अध्यक्ष बीएस चौहान ने दिप्रिंट को बताया कि सट्टेबाजी को आधार कार्ड के उपयोग द्वारा नियंत्रित करने का सुझाव कुछ हितधारकों ने दिया था जो जुआ और सट्टेबाजी को वैध बनाने के पक्षधर थे।
नई दिल्लीः कानून आयोग के अध्यक्ष बी. एस. चौहान ने कहा कि कानून आयोग ने भारत में जुआ और सट्टेबाजी को वैध बनाने के लिए कभी भी सिफारिश नहीं की है। व्यापक रूप से इस खबर के सामने आने के कुछ दिनों के बाद कि आयोग ने क्रिकेट से जुड़े खतरों से निपटने के लिए यह बड़ा सुझाव दिया था, अध्यक्ष ने यह बयान दिया है।
दिप्रिंट ने पाया कि कानूनन सट्टेबाजी और जुआ को नियंत्रित करने के लिए आधार तंत्र के उपयोग की सिफारिश भी कानून आयोग ने नहीं की है। वैसे ये कुछ हितधारकों की राय थी जिसमें उन्होंने जुए और सट्टेबाज़ी को वैध ठहराने की वक़ालतें की, आयोग ने इसी को संक्षेप में दोबारा छाप दिया ।
चौहान ने बुधवार को दिप्रिंट को बताया “हमें नहीं पता कि यह बातें कहाँ से उठ कर आईं….लेकिन चौंकाने वाली बात तो यह है कि एक भी मीडिया हाउस ने इन सिफारिशों पर सही रिपोर्ट नहीं प्रस्तुत की।“
उन्होंने कहा, “जुए को वैध ठहराने की कोई भी सिफारिश नहीं भेजी है।“
5 जुलाई 2018 को जारी नीति आयोग की 276वीं रिपोर्ट में कहा गया था कि मौजूदा “सरकार की नीतियाँ (भारतीय राष्ट्रीय खेल विकास संहिता, 2011 वगैरह ) देश का वर्तमान सामजिक -आर्थिक माहौल और प्रचलित सामाजिक और नैतिक मूल्य जुआ और सट्टेबाजी को प्रोत्साहित नहीं करते हैं।“
इसमें लिखा था, “तदनुसार, आयोग इस अपरिहार्य निष्कर्ष पर पहुँचता है कि वर्तमान परिदृश्य में सट्टेबाजी और जुआ को वैध बनाना भारत में इच्छित नहीं है।“
“इसलिए, राज्य प्राधिकरणों को अवैध सट्टेबाजी और जुआ पर पूर्ण प्रतिबंध लागू करना सुनिश्चित करना चाहिए“,रिपोर्ट का कहना है
भ्रम कैसे उत्पन्न हुआ?
हो सकता है कि जिस तरह से रिपोर्ट लिखी गई थी, उसी वजह से यह भ्रम फैला हो। इसकी वजह से आयोग की भूमिका अस्पष्ट थी।
जबकि आयोग ने पूर्ण प्रतिबंध की सिफारिश की थी, लेकिन यह भी कहा कि चूंकि इस तरह के प्रतिबंध को लागू करने में असमर्थता अवैध जुआ को बढ़ावा देती है, जिसके परिणामस्वरूप ब्लैक-मनी के उत्पादन और खपत में तेजी आती है, “उन्हें विनियमित करना एकमात्र व्यवहार्य विकल्प है।“
नाम न बताए जाने की शर्त पर आयोग के एक सदस्य ने बात करते हुए कहा, “जुआ का विनियमन केवल एक विकल्प के रूप में सुझाया गया है और यह आयोग की प्राथमिक सिफारिश नहीं है।“
रिपोर्ट में ही कहा गया है, “यदि संसद या राज्य विधायिका इस दिशा में आगे बढ़ना चाहती है, तो आयोग का मानना है कि जुआ को विनियमित करना, धोखाधड़ी, मनी लांडरिंग और इसी तरह की अन्य गतिविधयों का पता लगाने में सहायक होगा।“
यह कहा गया है कि जुआ के नियंत्रित के लिए “तीन सूत्रीय रणनीतियों की आवश्यकता होगी – मौजूदा जुआ (लॉटरी, घुड़दौड़) बाजार में सुधार करना, अवैध जुआ को नियंत्रित करना तथा कड़े और व्यापक नियंत्रण को लागू करना।
जुए को नियंत्रित करने की बात को तभी सोचा जाएगा जब सारे पैंतरे विफल हो चुके होंगे, इसे आयोग की सिफारिश नहीं कह सकते, चौहान ने कहा।
हितधारकों के सुझाव
मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा गया था कि आयोग ने भारत में वैध जुआ और सट्टेबाजी को नियंत्रित करने के लिए आधार आधारित रूपरेखा का सुझाव दिया था। हालांकि, यह भी आयोग की सिफारिश नहीं थी।
रिपोर्ट के एक भाग में, आयोग ने सट्टेबाजी के वैधकरण का समर्थन करने वाले हितधारकों की प्रतिक्रियाओं को संक्षेप में प्रस्तुत किया है और उसकी प्रतिलिपि तैयार की है। सट्टेबाजी के समर्थकों द्वारा बताए गए निष्कर्षों में राजस्व कर का संग्रह शामिल है, जिसका उपयोग भारत के विकास के लिए किया जा सकता है, जिसके फलस्वरूप विशिष्ट नागरिकों के लिए कर भार में छूट हो सकती है।
कुछ मीडिया रिपोर्टों में इसे आयोग के स्वयं के दृष्टिकोण के रूप में कहा गया है।
ठीक इसी तरह से, आधार का उपयोग सट्टेबाजी के सेवा प्रदाताओं की पहचान के लिए और साथ ही सट्टा लगाने वाले लोगों की पहचान के लिए भी किया जा सकता है। अधिकांश मीडिया रिपोर्टों ने कहा था कि यह आयोग की सिफारिश थी।
जुलाई 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से भारत में सट्टेबाजी को वैध बनाने की संभावना की जाँच करने के लिए कहा था।
चौहान ने कहा, “गहन अध्ययन के बाद, हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि सट्टेबाजी को देश में वैध नहीं किया जा सकता है। गलत रिपोर्ट्स केवल एक छाप छोड़ रही हैं कि आयोग देश में सट्टेबाजी को बढ़ावा देना चाहता है।”
Read in English : Guess what? Law Commission never recommended legalising betting & gambling, says its chief