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Thursday, 21 November, 2024
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किस मुकाम पर पहुंचे हैं सालों पहले सीबीएससी परीक्षा टॉप करने वाले ?

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शुरुआत में, टॉपर होने का फायदा ज़रूर मिलता है। लेकिन उसके साथ ही आता है उसी ऊंचाई पर बने रहने का दबाव।

नई दिल्ली: हर साल केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सी बी एस ई) द्वारा बारहवीं के नतीजे घोषित किये जाने के साथ ही परीक्षा के टॉपर देशभर के अखबारों की सुर्खियाँ बनते हैं।

इस छोटी सी, एक दिन की प्रसिद्धि के बाद वे गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं। आखिर क्या होता है उनके साथ स्पॉटलाइट हट जाने पर?

आज की इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में, कम से कम’ 99 प्रतिशत नंबर लाने की अंधी दौड़ के बीच, आखिर क्या महत्व होता है किसी के टॉपर होने का?

सफलता की कहानियां

फिलहाल गूगल में काम कर रहे दिल्ली के द्रव्यांश शर्मा (2011 के टॉपर) ने इस एक दिन के सेलेब्रिटी स्टेटस का मज़ा लिया है। हालांकि उनका मानना है कि आप अपने जीवन में क्या करते हैं, वह आपके परीक्षाफल से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है।

दिप्रिंट से वे कहते हैं, “ मैंने 7 साल पहले बारहवीं की परीक्षा दी थी। बारहवीं के बाद अगले चार साल मैंने आई आई टी दिल्ली से कंप्यूटर साइंस एवं इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की। उसके बाद मैंने गूगल ज्वाइन कर ली और पिछले तीन सालों से वहीं काम कर रहा हूँ। मेरे अनुभव में बारहवीं के नंबरों का जीवन में आगे चलकर कोई खास मतलब नहीं रह जाता। पहले आप दृढ़ता के साथ अपनी रुचि का विषय चुन लें और फिर पूरी तत्परता के साथ उसमें लग जाएं, ऐसा मेरा मानना है। इससे आपका अच्छे कॉलेज में दाखिला भी मिलेगा और फिर यह तो शुरुआत है।”

हालांकि वे स्वीकार करते हैं कि उन्हें एक दिन सुर्खियाँ बनाने में मज़ा आया था। “बारहवीं की बोर्ड परीक्षा में अच्छे नंबर लाकर मुझे बहुत खुशी हुई थी। कई अखबारों में मेरे साक्षात्कार छापे और सरकार एवं मेरे स्कूल, दोनों की ओर से मुझे गणतंत्र दिवस पर सम्मानित किया गया। अपनी मेहनत को मिले इस पुरस्कार से मुझे काफी प्रोत्साहन मिला और मेरी समझ में आ गया कि पूर्ण समर्पण के साथ की गई मेहनत का फल ज़रूर मिलता है।”

ये लोग मानते हैं कि टॉपर होने के इस तमगे का बारहवीं के बाद कोई मतलब नहीं रह जाता। लेकिन वे यह भी कहते हैं कि इस टैग की वजह से उनपर अधिक दबाव रहता है।

एक दूसरे टॉपर, सविनय कपूर, वर्ष 2007 में सुर्खियों में आये । उन्होंने उस वर्ष की सारी मेडिकल परीक्षाओं जैसे एआईपीएमटी, पीएमटी एवं डीपीएमटी में सफलता हासिल की। अभी वे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान या एम्स से रेडियोलॉजी की विशेषज्ञ डिग्री हासिल कर रहे हैं।

कपूर कहते हैं – “अंक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उनसे आपको वह शुरुआती मदद मिलती है लेकिन उसके बाद आपकी सफलता आपके काम करने के तरीके पर निर्भर करती है। साथ ही यह सच है कि एक बार टॉपर का तमगा मिल जाने के बाद आपके ऊपर भी बढ़िया प्रदर्शन करने का एक दबाव बना रहता है।”

“ लोग रेडियोलॉजी को एक आसान विषय समझते हैं और इसीलिए मैंने इसे चुना। मुझसे अक्सर पूछा जाता है कि मैंने बालचिकित्सा, शल्यचिकित्सा या फिर मेडिसिन जैसा विषय क्यों नहीं चुना। कभी कभी मुझे लगता है कि खुदको साबित करने का यह अतिरिक्त दबाव हमेशा रहता है।

मूलरूप से केरल की रहनेवाली 2004 की सीबीएसई टॉपर अरुणा केशवन ने बिट्स पिलानी से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद पेन स्टेट, पेंसिलवेनिया से भौतिकी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। केशवन का नाम उनके क्षेत्र के जाने माने शोधार्थियों में आता है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2004 में उन्हें अपना ब्राण्ड एम्बेसडर भी बनाया था। वर्ष 2016 में एक राष्ट्रीय अखबार को दिए साक्षात्कार में वे कहती हैं कि जीवन के इस मक़ाम पर वे अपने स्कूल के मार्क्स के बारे में भूल चुकी हैं।

अपरंपरागत कहानियां।

जहाँ ये टॉपर अपने अपने क्षेत्रों में नित नई सफलता प्राप्त कर रहे हैं वहीं कुछ को दिक्क़तें भी उठानी पड़ रही हैं। इम्फाल के मोहम्मद इस्मत 2012 की परीक्षा के टॉपर रहे हैं। उन्होंने यह सफलता तब हासिल की जब उनके परिवार की मासिक आय केवल 2000 रुपये और सदस्यों की संख्या 8 थी। उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। वर्तमान में वे सिविल सेवा की तैयारी में लगे हैं।

फिर जयपुर के रोमन सैनी जैसे लोग भी हैं जिन्होंने बारहवीं की परीक्षा टॉप तो नहीं की पर उनका अकादमिक प्रदर्शन हमेशा उत्कृष्ट रहा। 24 वर्ष की आयु में उन्होंने काफी कुछ कर लिया था, चाहे वह एम्स की प्रवेश परीक्षा में अच्छा स्थान हो या फिर पहली ही कोशिश में ऑल इंडिया रैंक 18 के साथ सिविल सेवा की परीक्षा में सफलता। फिर 2016 में सब छोड़ छाड़कर उन्होंने अपना एक ऐप शुरू किया , एक ऑनलाइन मंच जहाँ लेक्चर्स और ट्यूटोरियल्स की सहायता से कोई भी सिविल सेवा

क्या कहते हैं शिक्षक

स्कूली शिक्षकों का मुख्यरूप से मानना है कि टॉपर होने से विद्यार्थियों को एक शुरुआती मदद भर मिलती है, उससे ज़्यादा कुछ नहीं।
दिल्ली के पूसा रोड स्थित स्प्रिंगडेल्स स्कूल की प्रिंसिपल अमिता वट्टल मानती हैं कि वैसे विद्यार्थियों का प्रदर्शन असली जीवन में बेहतर रहता है जो टॉप तो नहीं करते पर अच्छे मार्क्स ज़रूर लाते हैं।

वे कहती हैं -“अपने 42 वर्षों के अनुभव में मैंने देखा है कि वैसे बच्चे जो वक्तृत्व या अन्य को- करिक्युलर गतिविधियों में अच्छा करते हैं वे आगे चलकर जीवन में भी अच्छा करते हैं चाहे वे टॉपर हों या नही । वे विभिन क्षेत्रों में काम कर चुके हैं। मैंने उन्हें विकास के क्षेत्र में देखा है, कुछ संयुक्त राष्ट्र के लिए काम कर रहे हैं। सबने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है।”

“पिछले पंद्रह सालों की बात करें तो हम चाहते हैं कि युवा बहुविषयक या इंटरडिसिप्लिनरी क्षेत्रों में काम करें। इसके फ़लस्वरू अच्छा प्रदर्शन करनेवाले छात्र जीवन में भी अच्छा करते हैं। टॉपर मुख्यतः मेडिसिन या इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों की ओर रुख करते हैं लेकिन इस दूसरी श्रेणी के बच्चों ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण काम किये हैं।”

एलकॉन इंटरनेशनल स्कूल के प्रिंसिपल अशोक पांडेय कहते हैं, “95 प्रतिशत से ज़्यादा नंबर लाने वाले सभी मेहनती छात्रों की बौद्धिक क्षमता लगभग समान होती है। वे टॉपर बनेंगे या नहीं यह केवल संयोग एवं परीक्षा के दिन उनके प्रदर्शन पर निर्धारित है। किसी विद्यार्थी के किसी दूसरे विद्यार्थी से एक दो अंक ज़्यादा होने का मतलब यह नहीं कि वह ज़्यादा बुद्धिमान है।”

वे आगे कहते हैं -“लेकिन टॉप करने वाले विद्यार्थियों की कुछ आदतें ऐसी होती हैं जो उन्हें जीवन में आगे ले जाती हैं। मसलन इन विद्यार्थियों की पढ़ाई की आदतें अच्छी होती हैं जैसे समय प्रबंधन, अनुशासन एवं एकाग्रता। ये कुछ ऐसे गुण हैं जो उन्हें जीवन में आगे ले जा सकते हैं पर अगर उम्र के साथ यह गुण खत्म हो जाएं तो टॉपर होने का कोई फायदा नहीं रह जाता।”

Read in English: What happened to students who topped CBSE ten years ago?

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