नई दिल्ली: 30 से 69 वर्ष की आयु के कम से कम 17 प्रतिशत भारतीयों को भारत बायोटेक की कोविड-19 वैक्सीन कोवैक्सीन नहीं दी जा सकती, क्योंकि इसे उन लोगों को देने की मनाही है, जो ब्लड थिनर्स इस्तेमाल करते हैं- वो दवाएं जो ख़ून को गाढ़ा होने या जमने से रोकती हैं, ख़ून की नसों के अंदर भी और ख़ून बहने की स्थिति में भी.
सोमवार को प्रकाशित राष्ट्रीय गैर-संचारी रोग निगरानी सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, 17.4 प्रतिशत भारतीय एस्पिरिन लेते हैं, जो सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले ब्लड थिनर्स में से एक है.
कोवैक्सीन की फैक्ट-शीट में, जो उस सहमति फॉर्म के साथ जुड़ी है, जिसे लाभार्थियों को टीका लगवाने से पहले भरना पड़ता है, कहा गया है कि जो लोग ब्लड थिनर्स लेते हैं, या जिन्हें ब्लीडिंग की समस्या है, वो ये टीका नहीं ले सकते.
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा निर्मित और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी/ एस्ट्राज़ेनेका द्वारा विकसित कोविशील्ड की फैक्ट-शीट में, सीधे तौर पर तो नहीं कहा गया है कि ये ब्लड थिनर्स लेने वालों के लिए मना है, लेकिन टीका लेने वालों से ये ज़रूर कहा गया है कि यदि वो ऐसी दवाएं लेते हैं, तो अपने फिज़ीशियन को पहले से बता दें.
एनसीडीआईआर सर्वे के मुताबिक़, 38.2 प्रतिशत शहरी पुरुष, 19.2 प्रतिशत शहरी महिलाएं, 12.2 प्रतिशत ग्रामीण पुरुष और 8 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं, एस्पिरिन लेती हैं. जो लोग हर रोज़ एस्पिरिन लेते हैं, उनमें शहरों के 33.9 प्रतिशत पुरुष, शहरों की 19.2 प्रतिशत महिलाएं, गांवों के 6.2 प्रतिशत पुरुष, और गांवों की 5.7 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं. इसका मतलब है कि 30-69 के बीच की उम्र के, 13.8 प्रतिशत भारतीय वयस्क हर रोज़ एस्पिरिन लेते हैं.
एस्पिरिन भले ही सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाने वाली ब्लड थिनर है, लेकिन ये ऐसी अकेली दवा नहीं है. एस्पिरिन ख़ून के प्लैटेलेट्स पर काम करके, उसे गाढ़ा होने से रोकती है, लेकिन कुछ दूसरी दवाएं भी ख़ून को जमाने वाले कारकों को प्रभावित करके यही काम अंजाम देती हैं. ये दवाएं आमतौर से उन लोगों को दी जाती हैं, जिन्हें दिल के वॉल्व की बीमारियां होती हैं.
सर्वे से संकेत मिलता है कि ब्लड थिनर्स ले रहे भारतीयों की संख्या, जिन्हें इसकी वजह से वैक्सीन लेने की मनाही है, 17.4 प्रतिशत एस्पिरिन लेने वालों से अधिक हो सकती है.
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दिप्रिंट ने फोन कॉल के ज़रिए, भारत बायोटेक से स्पष्टीकरण लेना चाहा कि ब्लड थिनर्स ले वालों के लिए वैक्सीन की मनाही क्यों है. कंपनी प्रवक्ता ने व्हाट्सएप पर जवाब देते हुए कहा ‘नो कमेंट्स’. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को भेजे गए ईमेल का भी इस ख़बर के छपने तक कोई जवाब नहीं मिला था.
अन्य बीमारियों वाले इससे ख़ारिज हो सकते हैं, लेकिन डॉक्टरों ने कहा इसका कोई औचित्य नहीं.
कोवैक्सीन और कोविशील्ड की फैक्ट-शीट्स ने डॉक्टरों को चकरा दिया है, ख़ासकर इसलिए कि इस निषेध का मतलब ये होगा कि आबादी के एक बड़े वर्ग को, जिसे डायबिटीज़, हाइपरटेंशन और दिल की बीमारियां हैं बिना टीके के रहना होगा.
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ एस चटर्जी ने कहा, ‘ब्लड थिनर्स एक बहुत अस्पष्ट शब्द है. बहुत से लोग जिनका दिल की बीमारियों या स्ट्रोक का इतिहास है, उन्हें एन्टी-प्लेटलेट्स दी जाती हैं, और यही वो लोग हैं, जिनके लिए हम वैक्सीन की सिफारिश करते हैं. इंट्रामस्कुलर शॉट देने से ख़ून के जमने का ख़तरा हो सकता है लेकिन उसके लिए एक दिन ब्लड थिनर न देना काफी हो सकता है’.
चटर्जी ने बताया, ‘अगर हम फैक्ट-शीट्स के हिसाब से चलेंगे, तो इन बीमारियों वाले किसी भी मरीज़ को टीका नहीं दिया जा सकता. तो फिर हम टीका लगाएंगे किसे? हमें वास्तव में कंपनियों से और अधिक स्पष्टता की ज़रूरत है कि उनका मतलब क्या है. जितना मैं समझ पाया हूं, इसमें कोई दिक़्क़त नहीं होनी चाहिए. बल्कि हममें से ज़्यादातर को, कोविशील्ड टीका लग चुका है, जबकि हम ब्लड थिनर्स लेते हैं’.
जिन लोगों को दूसरी बीमारियां हैं, वो कोविड-19 टीकाकरण के लिए प्राथमिकता समूहों में हैं, हालांकि वैक्सीन के लिए ‘अपात्र’ बीमारियों की अंतिम सूची अभी जारी होनी बाक़ी है.
पब्लिक हेल्थ फाउण्डेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और एम्स नई दिल्ली में कार्डियोलॉजी के पूर्व प्रोफेसर, डॉ श्रीनाथ रेड्डी ने कहा कि एस्पिरिन या क्लॉपीडोग्रल ले रहे लोगों के लिए कोविड-19 वैक्सीन को निषिद्ध करने का कोई औचित्य नहीं है.
रेड्डी ने कहा, ‘ब्लड थिनर्स एक जनसाधारण की शब्दावली है और इसमें स्पष्टता नहीं है. इस शब्द के इस्तेमाल में अक्सर, एंटी-प्लेटेलेट और एंटी-कॉजुलेंट्स दोनों को शामिल कर लिया जाता है. पहली (एंटी-प्लेटेलेट दवाएं) प्लेटेलेट्स पर काम करके उन्हें गुच्छा बनने से रोकती है. दूसरी (एंटी-कॉजुलेंट्स) क्लॉटिंग फैक्टर्स पर काम करके ख़ून के थक्के बनने से रोकती है. एस्पिरिन या क्लॉपीडोग्रल ले रहे लोगों के लिए, कोविड-19 इंजेक्शंस को निषिद्ध करने का कोई औचित्य नहीं है. उनमें से बहुत से लोगों को बिना किसी नुक़सान के, फ्लू शॉट्स या न्यूमोकोकल वैक्सीन इंजक्शंस दिए जाते हैं’.
रेड्डी ने आगे कहा, ‘रूमेटिक हार्ट डिज़ीज़ वाले मरीज़ों को भी, जिनके हार्ट में मिकेनिकल वॉल्व लगे हुए होते हैं और जिन्हें एंटी-कॉजुलेंट्स लेनी होती हैं, ताकि वॉल्व के अंदर थक्के न जमें, तीन-तीन हफ्तों के अंतराल से कई सालों तक, नियमित रूप से बेंज़ाथीन पेंसिलिन के इंट्रा-मस्कुलर इंजेक्शंस दिए जाते हैं. सावधानी के तौर पर, वैक्सीन इंजेक्शन दिए जाने से पहले. थक्का जमने की स्थिति को चेक करने की सलाह दी जा सकती है, लेकिन एंटी-कॉजुलेंट्स लेने से वैक्सीन की मनाही नहीं हो सकती’.
अस्पतालों में क्या हो रहा है
हालांकि अधिकतर सरकारी अस्पतालों में, कोवैक्सीन उन लोगों को नहीं दी जा रही है, जो ब्लड थिनर्स पर हैं. दिल्ली के मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज में, प्रोफेसर ऑफ एक्सिलेंस डॉ सुनीला गर्ग ने कहा: ‘ये एक सामान्य प्रक्रिया है कि सर्जरी से गुज़रने वाले मरीज़ की, प्रॉसीजर से 48 घंटे पहले, ब्लड थिनर्स बंद कर दी जाती हैं. इसलिए वैक्सिनेशन (कोविशील्ड) के लिए भी, टीका लगाने से 48 घंटे पहले उन्हें बंद कर देना चाहिए’.
डॉक्टरों का कहना है कि ब्लड थिनर्स ले रहे लोगों को कोवैक्सीन न देने की वजह सिर्फ ये है कि ये अभी भी ट्रायल की स्थिति में है और इसकी ‘कोई दूसरी वजह नहीं है’.
पंजाब की स्टेट इम्युनाइज़ेशन ऑफिसर डॉ बलविंदर कौर, जहां वैक्सीन के लिए पंजीकृत लोगों में से अभी तक 38.9 प्रतिशत ने टीका लगवा लिया है, ने कहा: ‘फिलहाल यहां पर ऐसे ज़्यादा लोग नहीं आ रहे हैं, जिन्हें दूसरी बीमारियां हैं. लोग आगे आने में झिझक रहे हैं. इसलिए फिलहाल के लिए हमने तय किया है कि ऐसे किसी शख़्स को टीका नहीं लगाएंगे, जो ब्लड थिनर्स ले रहा हो’.
नई दिल्ली के एम्स में, इंस्टीट्यूट के एक सीनियर डॉक्टर ने, नाम न बताने की शर्त पर बताया, कि बहुत से स्वास्थ्य देखभाल करने वाले कर्मियों ने, जो ब्लड थिनर्स लेते हैं, वैक्सीन नहीं ली है.
डॉक्टर ने कहा, ‘लेकिन ये एक ग्रे-एरिया है. सरकार को इसे स्पष्ट करना चाहिए’. उन्होंने आगे कहा कि एक आसान हल ये होगा कि इसे डॉक्टर पर छोड़ दिया जाए कि ब्लड थिनर्स लेने वाले मरीज़ की स्थिति और वो किस तरह के ब्लड थिनर्स ले रहा है, उसको देखते हुए वो तय करे कि मरीज़ को वैक्सीन देना है कि नहीं.
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