आदिवासी नेताओं का कहना है, ‘हम सरदार के खिलाफ़ नहीं है, हम मोदी सरकार के विकास के आईडिया का विरोध कर रहे हैं, जो आदिवासियों के हितों को नुकसान पहुंचा रही है.’
नई दिल्ली: सरदार पटेल की मूर्ति के अनावरण के बीच विरोध का शोर भी तेज़ हो गया है. नर्मदा ज़िले और आस-पास के आदिवासी आज ताला दिवस मना रहे हैं. इस दौरान विरोध कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं को पुलिस ने हिरासत मे लिया है.
राजपीपला में बुधवार को सामाजिक कार्यकर्ताओं और आदिवासियों ने काले गुब्बारे छोड़कर स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के विरोध में काला दिवस मनाया. विरोध कर रहे युवा नेताओं को पुलिस ने हिरासत में ले लिया.
विरोध कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता डॉ प्रफुल वसावा का कहना है कि ‘उन्होंने अपने खून से नरेंद्र मोदी मुर्दाबाद, मोदी गो बैक आदि नारे लिखे है. हमारा मानना है कि ये मूर्ति एकता की निशानी नहीं आदिवासियों के दमन की निशानी है. इसलिए हम इस कार्यक्रम का विरोध कर रहे है.’
स्टेच्यू ऑफ युनिटी के लिए जो ज़मीन ली गई है उसने 72 गांव प्रभावित हुए है, 75000 आदिवासियों का इससे नुकसान झेलना पड़ रहा है.
वसावा ने कहा, ‘आज सरदार को श्रद्धांजलि देना का दिन है पर इस क्षेत्र के लिए ये मातम का दिन है. आदिवासी जब किसी के मरने का शोक मनाते हैं तो घरों में चूल्हा नहीं जलता. आज यहां के घरों में भी चूल्हा नहीं जला है. हम सरदार के खिलाफ नहीं है हम मोदी सरकार के विकास के आईडिया का विरोध कर रहे है,जोकि आदिवासियों के विरूद्ध है.’
सरदार की मूर्ति स्थल से कुछ 25 किलोमीटर दूर वसावा समेत 15 सामाजिक कार्यकर्ताओं को राजपीपला में हिरासत में ले लिया गया हैं. करीब 100 बच्चे भी अपने भविष्य से चिंतित विरोध में जुड़े हैं.
वसावा का दावा है कि करीब 100 छोटे-बड़े आदिवासी संगठन, बनासकांठा से लेकर डांग तक- लगभग 9 आदिवासी ज़िले विरोध कर रहे हैं. उनका आरोप है कि सरदार सरोवर परियोजना में विस्थापन का मुआवज़ा ठीक से नहीं मिला था और उस पर अब इस परियोजना के लिए ज़मीन ली जा रही है.
वे कहते है ‘यहां टेंट सिटी, सभी राज्यों के गेस्ट हाउस, होटल, रिसॉर्ट के लिए ज़मीन ली जा रहीं है वो आदिवासियों की गोचर ज़मीन है. यहां के लोग और भविष्य की पीढ़ी का क्या होगा.’
नर्मदा ज़िले में आदिवासियों की उच्च शिक्षा का स्तर गुजरात में सबसे कम है, लगभग 5 प्रतिशत ही उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं. 6 लाख आबादी वाले इस ज़िले में एक भी अस्पताल नहीं है जिसमें आईसीयू की सुविधा हो. 85 प्रतिशत महिलाएं कुपोषित है. सिकल सेल एनीमिया आदिवासियों की जान ले रहा है. यहां आदिवासी इतना गरीब है कि उसके पास शरीर ढ़ंकने के लिए कपड़ा नहीं.
ऐसे में ज़मीन का जाना इन आदिवासियों के लिए एक बड़ा धक्का है और वे कह रहे हैं कि देश भर में मोदी जहां भी जायेंगे, आदिवासी उनका विरोध करते रहेंगे. उनकी मांग है कि अनुसूची 5 के तहत मिले अधिकारों को लागू किया जाए, आदिवासियों को सही मुआवज़ा मिले और उनके अधिकार सुरक्षित रखे जाएं. उनकी योजना है कि वे संयुक्त राष्ट्र को लिखेंगे कि मोदी की नीतियां मूल निवासियों के खिलाफ है और विश्व स्तर पर मूल निवासियों (इंडीजिनियस आबादी) को उनका विरोध करना चाहिए.