नई दिल्ली: भारत में बच्चों (12-18 वर्ष) के लिए स्वीकृत एकमात्र वैक्सीन के मूल्यों पर बातचीत जारी होने के बीच कुछ प्रश्न अनसुलझे बने हुए हैं, जिसकी वजह से नाबालिगों के लिए कोविड टीकाकरण शुरू करने की कोई ठोस रूपरेखा तय करने में समय लग रहा है.
वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि जो सवाल अभी सुलझे नहीं हैं, उनमें कोमोर्बिडिटी को प्राथमिकता के आधार पर कवर करना और किन दस्तावेजों को शर्तों के प्रमाण के तौर पर स्वीकारा जाना है, आदि शामिल हैं. देश की जनसंख्या में लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा 18 वर्ष से कम आयु वर्ग का है.
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘इन सवालों पर वर्किंग ग्रुप (कोविड पर) एनटीएजीआई (नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन) की तरफ से व्यापक चर्चा की जा रही है—जैसे किसको इसके दायरे में लाना है और यह कैसे सुनिश्चित करना है कि यह प्रक्रिया अभिभावकों के लिए आसान और फूलप्रूफ हो.’
उन्होंने कहा, ‘हम इस पर उनके किसी निर्णय पर पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं. जायडस कैडिला के साथ बातचीत भी जारी है और हमें उम्मीद है कि जल्द ही सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे.’
कंपनी की नीडल-फ्री वैक्सीन जायकोव-डी 12 से 18 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों को दिए जाने के लिए मंजूर की गई है.
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन, जिसे अभी राष्ट्रीय कार्यक्रम में इस्तेमाल किया जा रहा है को भी टीकों की जांच करने वाले एक विशेषज्ञ पैनल की तरफ से दो साल तक के बच्चों के लिए अनुशंसित किया गया है.
हालांकि, बच्चों को लेकर कोवैक्सीन के डाटा का अभी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) द्वारा परीक्षण किया जा रहा है, और अभी तक नाबालिगों में टीके के लिए आपातकालीन इस्तेमाल को मंजूरी नहीं दी गई है.
कोमोर्बिडिटी की सूची तय किए बिना, देश में बच्चों की संख्या के बारे में भी कुछ स्पष्ट नहीं होगा जिन्हें इस वर्ष वैक्सीन मिलने की उम्मीद की जा सकती है. यह स्थिति तब है जबकि अधिकांश राज्यों के स्कूलों ने या तो ऑफलाइन पढ़ाई फिर से शुरू कर दी है, या फिर हाइब्रिड मोड की व्यवस्था कर ली है, जिसमें माता-पिता यह तय कर सकते हैं कि उनके बच्चे ऑनलाइन या ऑफलाइन किस तरह की कक्षाओं में शामिल होंगे.
अधिकारियों का कहना है कि कोमोर्बिडिटी के बिना वालों को भी वैक्सीन के लिए 2022 तक इंतजार करना पड़ सकता है.
कोविड वैक्सीन पर वर्किंग ग्रुप एनटीएजीआई के अध्यक्ष डॉ एन.के. अरोड़ा ने दिप्रिंट की तरफ से पूछे गए इन सवालों कि इस वर्ष कितने बच्चों को वैक्सीन लगने की उम्मीद की जा सकती है और उन बच्चों की संख्या कितनी हो सकती है जो बीमारियों से पीड़ित हैं और जिन्हें जल्दी कवर किए जाने की जरूरत है, के जवाब में बस एक लाइन का टेक्स्ट मैसेज भेजा, ‘कार्य प्रगति पर है. किसी सूची को अंतिम रूप नहीं दिया गया है.’
नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ वी.के. पॉल, जो नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन फॉर कोविड (एनईजीएवीसी) के सह-अध्यक्ष भी हैं, ने दिप्रिंट के फोन कॉल और व्हाट्सएप मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया.
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‘वयस्कों के लिए समान प्रक्रिया’
कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के एक सदस्य ने कहा कि चर्चा जारी है, लेकिन उम्मीद है कि बच्चों के टीकाकरण के लिए डॉक्युमेंटेशन ‘उसी तरह होगा जैसा वयस्कों के मामले में’ रहा है.
इस साल अप्रैल में जब देश में 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए कोमोर्बिडिटी के साथ टीकाकरण शुरू हुआ था तो बीमारी के प्रमाण के तौर पर किसी भी पंजीकृत चिकित्सक का एक प्रेस्क्रिप्शन स्वीकार्य था. इसके बाद, मई में जब सभी वयस्कों के लिए टीकाकरण शुरू हो गया तो इस पर्चे की जरूरत खुद ही खत्म हो गई.
एनटीएजीआई के कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के एक सदस्य ने कहा, ‘हमारा स्पष्ट मत है कि जो बच्चे कोमोर्बिडिटी के शिकार हैं, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर टीका लगना चाहिए. हम वही प्रक्रिया अपनाए जाने की उम्मीद कर रहे हैं जैसी वयस्कों के मामले में थी. लेकिन हम इसे अभिभावकों के लिए यथासंभव आसान बनाना चाहते हैं. हम अभी इसी पर चर्चा कर रहे हैं.’
सदस्य ने कहा, ‘जहां तक कोवैक्सीन की बात हैं, हमने अभी तक डाटा नहीं देखा है. हां, हमारी सिफारिशों में थोड़ा समय लग रहा है लेकिन सिर्फ यही चीज नहीं है जो बच्चों का टीकाकरण शुरू होने को रोक रही है. क्या आप जानते हैं कि जायडस के टीके की कीमत कितनी होगी?’
जायकोव-डी के आपात इस्तेमाल को मंजूरी मिले दो महीने से अधिक समय हो गया है, लेकिन भारत सरकार वैक्सीन के मूल्य तय करने वाले किसी समझौते पर पहुंचने में असमर्थ रही है, जिसमें शॉट देने के लिए एक विशेष और महंगे ऐप्लिकेटर का इस्तेमाल किया जाता है. जायकोव-जी की प्रत्येक खुराक में प्राप्तकर्ता को दो शॉट दिए जाते हैं.
जायकोव-डी की केवल एक करोड़ खुराक उपलब्ध
एक तरफ जहां सरकार के लिए जायकोव-डी की खरीद लागत पर निर्माताओं के साथ बातचीत जारी है, इस बात को लेकर भी चिंता जताई जा रही है कि साल के अंत तक वैक्सीन की कितनी खुराक उपलब्ध हो पाएंगी.
तथ्यात्मक तौर पर देखें को औसतन 10 फीसदी खुराक बर्बाद होती है और कोवैक्सीन, कोविशील्ड और स्पुतनिक-वी के विपरीत यह तीन-खुराक वाला टीका है. ऐसे में लगभग एक करोड़ खुराक का उपलब्धता के साथ यह देश में अनुमानित 45 करोड़ बच्चों में से केवल 30 लाख बच्चों के टीकाकरण के लिए ही पर्याप्त है. यही कारण है कि ये सवाल सबसे अहम है कि बच्चों के टीकाकरण के पहले चरण में कौन-सी कोमोर्बिडिटी को शामिल किया जाए.
भारत में अब तक दी गई 100 करोड़ से अधिक खुराक में देश के पहले स्वदेशी टीके की खुराक केवल 11.68 करोड़ रही हैं.
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