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Wednesday, 13 November, 2024
होमशासनआरएसएस से ताल्लुक रखने वाले प्रभाकर राव भारत में हाइब्रिड बीजों के भविष्य पर डाल सकते हैं बुरा प्रभाव

आरएसएस से ताल्लुक रखने वाले प्रभाकर राव भारत में हाइब्रिड बीजों के भविष्य पर डाल सकते हैं बुरा प्रभाव

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मध्य अप्रैल में, नुजिवीडू सीड्स ने दिल्ली उच्च न्यायलय में मोन्सेंटो के खिलाफ एक निर्णायक लड़ाई में जीत हासिल की। लेकिन इसके सीएमडी मांडव प्रभाकर राव, पूर्व एबीवीपी के महासचिव, अभी भी संतुष्ट नहीं हुए हैं।

नई दिल्ली: मांडव प्रभाकर इस समय एक मिशन पर हैं और उनका मिशन किस प्रकार समाप्त होता है, यह बड़े पैमाने पर भारत के हाइब्रिड कृषि बीजों, कपास और कपड़ा उद्योगों का भविष्य निर्धारित कर सकता है।

राव तेलंगाना स्थित 45 साल पुरानी बीजों की कंपनी नुजिवीडू सीड्स लिमिटेड (एनएसएल) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक हैं, जो भारत की सबसे बड़ी हाइब्रिड बीजों की फर्म होने का दावा करती है।

उनके पास गलत होने और स्पष्ट राजनीतिक संबंध, जो केंद्र में एनडीए की छूट में महत्वपूर्ण है, का प्रखर बोध है। और यह उनकी कंपनी से 100 गुना बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी मोन्सेंटो से निपटने के लिए पर्याप्त था।

मध्य अप्रैल में, राव की कंपनी ने दिल्ली उच्च न्यायलय में मोन्सेंटो के खिलाफ एक निर्णायक लड़ाई में जीत हासिल की। मोन्सेंटो ने प्रतिष्ठित बीटी प्रौद्योगिकी पर अपना पेटेंट खो दिया और संभावित रूप से बीटी कपास के बीज के लाइसेंस से अपनी आय का 80 प्रतिशत हिस्सा भी।

मोन्सेंटो हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। यह केस अब 18 जुलाई को एक त्वरित प्रारंभिक सुनवाई के लिए पेश किया गया है।

बीटी प्रौद्योगिकी के लिए मोन्सेंटो के पेटेंट को अमान्य घोषित करते हुए उच्च न्यायालय ने नुजिवीडू और अन्य बीज निर्माताओं के लिए बीजों के निर्माण और बिक्री के लिए प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को आसान बना दिया। जिनके लिए उन्हें अब कम रॉयल्टी देनी पड़ेगी जो 183 रुपये से 80 प्रतिशत घटकर 39 रुपये प्रति पैकेट हो गयी है।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा कपास उत्पादक है, और भारतीय किसान प्रति वर्ष हाइब्रिड बीटी कपास के बीज के 45 मिलियन पैकेटों का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें से 90 प्रतिशत मोन्सेंटो द्वारा बेचे जाते हैं। कपास के बीज के लिए दुनिया के सबसे बड़े बाजार में इसकी कमाई 7,400 करोड़ रुपये ($1 बिलियन) से समानुपातिक रूप से 80 प्रतिशत घटकर 1,600 करोड़ रुपये (234 मिलियन डॉलर) हो सकती है। अपनी जीत से असंतृप्त राव ने नुजिवीडू द्वारा एक लाइसेंसधारक के रूप में भुगतान की गयी 800 करोड़ की रकम मोन्सेंटो से वापस लेने के लिए कानूनी लड़ाई जारी रखने की कसम खा रखी है। उनके साथ गलत होने का अहसास उन्हें तब हुआ था जब मोन्सेंटो ने उन्हें अतिरिक्त छूट देने से इनकार कर दिया था और नुजिवीडू का लाइसेंस रद्द कर रहा था बस क्योंकि नुजिवीडू एक उच्च जोखिम वाले आईपीओ की तैयारी कर रहा था।

राव का मानना है कि वह बस एक युद्ध लड़ रहे हैं। इससे मदद मिलती है कि वह राजनीतिक रूप से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के पूर्व महासचिव राव सत्तारूढ़ भाजपा के वैचारिक माता-पिता के करीबी रहे हैं।

यह भी कहा गया कि उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय की सुनवाई से पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की थी, हालांकि राव ने इससे इनकार किया।

मांडव प्रभाकर राव कौन हैं?

56 वर्षीय राव आंध्र प्रदेश के गुन्तूर जनपद के एक धनी कृषि परिवार से आते हैं। कृषि से एमएससी में अपने विश्वविद्यालय में शीर्ष स्थान हासिल करने के बाद वह परिवार द्वारा संचालित एनएसएल में शामिल हो गए और 1982 से इसका प्रबंधन कर रहे हैं।

आज, एनएसएल 2017 में 923 करोड़ रुपये के कारोबार के साथ भारत की सबसे बड़ी बीज कंपनियों में से एक है। यह देश में हाइब्रिड कपास के बीज बाजार में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी का दावा करती है और कहती है कि भारत में पैदा होने वाली आधी कपास की अनुवांशिकता एनएसएल से जुड़ी हुई है।

2004 में, अमेरिका स्थित मोन्सेंटो, दुनिया की सबसे बड़ी कृषि रसायन और कृषि प्रौद्योगिकी कंपनियों में से एक, ने एनएसएल को अपनी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके बीटी कपास के बीज बनाने और बेचने के लिए एक बार शुल्क और “ट्रेट वैल्यू” (विशेषता मूल्य) नामक आवधिक रॉयल्टी के बदले में लाइसेंस प्रदान दिया।

लाइसेंस 2015 में नवीनीकृत किया गया था लेकिन दोनों कम्पनियाँ टकराव के लिए आमने सामने आ गयीं।

राव के अपने कारण हैं। जब मोन्सेंटो ने लाइसेंसिंग समझौते को रद्द कर दिया तब नुजिवीडू अपने कारोबार के विस्तार के लिए 30 करोड़ रूपये का निवेश करने के बाद एक आईपीओ को शुरू करने की प्रक्रिया में थी। राव ने दिल्ली में दिप्रिंट को बताया “मोन्सेंटो ने हमारे आईपीओ को पटरी से उतार दिया था और हमें ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया था। हमारी योजनायें मुंह के बल गिरीं थीं, लेकिन मैं नहीं गिरा।

राव मोन्सेंटो के आकार या आर्थिक ताकत से डरे नहीं हैं, 2017 में मोन्सेंटो की शुद्ध बिक्री 94,900 करोड़ रूपये थी वहीं एनएसएल की बिक्री, इसके सामने बहुत कम, 923 करोड़ रूपये थी।

राव के बारे में कहा जाता है कि वह अपने राजनीतिक संबंधों पर भरोसा जताते हैं। राव के करीबी सहयोगियों में से एक ने कहा कि वह दिल्ली अमित शाह से मिलने के लिए गए थे, लेकिन राव ने इससे इनकार किया।

आरएसएस के अहम शख्सों और यहाँ तक कि कृषि मंत्री ने भी 2017 की शुरुआत में समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया था कि राव ने मोन्सेंटो के खिलाफ मदद के लिए उनसे संपर्क किया था। आरएसएस ने मदद करने का आश्वासन दिया था।

आलोचकों का कहना है कि राव के पक्ष में हस्तक्षेप आरएसएस को ‘स्वदेशी’ की गूँज पैदा करने में मदद करेगा, इस तथ्य के बावजूद कि नुजिवीडू को अमेरिकी निजी इक्विटी निवेशक ब्लैकस्टोन से फंड प्राप्त हुआ है।

पिछले साल, राव को सर्वसम्मति से नेशनल सीड एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनएसएआई) के अध्यक्ष के रूप में तीसरी बार निर्वाचित किया गया। एनएसएआई देश के 500 से अधिक सदस्यों के साथ बीज निर्माताओं की सबसे बड़ी लॉबी है। एनएसएआई की एक सदस्य कंपनी के मालिक ने कहा, “उनके राजनीतिक संबंध एसोसिएशन और इसकी सदस्य कंपनियों की चीजों को उनके हिसाब से पूरा करने में मदद करते हैं।”

राव ने दिप्रिंट के साथ अपनी बातचीत में सरकार से कोई मदद प्राप्त करने की बात को खारिज कर दिया। हालाँकि उन्होंने एबीवीपी के साथ अपने संबंध से इंकार नहीं किया। जब उनसे उनके कनेक्शन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “अफवाहों पर ध्यान देने की कोई आवश्यकता नहीं है।”

बल्कि राव ने कहा, सरकार विदेशी कंपनियों के शिकंजे में जकड़ी हुई है। उन्होंने कहा, “अमेरिकी दूतावास प्रधानमंत्री कार्यालय के अन्दर प्रचार कर रहा है। उनके पास 50 लोग हैं जो भारत में पीएमओ और प्रेस का प्रबंधन कर रहे हैं। हम बार-बार प्रयासों के बावजूद अपॉइंटमेंट पाने में असफल रहते हैं लेकिन वे पीएमओ अधिकारियों से अपनी इच्छानुसार मिलते हैं।”

रॉयल्टी पर एक लड़ाई

एनएसएल-मोन्सेंटो टकराव 2007 से चल रहा है जब आन्ध्र प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकारों ने ट्रेट वैल्यू, जो मोन्सेंटो जैसे प्रौद्योगिकी मालिक चार्ज कर सकते थे, को कम करते हुए कपास के बीजों की कीमत स्थिर कर दी थी। मोन्सेंटो ने आंध्र प्रदेश  हाई कोर्ट में इस आदेश के खिलाफ अपील की और हाई कोर्ट राज्य सरकार द्वारा ट्रेट वैल्यू को तय कराने का प्रयास करता रहा।

जून 2015 में, नुजिवीडू ने मोन्सेंटो से विशेष छूट प्रदान करने के लिए कहा था। मोन्सेंटो ने कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय को लिखे एक पत्र में कहा, “मना करने पर एनएसएल के अधिकारियों ने मोन्सेंटो और इसके संयुक्त भारतीय उपक्रम को बताया कि छूट से इनकार करने का ‘परिणाम’ भुगतना पड़ेगा।

आखिरकार मोन्सेंटो ने एनएसएल द्वारा बकाया राशि का भुगतान न किये जाने का हवाला देते हुए नवम्बर 2015 में नुजिवीडू के साथ समझौते को ख़त्म कर दिया।

नुजिवीडू और कुछ अन्य बीज निर्माताओं ने मोन्सेंटो के खिलाफ बाजार में अपनी प्रभुत्ववादी स्थिति का दुरूपयोग करने और उन पर गैर-प्रतिस्पर्धी समझौतों के लिए दबाव डालने का आरोप लगाते हुए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) में शिकायत दर्ज कराई। उसी समय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने सीसीआई से मोन्सेंटो के आचरण पर गौर करने के लिए कहा। यह एक ऐसा हस्तक्षेप था जो भारतीय बीज कंपनियों का पक्ष लेता हुआ प्रतीत हो रहा था। सीसीआई ने एक जांच शुरू कर दी।

प्रतिशोध में, मोन्सेंटो ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया और आरोप लगाया कि समझौते के रद्द होने के बाद भी मोन्सेंटो की बीटी प्रौद्योगिकी पर आधारित बीजों को बेचना जारी रखके और इसके ट्रेडमार्क का इस्तेमाल करके नुजिवीडू ने इसके बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का उल्लंघन किया था।

इस बीच, केंद्र सरकार ने मार्च 2016 में बीटी कपास के बीज पैकेटों की ट्रेट वैल्यू निर्धारित करने का आदेश जारी किया ताकि “मौजूदा और भविष्य की आनुवंशिक संशोधन प्रौद्योगिकियों के साथ कपास के बीजों के विक्रय मूल्य के लिए भारत भर में एक समान विनियमन” सुनिश्चित किया जा सके। इस पर मोन्सेंटो ने  भारत के नियामक पर्यावरण को ‘मनमाना और नवप्रवर्तन विरोधी’ कहा।

चीजें स्पष्ट रूप से एनएसएल और राव के पक्ष में जा रही थीं और अप्रैल में उच्च न्यायालय के फैसले ने एनएसएल की जीत को पक्का कर दिया।

अदालत ने एनएसएल के साथ सहमति व्यक्त की कि भारतीय पेटेंट अधिनियम पौधों, पौधों की किस्मों या बीजों के लिए पेटेंट देने पर रोक लगाता है। हालाँकि, इसने मोन्सेंटो को भारत के पादप विविधता संरक्षण और किसान अधिकार प्राधिकरण, जो इसे अनधिकृत उपयोगकर्ताओं द्वारा इसकी प्रौद्योगिकी की नक़ल को रोकने की अनुमति देगा, के साथ अपने बीटी कपास के बीज पंजीकृत करके भारत में अपने बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का दावा पेश करने के लिए तीन महीने का समय दिया था।

लेकिन अदालत के आदेश से भी पहले मोन्सेंटो ने प्रतिकूल नियामक स्थितियों का हवाला देते हुए भारत में कपास बीज प्रौद्योगिकी की नई पीढ़ी शुरू करने के खिलाफ फैसला ले लिया था। इसने यह भी कहा था कि यह भारतीय बाजार से पूरी तरह से बाहर निकल सकता है।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद दिप्रिंट ने मोन्सेंटो से टिप्पणी मांगी, तब उन्होंने कहा, “भारत को व्यापार करने के लिए तेजी से एक अप्रत्याशित जगह बनाने में यह निर्णय एक और मील का पत्थर था। इस फैसले से कई क्षेत्रों में व्यापक दुष्प्रभाव पड़ने की सम्भावना है और नवाचार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।”

राव और एनएसएल के लिए, मोन्सेंटो ने कहा कि यह व्यक्तियों पर टिप्पणी नहीं करेगा।

मोन्सेंटो का कहना है कि इसने अन्य भारतीय कंपनियों जैसे अजीत सीड्स, कावेरी सीड और अंकुर सीड्स के साथ दोस्ताना ढंग से विवाद सुलझाया है और नुजिवीडू के साथ भी ऐसा ही करना चाहता है लेकिन राव लड़ाई पर उतारू हैं।

विनाशकारी लड़ाई

एनएसएल और मोन्सेंटो की प्रतिद्वंद्विता भारत के कपास और वस्त्र उत्पादकों के लिए बुरी खबर है।

बीटी प्रद्योगिकी को भारत में 2002 में लांच किया गया था और भारत के कपास उत्पादन को 2000 में 130 लाख गांठों से 2016 में 390 लाख गांठों तक लाकर तीन गुना वृद्धि देने के लिए इसे श्रेय दिया गया है। हाल ही में भारत ने कपास उत्पादन के मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया है और अब यह दुनिया में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है।

कपास उत्पादन में वृद्धि के कारण भारत के वस्त्र उद्योग में उछाल आया है। 2000 में 26 मिलियन स्पिंडल से इसका उत्पादन 2017 में दोगुना यानि कि 52 मिलियन स्पिंडल हो गया।

भारत में, वस्त्र उद्योग क्षेत्र लगभग 32 मिलियन श्रमिकों को रोजगार देते हुए कृषि क्षेत्र के बाद दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है। कपड़ा मंत्रालय उत्पादन को दोगुना करना चाहता है और 2025 तक 300 अरब डॉलर तक व्यापार करना चाहता है, जिसके लिए उत्पादकता और कपास फाइबर की उपज (साथ ही सिंथेटिक कपड़े के अधिक उत्पादन) में वृद्धि की आवश्यकता होगी।

कपास के बीज निर्माताओं का कहना है कि कपास बीज प्रौद्योगिकी की नई पीढ़ी के बिना यह लक्ष्य असंभव है।

रासी सीड्स के अध्यक्ष और भारतीय बीज उद्योग संघ, जिसमें 30 बीज कम्पनियाँ सदस्यता लिए हुए हैं, के एक संस्थापक सदस्य एम रामसामी ने कहा, “यह लक्ष्य नवीनतम बीटी कपास प्रौद्योगिकियों के बिना पूरा नहीं किया जा सकता है। मौजूदा संस्करण बोलवोर्म के खिलाफ प्रभावशीलता खो रहा है, जो फसलों को मिटा सकता है।”

कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने चेतावनी दी कि यह विवाद भारत के निर्यात, किसानों की आय और रोजगार सृजन को नष्ट कर सकता है। उन्होंने कहा कि “यदि ये विदेशी कम्पनियाँ देश में नवीनतम उत्पादों को लेकर नहीं आतीं तो मुझे यह कहने में डर है कि हम दुनिया में सबसे बड़े निर्यातक की बजाय सबसे आयातक बन गए होते।”

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत स्वदेशी अनुसंधान और विकास में पर्याप्त निवेश करने में नाकाम रहा है।

गुलाटी ने कहा, “भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद [भारत में कृषि शिक्षा और अनुसंधान के समन्वय के लिए जिम्मेदार एक स्वायत्त निकाय] का कुल व्यय बजट मोन्सेंटो के बजट से कम है। भारत में नवीनतम प्रौद्योगिकी के प्रवाह को अवरुद्ध करने के बजाय, हमें उनकी प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के लिए शुल्क का भुगतान करना चाहिए।”

Read in English : Prabhakar Rao-the man with RSS links who could change the future of hybrid seeds in India

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