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Sunday, 22 December, 2024
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न्यूमोकोकल वैक्सीन के आने से कैसे हर साल 50 हजार बच्चों की जान बचाई जा सकती है

अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देशभर में देसी वैक्सीन शुरू किए जाने की घोषणा की थी.

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नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के 2021 के बजट में, कोविड-19 टीकाकरण के लिए 35,000 करोड़ रुपए के आवंटन ने ख़ूब सुर्ख़ियां बटोरीं; इतनी ज़्यादा कि देशभर में न्यूमोकोकल वैक्सीन तक़रीबन फुटनोट बनकर रह गई. ये इस तथ्य के बावजूद हुआ कि न्यूमोकोकल निमोनिया के खिलाफ वैक्सीन, हर साल कुछ लाख बच्चों की ज़िंदगी बचा सकती है. इसके अलावा, पांच पायलट राज्यों के बाहर इस कार्यक्रम के विस्तार में केवल देसी वैक्सीन्स का इस्तेमाल किया जाएगा.

अपने बजट भाषण में सीतारमण ने कहा था: ‘न्यूमोकोकल वैक्सीन, जो भारत में ही निर्मित है, फिलहाल केवल पांच प्रांतों तक ही सीमित है. इसे पूरे देश में शुरू किया जाएगा’. सीतारमण ने आगे कहा, ‘इससे हर साल 50,000 से अधिक बच्चों की जान बचाई जा सकेगी’.


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भारत में निमोनिया का बोझ

भारत में बच्चों की सबसे अधिक मौतें निमोनिया और दस्तों से होती हैं. जॉन हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के, इंटरनेशनल वैक्सीन एक्सेस सेंटर (आईवैक) की वार्षिक निमोनिया और डायरिया की उन्नति रिपोर्ट के 2020 संस्करण में अनुमान लगाया गया कि भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के 233,240 बच्चे, निमोनिया और डायरिया से मारे जाते हैं, हर रोज़ 640 बच्चे.

भारत में हर साल 2.64 करोड़ बच्चे पैदा होते हैं. देश में पांच वर्ष से नीचे की मृत्यु दर, इस समय 34 प्रति हज़ार जन्म है, जिसका मतलब है कि भारत में लगभग 9 लाख बच्चे, पांच साल की उम्र को पहुंचने से पहले ही मर जाते हैं. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, इनमें से 13 प्रतिशत मौतें- हर वर्ष 1.15 लाख से ज़्यादा- न्यूमोकोकल निमोनिया से होती हैं’.

मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘इन मौतों में 50 प्रतिशत को न्यूमोकोकल निमोनिया से जोड़ा जा सकता है’. इसीलिए बजट में अनुमान लगाया गया है कि पूरे देश में न्यूमोकोकल वैक्सीन लाए जाने से, 50,000 जानें बचाई जा सकेंगी.

दुनियाभर में, पांच साल से कम उम्र में, किसी भी दूसरी अकेली संक्रामक बीमारी की अपेक्षा सबसे ज़्यादा बच्चे अभी भी निमोनिया से ही मर रहे हैं, जिसने 2018 में एक अनुमान के मुताबिक़ 800,000 बच्चों की जानें ली हैं.


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पांच राज्य जहां ये अभी दी जा रही है

2016 के अंत और 2017 के शुरू के बीच, भारत के पांच सूबों में न्यूमोकोकल कॉन्जुगल वैक्सीन शुरू की गई थी. ये सूबे हैं हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान. भारत में हर साल लगभग आधे बच्चे, इन्हीं पांच राज्यों में पैदा होते हैं. इस वैक्सीन की तीन ख़ुराकें, शिशुओं को 6 हफ्ते, 14 हफ्ते और 9 महीने पर दी जाती हैं. 2020 में जॉन हॉपकिन्स रिपोर्ट में, ये अनुमान भी लगाया गया, कि न्यूमोकोकल निमोनिया के ख़िलाफ टीकाकरण कवरेज में, 9 प्रतिशत बिंदु की वृद्धि हुई थी (2018 की 6% पीसीवी कवरेज, 2019 में बढ़कर 15% हो गई).

फिलहाल इन राज्यों में ये वैक्सीन गावी द्वारा दी जा रही है, जो कंपनियों, दानदाताओं और देशों का एक अंतर्राष्ट्रीय संघ है, जिसका उद्देश्य वैक्सीन्स का सामान वितरण सुनिश्चित करना है. मोटे अनुमान के मुताबिक़, देशभर में लगाए जाने के लिए, भारत में वैक्सीन के कुल 7.5 करोड़ डोज़ की ज़रूरत पड़ेगी.

देसी न्यूमोकोकल वैक्सीन हाल ही में विकसित की गई है.


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देसी वैक्सीन

जब भारत ने पहली बार अपने यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में, न्यूमोकोकल कॉन्जुगल वैक्सीन को शामिल किया, तो ये वैक्सीन दो कंपनियों, फ़ाइज़र और जीएसके से आती थीं, बल्कि पीसीवी उस समय यूआईपी बास्केट में सबसे महंगी वैक्सीन थी, जिसके दाम 2.95 डॉलर प्रति डोज़ थे. दूसरी यूआईपी वैक्सीन्स जैसे रोटावायरस वैक्सीन (1 डॉलर प्रति डोज़), पेंटावेलेंट वैक्सीन (0.69 डॉलर प्रति डोज़) और मीज़िल्स वैक्सीन (0.308 से 0.318 डॉलर प्रति डोज़) कहीं ज़्यादा सस्ती थीं.

कुछ अनुमानों में पूरे देश में वैक्सीन लगाने का ख़र्च 1,000 करोड़ रुपए बताया गया था.

दिसंबर 2020 में, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने न्यूमोसिल लॉन्च की, जो भारत की पहली देसी न्यूमोकोकल वैक्सीन थी. उस समय कंपनी ने अपने एक बयान में कहा था कि इस वैक्सीन को ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्रा, लि., पैथ एंड बिल और मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के बीच, दस साल से चले आ रहे सहयोग के ज़रिए तैयार किया गया है. इस महत्वपूर्ण मील के पत्थर का उद्देश्य, न्यूमोकोकल कॉन्जुगल वैक्सीन को और सस्ता बनाना और उसे कम और मध्यम आय वाले देशों की पहुंच में लाना है’.

अधिकारी ने आगे कहा, ‘वैक्सीन के देसी वेरिएंट का लॉन्च, परिदृश्य को काफी हद तक बदल सकता है, हम इसकी ख़रीद को लेकर बातचीत कर रहे हैं’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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