यूपीएससी परीक्षाओं – देश में शीर्ष पदों का प्रवेश द्वार – ने एक संपन्न कोचिंग उद्योग का निर्माण किया है, जिनके दावे संदिग्ध प्रतीत होते हैं।
नई दिल्लीः प्रत्येक वर्ष सिविल सेवा के लिए यूपीएससी परीक्षा परिणामों की घोषणा के बाद, कोचिंग क्लासेज अपने विज्ञापन जारी करते हैं – कुछ दावा करते हैं कि उनके कम से कम 200 से 300 उमीदवारों ने सूची में अपनी जगह बना ली हैं; अन्य, संभावित उम्मीदवारों को प्रभावित करने के लिए उस वर्ष के टॉपर्स के नाम का इस्तेमाल करते हैं।
उदाहरण के लिए – 2017 में, दिल्ली में स्थित एक कोचिंग सेंटर एएलएस ने दावा किया था कि हमारे संस्थान के 909 छात्रों में से 244 छात्र चयनित थे, जबकि एक और लोकप्रिय कोचिंग संस्थान वाजीराम और रवि ने 400 से अधिक छात्रों का चयन किए जाने का दावा किया था। दिल्ली स्थित चाणक्य ने दावा किया था कि जो 355 चयनित उम्मीदवार थे, वे हमारे संस्थान के थे।
संख्यायें शायद ही कभी एक परीक्षा, जिसे सबसे कठिन परीक्षाओं में गिना जाता हो, में मेल खाती हों, न सिर्फ पाठ्यक्रम के संदर्भ में बल्कि उन परीक्षार्थियों के प्रतिशत के संदर्भ में भी जो अंततः ग्रेड प्राप्त करते हैं।
2017 का उदाहरण ही देख लें। जहां प्रारंभिक परीक्षा के लिए उपस्थित 4.5 लाख उम्मीदवारों में से, अंत में केवल 909 को ही चुना गया था – सफलता का प्रतिशत केवल 0.2 प्रतिशत था। यह दर पिछले कुछ वर्षों में इस तरह के कमजोर प्रतिशत के आस-पास चक्कर काट रही है।
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तो क्या कोचिंग सेंटर वास्तव में इतने सारे चयनों का प्रबंधन कर रहे हैं या यह केवल प्रचार-प्रसार की रणनीति है? क्या, पिछले कुछ वर्षों में, उन्हें यह ज्ञात हो गया है कि यूपीएससी में प्रश्नपत्र किस तरह तैयार किया जाता है? या क्या यह समझना अभी भी नामुमकिन है कि देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा को पास करने के लिए वास्तव में क्या करना है?
दिप्रिंट ने ऐसे उद्योगों की पड़ताल की जिसमें विशेषज्ञों ने करीब 3,000 करोड़ रुपये की कमाई होने का अनुमान लगाया है – जहां देश में सबसे प्रतिष्ठित सरकारी नौकरियों में से कुछ को नौकरी दिलवाने की उम्मीद से प्रेरित किया जाता है।
तीन-टीयर प्रक्रिया
देशवासियों की महत्वाकांक्षाओं पर प्रशासनिक सेवाएं शीर्ष पर हैं – परीक्षा में शामिल होने वाले उम्मीदवारों की बड़ी संख्या से यह बात साफ जाहिर होती है।
जबकि ज्यादातर, भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) जैसी प्रतिष्ठित नौकरियों की तलाश करते हैं, यूपीएससी परीक्षा 26 सेवाओं के लिए आयोजित की जाती है।
इनमें से कुछ में समूह बी (राजपत्रित) सेवाएं – आयकर सेवाएं, लेखा और ऑडिट परीक्षा सेवाएं, डीएएनआईपीएस (दिल्ली अंडमान और निकोबार द्वीप पुलिस सेवाएं) डीएएनआईसीएस (दिल्ली अंडमान और निकोबार द्वीप सिविल सेवा), पुडुचेरी सिविल सेवा, साथ-साथ कई अन्य सेवाएं शामिल हैं।
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इन सेवाओं का चयन एक तीन-टीयर प्रक्रिया पर आधारित होता है। पहले टीयर में प्रारंभिक परीक्षा होती है जिसमें दो पेपर होते हैं – एक सामान्य अध्ययन और दूसरा योग्यता परीक्षण, जो उम्मीदवार की तार्किक क्षमता, निर्णय लेने की क्षमता और सामान्य मानसिक क्षमता का परीक्षण करता है।
एक बार उम्मीदवारों द्वारा प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद, वे मुख्य परीक्षाओं के लिए उपस्थित होते हैं जिनमें सामान्य अध्ययन पर चार पेपर होते हैं, दो पेपर उम्मीदवार द्वारा चयनित होते हैं और एक निबंध पर आधारित होता है।
अंतिम चरण साक्षात्कार का होता है, और यहाँ कुछ ऐसे सवाल किए जाते हैं जो बहुत कठिन और अलग ही होते हैं। उम्मीदवारों को मुख्य परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है।
एक उभरता उद्योग
परिक्षा की संरचना ने कई कोचिंग सेंटरों को उत्पन्न किया है, जिनमें से कई का मुख्यालय नई दिल्ली में है, एक ऐसा बिजनेस मॉडल बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो परिक्षा की पूरी प्रक्रिया या कुछ हिस्सों को लक्षित करते हैं।
राजधानी के इन् में, जो की सिविल सेवा प्रशिक्षण का केंद्र है, पूरी प्रक्रिया के लिए छात्रों को तैयार करने के लिए 1.5 से 2 लाख रुपये के बीच फीस लेता है, जिसमें उनका साक्षात्कार सत्र के लिए प्रशिक्षण भी शामिल है।
वाजीराम तथा रवि एवं राउ जैसे लोकप्रिय, – सिविल सेवा कोचिंग व्यापार के अग्रणी – 2 लाख रुपये तक शुल्क लेते हैं और हर साल 10,000 से 12,000 छात्रों के पंजीकृत होने का दावा करते हैं।
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विशेषज्ञों ने इस उद्योग के लगभग 3,000 करोड़ रुपये के आसपास होने का अनुमान लगाया है, हालांकि इस विषय पर कोई ठोस अध्ययन नहीं है।
इसकी इतनी मांग है कि यहां तक कि छोटे संस्थान भी 10,000 से 1 लाख रुपये के बीच शुल्क लेते हैं। शिक्षकों की लोकप्रियता के आधार पर वैकल्पिक विषयों को सीखने के लिए अलग-अलग शुल्क 10,000 से 50,000 रुपये के बीच होता है।
कुछ संस्थान समाचार पत्र पढ़ने के लिए भी एक कोर्स कराते हैं, जिसमें वे 10,000 रुपये लेते हैं, यह कोर्स छात्र एक समाचार पत्र को कैसे समझें और करंट अफेयर की तैयारी कैसे करें सिखाने के लिए करवाया जाता है।
नई दिल्ली के मुखर्जी नगर में एक लोकप्रिय कोचिंग सेंटर, एएलएस कोचिंग इंस्टीट्यूट, सिविल सेवा कोचिंग का एक केंद्र, के एक परामर्शदाता ने कहा, “हमारे पास पढ़ाई कैसे करें और क्या पढ़ना है, के तरीके पर उचित मार्गदर्शन के लिए सही प्रकार के नोट्स देकर छात्रों को पढ़ाने का एक व्यवस्थित तरीका है।”
परामर्शदाता ने दावा किया, “हमारे संकाय सदस्य बहुत अनुभवी हैं; वे या तो सेवानिवृत्त हो चुके हैं या नौकरी कर रहे हैं, जो अच्छी तरह जानते हैं कि क्या काम करेगा और इस बहुत प्रतिष्ठित परीक्षा में क्या नहीं होगा।”
बदले में, शिक्षकों को भारी वेतन का भुगतान किया जाता है, जिससे उनमें से कुछ इन कोचिंग संस्थानों में पूर्णकालिक रूप से सिखाने के लिए, विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर की अपनी नियमित नौकरी को छोड़ देते हैं।
जहां कुछ केंद्र सभागार-जैसे व्याख्यान कक्षों में कक्षाएं चलाते हैं, जिसमें 100 से 150 छात्रों को बैठाया जाता है, वहीं बाकी आमतौर पर कॉलेजों में इस्तेमाल किए जाने वाले व्याख्यान कक्षों, जहां संकाय छात्र बातचीत संभव है, का उपयोग करते हैं।
करोल बाग में श्री चैतन्य आईएएस अकेडमी के एक सलाहकार ने कहा, “हम एक समय पर तीन बैच चलाते हैं प्रत्येक बैच में 50 छात्र होते हैं और हमारा पूरा ध्यान शिक्षक-छात्र के बीच संबंधों पर केन्द्रित रहता है। हम छात्रों को तैयारी के लिए पिछले साल के प्रश्न पैटर्न का पालन करने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं।”
उन्होंने कहा “हमारा यूएसपी यह है कि हम अन्य संस्थानों की तुलना में कम शुल्क लेते हैं। हम पाठ्यक्रम के लिए केवल 1,06,000 रुपये चार्ज करते हैं और यदि छात्र चाहते हैं कि वे 18 प्रतिशत जीएसटी का भुगतान न करने का भी चयन कर सकते हैं, जो 16,200 रुपये है।”
कुछ संस्थानों का कहना है कि वे छात्रों का चयन करने से पहले उनकी परीक्षा लेते हैं।
एक कोचिंग सेंटर फ्यूचर आईएएस के लक्ष्मण वैदवान ने कहा, “हमारा कोर्स 18 महीने की अवधि के लिए चलता है और हम 25 वर्ष से अधिक उम्र के छात्रों को स्वीकार नहीं करते हैं।“अगर कोई 25 साल की उम्र से सिविल सेवाओं की तैयारी करना शुरू कर देता है, तो वह इसकी तैयारी समाप्त करने पर 26 वर्ष से अधिक उम्र का होगा। छात्र इस उम्र तक या तो रुचि खो देते हैं या वे अन्य व्यवसायों में शामिल हो जाते हैं इसी लिए यह उम्र सीमा तय की गई है।”
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विधियों पर पैनी नज़र
यूएसपी के कोचिंग संस्थानों में से एक ने कहा है कि उनके अनुभव के आधार पर वे यूपीएससी परीक्षा की जटिलताओं से अवगत हैं और परीक्षा पैटर्न का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हैं।
लेकिन परीक्षा के टॉपर्स द्वारा भी इन दावों को अमान्य सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है।
2018 के यूपीएससी टॉपर अनुदीप दुरिशेट्टी, जिन्होंने ऑनलाइन स्टडी मैटेरियल के प्रयोग से आत्म-अध्ययन करके तैयारी की, ने बताया, “यूपीएससी कोई स्नातक परीक्षा जैसी नहीं है कि कोई आपका पथ प्रदर्शन कर सके। आयोग इस खेल में हमेशा आगे रहता है। जब तक कोचिंग सेंटर कुछ चीजों में विशेषज्ञता हासिल करते हैं, तब तक कमीशन परीक्षा के पैटर्न बदल देता है।”
हालांकि, उन्होंने एक कोचिंग सेंटर से टेस्ट सिरीज ली थी।
अतुल मिश्रा, जो दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में इतिहास पढ़ाते हैं, ने बताया कि यूपीएससी संस्था लोगों को ज़्यादातर आश्चर्यचकित कर देती है। उन्होंने आगे बताया, “सिविल सेवा परीक्षा पैटर्न में पिछले कुछ वर्षों में कई बदलाव हुए हैं। वैकल्पिक प्रश्नपत्र की संख्या में परिवर्तन, एक कौशल आधारित प्रश्नपत्र के परिचय से लेकर सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र की संख्या में वृद्धि तथा भाषाई प्रश्नपत्र से विदेशी भाषाओं का विलोपन आदि इसमें शामिल हैं।”
उन्होंने बताया, “2013 में सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्रों की संख्या में वृद्धि ने कोचिंग सेंटरों को प्रभावित कर दिया। क्योंकि इससे पहले वे इतिहास, भूगोल पर अधिक ध्यान केंद्रित करते थे लेकिन एक और सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र की शुरूआत के साथ उन्हें विज्ञान, पर्यावरण और नीतियों जैसे विषयों पर अधिक ध्यान देना पड़ा।”
पूर्व यूपीएससी अध्यक्ष ने दिप्रिंट को बताया कि वे मानते हैं कि परीक्षा पास करने के लिए केवल कोचिंग कक्षाओं में भाग लेना ही पर्याप्त नहीं है। उन्होंने बताया, “कोचिंग सेंटर इंटरव्यू में पूछे जाने वाले प्रश्नों की सामान्य समझ प्रदान कर सकते हैं कि उम्मीदवार स्वयं को कैसे तैयार करें और पेश करें। मुझे ऐसा नहीं लगता कि जो कोचिंग कर रहा है वह परीक्षा में सफल ही हो जाए।”
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आजकल शिक्षण विधियों पर ही प्रश्न उठ रहे हैं।
इरा सिंघल ने सिविल सेवा परीक्षा 2015 में टॉप किया था- आईएएस बनने का उनका यह चौथा प्रयास था। अपने निजी ब्लॉग पर उन्होंने अपनी पिछली असफलताओं के लिए अपने कोचिंग सेंटर को दोषी ठहराया।
विशेष रूप से यह इंगित करते हुए कि मेन्स परीक्षा की तैयारी में कोचिंग कक्षाओं में उन्हें पत्र लिखना सिखाया गया, उन्होंने बताया, “अगर मैंने पहले ही उनकी सलाह मानने से इनकार कर दिया होता, तो मुझे आईएएस पास करने के अपने चौथे प्रयास की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती।”
हालांकि, उन्होंने आगे कहा कि कोचिंग उन लोगों के लिए उपयोगी है जिन्हें परीक्षा के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने लिखा, “कोचिंग ज्यादातर उन लोगों के काम आती है जिन्हें किसी प्रकार के निर्देश की आवश्यकता होती है और लक्ष्य पर आगे बढ़ने के लिए किसी दूसरे की आवश्यकता होती है। मैंने 2009 -10 में अपने पहले प्रयास में कोचिंग की जब मुझे तैयारी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। मुझे यह भी नहीं पता था कि पाठ्यक्रम के विषयों का मतलब क्या है! मेरा कोई दोस्त या परिवार का सदस्य नहीं था जिसने कभी ऐसा किया हो।”
उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि उस समय कोई सामग्री ऑनलाइन उपलब्ध नहीं थी। सिंघल ने बताया, “आजकल बहुत सी सामग्री ऑनलाइन उपलब्ध है और कहाँ से शुरू करना है इस बारे में बहुत सारे मार्गदर्शन भी ऑनलाइन उपलब्ध हैं। इसलिए अगर आज मैं तैयारी कर रही होती तो मैं उन कोचिंग सेंटरों से नहीं जुड़ी होती।”
प्रखर शर्मा, कंपनी सलाहकार, वजीराम एंड रवि इंस्टीट्यूट फॉर सिविल सर्विसेज एग्जामिनेशन, तर्कसंगत रूप से इस तर्क का विरोध करते हैं।
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उन्होंने बताया, “यह जनता का ध्यान आकर्षित करने का एक तरीका है। वह (सिंघल) अपनी उपलब्धि के लिए पूरा श्रेय स्वयं लेना चाहती हैं। यह असामान्य नहीं है क्योंकि अधिकांश छात्र, जो सफलता प्राप्त करते हैं या कम से कम शीर्ष 10 की श्रेणी में आते हैं, कोचिंग सेन्टरों को अस्वीकार करने में संकोच नहीं करते लेकिन रिकॉर्ड इससे कुछ अलग ही सिद्ध करते हैं।”
“लगभग हर कोई जो टॉपर हैं उनमें से कुछ को छोड़कर निश्चित रूप से यह स्वीकार नहीं करते कि उन्होंने कहीं से कोचिंग ली है। मुझे नहीं पता कि क्यों वे ऐसा करते हैं, लेकिन शायद इसलिए कि वे सभी को सिर्फ यह बताना चाहते हैं कि यह उनकी कड़ी मेहनत है जिसके उन्हें परिणाम मिल गए, जो कि कुछ हद तक सच है।”
यह है कोचिंग का मुद्दा
सिंघल की तरह, ऐसे और भी लोग हैं जो मानते हैं कि कोचिंग से कुछ उम्मीदवारों को मदद मिलती हैं।
बी. टेक. से स्नातक किए अमन जैन, जिन्होंने दिल्ली में एक कोचिंग सेंटर में सिविल सेवा परीक्षा के लिए तैयारी की थी, ने बताया कि सीमित समय के लिए कोचिंग सेंटरों का चयन किया जाता है। जैन कहते हैं कि “कोचिंग क्लासेज आपको नोट्स से लेकर शिक्षक और मार्गदर्शन तक सबकुछ प्रदान करती हैं। अधिकतर वे लोग जो नहीं जानते हैं कि परीक्षा कैसे पास की जाए और तैयारी के लिए समय कम हैं वे कोचिंग के लिए जाएं।”
2009 के टॉपर शाह फैसल भी मानते हैं कि कोचिंग से मदद मिलती है। फैसल ने दिप्रिंट को बताया कि “मैंने परीक्षा के लिए कभी कोई औपचारिक कोचिंग नहीं की है और मैं हमेशा यही मानता हूँ कि आप कोचिंग के बिना भी इस परीक्षा को पास कर सकते हैं। मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूँ जिन्होंने कभी अपना गाँव तक नहीं छोड़ा, घर पर ही रहकर पढ़ाई की और आखिरकार परीक्षा में सफल हुए।”
उन्होंने कहा, “लेकिन फिर भी मैं ऐसे बहुत से अधिकारियों को जानता हूँ जिन्होंने कोचिंग करने की परीक्षा पास की है।
कोचिंग इस सफर को आसान बनाती है और इस सफर को कम समय वाला बना सकती है। जब आप दूसरों की तैयारी को देखते हैं तो पढ़ाई से ज्यादा आप यह समझ जाते हैं कि प्रतिस्पर्धा का स्तर क्या है।”
उन्होंने बताया, “लेकिन कुछ भी हो पढ़ाई तो उम्मीदवार को ही करनी है। आप लाखों खर्च कर सकते हैं आपको सर्वश्रेष्ठ कोचिंग सेंटर भी मिल सकते हैं लेकिन अगर आप कड़ी मेहनत नहीं करते हैं और परीक्षा की जरूरतों को नहीं समझते तो आप सफलता की तरफ नहीं जा रहे हैं।”
श्रेय की जंग
दिप्रिंट ने कई उम्मीदवारों और चयनित उम्मीदवारों से बातचीत की, उन्होंने बताया कि कोचिंग क्लासेज परीक्षा उत्तीर्ण करने वालों की संख्या में काफी वृद्धि करती हैं।”
2018 के टॉपर दुरिशेट्टी ने बताया कि कोचिंग क्लासेज उन लोगों का भी श्रेय ले लेती हैं जो अभी तक केवल परीक्षण श्रृंखला के लिए ही दिखाई दिए हैं। उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिए मैं, किसी भी कोचिंग सेंटर में नहीं गया लेकिन दिल्ली के एक लोकप्रिय कोचिंग सेंटर ने यह बताते हुए मेरा नाम छाप दिया कि मैं उनके वहाँ का पढ़ा हुआ हूँ।”
उम्मीदवारों ने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि एक परीक्षण सत्र के लिए भी कोचिंग सेंटर यह सुनिश्चित करते हैं कि उम्मीदवार उनके यहाँ पंजीकृत हो।
2016 में अपने पहले ही प्रयास में सिविल सेवा में टॉप करने वाली टीना डॉबी का नाम भी कई कोचिंग सेंटरों ने अपने विज्ञापन में प्रकाशित किया था। डाबी के अनुसार उन्होंने घर पर ही अपनी माँ की मदद से परीक्षा की तैयारी की थी। डाबी की माँ एक अभियांत्रिकी सेवा अधिकारी थीं जिन्होंने अपनी बेटी की तैयारी के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी।
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इरा सिंघल ने यह भी आरोप लगाया कि कोचिंग संस्थान ने उस वर्ष उनके नाम का इस्तेमाल किया था जब उन्होंने वहाँ कोचिंग भी नहीं की थी।
ऑनलाइन खतरा
कुछ लोगों ने कहा है कि ऑनलाइन प्रशिक्षण के आगमन से कोचिंग सेंटरों का एकाधिकार धीरे-धीरे फीका पड़ सकता है
यूपीएससी कोचिंग के लिए एक ऑनलाइन पोर्टलएकेडेमी प्रारंभ करने के लिए सेवाओं को छोड़ने से पहले, 2013 में 16 वीं रैंक हासिल करने वाले रोमन सैनी ने बताया कि “अगले पाँच सालों में, 1 से 2 लाख रुपये के बीच फीस लेने वाले कोचिंग सेन्टरों की कोई जरूरत नहीं रह जाएगी, क्योंकि ऑनलाइन इसपर काफी बड़ा कब्जा कर लेगा।”
“इंटरनेट तक बेहतर पहुँच के साथ, अधिकांश उम्मीदवार किसी भी एक महंगी कोचिंग कक्षाओं में जाने के बजाय ऑनलाइन अध्ययन करना पसंद करेंगे।”
सैनी ने बताया, अधिकांश ऑनलाइन संस्थान (मॉड्यूल) 24 घंटों से लेकर 7 दिनों तक के लिए पठन सामग्री सहित 5000 से 10,000 रुपये के बीच फीस लेते हैं। कुछ और भी ज्यादा, पूरे कार्यक्रम के लिए 90,000 रुपये ले सकते हैं लेकिन फिर भी इनकी लागत कोचिंग सेंटरों से कम ही है।
उन्होंने कहा, “ऑनलाइन कोचिंग की चाहे जो भी लागत हो, वह अभी भी कोचिंग सेंटरों से से कम ही है क्योंकि किसी को भी इन कोचिंग कक्षाओं के साथ रहने और खाने के लिए भी भुगतान करना पड़ता है।”
सैनी ने कहा कि केवल 10 प्रतिशत छात्रों को ही कोचिंग से फायदा हासिल होता है। उन्होंने कहा कि “यह केवल 10 प्रतिशत ही आगे की पंक्ति में बैठते हैं और लाभ प्राप्त करने वाले सवाल पूछने में सक्षम हैं। इन क्लासों का लक्ष्य प्रतिशत रूपांतरण को अधिकतम करना नहीं बल्कि चयनों की संख्या को अधिकतम करना है, इसलिए वे केवल उन्हीं लोगों पर ध्यान केन्द्रित करेंगे जिनका वे चयन करवा सकते हैं।”
दुरिशेट्टी भी मानते हैं कि इन संस्थानों से कुछ फायदा हासिल होता है। उन्होंने कहा, कोचिंग कोई जरूरी नहीं है, यह सिर्फ एक रास्ता दिखाती है। एक छोटे कस्बे के व्यक्ति को जिसको परीक्षा या उसकी तैयारी के बारे में कोई जानकारी न हो वह एक कोचिंग सेंटर में जा सकता है और इससे उसको काफी मदद मिलती है। कोचिंग सेंटरों पर बहुत ज्यादा निर्भरता कोई अच्छी बात नहीं है क्योंकि प्रशासनिक सेवा की परीक्षा को पास करने के लिए कोई निर्धारित तरीका नहीं है।”
वाजीराम एंड रवि इंस्टीट्यूट फॉर सिविल सर्विसेज एग्जामिनेशन के कंपनी सलाहकार, प्रखर शर्मा, ने पहले ही इन सुझावों को खारिज कर दिया था कि बड़े संस्थान जल्द ही अपना महत्व खो देंगेः “सभी मौजूदा कोचिंग संस्थान मौजूद है क्योंकि उनकी माँग है। अगर शैक्षिक संस्थान (स्कूल, कॉलेज) एक छात्र को पूरी तरह से तैयार करने में सक्षम थे, तो कोई कोचिंग संस्थान क्यों नहीं होगा?”
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