नई दिल्ली: झारखंड की रूपाली त्रिपाठी के लिए दिल्ली का सफर दर्दनाक रहा, जिस व्यक्ति को उनके पांच बिल्ली के बच्चों को एक प्यार भरा घर देना था, उसने इसके बजाय उन्हें बेरहमी से पीटा. इसके अलावा, दिल्ली सरकार के जानवरों के अस्पताल में कूड़ा-कचरा बिखरा हुआ था, कर्मचारियों की संख्या बहुत कम थी और रुई-पट्टियों जैसी बुनियादी सुविधाओं की भी कमी थी. त्रिपाठी की कठिन परीक्षा पांच मृत बिल्ली के बच्चों और 1.5 लाख रुपए के बिल के साथ खत्म हुई.
बिल्ली के बच्चों को उनके गोद लेने वाले से छुड़ाने के बाद, त्रिपाठी मसूदपुर सरकारी वेटनरी अस्पताल पहुंची, लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि वहां इलाज कराना व्यर्थ है. एक घायल कुत्ता टूटे हुए स्ट्रेचर पर लेटा हुआ था, फर्श खून से सना हुआ था और कर्मचारी दस्ताने के बिना काम कर रहे थे.
“सरकारी अस्पताल दयनीय है. किसी को भी अपने पालतू जानवरों के साथ वहां नहीं जाना चाहिए. यहां तक कि वहां बुनियादी इलाज भी मुहैया नहीं कराया जा सकता है.” उच्च लागत के बावजूद, त्रिपाठी ने एक निजी क्लिनिक में मदद मांगी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
लेकिन दिल्ली सरकार के 77 वेटनरी अस्पताल और डिस्पनसरी में मसूदपुर कोई अकेला मामला नहीं है.
दिप्रिंट ने अक्टूबर के अंत और नवंबर की शुरुआत में इनमें से कई सुविधाओं का दौरा किया और एक परेशान करने वाला पैटर्न पाया- जर्जर इमारतें, कर्मचारियों की कमी, दवाओं की कमी, पानी और बिजली की समस्याएं, खराब उपकरण और गंदगी की स्थिति. कुछ अस्पतालों को यूं ही छोड़ दिया गया.
आर्थिक रूप से वंचित लोगों और उनके जानवरों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है क्योंकि अधिक पैसे वाले दिल्लीवासी निजी क्लीनिकों का विकल्प चुनते हैं.
पिछले साल, एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट के एक समूह ने दिल्ली के 48 वेटनरी अस्पताल और 29 डिस्पेनसरी का दौरा करने के बाद एक कड़ी रिपोर्ट तैयार की. रिपोर्ट में “ख़स्ताहाल” और “अस्वच्छ” जैसे शब्दों का कई बार इस्तेमाल किया गया. एक डिस्पेंसरी में बच्चे बैडमिंटन खेल रहे थे, दूसरे अस्पताल के एक हिस्से को विधायक के कार्यालय के रूप में उपयोग किया जा रहा था.
कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और इन सुविधाओं की देखरेख करने वाली पशुपालन इकाई (एएचयू) के लिए जिम्मेदार विकास मंत्री गोपाल राय को “सरकारी पशु चिकित्सा सेवाओं के पूरी तरह से खराब होने” के बारे में बताया. जब उन्हें वह प्रतिक्रिया नहीं मिली जो तो उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जो वर्तमान में मामले की सुनवाई कर रहा है.
उनकी जनहित याचिका में दिल्ली सरकार, भारतीय पशु कल्याण बोर्ड और भारतीय पशु चिकित्सा परिषद से शहर के वेटनरी अस्पताल में सुविधाओं, स्वच्छता और कर्मचारियों की कमी को दूर करने के लिए कार्रवाई की मांग की गई है.
कार्यकर्ता आशेर जेसुडोस, अक्षिता कुकरेजा, आरती भावना और दीपिका किनी की रिपोर्ट में कहा गया है, “परिसर में किया जा रहा जानवरों का इलाज किसी भी चिकित्सा प्रक्रिया या वैज्ञानिक प्रक्रिया के मानकों के साथ मेल नहीं खाता है.” इसमें चेतावनी दी गई है कि यह स्थिति सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा है, क्योंकि इससे जानवरों से मनुष्यों में बीमारियों के फैलने की संभावना बढ़ जाती है.
रिपोर्ट इस बात पर भी रोशनी डालती है कि सरकारी सुविधाएं जनता को मुफ्त सेवाएं प्रदान करने के लिए हैं, लेकिन ऐसा करने में विफल रहने पर, वे अपने उद्देश्य असफल रही हैं और यह “करदाताओं के पैसे की बर्बादी और दुरुपयोग” है.
जबकि राज्य सरकार ने एक हलफनामे में आरोपों से इनकार किया है, एएचयू के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पशु चिकित्सा सुविधाओं की बिगड़ती स्थिति को स्वीकार किया है. उन्होंने कहा, “दो दशक से भी अधिक समय पहले जब मैं पहली बार यहां आया था तो यह अच्छा था, लेकिन सुविधाएं और बुनियादी ढांचा दिन-ब-दिन खराब होता जा रहा है.”
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बैडमिंटन, लूडो, और कुछ सुविधाएं
पशु अधिकार कार्यकर्ता आशेर आर. जेसुडोस हमेशा कॉल पर रहते हैं, बचाव कार्य में अकसर व्यस्त रहते हैं. उनका फ़ोन जल्दी और लगातार बजने लगता है. लेकिन जो कोई भी बीमार कुत्ते या बिल्ली को लेकर आता है, उसके लिए जेसुडोस की एक सलाह है- उन्हें एक निजी क्लिनिक में ले जाएं.
उन्होंने कहा, “टीकाकरण के लिए जानवरों को सरकारी सुविधा में ले जाना ठीक है, लेकिन उचित इलाज के लिए हम निजी क्लीनिकों में जाना पसंद करते हैं. वे अधिक महंगे हैं, लेकिन उनके पास बुनियादी दवा और देखभाल है.”
हालांकि, जेसुडोस ने बताया कि यह “बुनियादी” देखभाल भी ज्यादातर लोगों के लिए एक लक्जरी है.
“निजी स्थान सिर्फ एक रात के लिए लगभग 1,000 रुपए चार्ज करते हैं. कितने लोगों के पास किसी जानवर पर खर्च करने के लिए इतना पैसा है?” उन्होंने पूछा.
जेसुडोस उन कार्यकर्ताओं में से एक थे जिन्होंने दिसंबर 2021 और फरवरी 2022 के बीच दिल्ली सरकार की पशु चिकित्सा सुविधाओं का दौरा किया था.
उन्होंने कहा, “एक अस्पताल के परिसर में बच्चे बैडमिंटन खेल रहे थे, जबकि दूसरे में लोग अपनी गाड़ियां पार्क कर रहे थे. एक अन्य में अधिकारी लूडो खेलते नजर आए. और कुछ अस्पताल बंद पड़े हैं.”
उनकी रिपोर्ट एक गंभीर परिस्थिति को तस्वीर खींचती है – चार अस्पताल और छह डिस्पेंसरी निष्क्रिय हैं, और जो 67 चालू हैं, उनमें से कोई भी रोगी की सुविधा नहीं दे पाती है. ज्यादातर अस्पतालों में आउट पेशेंट डिपार्टमेंट (ओपीडी) सेवाएं केवल चार घंटे के लिए उपलब्ध होती हैं, और एक पशु चिकित्सा अधिकारी तब भी हमेशा मौजूद नहीं रहता है.
मृत्यु के बाद भी कोई गरिमा नहीं है. एक वेटनरी ऑफिसर ने दिप्रिंट को बताया कि ज्यादातर अस्पतालों में अलग से पोस्टमार्टम की कोई सुविधा नहीं है और जानवरों के शवों को दफनाने या जलाने के लिए कोई जगह नहीं है. पालतू पशु मालिक शवों को छोड़ देते हैं या उन्हें जहां भी जगह मिलती है, दफना देते हैं.
जबकि जेसुडोस अब दिल्ली हाई कोर्ट की याचिका का हिस्सा नहीं हैं, उन्होंने कहा कि वह याचिकाकर्ताओं का समर्थन कर रहे हैं.
जून में, पशुपालन इकाई के निदेशक ने याचिका के जवाब में एक हलफनामा दायर किया, जिसमें अधिकांश आरोपों से इनकार किया गया. इसमें दावा किया गया कि सरकारी अस्पताल बड़ी संख्या में जानवरों का सफलतापूर्वक इलाज कर रहे हैं और सुविधाओं को बेहतर किया जा रहा है
हलफनामे के अनुसार, अस्पतालों और डिस्पेनसरी ने पिछले साल (नवंबर तक) 367,170 जानवरों का इलाज किया और पिछले तीन सालों में प्रत्येक में 5 लाख से अधिक जानवरों का इलाज किया. इसमें यह भी दावा किया गया कि भारत सरकार ने 2021-22 के लिए केंद्रीय प्रायोजित योजना के तहत नौ मोबाइल पशु चिकित्सा क्लीनिकों के अधिग्रहण को मंजूरी दे दी है.
जेसुडोस को संदेह है. उन्होंने पूछा, “हमें अपने सर्वे में वे मोबाइल वेट क्लिनिक नहीं मिले जिनके बारे में वे बात कर रहे हैं. और अगर उनके पास ये मोबाइल यूनिट हैं, तो उन्हें कौन चला रहा है? ड्राइवर कहां हैं? डॉक्टर कौन हैं?”
जेसुडोस ने कहा कि याचिकाकर्ता आगामी दिसंबर की सुनवाई में सरकार के हलफनामे का जवाब देंगे. टीम ने सितंबर और अक्टूबर में पशु अस्पतालों का सर्वे किया और अपने निष्कर्ष जुटा रहे हैं, जिसे वे अदालत में पेश करने की योजना बना रहे हैं.
ठहरा हुआ विकास
दिल्ली सरकार ने तीन साल पहले अपनी पशु चिकित्सा सुविधाओं में सुधार को हरी झंडी दी थी, लेकिन परिणाम बहुत कम रहे हैं.
वेटनरी पेशेवर, डॉक्टरों से लेकर सहायक कर्मचारियों से लेकर लाइवस्टॉक इंस्पेक्टर तक, अपनी कामकाजी परिस्थितियों से निराश हैं. उनका दावा है कि उच्च अधिकारियों से की गई उनकी शिकायतों को अनसुना कर दिया गया.
एएचयू के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 2020 में, सीएम अरविंद केजरीवाल और विकास मंत्री गोपाल राय ने सुविधाओं को अपग्रेड करने के निर्देश जारी किए, लेकिन कोविड -19, खराब मौसम और “प्रशासनिक मुद्दों” के कारण प्रगति धीमी रही है.
सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग (आई एंड एफसी) और लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने 40 स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए एस्टीमेट दिए, लेकिन केवल 23 को बजट आवंटन मिला. इनमें से चार पूरे हो चुके हैं, छह निर्माणा किया जा रहै है, छह टेंडर की प्रक्रिया में हैं और झारोड़ा डेयरी अस्पताल का 40 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. बाकी सुविधाओं पर अभी तक काम शुरू नहीं हुआ है.
अधिकारी ने कहा, “यह पीडब्ल्यूडी का काम है और इसकी अपनी सीमाएं हैं. कभी-कभी टेंडर में समय लग जाता है. कई बार, पीडब्ल्यूडी अधिकारियों को यह नहीं पता होता है कि पशु अस्पताल की जरूरतें क्या हैं. वे अक्सर भूमि या संरचना के संबंध में आपत्तियां उठाते हैं, जिससे देरी होती है.”
अधिकारी के अनुसार, पीडब्ल्यूडी 11 नए पशु चिकित्सा पॉलीक्लिनिक, 11 जिला पशु क्रूरता निवारण सोसायटी (एसपीसीए) के साथ-साथ मौजूदा अस्पतालों और डिस्पेंसरी के नवीनीकरण के लिए अनुमान प्रस्तुत कर रहा है.
हलफनामे के अनुसार, दिल्ली सरकार ने अस्पताल और डिस्पेंसरी की मरम्मत और नवीकरण कार्य के लिए 2021-22 में 6.23 करोड़ रुपये और 2022-23 में 6.17 करोड़ रुपए आवंटित किए.
एएचयू अधिकारी ने कहा कि पिछले तीन वर्षों में, पशुपालन विभाग ने अस्पताल और डिस्पेंसरी निर्माण और मरम्मत के लिए I&FC और PWD को 12.44 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं.
उन्होंने आरोप लगाया, ”पीडब्ल्यूडी फंड का पूरा उपयोग नहीं कर रहा है.”
उनके अनुसार, यदि पिछले बजट आवंटन का पूरा उपयोग नहीं किया गया है, तो अगले वर्ष के लिए आवंटन कम हो जाता है. उन्होंने कहा, पिछले तीन वर्षों में बजट का केवल 30 से 40 प्रतिशत ही उपयोग किया गया है, जिससे बजट में कटौती हुई है.
दिप्रिंट ने पीडब्ल्यूडी अधिकारियों को ईमेल और फोन के जरिए सवाल भेजे हैं लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. जवाब आने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
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स्टाफ की कमी, लंबी प्रक्रिया
दो छोटे कमरे वाले भट्टी माइंस वेटनरी अस्पताल को एक चमकदार बदलाव के लिए तैयार किया गया है, सरकार ने पिछले साल इसके नवीकरण के लिए 49 लाख रुपए से अधिक का आवंटन किया था. फिर भी, यह सुविधा कई महीनों से बंद है, जिससे निवासी-मुख्य रूप से मजदूर और किसान इससे जूझ रहे हैं.
उनके पशुओं और पालतू जानवरों का इलाज करना अब एक बड़ी बाधा है. उन्हें पशु चिकित्सा देखभाल के लिए 6-8 किमी दूर फ़तेहपुर बेरी जाना पड़ता है. जानवर जितना बड़ा होगा, परिवहन की लागत उतनी ही अधिक होगी.
पहले जिक्र किए गए वेटनरी अधिकारी ने बताया, “कर्मचारियों की भारी कमी और लंबी भर्ती प्रक्रिया के कारण यह अस्पताल खाली पड़ा है.”
एएचयू के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कर्मचारियों की कमी खाली पदों को भरने की बेहद धीमी प्रक्रिया के कारण है.
यूपीएससी के क्लास 1 गजट डॉक्टरों को पशु चिकित्सा अधिकारी के रूप में शामिल होने में दो से तीन साल लगते हैं; दिल्ली में फिलहाल 12 पद खाली हैं.
अधिकारी ने बताया कि 2021 तक लाइफस्टॉक इंस्पेक्टर के 117 पद थे, लेकिन भर्ती नहीं होने के कारण ये घटकर केवल 108 रह गए हैं. इनमें से 56 लाइफस्टॉक इंस्पेक्टर वर्तमान में काम कर रहे हैं, जबकि 52 खाली हैं.
इस बीच, कई वेटनरी ऑफिसर उन नौकरियों से जूझ रहे हैं जो उनकी विशेषज्ञता से मेल नहीं खाते हैं. पालतू जानवरों की खरीद में कोविड के बाद वृद्धि के कारण, बड़े जानवरों के इलाज के लिए प्रशिक्षित वेटनरी ऑफिसर को खरगोश और हैम्स्टर जैसे छोटे जानवरों के इलाज का भी काम सौंपा गया है.
नाम न छापने की शर्त पर उत्तर पश्चिमी दिल्ली के एक वेटनरी ऑफिसर ने कहा, “हम बड़े जानवरों के डॉक्टर हैं. हम छोटे जानवरों के साथ कैसे इलाज कर सकते हैं? हमारे पास ऐसे जानवरों का इलाज करने की कोई विशेषज्ञता नहीं है, लेकिन हम ऐसा करने के लिए मजबूर हैं. सरकार ऐसे वेटनरी ऑफिसर विशेषज्ञ तैयार करने के लिए कॉलेज क्यों नहीं खोलती?”
जानवरों के लिए लिव-52 और पेरासिटामोल
उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के एक क्लिनिक में, एक डॉक्टर ने एक कुत्ते को आयुर्वेदिक लीवर टॉनिक लिव 52- प्रेसक्राइब्ड किया.
उन्होंने कंधे उचकाए, “जानवरों के लिए हम जो दवाएं इस्तेमाल करते हैं उनमें से आधे से ज्यादा वास्तव में इंसानों के लिए हैं.”
वेटनरी ऑफिसर ने कहा कि सीमित मांग के कारण बहुत कम पशु चिकित्सा दवा निर्माता कंपनियां हैं, जिसके परिणामस्वरूप जानवरों के अनुरूप दवाओं की कमी है.
वेटनरी ऑफिसर ने कहा कि पशु-विशिष्ट उपचारों के साथ-साथ पशु चिकित्सा औषध विज्ञान पर कॉलेज पाठ्यक्रमों की बड़ी जरूरत है. लेकिन तब तक चिकित्सकों को जुगाड़ पर निर्भर रहना होगा.
डॉक्टर पेरासिटामोल जैसी मानव दवाओं की खुराक को जानवर के आकार के अनुसार तय करते हैं. यह अपने आप में एक विज्ञान है, क्योंकि कुछ जानवर बीमार हो सकते हैं. मिसाल के तौर पर, वेटनरी ऑफिसर बिल्लियों को पेरासिटामोल नहीं देते क्योंकि यह उनके फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है.
दवा की कमी के आरोपों के जवाब में, एएचयू ने अपने हलफनामे में दिल्ली हाई कोर्ट को सूचित किया कि उन्होंने जून 2021 में पशु चिकित्सा सुविधाओं के लिए 58 लाख रुपए की 61 आवश्यक दवाएं वितरित कीं और ई-प्रोक्योरमेंट वेबसाइट पर मार्च 2022 में दिल्ली में 73 आवश्यक दवाओं के लिए कुल 5.49 करोड़ रुपए की निविदा जारी की.
हालांकि, एएचयू के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि विभाग “आवश्यकता के अनुसार दवाएं खरीदने में सक्षम नहीं है. पशुओं के लिए केवल सबसे आवश्यक जीवनरक्षक दवाएं ही उपलब्ध हैं.”
उन्होंने इसके लिए आंशिक रूप से “प्रशासनिक” कारणों को जिम्मेदार ठहराया.
रेट लिस्ट के लिए बहु-स्तरीय अनुमोदन प्रक्रिया की अनिश्चितताओं की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “अगर 150 दवाओं का प्रस्ताव भेजा जाता है, तो उनमें से 50 की कटौती कर दी जाती है.”
दक्षिणपूर्वी दिल्ली के एक पशुचिकित्सक ने सुझाव दिया कि इस मुद्दे का समाधान यह होगा कि कंपनी के साथ एक निश्चित दर पर दवाएं उपलब्ध कराने के लिए दर अनुबंध स्थापित किया जाए. उन्होंने कहा, इससे व्यक्तिगत दरों की समीक्षा करने और खरीदारी करने में समय बर्बाद होने से बचा जा सकेगा.
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एयर कंडीशन, मार्बल और वेटनरी अस्पताल
झारोड़ा डेयरी कॉलोनी के तीन कमरों वाले वेटनरी ऑफिसर के सहायक कर्मचारी अपनी कुशलता पर गर्व करते हैं – उन्होंने वर्षों पहले बिजली की लाइन को एक पुराने फ्रिज तक जोड़ दिया था, और अब दवाएं और टीके ताज़ा रहते हैं.
सरकार इस अस्पताल के लिए एक नई इमारत का निर्माण कर रही है, और हालांकि निर्माण कार्य रुका हुआ है, लेकिन उनका मानना है कि यह कुछ ऐसे फैंसी अस्पतालों की तरह बन जाएगा जिनमें एसी भी है.
दिल्ली की पशु चिकित्सा देखभाल प्रणाली में परिवर्तन हो रहे हैं.
अप्रैल में, गोपाल राय ने घोषणा की कि सतबरी में 56 एकड़ में बनने वाले दिल्ली के पहले पशु चिकित्सा कॉलेज का निर्माण कार्य चल रहा है.
फिर, कुछ मुट्ठी भर ‘मॉडल’ सुविधाएं भी हैं. 2019 में, दिल्ली सरकार ने तीस हजारी में 24 घंटे का पशु अस्पताल खोला, और घोषणा की कि गाज़ीपुर और पालम में दो और सरकारी पशु अस्पताल भी इसका अनुसरण करेंगे.
हालांकि, जनशक्ति और संसाधन की कमी के कारण पालम का अस्पताल वर्तमान में केवल 12 घंटे ही संचालित होता है. तीस हजारी और पालम में एयर कंडीशनिंग और पर्याप्त जगह है लेकिन सफाई के मोर्चे पर बहुत कुछ करना बाकी है.
एक और अस्पताल जो सबसे अलग है वह है हाल ही में पुनर्निर्मित पहलादपुर वेटनरी अस्पताल. इसमें एयर कंडीशनिंग, मार्बल फर्श और प्रवेश दीवारों पर कलात्मक जानवरों के कार्टून हैं.
उस्मानपुर का अठारह वर्षीय कौशल एक कुत्ते के बच्चे को गोद में उठाए हुए तीस हजारी अस्पताल से बाहर निकल रहे थे. पशु प्रेमी सरकारी वेटनरी अस्पताल में अक्सर आते रहते हैं.
“एक छात्र होने के नाते, मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं हैं. मुझे यहां मुफ्त इलाज मिलता है, इसलिए मैं कई जानवरों की मदद कर पाता हूं. हमें बस इन अस्पतालों को और अधिक सुलभ बनाने की ज़रूरत है,” वह पप्पी को सहलाते हुए कहते हैं.
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