नई दिल्ली: भारत में सभी बच्चों के नियमित टीकाकरण के प्रयासों को कोविड महामारी के कारण मामूली सा झटका लगा है. सरकार द्वारा संसद में साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, टीकाकरण कवरेज, जो 2014 में मिशन इंद्रधनुष (एमआई) के शुभारंभ के बाद महामारी से पहले की अवधि में 92 प्रतिशत के आंकड़े को छू गया था, अब इस से लगभग 5 प्रतिशत कम हो गया है.
हालांकि, विभिन्न राज्यों से प्राप्त संख्याएं आपसे में काफ़ी भिन्न हैं. 2020-21 पहला साल था जो पूरी तरह महामारी से प्रभावित था. इस वर्ष, कुछ राज्यों – जो बुरी तरह कोविड की चपेट में आए थे जिनमें महाराष्ट्र और केरल शामिल हैं – नियमित टीकाकरण में मामूली गिरावट देखी गई, जबकि कर्नाटक जैसे अन्य राज्यों में पिछले वर्ष (2019-20) की तुलना में अधिक संख्या में टीकाकरण हुए.
भारत में प्रत्येक बच्चे को जन्म के एक वर्ष के भीतर 12 टीके लगाए जाते हैं. हालांकि अभी के लिए कोविड वैक्सीन चर्चा का गर्म विषय बना हुआ है, अधिकारियों का कहना है कि नियमित टीकाकरण अभियान के मामले में आई गिरावट को पाटने के प्रयास निरंतर जारी है, जिनसे भारत को अपने बच्चों को डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टिटनस, पोलियो, खसरा, रूबेला, बचपन के तपेदिक, और हेपेटाइटिस बी. जैसी बीमारियों से बचाने में मदद मिलती है.
मंगलवार को राज्यसभा में पूछे गये एक प्रश्न के उत्तर में, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जो आंकड़ा प्रस्तुत किया उसके अनुसार 2020-2021 में 2,32,22,003 (87.9 प्रतिशत) बच्चों को नियमित टीके लगाए जा सके, जो की एक साल पहले (2019-20) के आंकड़े – 2,44,12,021 (92.5 प्रतिशत) – की तुलना में लगभग 5 प्रतिशत कम था.
भारत के वार्षिक जन्म समूह में हर साल लगभग 2.64 करोड़ शिशुओं के जन्म अनुमान है. हालांकि महामारी वर्ष के दौरान यह संख्या अभी भी 2018-19 (महामारी के पहले के पूरे साल) की तुलना में अधिक थी – लगभग 2,28,60611 – फिर भी यह गिरावट चिंता का कारण है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, ‘हमने नियमित टीकाकरण की कुल संख्या में लगभग 5 प्रतिशत की गिरावट देखी है, लेकिन अब हमारे पास एक पूरी व्यवस्था है, हम जल्द ही उस गिरावट को पाटने की उम्मीद कर रहे हैं. पहले से अनछुए इलाक़ों को कवर करना अधिक कठिन होता है और मिशन इंद्रधनुष (एमआई) के माध्यम से हम यही कर पा रहे हैं.
2014, जब मिशन इंद्रधनुष शुरू किया गया था, के बाद से भारत में नियमित टीकाकरण पर दिए जाने वाले अतिरिक्त ध्यान के कारण इस मामले में उल्लेखनीय प्रगति हुई है.
2019 तक यह कवरेज 2015-16 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 से प्राप्त 65 प्रतिशत के आंकड़े से बढ़कर 91 प्रतिशत हो गया था. मिशन इंद्रधनुष की शुरुआत से पहले भारत में बच्चों के टीकाकरण की वार्षिक वृद्धि दर केवल 1 प्रतिशत थी.
प्रारंभ में 201 सबसे कम टीकाकरण वाले जिलों में टीकाकरण की कम संख्या की समस्या को हल करने के लिए एक बूस्टर कार्यक्रम के रूप में डिज़ाइन किए गये मिशन इंद्रधनुष ने कैंपेन-मोड में टीकाकरण अभियान की शुरुआत की.
इस कार्यक्रम को मिली सफलता – जिसमें जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के इंटरनेशनल वैक्सीन एक्सेस सेंटर (आईवीएसी) द्वारा सामने लाई गई प्रतिष्ठित ‘निमोनिया और डायरिया प्रगति रिपोर्ट’ में भारत के टीकाकरण प्रयासों के लिए की गयी प्रशंसा भी शामिल है – का परिणाम यह हुआ कि बाद में इस अभियान के दो और संस्करण शुरू किए गये.
इस साल फरवरी में आयोजित इंटेनसिफाइड मिशन इंद्रधनुष 3.0, विशेष रूप से कोविड -19 महामारी से इस कार्यक्रम को हुए नुकसान की भरपाई के प्रति लक्षित किया गया था.
यह भी पढ़ें: देश की दवा नियामक ने Covaxin और Covishield वैक्सीन की मिक्सिंग वाले अध्ययन को मंजूरी दी
विभिन्न राज्यों में भिन्न प्रभाव
हालांकि नियमित टीकाकरण में आई समग्र गिरावट इतनी अधिक नहीं है, फिर भी कुछ राज्य अन्य दूसरे राज्यों की तुलना में काफ़ी अधिक प्रभावित हुए हैं और यह प्रभाव हर मामले में कोविड -19 के स्थानीय फैलाव के समानुपात में नहीं थे.
उदाहरण के तौर पर, महाराष्ट्र और केरल में नियमित टीकाकरण में क्रमशः लगभग 3.6 प्रतिशत और 2.3 प्रतिशत की गिरावट देखी गई.
राज्य सभा में सरकार द्वारा पेश किए गये आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र ने महामारी वर्ष में उससे पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 70,037 कम बच्चों का टीकाकरण किया, जबकि इसी तरह केरल ने 10,547 कम बच्चों को टीका लगाया.
उत्तर प्रदेश, जहां टीकाकरण में लगभग 9.79 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, ने 5,35,012 कम बच्चों का टीकाकरण किया, जबकि बिहार मे इस संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में 1,64,458 या 5.94 प्रतिशत की गिरावट आई है.
इस बीच, कुछ अन्य राज्य इस महामारी वर्ष में पहले की तुलना में बेहतर संख्या तक पहुंचने में कामयाब रहे.
उदाहरण के लिए, ओडिशा ने 2020-21 में 6,85,232 बच्चों का टीकाकरण किया, जो उससे एक साल पहले की संख्या – 6,75,322 – से 9,910 ज़्यादा थी. पंजाब, जो कोविड से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में शुमार है, ने 2020-21 में 4,01,814 बच्चों का टीकाकरण किया, जो एक साल पहले – 3,93,111- के मुकाबले, 8,703 ज़्यादा है. इसी तरह, कर्नाटक ने 2020-21 में 10,68,403 बच्चों का टीकाकरण किया और यहां एक साल पहले – 10,54,546 – के मुकाबले, 13,857 का बेहतर अंतर है.
यह भी पढ़ें: तीसरी लहर से निपटने को तैयार तमिलनाडु कैसे हजारों नर्सों को कोविड पीड़ित बच्चों की देखभाल की ट्रेनिंग दे रहा है
पोलियो टीकाकरण घटा
2014 में, भारत को पोलियो उन्मूलन के लक्ष्य में कामयाब होने के लिए वैश्विक रूप से प्रशंसा हासिल हुई थी. हालांकि, महामारी ने पोलियो वैक्सीन के कवरेज को भी प्रभावित किया है, जो भारत के सर्वश्रेष्ठ टीकाकरण अभियान में से एक है.
लोकसभा में एक अलग प्रश्न के उत्तर में स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने कहा: ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और युनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रेन फंड (यूनिसेफ) के अनुमानों के अनुसार, भारत में ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) की तीसरी खुराक की कवरेज 2019 में 90 फीसदी और 2020 में 85 फीसदी थी.’
उन्होंने टीकाकरण के मामलों में आई गिरावट को पाटने के लिए उठाए जा रहे कदमों की रूपरेखा भी पेश की. उन्होंने कहा, ‘कोविड -19 महामारी के दौरान वैक्सीन के प्रति हिचकिचाहट को दूर करने और उचित सावधानियों के साथ नियमित टीकाकरण अभियान को मजबूत करने के लिए उपयुक्त संचार सामग्री विकसित कर ली गई है और इसे राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साझा भी किया गया है.’
स्वास्थ्य राज्य मंत्री पवार ने अपने लिखित उत्तर में कहा, ‘कोविड -19 महामारी के दौरान टीकों और अन्य ज़रूरी सामानों की आपूर्ति शृंखला की सलामती सुनिश्चित की गई है. इसके अलावा, टीकाकरण से रहित और आंशिक रूप से टीकाकरण वाले बच्चों को कवर करने के लिए फरवरी 2021 और मार्च 2021 में सघन मिशन इंद्रधनुष 3.0 भी आयोजित किया गया था. इन प्रयासों ने टीकाकरण कवरेज में आए अंतराल को कम करने में योगदान किया है. राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को पूर्ण टीकाकरण कवरेज में सुधार लाने के लिए विशिष्ट योजना तैयार करने और सप्ताह में एक निर्दिष्ट दिन केवल नियमित टीकाकरण गतिविधि के लिए सुनिश्चित करने हेतु कहा गया है.’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: केरल के एक जिले में 20,000 से ज्यादा मामलों ने बढ़ायी केंद्र सरकार की चिंता