scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमशासनजोधपुर के जैन : कैसे एक छोटे से समुदाय ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट पर किया राज

जोधपुर के जैन : कैसे एक छोटे से समुदाय ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट पर किया राज

Text Size:

भारत के पूर्व मुख्य न्यान्याधीश आर एम लोढ़ा एवं पूर्व जज जी एस सिंघवी एवं दलवीर भंडारी, ओसवाल जैन समुदाय से आते हैं जो राजस्थान की कुल आबादी का मात्र 0.5% है

नई दिल्ली: ओसवाल जैन राजस्थान का एक छोटा सा समुदाय है, जिसके लोगों की संख्या राज्य की कुल आबादी का मात्र 0.5 प्रतिशत है, लेकिन देश की न्यायपालिका में उनका अधिपत्य कहानियों का विषय बन चुका है।

ज़रा सोचिए : चार वर्षों में – 2008 और 2012 के बीच – भारत के सुप्रीम कोर्ट में इस शक्तिशाली समुदाय के तीन न्यायाधीश थे।

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर एम लोढ़ा, और पूर्व न्यायाधीश जी एस सिंघवी और दलवीर भंडारी – जो अब अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आई सी जे) के अकेले भारतीय सदस्य हैं – एक ही समुदाय से नहीं बल्कि एक दूसरे से भी संबंधित हैं।

इसके अलावा इस समुदाय के आधे दर्जन अन्य लोग हैं जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में सेवा कर रहे हैं या कर चुके हैं।


यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष न्यायाधीशों की प्रेस कांन्फ्रेस, एक गलती: फली नरीमन


ओसवाल मूल रूप से जोधपुर के पास एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखते हैं जिसका नाम ओसियां है। हालांकि ओसवाल मुख्यतया जैन हैं पर कुछ हिंदू भी समुदाय से संबंधित हैं।

जोधपुर स्थित राजस्थान उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों के करियर एक दूसरे से लगभग समानान्तर चले हैं।

हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के तीन समकालीन न्यायाधीशों के लिए यह असामान्य है कि वे सब एक ही उच्च न्यायालय से ताल्लुक रखें (जोकि अपेक्षाकृत छोटी है, राजस्थान उच्च न्यायालय में 50 न्यायाधीश हैं), लेकिन वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी जो स्वायं जोधपुर के ओसवाल जैन हैं, ने जोर देकर कहा कि यह कोई विचलन नहीं था।

उन्होंने कहा, “एक ही राज्य से तीन न्यायाधीशों को पदोन्नत करना वास्तव में एक संयोग है और सर्वोच्च न्यायालय में राजस्थान के ऐतिहासिक प्रतिनिधित्व के सुधार की कोशिश का संयोजन है।” “यह मेरी समझ में नहीं आता कि जब एक बार संयोग से राजस्थान से तीन माहिर जज हैं तो सवाल उठाये जा रहे हैं लेकिन 1960 के दशक में ऐसा जब दिल्ली, मुम्बई या कलकत्ता के मामले में हुआ करता था तब कभी कोई सवाल नहीं उठे।

जस्टिस जी एस सिंघवी

12 दिसंबर, 1948 को पैदा हुए, न्यायमूर्ति सिंघवी सिर्फ 42 वर्ष के थे जब उन्हें राजस्थान उच्च न्यायालय का न्यायाधीश घोषित किया गया था।

राजस्थान विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक विजेता सिंघवी एक न्यायाधीश नियुक्त होने से पहले 19 साल से अधिक समय से वकालत कर रहे थे। उनके पिता एमएम सिंघवी भी जोधपुर के एक प्रसिद्ध वकील थे।

2005 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले सिंघवी पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय और गुजरात उच्च न्यायालय में एक न्यायाधीश के रूप में सेवा दे चुके थे।

उन्हें 2007 में सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत किया गया था जहां से 2013 में वे आजतक के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए।

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में अपने कार्यकाल के दौरान वहां के वरिष्ठतम न्यायाधीश सिंघवी पर आरोप लगा था कि उन्होंने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश बी.के रॉय के खिलाफ न्यायाधीशों की एक अभूतपूर्व हड़ताल का नेतृत्व किया था जिसके फलस्वरूप उन्हें आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया गया था ।


यह भी पढ़ें: हमेशा के लिए न रह पाए हिटलर, न रह पाएंगे सुप्रीम कोर्ट के बुरे दिन : चेलमेश्वर


इस झटके ने सिंघवी की सर्वोच्च न्यायालय की राह में व्यवधान पैदा किया और और अंततः उन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के पद के बिना ही संतोष करना पड़ा।

सिंघवी के भाई आर एस सिंघवी, जो दिल्ली में एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं, का विवाह पूर्व मुख्यन्यायाधीश लोढ़ा की बहन, सुषमा हुआ है।

सुषमा गुंजन फाउंडेशन का नेतृत्व करती हैं जो एक नॉन-प्रॉफिट संस्था है। इस फाउंडेशन का हाल ही में केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने भाजपा के ‘संपर्क से समर्थन’ कार्यक्रम के लिए दौरा भी किया।

इसी हफ्ते, दिल्ली हाई कोर्ट ने अनीसिया बत्रा (जो इनकी बहु थीं) सुसाइड मामले में आर एस सिंघवी और सुषमा को गिरफ़्तारी से अंतरिम सुरक्षा की अवधि को बढ़ा दिया है। हालाँकि उनका बेटा मयंक सिंघवी, दिल्ली के एडवोकेट, एक महीने से ज़्यादा न्यायिक हिरासत में हैं।

सिंघवी के दूसरे भाई श्याम सिंह सिंघवी, जोकि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी हैं, घूसखोरी के आरोप में फंसे हुए हैं। जब जस्टिस सिंघवी सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत थे, तब सीबीआई ने दिल्ली और जोधपुर में श्याम सिंघवी के निवासों पर कथित तौर पर छापे मारे थे

2013 में श्याम सिंघवी पर गौहाटी उच्च न्यायालय की दो महिला कर्मचारियों से एक न्यायाधीश के गेस्टहाउस में छेड़खानी करने का आरोप भी लगा था। बाद में उच्च न्यायालय के बार एसोसिएशन ने तत्कालीन सीजेआई, अल्तामास कबीर से उनके खिलाफ जांच की मांग की।

न्यायमूर्ति सिंघवी के भतीजे संदीप मेहता भी ओसवाल जैन हैं और वर्तमान में राजस्थान उच्च न्यायालय में एक न्यायाधीश हैं। राजस्थान उच्च न्यायालय एक अन्य मौजूदा न्यायाधीश अरुण भंसाली, जोकि स्वयं भी एक ओसवाल जैन हैं, न्यायमूर्ति सिंघवी के भाइयों में से एक महेंद्र सिंह सिंघवी के जूनियर थे।

उनकी सेवानिवृत्ति के बाद न्यायमूर्ति सिंघवी को 2014 में कम्पटीशन अपेलेट ट्रिब्यूनल का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 2016 में सरकार ने उन्हें केजी डी 6 बेसिन से प्राप्त गैस के मूल्य पर रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के साथ 1.55 बिलियन डॉलर के केजी डी 6 बेसिन में गैस के मूल्य को लेकर हुए विवाद में मुख्य मध्यस्थ के रूप में नियुक्त किया ।

पिछले साल, नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने सिंघवी को मताधिकार के साथ फास्ट फूड जायंट मैकडॉनल्ड्स की पूर्व पार्टनर कंपनी कनॉट प्लाजा रेस्तरां लिमिटेड (सीपीआरएल) के बोर्ड सदस्य के रूप में नियुक्त किया था।


यह भी पढ़ें: अब समय आ गया है कि खुद को सुप्रीम साबित करे सुप्रीम कोर्ट


जस्टिस आर एम लोढ़ा

28 सितंबर 1949 को पैदा हुए न्यायमूर्ति लोढ़ा 45 वर्ष के थे जब उन्हें राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।

वह उस समय बीस वर्षों से अधिक के अनुभव के साथ जोधपुर और जयपुर में प्रसिद्धि पा चुके थे।

उनके पिता श्रीकृष्ण मल लोढ़ा राजस्थान उच्च न्यायालय में एक न्यायाधीश थे, जबकि उनके चाचा, चंद माल लोढ़ा और गुमान माल लोढा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे।

गुमान लाल लोढ़ा आगे चलकर जनसंघ में शामिल हुए और फिर सांसद भी बने। उन्होंने 2001 में गठित की गई सरकारी एजेंसी नेशनल कमीशन ऑन कैटल के अध्यक्ष के रूप में केंद्र की अटल बिहारी सरकार द्वारा गोकशी के खिलाफ एक कानून लाने की मांग की।

राजस्थान उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति के दो सप्ताह के भीतर, न्यायमूर्ति लोढ़ा को बॉम्बे हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उन्होंने 13 साल तक सेवा की।

जब न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार, जो लोढ़ा के जूनियर थे, को उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया तब लोढ़ा ने अपने गृह नगर में स्थानांतरण किये जाने की मांग की थी

मई 2008 में, उन्हें पटना उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था, और दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत। 2014 में सीजेआई के रूप में उनका कार्यकाल छह महीने से थोड़ा अधिक रहा।

सेवानिवृत्ति के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने लोढ़ा को तीन उच्च प्रोफ़ाइल समितियों का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया, जिसमें क्रिकेट और मेडिकल कॉलेजों का संचालन शामिल था।

न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी

1 अक्टूबर 1947 को पैदा हुए, न्यायमूर्ति भंडारी 44 वर्ष के थे जब दिल्ली उच्च न्यायालय में उन्हें न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।

वह जोधपुर में प्रसिद्ध वकीलों के परिवार से आते हैं और उनके पिता महावीर चंद भंडारी और दादा बी.सी. भंडारी दोनों राजस्थान बार के सदस्य थे।

अमेरिका की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने जोधपुर, जहां वह राजस्थान उच्च न्यायालय में वकील थे, से दिल्ली का रुख किया। 18 साल के अभ्यास के बाद वे जज बने और 2004 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।

वह 2007 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने, लेकिन 2012 में इस्तीफा दे दिया जब वे आईसीजे की दौड़ में भारत के प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए। ब्रिटिश उम्मीदवार के साथ करीबी मुठभेड़ के बाद उन्हें 2017 में अदालत में फिर से निर्वाचित किया गया था।

न्यायमूर्ति सिंघवी की पत्नी रंजना सिंघवी भंडारी की फर्स्ट कज़न हैं।

Read in English: Jains of Jodhpur: How a tiny community ruled India’s Supreme Court

share & View comments