अमेरिका के भवन निर्माण कंपनी के मालिक ने आईआईटी दिल्ली को एक मिलियन डॉलर की संपत्ति दान देने का वादा किया है, अधिकारियों का कहना है कि यह एक नई प्रवृत्ति की शुरुआत है।
नई दिल्लीः भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली से स्नातक किए हुए विद्यार्थियों ने अपने संस्थान की गुरू दक्षिणा चुकाने का एक नया रास्ता खोज निकाला है, इसके पूर्व छात्र अपने संस्थान के नाम पर वसीयतें लिख रहे हैं।
1967 और 1968 के बैच से स्नातक किए हुए विद्यार्थी इसका नेतृत्व कर रहे हैं, जिन्होंने संस्थान के नाम पर अपनी वसीयतें लिख दी हैं।
1968 के बैच से आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्र रमेश कपूर भी उनमें से ही हैं, इन्होंने एक मिलियन डॉलर की अपनी संपत्ति संस्थान के नाम लिख दी है।
संयुक्त राज्य अमेरिका से कपूर ने अपने बैच के स्वर्ण जयंती समारोह में भाग लिया था, जहाँ उन्होंने संस्थान को धन देने का वादा किया था। बाद में उन्होंने संस्थान के नाम की वसीयतनामे की एक आधिकारिक प्रतिलिपि संस्थान को भेज दी थी। इसी संस्थान से सिविल इंजीनियरिंग से स्नातक किए हुए कपूर अब अमेरिका में एक भवन-निर्माण कंपनी के मालिक हैं।
1967 के बैच के एक अन्य छात्र राम मट्टा ने आईआईटी दिल्ली को धन देने का वादा किया था, हालांकि संस्थान द्वारा अभी तक इस धनराशि के बारे में खुलासा नहीं किया गया है।
दिल्ली आईआईटी के डीन, संजीव संघी ने बताया कि “आईआईटी दिल्ली के निदेशक रामगोपाल राव ने पिछले साल 1967 के बैच के स्वर्ण जयंती समारोह के दौरान लोगों से अपनी वसीयत का कुछ हिस्सा आईआईटी दिल्ली के नाम पर देने का आग्रह किया था। उनमें से कुछ ने आईआईटी दिल्ली के लिए स्वेछा से ऐसा किया है ।”
उन्होंने बताया, “रमेश कपूर के अलावा, राम मट्टा ने भी आईआईटी दिल्ली को धन देने का वादा किया है। पहले उनके वसीयतनामे में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी का नाम था। स्वर्ण जयंती समारोह में प्रोफेसर राव को सुनने के बाद उन्होंने वसीयतनामे से स्टैनफोर्ड का नाम हटाकर आईआईटी दिल्ली लिख दिया था। हमें अभी तक इसकी प्रति प्राप्त नहीं हुई है।”
एक उभरती प्रवृत्ति
संघी ने आगे कहा कि आईआईटी दिल्ली भविष्य में अपने पूर्व छात्रों से ऐसे ही योगदानों की उम्मीद रखता है, खासकर उनसे जो विदेशों में हैं।
संस्थान के अधिकारियों का कहना है कि वसीयतनामों के अलावा अन्य लोग चंदा देकर भी अपना योगदान दे रहे हैं। 2017 के बाद से आईआईटी दिल्ली को 14 करोड़ रूपये प्राप्त हुए हैं और अगले साल करीब 20 करोड़ रूपये देने का वादा किया गया है।
आईआईटी दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर वी रामगोपाल राव ने बताया कि “अमेरिका में रहने वाले पूर्व छात्र आईआईटी दिल्ली के नाम पर अपनी वसीयतें लिख रहे हैं और यह उनको ठीक भी लगता है क्योंकि एक निश्चित धनराशि के बाद अगर वे अपने बच्चों के नाम पर अपनी वसीयत लिखते हैं तो यह कर (टैक्स) योग्य हो जाएगा।” “इसलिए परिवार के नाम पर धन देने के बजाय वे संस्थान के नाम पर वसीयतें लिख रहे हैं, यह संस्थान को गुरू दक्षिणा देने का उनका एक तरीका है जिसने उन्हें अपने सपनों की उड़ान भरने का एक सहारा और एक ब्रांड-नाम दिया।”
आईआईटी दिल्ली के पूर्व 49000 छात्रों का एक मजबूत नेटवर्क है जो कई देशों में फैला हुआ है।
Read in English : IIT Delhi’s older alumni are leaving wills in the name of their alma mater