नई दिल्ली: यूके अधिकारियों ने मंगलवार को कहा कि मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के नेता अल्ताफ हुसैन अब लंदन में रहकर कराची में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए ‘दोषी नहीं‘ हैं. इसने इतने सारे पाकिस्तानियों को नाराज कर दिया है कि डॉन ने इसे ‘अजीब’ कहा है. एक संपादकीय में कहा गया है, ‘लंदन की एक अदालत में मंगलवार को दिए गए फैसले और कराची में रहने वाले जिस वास्तविकता में जी रहे हैं उसमें कोई तार्कित संबंध नहीं है.’
अखबार ने कहा कि यह ‘सबको पता’ है कि हुसैन के एक फोन कॉल में कराची में एमक्यूएम आतंकवादियों को जुटाने की शक्ति थी, जो कि शहर में वाणिज्यिक गतिविधियों को खत्म कर देते थे. अखबार ने यह भी सुझाव दिया कि जूरी के फैसले का इस तथ्य से कुछ लेना-देना हो सकता है कि उन्हें यह स्वीकार करने के लिए कहा गया था कि ब्रिटेन में कानून और पाकिस्तान में कानून के बीच ‘एक अलग सांस्कृतिक मानदंड’ मौजूद है.
कुछ लोग ब्रिटेन के अधिकारियों पर ‘पक्षपात’ पूर्ण रवैया होने का आरोप लगा रहे हैं, जबकि सोशल मीडिया पर कुछ अन्य लोग हैशटैग #AltafNotGuilty के साथ हुसैन का समर्थन कर रहे हैं. इसके अतिरिक्त, एमक्यूएम सुप्रीमो की उनके बरी होने को लेकर अदालत के बाहर की इमोशनल वीडियो ट्रेंड कर रहा है. इसमें 14 फरवरी का एक ‘भावनात्मक क्षण‘ भी शामिल है, जब हुसैन गुलाब के गुलदस्ते के साथ अपनी पिछली सुनवाई के लिए अदालत में आए थे और पत्रकारों को वेलेंटाइन डे की शुभकामनाएं दी थीं.
आरोपों का इतिहास
एमक्यूएम पाकिस्तान में एक राजनीतिक पार्टी है जिसे 1984 में अल्ताफ हुसैन द्वारा स्थापित किया गया था और अब यह दो गुटों में बंट गई है. यह अप्रवासी मोहाजिर समुदाय को आवाज देने में काफी हद तक सफल रही, लेकिन इसकी एक बहुत ही मजबूत उग्रवादी विंग भी है जो सीधे स्व-निर्वासित हुसैन को रिपोर्ट करती है.
हुसैन किंग्स्टन क्राउन कोर्ट के समक्ष दो आरोपों का सामना कर रहे थे, जो आतंकवाद को बढ़ावा देने से संबंधित थे. यह उन दो भाषणों के संबंध में था जो उन्होंने 22 अगस्त 2016 को लंदन से कराची में टेलीफोन के जरिए दिए थे.
क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (सीपीएस) ने उस समय आरोप लगाया था कि कराची में जनता द्वारा इन भाषणों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ‘आतंकवादी गतिविधियों की तैयारी करने, उन्हें अंजाम देने और उकसावे के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन के रूप में’ समझने की संभावना है और हुसैन’ ने इस मामले में लापरवाही दिखाई. हालांकि, हुसैन के हाल ही में बरी होने के बाद, सीपीएस ने कहा कि वह किंग्स्टन क्राउन कोर्ट के फैसले का ‘सम्मान‘ करता है.
सीपीएस के एक प्रवक्ता ने जियो न्यूज को बताया कि निर्वासित एमक्यूएम नेता के मामले की ब्रिटेन और पाकिस्तान दोनों जगहों पर जांच की गई थी जो कि काफी जटिल थी.
हुसैन को राज्य के खिलाफ कथित नफरत भरे भाषणों के कारण पाकिस्तान में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है. वह 1992 से लंदन में स्व-निर्वासन में रह रहे हैं.
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आंखें मूंद लेना
पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार, हुसैन के बचाव पक्ष के वकील ने जूरी को बताया कि ब्रिटेन में कानून पाकिस्तानी कानून से अलग है. उन्होंने जूरी से इस बात पर विचार करने के लिए कहा कि क्या यह आतंकवाद के साथ साथ उसके प्रकार, डिजाइन और उद्देश्य के मानकों पर खरा उतरता है.
इस बीच, स्वतंत्र स्तंभकार वालिद इकबाल ने ब्रिटिश अधिकारियों पर ‘इन अपराधियों की ओर से आंखें मूंदने’ का आरोप लगाया. पाकिस्तानी मीडिया आउटलेट डेली टाइम्स के एक ऑप-एड ‘न्यू हेवन फॉर मनी लॉन्डरर्स’ में उन्होंने लिखा: ‘अल्ताफ हुसैन की आपराधिक मामले में भागीदारी एक जगजाहिर तथ्य है, जो उनके खिलाफ ठोस सबूतों के जरिए साबित हुआ है, फिर भी उनका बरी किया जाना ब्रिटिश अधिकारियों की तटस्थता और इरादों पर एक सवालिया निशान लगाता है.’
मीर मोहम्मद अलीखान, एक पाकिस्तानी वॉल स्ट्रीट-प्रशिक्षित निवेश बैंकर, जो वर्तमान के कराची में रहते हैं, ने मजाक में कहा कि हुसैन के बरी होने से साबित होता है कि वह एमआई 6, यूके की गुप्त खुफिया इकाई के लिए ‘अभी भी एक संपत्ति’ हैं.
Altaf Hussain Declared Not Guilty Of Terrorism In England.
Thank you MI6 for making it obvious that he is STILL an asset to you.
— Mir Mohammad Alikhan (@MirMAKOfficial) February 15, 2022
पूर्व राजनयिक जफर हिलाली ने आगे पूछा, ‘जब अल्ताफ हुसैन की बात आती है, तो ब्रिटिश पूरी तरह से पक्षपाती हो जाते हैं. उन्हें दो हत्याओं के आरोपों के बावजूद ब्रिटिश नागरिकता मिली, और अब वह आतंकवाद के लिए उकसाने के चार्ज से भी बरी हो गए हैं. यह किस सेवा के लिए है?
#AltafNotGuilty
हैशटैग #AltafNotGuilty व्यापक लोकप्रिय समर्थन प्राप्त करने में कामयाब रहा है. पाकिस्तान स्थित पत्रकार तुबा अतहर हसनैन द्वारा साझा किए गए एक वीडियो में अल्ताफ हुसैन को कोर्ट की कार्यवाही को कवर करने वाले लंदन के पत्रकारों को सैंडविच और हलीम की दावत देने का वादा करते हुए दिखाया जा रहा है.
Following the MQM ritual, Founder and Leader of MQM, Altaf Hussain has promised to treat London based reporters who have covered his court proceedings regularly with sandwiches and haleem! pic.twitter.com/3jNvJUv3jT
— Tuba Athar Hasnain (@AtharTuba) February 15, 2022
एमक्यूएम सुप्रीमो को बरी किए जाने के बाद अन्य दलों से भी समर्थन मिला. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के सांसद और मशहूर टीवी हस्ती आमिर लियाकत हुसैन ने कहा कि पाकिस्तान सरकार को अब हुसैन के साथ बातचीत करनी चाहिए.
अतीत में, उन्होंने सवाल किया था कि सरकार पाकिस्तानी तालिबान (टीटीपी) के साथ बातचीत कर सकती है तो एमक्यूएम सुप्रीमो के साथ क्यों नहीं.
ऑक्सफोर्ड के छात्र आगा सालिक अहमद खान जैसे कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने हुसैन के बरी होने का जश्न मनाया और कहा कि ‘वे उनके भाषणों पर पक्षपातपूर्ण लाहौर उच्च न्यायालय के प्रतिबंध के बारे में परवाह नहीं करते हैं.’
Love you Bhai @AltafHussain_90 @OfficialMqm will always be Karachi’s true voice. #AltafHussain #AltafnotGuilty We don’t care about the biased Lahore High Court’s ban on the speeches of Bhai as today Allah granted victory to QeT from Kingston Court, UK. https://t.co/nUFZSGSleM
— Agha Salik Ahmed Khan (@aghasalik) February 15, 2022
2015 में, लाहौर उच्च न्यायालय ने पाकिस्तान की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नियामक प्राधिकरण और अन्य रेग्युलेटरी अथॉरिटी को सभी इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में हुसैन की फोटो और उनके द्वारा दिए गए सभी भाषणों के प्रसारण पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया था.
कुछ सोशल मीडिया यूज़र्स ने कहा कि हुसैन को ब्रिटेन में एआरवाई न्यूज के खिलाफ ‘उन्हें बदनाम करने’ के लिए मुकदमा दायर करना चाहिए.
Altaf Hussain should immediately file a lawsuit against ARY in the UK for defaming him by running fake news and for calling him a “RAW agent” & a “traitor”. He should ask them to prove their allegations in the court of justice.#AltafNotGuilty
— AK-47™© (@AK_Forty7) February 15, 2022
22 अगस्त 2016 को दिए गए अपने एक भाषण में, हुसैन ने कथित तौर पर अपने फॉलोवर्स से लाहौर उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद भी अपनी तस्वीरों, वीडियो और बयानों को प्रकाशित नहीं करने के लिए जियो, एआरवाई और समा जैसे मीडिया आउटलेट्स के कार्यालयों पर हमला करने के लिए कहा था.
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