वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ ने कहा, महाराष्ट्र के एक जिले में किसानों की फसल बर्बाद होने पर भी बीमा कंपनी को 143 करोड़ का शुद्ध लाभ हुआ.
अहमदाबाद: प्रख्यात पत्रकार व किसानों के मुद्दों के मुद्दों को लेकर मुखर रहने वाले पी. साईंनाथ ने शुक्रवार को यहां कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार की फसल बीमा योजना राफेल से बड़ा घोटाला है.
साईंनाथ ने कहा, ‘वर्तमान सरकार की नीति किसान विरोधी है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना राफेल घोटाले से भी बड़ा गोरखधंधा है. रिलायंस, एस्सार, जैसी चुनिंदा कंपनियों को फसल बीमा प्रदान करने का काम सौंपा गया है.’
साईंनाथ यहां शुक्रवार से चल रहे तीन दिवसीय किसान स्वराज सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.
महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए साईंनाथ ने कहा, ‘2.80 लाख किसानों ने सोयाबीन की खेती की. एक जिले में किसानों ने 19.2 करोड़ रुपये का भुगतान किया. राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने 77-77 करोड़ रुपये का भुगतान किया. कुल राशि 173 करोड़ रुपये हुई जो रिलायंस बीमा को भुगतान किया गया.’
उन्होंने कहा, ‘पूरी फसल खराब हो गई और बीमा कंपनी ने दावों का भुगतान किया. रिलायंस ने एक जिले में 30 करोड़ रुपये का भुगतान किया और उसे शुद्ध लाभ 143 करोड़ रुपये हुआ, जबकि उसका निवेश एक भी रुपया नहीं था.’
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उन्होंने कहा, ‘पिछले 20 सालों से हर दिन दो हजार किसान खेती करना छोड़ रहे हैं. किसान तेजी से अपने जमीनों से अपना मालिकाना छोड़ रहे हैं. लेकिन ऐसे किसानों की संख्या बढ़ रही है जो किराये पर जमीन लेकर खेती कर रहे हैं. जमीन किराये पर लेकर खेती करने वाले किसानों में 80 प्रतिशत कर्ज में डूबे हैं.’
किसान आत्महत्या के मुद्दे का जिक्र करते हुए साईनाथ ने कहा, ‘मोजूदा केंद्र सरकार किसान आत्महत्या से जुड़े आंकड़े सार्वजनिक नहीं करना चाहती. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार पिछले बीस सालों में यानी 1995 से 2015 के बीच 3.10 लाख किसानों ने आत्महत्या की थी. पिछले दो साल से सरकार किसान आत्महत्या के आंकड़ों को जारी नहीं कर रही है.’
उन्होंने कहा, ‘29 और 30 नवंबर को हम संसद मार्च का आयोजन करेंगे. हमारी मांग होगी कि स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने के लिए न्यूनतम तीन दिन बहस की जाए ताकि विस्तार से चर्चा करके सहमति बन सके. अगर जीएसटी लागू करने के लिए आधी रात को संसद बुलाई जा सकती है तो किसानों और कृषि संकट के मुद्दों को लेकर संसद में बहस क्यों नहीं हो सकती.’