नई दिल्ली: एक नए अध्ययन से पता चला है कि टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोग अगर अपनी कमर के कुछ इंच को कम कर लें तो वह अपनी मौजूदा स्थिति को पलट सकते हैं, तब भी जब उनका वजन अधिक न हो.
यूरोपियन एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ डायबिटीज (ईएएसडी) की सालाना बैठक में पेश किए गए शोध में पाया गया कि पहले माना जाता था, उसके विपरीत, टाइप 2 डायबिटीज (टी 2 डी) के मरीज जिनका वजन सामान्य है वो लोग भी अपना पर्याप्त वजन घटा कर अपनी मौजूदा स्थिति को पलट सकते हैं.
यूके में न्यूकैसल विश्वविद्यालय के एक शोधकर्ता रॉय टेलर द्वारा किए गए एक छोटे से ट्रायल में, जिसमें 12 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, में से आठ का वजन 10-15 फीसदी घटने के बाद उनके स्वास्थ्य में सुधार नजर आया.
यह तब हुआ जब उनका बॉडी मास इंडेक्स (BMI) पहले से ही सामान्य वेट रेंज में था. लेकिन वजन कम करने से लीवर और पैन्क्रियास में फैट के स्तर को कम करने में मदद मिली, जिससे पैनक्रियास में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाएं तेजी से काम करने लगीं.
टेलर ने अपने एक बयान में कहा,’ अनुभव के आधार पर हमने पाया है कि आपकी कमर की साइज वही होनी चाहिए जो 21 की उम्र में थी. यदि आप अपने कॉलेज के जमाने की पैंट नहीं पहन पा रहे हैं तो आप बहुत अधिक फैट का सेवन कर रहे हैं और इसलिए आपको टाइप-2 डायबिटीज का खतरा बना हुआ है. भले ही आपका वजन कम क्यों न हो.’
शोधकर्ता के अनुसार, स्टडी इस सिद्धांत का समर्थन करती है कि प्रत्येक व्यक्ति का ‘पर्सनल फैट थ्रेसहोल्ड’ होता है, जिससे एक स्तर तक उस व्यक्ति की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है.
यदि इस सीमा का उल्लंघन किया जाता है, तो लोगों को टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है, तब भी जब उनका बीएमआई सामान्य सीमा के भीतर ही क्यों न हो.
टेलर ने कहा कि डॉक्टर अक्सर यह मान लेते हैं कि जो लोग ओवरवेट नहीं हैं उन लोगों में टाइप 2 मधुमेह होने का कारण अलग होता है. नतीजतन, वो आमतौर पर डायबिटीज की दवाएं और इंसुलिन देने से पहले वजन कम करने की सलाह तक नहीं देते हैं.
टेलर ने कहा, ‘ यहां तक की शुरुआत में ही या यूं कहें पहले चरण में ही इंसुलिन और अन्य दवाएं शुरू करने की प्रवृत्ति है.’
यह भी पढ़ें: फुल टाइम काम करने से महिलाओं में हृदय रोग का खतरा तेजी से बढ़ रहा है: स्विस स्टडी
अध्ययन में देखा गया
स्टडी के लिए, टाइप 2 डायबिटीज और सामान्य वजन वाले 12 पुरुषों और महिलाओं को वेट लॉस प्रोग्राम का हिस्सा बनाया गया. सभी को दो सप्ताह तक एक दिन में 800 कैलोरी का भोजन ही खाने के लिए दिया गया. इसके बाद उस वजन को मेंटेंन रखने के लिए उन लोगों ने चार से छह सप्ताह तक ऐसे ही रूटीन का पालन किया.
जब तक 10-15 फीसदी शरीर का वजन कम नहीं कर लिया तब तक उनसभी ने डायट और वेट मेंटेंनेंस साइकल का तीन राउंड पूरा किया.
स्टडी के अंत में उनलोगों से इनकी तुलना की गई जिन्हें डायबिटीज नहीं था और जो उम्र, लिंग और बीएमआई में उनसे मेल खाते थे.
स्कैन से पता चला कि लीवर में फैट की औसत मात्रा 4.4 प्रतिशत (टाइप 2 मधुमेह नहीं होने वालों की तुलना में दोगुनी से अधिक) से गिरकर 1.4 प्रतिशत हो गई है.
पैनक्रियास में फैट औसतन 5.1 प्रतिशत से गिरकर 4.5 प्रतिशत पर पहुंच गया.
12 प्रतिभागियों में से आठ में, डायबिटीज खात्मे की कगार पर चली गई.
टेलर ने कहा, ‘ये रिजल्ट साफ साफ बताता है कि डायबिटीज मोटापे के कारण नहीं बल्कि आपके शरीर का भार असंतुलित होने के कारण होती है. यह लीवर और पैनक्रियास में बहुत अधिक फैट जमा होने के कारण होता है, चाहे आपका बीएमआई कुछ भी हो.’
उन्होंने आगे बताया, लीवर में यह अतिरिक्त फैट इंसुलिन को सामान्य रूप से काम करने से रोकता है. पैनक्रियास में, यह बीटा सेल्स को इंसुलिन का उत्पादन करने से रोकता है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: डायबिटीज की दवा मोटापे से पीड़ित लोगों में 20% वजन घटाने में मददगार पाई गई-अध्ययन