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Wednesday, 25 December, 2024
होमशासनदंपत्ति को एचआईवी पॉजिटिव बताकर इलाज करने वाले दिल्ली के हर्बल क्लीनिक पर लगा जुर्माना

दंपत्ति को एचआईवी पॉजिटिव बताकर इलाज करने वाले दिल्ली के हर्बल क्लीनिक पर लगा जुर्माना

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अदालत ने परीक्षण करने वाली मुंबई की लैब पर भी जोड़े को गलत तरीके से भ्रमित करने के लिए 25,000 का जुर्माना लगाया है।

नई दिल्लीः नई दिल्ली की एक जिला उपभोक्ता अदालत ने एक जोड़े को गलत तरीके से एचआईवी पॉजिटिव बताकर भ्रमित करके उनके रोग का “उपचार” कर रही हर्बल क्लीनिक और मुंबई स्थित प्रयोगशाला, प्रत्येक पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया है।

जोड़े के अनुसार, धर्मपाल सिंह और उनकी पत्नी चंद्रो देवी को मुंबई आधारित हूटोन रेमिडीस प्रयोगशाला से प्राप्त परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली के न्यू फ्रेंड कॉलोनी में स्थित आयुना हर्बल हेल्थकेयर ने गलत तरीके से एचआईवी पॉजिटिव घोषित कर दिया था।

क्लीनिक में डॉक्टर आसिम जावेद ने कथित तौर पर औषधियों का निर्धारण कर उपचार प्रक्रिया को आगे बढ़ाया, उन्होंने दावा किया था कि उनके वायरस का इलाज हो जाएगा। यह धोखाधड़ी तब सामने आई जब जोड़े ने राजधानी के एक सरकारी अस्पताल में अपनी एचआईवी की जाँच कराई और इस जाँच में उनको एचआईवी निगेटिव पाया गया।


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उपभोक्ता अदालत ने क्लीनिक और प्रयोगशाला को यह कहते हुए पेश होने के लिए कहा कि एचआईवी का कोई इलाज ही नहीं होता है और ध्यान दिलाया कि इस वायरस के एंटीबॉडीज शरीर में हमेशा रहते हैं। यह भी माना गया कि क्लीनिक और प्रयोगशाला ने जान बूझकर जोड़े को गुमराह किया और अनुचित रूप से व्यापार प्रथाओं में शामिल हुए। अदालत ने फैसला सुनाया कि “शिकायतकर्ता के सरकारी प्रयोगशाला से प्राप्त परीक्षण परिणाम निगेटिव पाए गए थे। शिकायतकर्ता एचआईवी से न तो कभी पीड़ित था और न ही संक्रमित।”

अदालत ने आगे कहा कि “विपक्षी दलों ने उन्हें ऐसे उपचार का वादा करके गुमराह किया जिसका विशेषज्ञों द्वारा परीक्षण और अनुमोदित नहीं किया गया था। विपक्षी दल पहले तो निगेटिव परिणाम को पॉजिटिव बताकर फिर दवाईयाँ देकर जानबूझ कर धोखाधड़ी में शामिल हुए हैं।”

इसके अलावा, अदालत ने नौ साल पहले शिकायत की तारीख से लेकर दंपत्ति को 9 प्रतिशत ब्याज दर से जुर्माना देने का फैसला सुनाया।

धोखाधड़ी

शिकायतकर्ता धर्मपाल सिंह के अनुसार, उन्हें पेट दर्द की शिकायत के बाद नवंबर 2007 में हर्बल क्लिनिक में ले जाया गया था। उनका कहना है कि डॉ जावेद ने कथित तौर पर उन्हें गुड़गांव की रैनबैक्सी पैथोलॉजी प्रयोगशाला में एचआईवी परीक्षण कराने के लिए कहा था।

हालांकि, एक सप्ताह के बाद हूटोन रेमेडीज, हख मेडिकल फाउंडेशन की एक इकाई, के शीर्षक वाली एक रिपोर्ट ने सिंह को एचआईवी पॉजिटिव घोषित किया था।

सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि जैसा कि वे अपनी बीमारी से भयभीत और शर्मिन्दा थे, उन्होंने इसके बारे में किसी को भी न बताने का फैसला लिया और और फिर अपनी पत्नी को भी परीक्षण करवाने के लिए मजबूर किया। चन्द्रो देवी भी एचआईवी पॉजिटिव घोषित होने से उनको झटका लगा।

सिंह कहते हैं कि फिर डॉ. जावेद ने उन्हें आश्वस्त किया कि बीमारी का इलाज हो सकता है और 1000 रूपए प्रति बॉक्स (दवा का डिब्बा) की दवा का सुझाव दिया।

इलाज पूरा होने के कई महीने बाद, डॉक्टर ने जोड़े को कथित रूप से पुनः परीक्षण करवाने की सलाह दी जिससे यह पता चल सके कि दवाओं ने काम किया है या नहीं। शिकायतकर्ताओं को कथित तौर पर परीक्षण परिणाम प्राप्त करने के लिए 10,000 रुपये का अतिरिक्त भुगतान करने के लिए कहा गया था।उनको राहत देने के लिए उन्हें बताया गया कि उनके परिणाम फिर से एचआईवी निगेटिव हो गए हैं।

इसके बाद जोड़े ने सरकारी अस्पतालों में केवल यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनका इलाज किया गया थाकई बार परीक्षण करवाया।

सिंह कहते हैं कि तब उन्होंने पता लगाया कि एचआईवी का कोई इलाज नहीं होता है, जिसका उन्होंने महीनों इलाज करवाया था।


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जोड़े के अनुसार, क्लीनिक ने उपचार की लागत के बिलों की आपूर्ति करने से इंकार कर दिया, वे दावा करते हैं कि बिल 60,000 रुपये है।सिंह ने ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क (एचआरएलएन) के वकील कबीर चौधरी से संपर्क किया और क्लीनिक तथा डॉक्टर को उपभोक्ता अदालत में खींच लिया।

लगभग नौ वर्षों बाद, न्याय मिलने से सिंह अब खुश हैं। लेकिन उनके वकील का मानना है कि मुआवजे की राशि उनके द्वारा अपील की गई राशि की तुलना में काफी कम है।

चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, “हमने 5 लाख रुपये के मुआवजे की मांग की थी लेकिन हमें जो मिला वह बहुत कम है। हम एक उच्च राशि के लिए अपील करेंगे।”

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