नई दिल्ली: दिप्रिंट के हाथ लगे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चला है, कि भारत के टीकाकरण अभियान में,16 जनवरी से 27 मार्च के बीच पहले 71 दिनों में, कोविड-19 टीका लगवाने वाले, 176 लोगों की मौत हुई.
लेकिन, स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी ने ज़ोर देकर कहा, कि अभी तक ऐसा कुछ नहीं मिला है, जिससे इन मौतों को वैक्सिनेशंस से जोड़ा जा सके.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा कि टीका लगने के बाद, मौतों और विपरीत घटनाओं के आंकड़ों को (एईएफआईज़), जो टीकाकरण अभियान के दौरान सामने आए, बहुत समझदारी से देखना होगा, और फायदे-नुक़सान को तोलकर, बड़े सार्वजनिक हित में सोच-समझकर फैसला लेने की ज़रूरत है.
उन्होंने आगे कहा कि इस सब के बीच, सरकार की ओर से लोगों को पार्दर्शिता के साथ जानकारी देते रहना चाहिए.
16 जनवरी और 27 मार्च के बीच, कोविड वैक्सीन के 6 करोड़ से अधिक –बिल्कुल सही कहें, तो 6,11,13,354 टीके लगाए गए.
चूंकि भारत में दी जा रही दोनों वैक्सीन्स (कोविशील्ड और कोवैक्सीन) में दो ख़ुराक दी जाती हैं, इसलिए इन आंकड़ों में सिर्फ दी गई ख़ुराकों की संख्या पता चलती है, टीका लगाए गए लोगों की सही संख्या मालूम नहीं होती.
176 मौतों का मतलब है, कि दिए गए तक़रीबन हर 3.4 लाख टीकों पर, एक मौत का हिसाब बैठता है.
दिप्रिंट से बात करते हुए, ऊपर हवाला दिए गए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, कि 176 मौतें ‘कुल मौतें हैं जो इस अवधि में पूरे देश से रिपोर्ट की गई हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘अभी बिल्कुल स्पष्ट नहीं है, कि इनमें से कितनी मौतों का संबंध वैक्सिनेशंस से है. वो फैसला एक्सपर्ट्स की कमेटी द्वारा लिया जाएगा’.
16 जनवरी से 27 मार्च के बीच, एईएफआई के कुल 18,969 मामले कोविन पोर्टल पर दर्ज किए थे, जिसे टीकाकरण अभियान को समन्वित करने के लिए स्थापित किया गया था.
इसका मतलब है कि वैक्सीन के हर 1,00,000 डोज़ पर, एईएफआई के 31 मामले दर्ज किए गए. इनमें से 18,305 घटनाएं मामूली की श्रेणी में रखी गईं, जबकि 268 तेज़ थीं, और 396 गंभीर थीं.
भारत में 16 जनवरी से टीकाकरण शुरू किया गया था, जिसमें सबसे पहले स्वास्थ्य और फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीके लगाए गए, जिसके बाद 1 मार्च से, इसे विस्तार देकर वरिष्ठ नागरिकों, और 45 से अधिक आयु के अन्य बीमारियों वाले आम लोगों के लिए शुरू कर दिया गया. 1 अप्रैल से शुरू हुए तीसरे चरण में, 45 वर्ष से अधिक के सभी लोगों को, इसमें शामिल कर लिया गया.
इसलिए इन आंकड़ों में, प्राप्तकर्त्ताओं की केवल पहली दो श्रेणियों की मौतों, और एईएफआईज़ का पता चलता है.
सरकार ने कोविड-19 टीकाकरण के बाद, एईएफआईज़ के कारणों का मूल्यांकन करने के लिए, एक एक्सपर्ट्स समूह का गठन किया है.
17 मार्च को स्वास्थ्य मंत्रालय ने, आठ मामलों में किए गए मूल्यांकन के नतीजे सामने रखे, जिनमें वैक्सीन प्राप्तकर्त्ताओं की मौत हुई थी. नतीजों में कहा गया कि तीन मामलों में ‘टीकाकरण के साथ संगत संबंध पाया गया, चार मामलों में टीकाकरण के साथ असंगत संबंध (संयोगात्मक) मिला, और एक केस को किसी वर्ग में नहीं रखा जा सकता था’.
मंत्रालय ने कहा कि दो मामलों में, वैक्सीन और मौत के कारण के बीच, संबंध की ‘जैविक संभाव्यता’ हो सकती है. लेकिन पैनल ने पाया कि तीनों में ‘अस्थाई संबंध तो सिलसिलेवार है, लेकिन वैक्सीन से हो रही घटना के लिए पर्याप्त ठोस सबूत नहीं हैं’.
यह भी पढ़ें: भारत की Covid R वैल्यू इस हफ्ते बढ़कर 1.30 हुई, अप्रैल 2020 के बाद सबसे अधिक
आंध्र में सबसे अधिक मौतें दर्ज हुईं
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है, कि 176 में से 79 मौतें अस्पतालों में हुईं, जबकि 97 मौतें मरीज़ों के अस्पताल में भर्ती होने से पहली ही हो गईं.
आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक मौतें (19) दर्ज हुईं, जिसके बाद केरल (16), पश्चिम बंगाल (15) और महाराष्ट्र (15) हैं.
छोटे राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों में, प्रति एक लाख डोज़ पर एईएफआईज़ के ज़्यादा मामले दर्ज हुए हैं. दादरा व नगर हवेली (776) तालिका में सबसे ऊपर है, जिसके बाद मिज़ोरम (715), गोवा (478), सिक्किम (378), अरुणाचल प्रदेश (310), मेघालय (242), और हिमाचल प्रदेश (130) हैं. दिल्ली के लिए ये संख्या 65 थी.
बड़े राज्यों में, हर दस लाख डोज़ पर केरल में सबसे अधिक 115 एईएफआईज़ दर्ज हुईं, जिसके बाद कर्नाटक में 71, हरियाणा में 59, और तेलंगाना में 56 थीं.
ऊपर हवाला दिए गए मंत्रालय अधिकारी ने, दोनों अलग अलग वैक्सीन के प्राप्तकर्त्ताओं के बीच, एईएफआईज़ प्रतिशत और मौतों की, अलग अलग जानकारी साझा करने से मना कर दिया.
एईएफआई निगरानी के तहत, सभी राज्यों को अनिवार्य रूप से उन लोगों का आरटी-पीसीआर टोस्ट कराना होता है, जिनकी मौत हुई है या जो अस्पताल में भर्ती हुए हैं. एक ज़ुबानी ऑटोप्सी फॉर्म भी होता है, जिसमें इलाज कर रहे फिज़ीशियन, और मौत के बाद अनिवार्य हिस्टोपैथोलॉजिकल परीक्षण से मिली जानकारी भरी जाती है.
एम्स में कम्यूनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ आनंद कृष्णन ने कहा: ‘जब हम एईएफआईज़ और मौतों का मूल्यांकन करते हैं, तो वैक्सीन या वैक्सीन के बिना, विभिन्न आयु वर्गों के मौत से जुड़े आंकड़े हासिल करना, महामारी विज्ञान संबंधी एक बड़ी चुनौती होती है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन अगर हम मान लें, कि टीकों की वजह से इतनी संख्या में अतिरिक्त मौतें हुईं हैं, तो हमें इसके फायदे नुक़सान को तोलना होगा, और बड़े सार्वजनिक को किसी छोटे से निजी नुक़सान के साथ संतुलित करते हुए, सोच-समझकर कोई फैसला लेना होगा. जब तक इसे एक पारदर्शी तरीक़े से किया जाता है, और सभी जानकारी सार्वजनिक रूप से उप्लब्ध रहती है…तो ये समुदाय का फैसला होता है’.
‘सरकार समुदाय की प्रतिनिधि होती है. लेकिन, साथ ही उन लोगों के लिए मुआवज़े का प्रावधान होना चाहिए, जो उस छोटे से निजी नुक़सान को झेलते हैं’.
राजस्थान में 52% वरिष्ठ लोगों को टीका लग चुका है
31 मार्च तक, वरिष्ठ नागरिकों को टीका लगाए जाने के मामले में, तीन शार्ष राज्य थे लद्दाख़ (82 प्रतिशत), त्रिपुरा (59 प्रतिशत) और राजस्थान (52 प्रतिशत). उस समय तक गुजरात में 42 प्रतिशत और केरल में 33 प्रतिशत वरिष्ठ नागरिकों को टीके लगाए जा चुके थे. कर्नाटक, झारखंड, गोवा, और जम्मू-कश्मीर ने भी अपने यहां, 24 प्रतिशत वरिष्ठों को टीके लगा दिए हैं, जबकि महाराष्ट्र में ये संख्या 19 प्रतिशत थी, जहां दूसरी लहर के बीच कोविड संक्रमण में सबसे अधिक उछाल देखा जा रहा है.
ख़राब प्रदर्शन वाले राज्यों में हैं तमिलनाडु (9 प्रतिशत), पंजाब (जहां मृत्यु दर भी बहुत अधिक है) 7 प्रतिशत, और तेलंगाना 10 प्रतिशत.
आंकड़ों से पता चलता है कि कोविशील्ड की सबसे अधिक बरबादी तमिलनाडु में हुई, जहां 10 प्रतिशत से अधिक डोज़ नहीं दिए जा सके, जबकि सबसे अधिक कोवैक्सीन असम में बर्बाद हुई, जहां 16.1 प्रतिशत टीके इस्तेमाल नहीं हो सके.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: कोरोनावायरस संक्रमण के मद्देनजर प्रयागराज, वाराणसी, बरेली एवं मेरठ में भी नाइट कर्फ्यू की घोषणा