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Saturday, 21 December, 2024
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बाबरी मस्जिद केस के जज प्रमोशन पर रोक हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे

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सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि जब तक ट्रायल समाप्त नहीं हो जाता तब तक जज को स्थानांतरित नहीं किया जाएगा

नई दिल्ली: स्पेशल जज सुरेंद्र कुमार यादव जो लखनऊ की निचली अदालत में बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई कर रहे हैं ने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी है ,क्योंकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनके पदोन्नति और स्थानांतरण को रद्द कर दिया था.

1 जून को उच्च न्यायालय ने सुरेंद्र कुमार यादव को ज़िला जज के रूप में पदोन्नत करने का आदेश जारी किया था. हालांकि, कुछ घंटों बाद ही , अदालत ने 19 अप्रैल 2017 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण अपना आर्डर वापस ले लिया.

जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष और रोहिंटन एफ नरीमन के सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ के आदेश के अनुसार मुकदमा रायबरेली से लखनऊ स्थानांतरित कर दिया गया था और खंडपीड का निर्देश था कि मामले की दैनिक सुनवाई हो. उन्होंने यह भी आदेश दिया था कि जब तक ट्रायल समाप्त नहीं हो जाता तब तक जज को स्थानांतरित नहीं किया जाएगा.

यादव ने अपनी याचिका में कहा कि उन्होंने 1990 में न्यायिक सेवा में मुन्सिफ़ के रूप में प्रवेश किया था और 28 वर्षों की अपनी सेवा में बेदाग़ रहे.वकील मयुरी रघुवंशी ने तैयार याचिका को पढ़ा और कहा “हालांकि,आवेदक के द्वारा अत्यंत सच्चाई और ईमानदारी से काम करने के बावजूद आवेदक और उनका परिवार उनकी सेवा के अंतिम दौर में शर्मिंदा और अपमानित हैं.”

“आवेदक अपने वरिष्ठ पद पर पहुंच रहे है और अपने करियर के अंत में, जबकि उनके बैचमेट और उनके जूनियर को ज़िला जज के रूप में नियुक्त किया गया है, जबकि आवेदक को पदोन्नति से वंचित रखा गया है और अभी वे लखनऊ में, एडिशनल सेशन जज / स्पेशल जज (अयोध्या मामलों) के रूप में काम कर रहे हैं, जो की आवेदक को गंभीर नुक़सान पंहुचा रहा है. ”


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सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल जज से पूछा, कैसे सुनाएंगे बाबरी मस्जिद विध्वंस पर फैसला

 पीटीआई : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को लखनऊ की एक अदालत के सत्र न्यायाधीश से एक रिपोर्ट मांगी और पूछा कि भाजपा के दिग्गजों एलके आडवाणी , एमएम जोशी और उमा भारती से जुड़े बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले के मुकदमे को वह किस तरह अप्रैल 2019 की समयसीमा के अंदर पूरा करने का इरादा रखते हैं.

जस्टिस आरएफ नरीमन और इंदु मल्होत्रा की एक पीठ ने ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश एसके यादव की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार की प्रतिक्रिया मांगी है. उनकी पदोन्नति इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रोक रखी थी क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें सुनवाई पूरी करने के निर्देश दिए थे.

अदालत ने न्यायाधीश से एक मुहरबंद कवर में रिपोर्ट मांगी.

19 अप्रैल 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि बीजेपी के दिग्गजों आडवाणी, जोशी और उमा भारती पर राजनीतिक रूप से संवेदनशील 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में आपराधिक षड्यंत्र के गंभीर अपराध के तहत मुकदमा चलाया जाएगा और साथ ही निर्देश भी दिया था कि दो वर्षों के अंदर यानी 19 अप्रैल 2019 तक उसे संपन्न किया जाए.

सर्वोच्च न्यायालय ने इस मध्ययुगीन स्मारक के विध्वंस को “संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र ” को हिलाकर रख देनेवाले “अपराध” की श्रेणी में डाला और वीवीआईपी आरोपियों के खिलाफ आपराधिक साजिश के आरोप को बहाल करने की सीबीआई की याचिका को अनुमति दी थी.

सर्वोच्च न्यायालय ने तब कहा था, “कोई डी नोवो (ताज़ा ) परीक्षण नहीं होगा। पूरे मुकदमे का निष्कर्ष निकलने तक मुक़दमे की जांच कर रहे जज का तबादला नहीं होगा . इस मामले को तब तक स्थगित नहीं किया जाएगा जब तक सत्र अदालत उस ख़ास तारीख पर सुनवाई कर पाने में अक्षम हो. ”

6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे के विध्वंस से संबंधित दो तरह के मामले थे। पहले में नामजद ‘कारसेवक’ शामिल थे, जिसका मुकदमा लखनऊ अदालत में चल रहा है, जबकि नेताओं से संबंधित दूसरे मामले की सुनवाई रायबरेली की एक कोर्ट में हो रही है.

उच्चतम न्यायालय ने रायबरेली और लखनऊ की अदालतों में अलग-अलग चल रहे मुकदमों को साथ जोड़कर उनकी सुनवाई लखनऊ में करने का आदेश दिया था.

मामले में आडवाणी, जोशी और भारती सहित 13 आरोपियों के खिलाफ साजिश का आरोप हटा दिया गया था, जिसका मुकदमा रायबरेली में एक विशेष अदालत में किया जा रहा था.

आडवाणी, जोशी और भारती सहित 13 आरोपियों के खिलाफ रायबरेली की एक विशेष अदालत में चल रहे इस मुक़दमे से साज़िश का आरोप हटा दिया गया था.

दूसरी तरह के मुक़दमे अज्ञात ‘कारसेवकों’ के खिलाफ थे जो विवादित ढांचे के आसपास थे और उसके विध्वंस में शामिल थे. उनके खिलाफ मुकदमा लखनऊ की एक अदालत में चल रहा था.

21 आरोपियों पर लगे साजिश के आरोपों को हटाने के खिलाफ हाजी महबूब अहमद (जिनकी मृत्यु हो चुकी है ) और सीबीआई ने साथ मिलकर अपील दायर की थी जिसमें शीर्ष भाजपा नेता (जिनमें से आठ की मौत हो गई है ) भी शामिल थे.

आठ व्यक्तियों के खिलाफ एक पूरक चार्जशीट ज़रूर दायर की गई थी लेकिन इस विध्वंस की योजना बनानेवाले 13 लोगों का नाम उससे बाहर रखा गया.

भाजपा नेताओं आडवाणी, जोशी और भारती के अलावा, कल्याण सिंह (वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल), शिवसेना के प्रमुख बाल ठाकरे और वीएचपी नेता आचार्य गिरिराज किशोर (दोनों की मृत्यु हो चुकी है) के खिलाफ लगे साजिश के आरोप भी हटा दिए गए थे.

जिन अन्य लोगों के खिलाफ षड्यंत्र के आरोप हटा दिए गए उनमें विनय कटियार, विष्णु हरि डालमिया, सतीश प्रधान, सीआर बंसल , अशोक सिंघल (दिवंगत), साध्वी ऋतम्भरा , महंत अवैद्यनाथ (दिवंगत), आरवी वेदांती , परमहंस राम चंद्र दास (दिवंगत ), जगदीश मुनी महाराज, बीएल शर्मा, नृत्य गोपाल दास, धर्म दास, सतीश नगर और मोरेश्वर सावे (दिवंगत) मौजूद हैं.

अपीलों ने 20 मई 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को निरस्त करने की मांग की है जिसने विशेष अदालत के फैसले को कायम रखते हुए आईपीसी की धारा 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत लगे आरोपों को हटा दिया था.

सीबीआई ने आडवाणी और 20 अन्य को आईपीसी की धाराओं 153 A (पक्षों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने) , 153 बी (राष्ट्रीय अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डालनेवाले आख्यान ) और 505 ( विद्रोह या झूठे बयान और अफवाहें जिन्हें आम शांति को भंग करने के इरादे से प्रसारित किया गया हो ) के अंतर्गत चार्जशीट किया था.

इसके उपरान्त सीबीआई ने धारा 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत आरोप लगाए थे जिसे विशेष अदालत ने रद्द दिया था. उच्च न्यायलय ने भी इस फैसले को बरक़रार रखा था.

विशेष अदालत के आदेश को कायम रखते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था कि सीबीआई ने रायबरेली या उसकी संशोधन याचिका पर चले मुकदमे के दौरान किसी भी समय इन नेताओं के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र के आरोप होने की बात नहीं की थी.

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