाई करता है, जबकि तीन दूसरी तरह के मास्क भी रिज़र्व में रखे जाते थे. वेंचूरी मास्क 65 प्रतिशत तक ऑक्सीजन देते हैं, ऊंचे प्रवाह वाली नाक की नाली ऑक्सीजन सघनता को बढ़ाकर 80 प्रतिशत तक पहुंचा देती है, और रिज़रवॉयर के साथ नॉन-रीब्रीदिंग मास्क, 90 प्रतिशत तक ऑक्सीजन रिलीज़ करता है.

मोबाइल हेल्थ

लॉकडाउन और उसके बाद घरों में रहने वाले लोगों की सेवा के लिए, बहुत से राज्यों ने मोबाइल सेवाएं शुरू कर दीं. अहमदाबाद नगर निगम ने एक मोबाइल वैन ‘धनवंत्री रथ’ तैयार किया, जो शहर के अंदर लोगों के घरों तक, ग़ैर-कोविड आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाता है.

नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मोबाइल मेडिकल वैन्स द्वारा मुहैया कराई जा रही स्वास्थ्य सेवाओं को विस्तार देकर, अब उसमें मलेरिया और डेंगू की जांच को भी शामिल कर लिया गया है.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘जिस रणनीति ने वर्ली और धारावी में कोविड प्रकोप को क़ाबू करने में सहायता की, उससे बीएमसी के रैपिड एक्शन प्लान का ख़ाका तैयार करने में भी मदद मिली, जिसके तहत एम्बुलेंसेज़ में 50 मोबाइल फीवर क्लीनिक्स काम में लगा दिए गए’. उसमें आगे कहा गया है, ‘मोबाइल क्लीनिक्स ने डॉक्टरों की टीम के ज़रिए, घर-घर जाकर निवासियों की स्क्रीनिंग की, जिसमें बुख़ार और अन्य लक्षणों की जांच की गई, दूसरी-बीमारियों की निगरानी की गई और संदिग्ध मामलों में फाहे जमा किए गए’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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