scorecardresearch
Friday, 26 April, 2024
होमशासनबस्तर में शांति की एक और पहल, आदिवासियों की पदयात्रा शुरू

बस्तर में शांति की एक और पहल, आदिवासियों की पदयात्रा शुरू

Text Size:

बस्तर में शांति बहाल करने की मंशा से गांधी जयंती से शुरू हुए शांति मार्च में वहां के आदिवासी और एक्टीविस्ट भाग ले रहे हैं. माओवादियों ने यात्रा के बहिष्कार का आह्वान किया है.

नई दिल्ली: करीब डेढ़ सौ आदिवासी और कुछ स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता छत्तीसगढ़ में शांति बहाल करने के उद्देश्य से शांति मार्च में हिस्सा ले रहे हैं. आंध्र प्रदेश के पूर्व गोदावरी ज़िले के शबरी गांधी आश्रम से शुरू हुई पदयात्रा आज बस्तर के दोरनापाल पहुंची है और 186 किलोमीटर चल कर जगदलपुर में समाप्त होगी.

इस यात्रा में करीब 150 आदीवासी भाग ले रहे हैं. आदिवासियों की मांग है कि माओवादी मुख्यधारा से जुड़ें, शांति और विकास का समर्थन करें. यात्रा में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी भाग ले रहे हैं और ये 12 तारीख को जगदलपुर में समाप्त होगी. जिसके बाद बस्तर डायलॉग-1 का आयोजन होगा जिसमें शांति प्रयासों की चर्चा होगी.

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने इस पदयात्रा के बहिष्कार का आह्वान किया है. दंडकारण्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि “पदयात्रा शांति वार्ता की आड़ में बस्तर की जनता को विस्थापन विरोधी जन आंदोलन और जनयुद्ध से भटकाने, यहां के जल, जंगल, ज़मीन व संसाधनों को देशी विदेशी कॉर्पोरेट घरानों के हवाले करने की सरकारी साजिश को सफल बनाने के तहत आयोजित की जा रही है.”

भारत सरकार के हाल में जारी आंकड़ों के हिसाब से मध्य भारत में भारत में पिछले 20 सालों में 12000 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं. मरने वालों में 2700 सुरक्षाकर्मी शामिल हैं वहीं दोनों पक्षों (माओवादी और सरकार) की हिंसा में 9,300 से ज़्यादा आम आदमी मारे गए हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

शांति की पहल

पदयात्रा के एक मुख्य आयोजक, सीजीनेट स्वर फाउंडेशन के शुभ्रांशु चौधरी कहते हैं, “ये एक लंबी लड़ाई है और हमारा मानना है कि समय आ गया है कि शांति प्रक्रिया चलाई जाए और उसका नेतृत्व आदिवासियों के हाथ में हो. ये रैली किसी के खिलाफ़ नहीं है, जैसा माओवादी आरोप लगा रहे हैं, ये बस शांति के पक्ष में है.”

पर चुनावी माहौल में इस पदयात्रा के राजनीतिक मकसद भी खोजे जा रहे हैं. माओवादियों ने आयोजकों की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा है कि पदयात्रा के आयोजकों को पहले सरकार से मांगें पूरी करवानी चाहिए. उन्होंने कहा, “विस्थापन की सभी परियोजनाओं को तुरंत बंद करें, कॉर्पोरेट घरानों के साथ किए गए सभी एमओयू को रद्द करें, दंडकारण्य से पुलिस, अर्ध सैनिक बलों को वापस भेज दें, माओवादी मामलों में जबरन जेल में बंद लोगों को तुरंत और बिना शर्त रिहा करें, मुठभेड़ों, फर्ज़ी मुठभेड़ों व नरसंहारों को तुरंत बंद करें, माओवादियों के साथ शांति वार्ता पर अपना रुख साफ करें.”

पर शुभ्रांशु चौधरी कहते हैं कि “ये बस्तर को बचाने का आखिरी मौका है.” उनका कहना है कि माओवादियों के शीर्ष नेतृत्व में एक भी आदिवासी नहीं है. उसका नेतृत्व ज़्यादातर आंध्र से आता है और इक्का दुक्का दलित हैं जो महाराष्ट्र से आए हैं.

शांति मार्च में आदिवासी | दिपतेन्दु रॉय \ कोसलकथा

दंडकारण्य में शुरू में नक्सली छुपने के लिए सुरक्षित जगह ढूंढ़ते हुए आए थे. आदिवासियों में राजनीतिक समझ की कमी थी और नक्सलवादी क्रांति जिन राज्यों में आनी थी वो विफल हो गई और छत्तीसगढ़ माओवादियों का ठिकाना बन गया जहां एक अनुशासित हिंसक राजनीतिक आदोलन स्थापित हुआ.

अब माओवादी नेतृत्व बूढ़ा हो रहा है, नया नेतृत्व आ नहीं रहा, सरकार की समस्या सुलझाने की इच्छा नहीं है, ऐसे माहौल में इस बात का खतरा बढ़ जाता है कि एक अनुशासित आंदोलन की जगह माओवादी छोटे छोटे गुटों में बंट जाएं और गैंगवार की सी स्थिति उत्पन्न हो जाए.

सही समय

इसलिए आदिवासी नियम कानून लागू करने और शांति प्रक्रिया आदिवासियों की भागीदारी के साथ स्थापित करने का लिए यह सही समय है. ज़रूरत है कि इस क्षेत्र के परंपरागत नेतृत्व को आगे बढ़ाया जाए और शांति की कोशिश की जाए. दोनों पक्ष अगर बातचीत की टेबल पर नहीं भी आते तो वे कुछ क्षेत्रों में जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य आदि को शांति क्षेत्र घोषित कर इनको पनपने दें.

इस यात्रा के बाद बस्तर डायलॉग-1 का आयोजन किया जाएगा जिसमें नंदिनी सुंदर, बेला भाटिया, आदिवासी महासभा और सीपीआई नेता मनीष कुंजाम, सर्व आदिवासी समाज के अरविंद नेताम, जो कि अब कांग्रेस में है, के शामिल होने की आशा है.

इस यात्रा के आयोजक छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज, अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा, आदिवासी महासभा, कोया कुटमा, गोंडवाना राज गोंड सेवा समिति आदि 11 संगठन हैं.

आयोजकों को आशा है कि जैसे दूसरे देशों में माओवादी मुख्यधारा में जुड़े हैं, वैसे भारत में भी संभव हो. नेपाल में माओवादियों ने हथियार छोड़ लोकतांत्रिक राह पकड़ी और सरकार बनाई. अब कोशिश हो रही है कि नेपाली माओवादियों के शीर्ष नेता प्रचंड की भी इस पहल में मदद ली जाए.

यह भी पढ़ें : अर्बन नक्सल: ‘यूजफुल इडियट्स’ का समूह जिससे 2019 में वोट भुनाना चाहती है भाजपा

share & View comments