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Wednesday, 25 December, 2024
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दलितों में बढ़ते रोष के मद्देनज़र सरकार ने एससी/एसटी छात्रों को शोध प्रवेश नियमों में दी छूट

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आरक्षित श्रेणी के छात्रों को कोई छूट नहीं देने के लिए सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर छात्र विरोध प्रदर्शन का सामना करने के दो साल बाद यह कदम उठाया गया।

नई दिल्ली: दलित विरोधी कदम के रूप में देखे गये उनके बहुत सारे आदेशों की आलोचना होने पर नरेंद्र मोदी सरकार ने अब एमफिल और पीएचडी प्रवेश परीक्षा में एससी / एसटी छात्रों के लिए पाँच प्रतिशत छूट की अनुमति दी है।
भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार द्वारा अनुसंधान के पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश परीक्षा में आरक्षित श्रेणी के छात्रों को कोई छूट न देने को “विनाशकारी नीति” के रूप में देखा गया जिसके लिए भारी छात्र विरोध का सामना करने के दो साल बाद यह कदम उठाया गया है।

आखिरकार गुरुवार को यूजीसी ने घोषणा की है, कि अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रों के लिए एमफिल / पीएचडी की प्रवेश परीक्षा में अर्हकारी अंक सभी श्रेणियों के समान 50 अंकों की नीति के बजाय 45 अंक होंगे।
उच्च शिक्षा नियामक ने भी साक्षात्कार के लिए दिए गए 100 प्रतिशत वेटेज को भी कम कर दियाहै।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, “भारत में किसी भी परीक्षा के लिए आरक्षित श्रेणी के छात्रों को कुछ छूट मिलती है, जो एमफिल एवं पीएचडी प्रवेश परीक्षा के मामले में नहीं था। इसमें सुधार किया गया है।”
उन्होंने आगे बताया कि इस कदम का उद्देश्य अनुसंधान पाठ्यक्रमों में आरक्षित श्रेणी के छात्रों की भागीदारी में वृद्धि करना है।

2016 में उच्च शिक्षा नियामक ने विश्वविद्यालयों में एमफिल और पीएचडी कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए परीक्षा अनिवार्य करते हुए एक समान नियम रखे थे।

नियम में यह निर्धारित किया गया है कि साक्षात्कार के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए उम्मीदवारों को लिखित परीक्षा में कम से कम 50 प्रतिशत अंक प्राप्त करने होंगे, जिसके आधार पर अंतिम चयन किया जाएगा। नियमों के अनुसार साक्षात्कार के लिए 100 प्रतिशत वेटेज दिए गये थे।

2016 के यूजीसी आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

2016 के आदेश ने छात्रों के एक वर्ग को विरोध प्रदर्शन के लिए भड़का दिया था, जिन्होंने तर्क दिया था कि यूजीसी एससी / एसटी छात्रों को कोई छूट नहीं देकर देश के कानून के खिलाफ कार्य कर रहा था।

विरोध प्रदर्शन करने वाले जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ (जेएनयूएसयू), ने तर्क दिया कि लिखित के लिए एक समान 50 प्रतिशत और साक्षात्कार के लिए 100 प्रतिशत अर्हता अंकों का निर्धारण अनुसंधान पाठ्यक्रमों में कमजोर वर्गों के छात्रों के लगभग विलुप्त होने का कारण बन सकता था।

जेएनयूएसयू के भूतपूर्व अध्यक्ष मोहित पांडे ने कहा, “यूजीसी का निर्णय विनाशकारी था, खासकर आरक्षित श्रेणी से आने वाले छात्रों के लिए। उस समय हमने सरकार के सामने अपनी मांगों को उठाया लेकिन किसी ने भी ध्यान नहीं दिया।”
उन्होंने आगे कहा,”पिछले साल आरक्षित श्रेणी से संबंधित 70 छात्र नियमों के कारण एमफिल में प्रवेश नहीं प्राप्त कर पाए। इस साल भी 14 सीटों के लिए हिंदी विभाग में एमफिल के लिए केवल चार छात्रों को प्रवेश मिला है।”

संकाय आरक्षण

इस साल अप्रैल में सरकार ने यूजीसी के फैसले से आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया था कि अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के अध्यापक पदों के लिए आरक्षण संस्थानवार की बजाय विभागवार के रूप में लागू किया जाएगा।
5 मार्च 2018 के यूजीसी आदेश ने एक बड़ा विवाद उत्पन्न कर दिया। जिसमें शिक्षाविदों नेयह तर्क दिया कि आदेश लागू होने पर आरक्षित श्रेणी से शिक्षकों का प्रतिनिधित्व और भी कम हो जाएगा।

वर्तमान समय में आरक्षण की गणना विश्वविद्यालय में कुल संकाय पदों के आधार पर की जाती है। मोदी सरकार ने विवादास्पद यूजीसी आदेश वापस लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की है।

Read in English: Amid mounting Dalit anger, Modi govt relaxes entry rules for SC/ST students into research.

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