पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच साझी सीमा होने की वजह से सीमा पार से अवैध आप्रवासन को लेकर चिंता बनी हुई है
नई दिल्ली: असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न्स (एनआरसी) के नवीनीकरण को एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाने के बाद भारतीय जनता पार्टी अब पश्चिम बंगाल में भी यही करना चाह रही है. यही नहीं, भाजपा ने अपनी मांगें मनवाने के लिए न्यायालय का सहारा लेने का विकल्प भी खुला छोड़ा है.
राज्य भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने दिप्रिंट को बताया -“हमें पश्चिम बंगाल में एनआरसी की तत्काल ज़रूरत है. दरअसल हमें इसकी सर्वाधिक आवश्यकता है. हमारे यहां करीब एक करोड़ घुसपैठिये हैं.”
घोष ने कहा कि एनआरसी 100 प्रतिशत ज़रूरी है और पार्टी इसके लिए समुचित प्रयास कर रही है.
वे आगे बताते हैं , “हम जनता की रायशुमारी के साथ साथ ज़मीनी स्तर पर विचार-विमर्श और सेमिनारों का आयोजन कर रहे हैं. हम इसकी मांग उचित मंच से आधिकारिक तौर पर करेंगे. हम अदालत जाने की योजना भी बना रहे हैं, “घोष ने कहा.
असम में एनआरसी
असम में एनआरसी को अपडेट करने के पीछे का उद्देश्य उन लोगों की पहचान करना है जो 24 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से ‘अवैध रूप से’ आये हैं. जुलाई-अंत में जारी किए गए अंतिम ड्राफ्ट से करीब 40 लाख आवेदकों के नाम गायब हैं.
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश और उसकी ही निगरानी में किया जा रहा यह उपक्रम 1985 के असम समझौते के अनुरूप है, जो भारत सरकार और छे साल चले असम आंदोलन के नेताओं के बीच हुआ है.
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असम की ही तरह पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच भी साझी सीमा होने के फलस्वरूप राज्य में अवैध प्रवासन की चिंता होना लाज़मी है. और अब तो भाजपा असम के साथ साथ पश्चिम बंगाल में भी यह प्रक्रिया दोहराने की मांग सक्रियता से उठा रही है.
इससे पहले, पश्चिम बंगाल के पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने असम में अंतिम मसौदे के जारी किए जाने के कुछ घंटों बाद ही बंगाल में भी भाजपा द्वारा यह मांग उठाये जाने के संकेत दिए थे.
हिंदुत्व का मत
शुरुआत में भाजपा का असम में एनआरसी की मांग या इसके कार्यान्वयन से कुछ लेना देना नहीं था और इस समझौते पर ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और ऑल असम गण संग्राम परिषद के नेताओं के हस्ताक्षर थे.
यह प्रक्रिया 2015 में कांग्रेस की सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई थी और जब भाजपा 2016 में सत्ता में आई तो सत्यापन की प्रक्रिया पहले से ही जारी थी.
हालांकि भाजपा ने इस मुद्दे को अपने हिंदुत्व के फॉर्मूले में फिट करने का प्रयास करते हुए देश भर में लगातार उठाया है और इसे सिटिज़नशिप अमेंडमेंट बिल से भी जोड़ा है जिसका उद्देश्य अवैध हिंदू प्रवासियों को नागरिकता देना है.
राजस्थान से पश्चिम बंगाल तक भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के भाषणों में एनआरसी का मुद्दा बार बार उठा है. “घुसपैठियों ” को उनके द्वारा “दीमक” कहकर सम्बोधित किये जाने पर काफी विवाद भी हुआ है.
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जुलाई में, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एनआरसी की निंदा करते हुए उन 40 लाख लोगों को आश्रय प्रदान करने की पेशकश की जिनका नाम असम के फाइनल ड्राफ्ट से गायब था.
घुसपैठियों को शरण देना मंज़ूर नहीं
भाजपा के राजनैतिक कथानक के अनुरूप, घोष ने कहा , “एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक दोनों पश्चिम बंगाल में एक साथ होने चाहिए.”
वे आगे कहते हैं – “हम एनआरसी की मांग और मज़बूती से उठाएंगे. लेकिन नागरिकता विधेयक का आना भी आवश्यक है क्योंकि हमें हिंदू शरणार्थियों की रक्षा करनी है.”
भाजपा ने आधिकारिक रूप से भी एनआरसी की मांग पर ज़ोर दिया है. इस महीने की शुरुआत में हुई अपनी दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारी बैठक के अंत में पार्टी ने कहा, “प्रधानमंत्री (नरेंद्र) मोदी की अगुवाई वाली भारत सरकार अवैध घुसपैठियों द्वारा भारत को सुरक्षित आश्रय के रूप में इस्तेमाल किये जाने की अनुमति नहीं देगी.
पार्टी ने आगे कहा, “प्रत्येक घुसपैठिए की पहचान कर उसकी नागरिकता छीन ली जाएगी और उसे निर्वासित किया जाएगा.”
भाजपा ने यह भी कहा कि उसने विभिन्न शहरों में रोहिंग्या शरणार्थियों की पहचान करने का काम शुरू कर दिया है और जल्द ही उन्हें निर्वासित करने की एक प्रक्रिया भी पेश की जायेगी.
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