सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 9 महीने में केवल 6 लाइसेंस जारी किए हैं और मंजूरी पर गृह मंत्रालय और कैबिनेट सचिवालय के साथ सत्तावादी फुटबॉल खेल रहा है।
नई दिल्ली: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सैटेलाइट टेलीविजन चैनलों को लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया को काफी हद तक धीमा कर दिया है। कारण? गृह मंत्रालय और कैबिनेट सचिवालय के बीच सत्तावादी फुटबॉल, यानि कि मंजूरी कौन देगा।
दिप्रिंट को पता चला है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने वर्तमान में लगभग 130 प्रस्तावों को रोक रखा है और पिछले 9 महीनों में केवल छह लाइसेंस जारी किए हैं, जिनमें से चार को पिछले दो हफ्तों में मंजूरी दी गई है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार मई 2016 और अगस्त 2017 के बीच तुलनात्मक रूप से लगभग 15 महीनों में 84 लाइसेंस जारी किए गए थे।
हाल ही में एक मीडिया व्यवसाय के प्रतिनिधिमंडल ने इस सुस्त रवैये के बारे में प्रधान मंत्री कार्यालय में शिकायत की। इसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री कार्यालय ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को अपना मुख्य कार्य न करने के लिए लताड़ा। उच्चस्तरीय सूत्रों ने बताया कि इस फटकार के बाद मंत्रालय ने 11 प्रस्तावों पर काम शुरू कर दिया।
मंजूरियों के धीमा होने का कारण क्या है
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने हो रहे विलंब के कारण के रूप में बार-बार सुरक्षा मंजूरी का हवाला दिया है। इसने इस संबंध में गृह मंत्रालय और कैबिनेट सचिवालय को लिखा, लेकिन दोनों ने जवाब दिया कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को स्वयं अनुमतियां जारी करनी चाहिए।
वर्तमान में गृह मंत्रालय राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मानकों पर उनका मूल्यांकन करने के बाद टीवी और रेडियो चैनलों को सुरक्षा मंजूरी देता है। नये लाइसेंस और नवीनीकरण के साथ साथ यदि किसी कंपनी को नीलामी में भाग लेना होता है तो उसके लिए मंजूरी की आवश्यकता होती है।
गृह मंत्रालय सुरक्षा मंजूरी के साथ-साथ, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा विचाराधीन संदिग्ध कंपनी के बारे में दूसरे मंत्रालयों से कुछ सूचनाएं साझा करता है, जिसमें आर्थिक अपराधों से लेकर काले धन को वैध बनाने (मनी लॉंडरिंग) और भूमि हथियाने के मामले शामिल हैं।
पिछले साल सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने गृह मंत्रालय को लिखा था कि उन्हें प्रदान की गई जानकारी में “गहन छानबीन” करने के लिए उनके उचित विशेषज्ञता नहीं थी और उल्लेख किए गए मामलों के बारे में दिन प्रतिदिन की जानकारी भी नहीं थी।
मंत्रालय ने कहा, “इस प्रकार सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के लिए ऐसे मामलों पर कोई एकपक्षीय निर्णय लेने में बहुत मुश्किल हो जाएगी,” मंत्रालय ने आगे कहा कि गृह मंत्रालय को इसके बजाय “सभी सुरक्षा पहलुओं को ध्यान में रखते हुए” सयुंक्त मंजूरी जारी करना शुरू कर देना चाहिए।
अपने जवाब में गृह मंत्रालय ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अनुरोध को खारिज कर दिया। गृह मंत्रालय ने कहा कि उन्हें विभिन्न मंत्रालयों से सुरक्षा मंजूरी के लिए प्रस्ताव प्राप्त हुए थे और प्रमुख राष्ट्रीय सुरक्षा मानकों के आधार पर मंजूरी देने के अलावा, भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी जैसे अतिरिक्त इनपुट्स भी, अपनी मौजूदा नीति, प्रक्रियाओं, कार्यों, अनुबंध / निविदा इत्यादि से सम्बंधित उचित समझे जाने वाले दिशा निर्देशों आदि के सन्दर्भ में अपने महत्त्व के लिए चिंतित, मंत्रालयों के साथ साझा किये गये थे।
आगे मंत्रालय ने कहा कि “प्रशासनिक मंत्रालय अपनी स्वयं की नीति, प्रक्रियाओं, प्रथाओं, अनुबंध / लाइसेंस / निविदा संबंधी दिशानिर्देशों के प्रकाश में आवश्यक गृह मंत्रालय द्वारा दिए गये अतिरिक्त इनपुट्स पर गौर कर सकता है।”
गृह मंत्रालय की फटकार के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कैबिनेट सचिवालय को गृह मंत्रालय द्वारा प्रदान किए गए मामलों में गहन छानबीन करने के लिए विशेषज्ञता की कमी के अपने पिछले रुख को दोहराते हुए लिखा, उन्होंने कहा कि इस परस्थिति की वजह से, “सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के लिए ऐसे मामलों में कोई निर्णय लेने में बहुत मुश्किल हो गयी है।”
हाल में ही मंत्रालय को दिए गये जवाब में कैबिनेट सचिवालय ने भी कहा कि प्रस्ताव के विशिष्ट संदर्भ में आवेदकों के बारे में इनपुट के प्रभावों के आकलन की प्राथमिक जिम्मेदारी संबंधित मंत्रालय की थी। जिसमें स्पष्ट रूप से इंगित किया गया कि यह सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का कर्तव्य था।
अप्रसन्न उद्योग
दो हफ्ते पहले उद्योग प्रसारणकर्ताओं के एक निकाय अर्थात भारतीय प्रसारण संस्थान के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों से प्रसारण क्षेत्र में अन्य मुद्दों के बीच लंबित मंजूरियों की शिकायत करने के लिए मुलाकात की।
मंत्रालय ने इस सुधार के बाद फाइलों पर प्रक्रिया शुरू कर दी है।
प्रिंट के सवालों के जवाब में एक ई-मेल में आईबीएफ महासचिव गिरीश श्रीवास्तव ने कहा कि नए टीवी चैनलों की मंजूरी “आम तौर पर बोझिल प्रक्रियाओं के शामिल होने से बाधित होती है।”
उन्होंने कहा कि “आईबीएफ ने सरकार से इस तरह की मंजूरी में शामिल समग्र समय-सीमा को कम करने के लिए प्रक्रिया के पुनर्गठन के अनुरोध के साथ सरकार के समक्ष अतीत में प्रस्तुतीकरणों की एक श्रृंखला बनाई है। भविष्य में हम अपने प्रयासों को जारी रखेंगे।”
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने टिप्पणी के लिए दिप्रिंट के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया।