मैना महिला फाउंडेशन 7 में से एकमात्र विदेशी संगठन है जिसे प्रिंस हैरी और मेघन मार्कल ने अपनी शादी के अवसर पर चैरिटी प्राप्तकर्ता के रूप में चुना है।
मुंबई: 2015 में ड्यूक विश्वविद्यालय की छात्रा सुहानी जलोटा ने उद्यमी साहचर्य के हिस्से के रूप में मासिक धर्म स्वच्छता के मुद्दे पर काम करने के लिए मुंबई में मैना महिला फाउंडेशन शुरू किया। जल्द ही उन्हें नौ छात्राओं में से ‘कॉलेज वुमन ऑफ़ द इयर’ पुरस्कार के लिए चुना गया था, जिनमें से प्रत्येक के लिए सलाहकार नियुक्त किए गये थे।
जलोटा ने यहीं पर पहली बार अमेरिकी अभिनेत्री मेघन मार्कल से मुलाकात की, जो किसी और की सलाहकार थीं, लेकिन जलोटा के गैर-सरकारी संगठन में गहरी दिलचस्पी रखती थीं। तब उन्हें पता भी नहीं था कि प्रिंस हैरी-मार्कल की शाही शादी में विशेष प्रतिष्ठा रखने के लिए पूर्वी मुंबई में गोविंडी बस्ती के नजदीक एक छोटी सी जगह से संचालित संगठन उनके प्रतिष्ठान का नेतृत्व करेगा।
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एनजीओ, जो मुंबई की झोपड़ियों में रहने वाली महिलाओं से सैनिटरी नैपकिन बनवाता है और फिर उन्हें उन्हीं झुग्गी बस्तियों में सस्ती कीमतों पर बेचता है, वह सात संगठनों की सूची में एकमात्र विदेशी संगठन है जिसे प्रिंस हैरी और उनकी मंगेतर द्वारा उनकी शादी में चैरिटी प्राप्तकर्ता के रूप में चुना गया है। इस जोड़े ने अपने सभी मेहमानों को उपहार पंजीकृत कराने की बजाय चैरिटेबल संगठनों के चुने हुए समूहों को दान करने की अपील की है।
फाउंडेशन की एक इंटर्न विश्लेषिका रिशा रॉड्रिग्स ने शादी के एक दिन पहले दिप्रिंट को बताया, कि “न सिर्फ शाही जोड़े के लिए बल्कि शादी हमारे लिए भी सच होने वाली परियों की एक कहानी सी बन गई है।”
23 वर्षीय संस्थापिका सुहानी जलोटा शनिवार को मैना महिला फाउंडेशन की तीन अन्य प्रतिनिधियों के साथ विंडसर कैसल में शादी में शामिल होंगी।
मैना महिला फाउंडेशन क्या करता है
एनजीओ ने एक छोटी सी जगह में सैनिटरी नैपकिन बनाने के लिए गोवांडी की झोपड़पट्टी से 15 महिलाओं को रोजगार दिया है जिसे जलोटा और उनके सहयोगियों ने स्थानीय झोपड़पट्टी के पास एक पुनर्विकसित इमारत के भूतल और पहले तल पर बनाया है। रॉड्रिग्स ने कहा, “हम सारा कच्चा माल प्राप्त करते हैं और महिलाएं पैड का निर्माण और पैकिंग करती हैं। इस प्रक्रिया में 70 प्रतिशत काम हाथों से और 30 प्रतिशत काम मशीनों की मदद से होता है।
उसके बाद 50 महिलाओं की एक टीम शहर भर में अव्यवस्थित रूप से फैली कम से कम 13 झोपड़पट्टियों में रहने वाली महिलाओं को छूट वाले मूल्य पर ये सैनिटरी नैपकिन वितरित करती है, जिनमें एशिया की सबसे बड़ी धारावी की झोपड़पट्टी सहित गोरेगांव, बोरीवली, एरे कॉलोनी, गोवांडी और अन्य इलाकों की झोपड़पट्टियाँ शामिल हैं। वे मासिकधर्म स्वच्छता पर महिलाओं को शिक्षित भी करते हैं। तीन महीनों में एक बार यह फाउंडेशन एक स्वास्थ्य शिविर का आयोजन करता है जो आवश्यकता होने पर महिलाओं को स्त्री रोग विशेषज्ञों के पास भेजता है।
एनजीओ रेगुलर, मैटरनिटी पैड, XL एवं XXL आकारों में चार प्रकार के सैनिटरी नैपकिन बनाता है और वितरित करता है। जहाँ गोवांडी की महिलाएं रेगुलर और मैटरनिटी पैड स्वयं बनाती हैं, वहीं एनजीओ ने बड़े आकार के नैपकिन के निर्माण के लिए सूरत के एक कारखाने को ठेका दिया है, जो फाउंडेशन के विनिर्देशों के अनुसार निर्माण करता है। रेगुलर सैनिटरी नैपकिन के सात पैड के पैकेट की न्यूनतम कीमत 25 रुपये है।
एनजीओ के शोध के अनुसार, भारत में लगभग 320 मिलियन महिलाओं की सैनिटरी पैड तक पहुंच नहीं है, क्योंकि मासिक धर्म उनके लिए एक वर्जित विषय है। मेडिकल स्टोर से सैनिटरी पैड खरीदने से जुड़ा एक निश्चित कलंक भी है कि उनमें से कई पुरुष दुकानदार होते हैं। तब कई महिलाएं कपड़े के टुकड़े पर भरोसा करती हैं। मैना महिला फाउंडेशन के सर्वेक्षण के अनुसार केवल 2.3 प्रतिशत महिलाएं मासिक धर्म के लिए उपयोग किए जाने वाले घरेलू कपड़े को गर्म पानी और साबुन में धोकर और सीधे सूर्य की रोशनी में सुखाकर उन्हें कीटाणु रहित करती हैं। समस्या विशेष रूप से उन झोपड़ियों में विकट है जहाँ घर बहुत संकुचित हैं और ज्यादा आबादी वाले हैं। मासिक धर्म से जुड़ी शर्मिंदगी के कारण महिलाएं उन कपडे के टुकड़ों को गीले अँधेरे कोनों में छुपाकर समाप्त करती हैं जिससे कई सारे संक्रमण फैलते हैं।
संयोग से जनवरी 2017 में मार्कल ने फाउंडेशन का दौरा किया और मॉडल और परिचालन को बेहतर तरीके से जानने के लिए वहाँ पर काम करने वाली महिलाओं के साथ तीन दिन बिताए।
भविष्य की योजनाएं
पच्चीस वर्षीय सुमती जोशी ने कहा, “दान के हिस्से के रूप में हमें प्राप्त धन के अलावा, इस मौके पर हमें सबसे बड़ा लाभ यह मिला है कि इस मुद्दे के बारे में हमको जागरूकता फ़ैलाने में मदद मिली है। मासिक धर्म, एक वर्जित विषय, अब यह कई जगहों पर ड्राइंग रूम के लिये चर्चा का विषय बन गया है।”
फाउंडेशन ने कोई भी फार्म या आवेदन नहीं भरा और इंग्लैंड के शाही महल द्वारा आधिकारिक सूचना प्राप्त होने पर आश्चर्यचकित था, ये सूचना प्रिंस हैरी और मेघन मार्कल द्वारा एनजीओ के साथ जुड़ने की इच्छा के बारे में थी। जोशी ने कहा, “जो काम हम कर रहे हैं, यह उसका प्रमाणीकरण और सत्यापन है।”
जोशी, जो जल्द ही एनजीओ की परिचालन शाखा का नेतृत्व करेंगी, ने कहा कि संस्था अब मासिक धर्म की स्वच्छता के अलावा कई अन्य पहलुओं पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है।
उन्होंने कहा, “हमने मासिक धर्म की स्वच्छता के बारे में जागरूकता फैलाने के साथ शुरुआत की और महिलाओं की सैनिटरी पैड तक पहुंच आसान करने में मदद की क्योंकि हमने सोचा कि यह एक ज्वलंत मुद्दा था। लेकिन अब हम इसके साथ-साथ कई अन्य पहलुओं पर भी काम करने की योजना बना रहे हैं।”
उदाहरण के लिए, एनजीओ और अधिक महिलाओं को झुग्गी, झोपड़ियों से लाने की कोशिश कर रहा है और औपचारिक रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं के लिए विशिष्ट व्यापार और नौकरी के अवसरों की पहचान हेतु उन्हें तैयार करने में मदद कर रहा है।
जोशी ने कहा कि इसी प्रकार, यह संगठन महिलाओं के लिए झोपड़पट्टी वाले क्षेत्रों में बाल देखभाल केंद्र स्थापित करने की भी योजना बना रहा है, उनके लिये जिनके पास अक्सर मदद की कोई प्रणाली नहीं होती कि वे अपने बच्चो की चिंता किये बिना अपना कार्य कर सकें.
Read in English:Royal wedding of Prince Harry and Meghan Markle a ‘fairy-tale come true’ for this Mumbai NGO