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Friday, 7 November, 2025
होमफीचरजो ब्यास नदी कभी शांत रहती थी, वह अब उग्र क्यों हो रही है?

जो ब्यास नदी कभी शांत रहती थी, वह अब उग्र क्यों हो रही है?

स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने कहा कि ब्यास नदी के किनारे अतिक्रमण सिर्फ स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि मौसमी बाढ़ के प्रभावों को भी और बुरा बना देता है.

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जालंधर/तरनतारण/अमृतसर: कई हफ्तों बाद ब्यास नदी आखिरकार अपने सामान्य प्रवाह में लौट आई है, एक भयंकर तबाही के बाद. लेकिन प्रशासन और स्थानीय लोग अब भी अपनी सीख नहीं ले पाए हैं.

यह ऐतिहासिक रूप से शांत और अनुशासित भारतीय नदी अचानक विनाश मचाने लगी है, मानो एक बगावत हो—उन सबके खिलाफ जिन्होंने उसके साथ गलत किया है.

यह मानसून पहला मौका नहीं था जब हिमाचल प्रदेश और पंजाब ने ब्यास के कहर को झेला. उसके रास्ते में आने वाली हर चीज तबाह हो गई. लेकिन बार-बार की इन चेतावनियों के बावजूद, स्थानीय लोग अपनी किस्मत को आज़माना नहीं छोड़ रहे. इस बार भी, जैसे ही बाढ़ का पानी कम हुआ, फिर से निर्माण शुरू हो गया—होटल, हाईवे, बहुमंजिला इमारतें—अब और भी ज्यादा नदी के करीब.

“हम हिमालयी नदियों के साथ अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं,” नवीण जूयाल ने कहा, जो अहमदाबाद के फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (PRL) के पूर्व वैज्ञानिक और हिमालयी नदियों के विशेषज्ञ हैं.

पंजाब 1988 के बाद की सबसे खराब बाढ़ों में से एक का सामना कर रहा है. ब्यास, सतलुज, रावी और घग्गर सहित नदियों में पानी भर गया, घर तबाह हुए, खेत जलमग्न हो गए और लोग व पशु विस्थापित हो गए. पंजाब सरकार के अनुमानों के अनुसार, करीब 1,900 गांव डूब गए हैं और 3.5 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं.

उधर, हिमाचल प्रदेश में नुकसान और ज्यादा था. कम से कम 300 लोगों की जान गई.

“बारिश आपदा नहीं लाती. सामान्य तौर पर, एक स्वस्थ नदी का कैचमेंट पानी को थामने, जमा करने और भूजल में उतारने में सक्षम होना चाहिए. लेकिन ब्यास का कैचमेंट खराब हालत में है,” भारतीय नदियों के विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर ने कहा.

Inundated agricultural fields in Punjab after the Beas floods | Soumya Pillai, ThePrint
ब्यास नदी की बाढ़ के बाद पंजाब में जलमग्न कृषि क्षेत्र | सौम्या पिल्लई, दिप्रिंट

ब्यास, 470 किमी लंबी नदी—जो भारत की एकमात्र सिंधु नदी है जो देश के भीतर ही जन्म लेती और खत्म होती है—इस तबाही की एक मुख्य वजह है.

यह नदी, अपेक्षाकृत छोटी होने के बावजूद बाद में सतलुज से मिल जाती है, और दूसरे भारतीय नदियों के लिए एक मॉडल बन सकती थी. लेकिन खराब कैचमेंट प्रबंधन, नदी के किनारों पर लगातार अतिक्रमण, और नाजुक पहाड़ों पर अंधाधुंध पेड़ कटाई इसकी सीमा को पार कर रही है. विशेषज्ञों के अनुसार, ब्यास पिछले कुछ वर्षों में लगातार अधिक नुकसान पहुंचा रही है.

और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव इस स्थिति को और बिगाड़ रहे हैं.

दक्षिण एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (SANDRP) के नदी विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर ने कहा कि उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत के कई हिस्सों में इस वर्ष भारी और अभूतपूर्व बारिश हुई, लेकिन बाढ़ एक बड़ी समस्या का संकेत हैं.

“बारिश आपदा नहीं लाती. सामान्य तौर पर, एक स्वस्थ नदी का कैचमेंट पानी को थामने, जमा करने और भूजल में उतारने में सक्षम होना चाहिए. लेकिन ब्यास का कैचमेंट खराब हालत में है. इसकी धाराएं खत्म हो चुकी हैं, बड़े पैमाने पर कटाव है और मलबा बिना सोचे-समझे फेंका जा रहा है,” ठक्कर ने कहा.

गुस्सैल नदी

कुल्लू की मुख्य सड़क पर, ब्यास नदी के किनारे खड़ी इमारतों के टूटे-फूटे अवशेष कमजोर हालत में दिखाई देते हैं. कुछ हफ्ते पहले तक, ये होटल और लॉज पर्यटकों और गाइडों से भरे रहते थे. आज, मालिक बचावकर्मियों के साथ मिलकर बाढ़ से हुए नुकसान का अंदाज़ा लगाने में जुटे हैं.

कुल्लू के सामाजिक कार्यकर्ता कर्तार सिंह ने कहा,“पिछले हफ्ते कुछ और बारिश हुई थी, जिससे राहत कार्य पर असर पड़ा. अब हम फिर से स्थानीय लोगों की मदद करने में लगे हैं ताकि वे संभल सकें.”

स्थानीय निवासियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने बताया कि ब्यास के किनारों पर अतिक्रमण न सिर्फ एक स्थानीय परेशानी है, बल्कि मौसमी बाढ़ के प्रभाव को भी और बढ़ा देता है.

पालमपुर में, उदाहरण के तौर पर, कई कम बजट वाले नए होटल कथित तौर पर नगर निगम की अनुमति के बिना बना दिए गए हैं. दरअसल, ब्यास की दो सहायक नदियां—बिराल और मोल खुड्ड—जो इस क्षेत्र से गुजरती हैं, इन अतिक्रमणों की वजह से काफी छोटी हो गई हैं.

राज्य सरकार के अनुमानों के अनुसार, गैर-मानसूनी महीनों में बिराल के आसपास अनियंत्रित निर्माण ने नदी की चौड़ाई को कुछ जगहों पर सिर्फ 10-12 मीटर तक सीमित कर दिया है.

सिंह ने कहा, “आप गैर-मानसूनी महीनों में नदी का आकार देखते हैं और सोचते हैं कि यह ठोस जमीन है जहां आप अपनी इमारतें बना सकते हैं. लेकिन नदी अपनी जमीन वापस ले लेती है. ऐसे नुकसान पर रोने का कोई मतलब नहीं है.”

ब्यास की बाढ़ का असर हिमाचल प्रदेश तक सीमित नहीं रहा. इसका प्रभाव पंजाब में भी साफ दिखता है.

भौगोलिक रूप से, पंजाब को तीन बारहमासी नदियों—ब्यास, सतलुज और रावी—का आशीर्वाद मिला है. घग्गर एक मौसमी नदी है जो राज्य से होकर गुजरती है.

ये नदियां पंजाब का गर्व रही हैं, जो अपनी उपजाऊ भूमि के लिए जानी जाती है, और जिनका अक्सर हीर-रांझा जैसी क्लासिक कहानियों में भी जिक्र किया गया है.

ब्यास का इतिहास और भी पुराना है. नदी के नाम को लेकर कई कथाएं हैं, लेकिन सबसे मशहूर कथा इसे वेद व्यास से जोड़ती है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने महाभारत की रचना की थी.

अंग्रेज़ी नाम ‘Beas’, जिसका मूल संस्कृत नाम ‘विपाशा’ था, ब्यास से ही जुड़ा हुआ माना जाता है.

एक और कथा के अनुसार, इसका नाम ऋषि वशिष्ठ से आया है—व्यास के परदादा—जिन्होंने नदी में कूदकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी. लेकिन नदी ने अपना रास्ता बदलकर उन्हें बचा लिया. इसके बाद वशिष्ठ ने नदी का नाम ‘विपाशा’ रखा, जिसका अर्थ है ‘बंधन मुक्त करने वाली’, जो उनके नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक था.

लेकिन यह सारी कथाएं ब्यास की देखभाल और संरक्षण में कोई मदद नहीं कर पाई हैं.

यह पहला मौका नहीं है जब पंजाब को भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ा है. 1955, 1988, 1993, 2019 और 2023 में भी बाढ़ का पानी घरों तक पहुंचा था.

इस साल जुलाई और अगस्त में हिमाचल प्रदेश में रिकॉर्डतोड़ बारिश हुई, जिससे ब्यास उफान पर आ गई. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नदी की वहन क्षमता टूट गई और लगभग 55,000 क्यूसिक पानी का प्रवाह दर्ज किया गया.

पंजाब में हुई भारी बारिश ने स्थिति को और बदतर कर दिया.

IMD के आंकड़ों के अनुसार, इस मौसम में पंजाब में 30 अगस्त तक सामान्य से 24 प्रतिशत अधिक बारिश हुई. राज्य ने 443 मिमी बारिश दर्ज की, जबकि मौसमी औसत 357.1 मिमी है.

यह सामान्य से अधिक बारिश का पैटर्न पूरे देश में देखा गया. 28 अगस्त से 3 सितंबर के बीच, पूरे भारत में मौसमी औसत से 48 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई. हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश—संभावित रूप से बादल फटने की घटना—ने पंजाब से बहने वाली तीनों नदियों में बाढ़ को और बढ़ा दिया.

जिले जैसे कपूरथला, तरनतारण, जालंधर, फिरोजपुर और होशियारपुर—जो ब्यास के किनारे बसे हैं—सबसे ज्यादा प्रभावित हुए.

भारतीय मौसम विभाग (IMD) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सितंबर के पहले हफ्ते तक पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में सामान्य से 45 प्रतिशत ज्यादा बारिश दर्ज की गई.

“मौसम के अंत में, लगभग सभी हिमालयी राज्यों में अचानक बारिश बढ़ गई,” अधिकारी ने कहा.

Inundated agricultural fields in Punjab after the Beas floods | Soumya Pillai, ThePrint
ब्यास नदी की बाढ़ के बाद पंजाब में जलमग्न कृषि क्षेत्र | सौम्या पिल्लई, दिप्रिंट
Roads leading to several villages were completed filled with water after the floods | Soumya Pillai, ThePrint
बाढ़ के बाद कई गांवों को जाने वाली सड़कें पानी से भर गईं | सौम्या पिल्लई, दिप्रिंट

अनुचित बांध प्रबंधन

कपूरथला के सुल्तानपुर लोधी जाने वाली सड़क—जो ब्यास नदी के किनारे स्थित है—अब अस्थायी झोपड़ियों से घिरी हुई है. स्थानीय लोग इधर-उधर बेचैनी से घूमते हुए बाढ़ से हुए नुकसान का मन ही मन आंकलन करते रहते हैं. राहत कार्यकर्ताओं की आवाजाही इन दोहराए जाते खयालों को कुछ देर के लिए तोड़ देती है.

जैसे ही जरूरी सामान लेकर आने वाले ट्रक इन कैंपों के पास रुकते हैं, लोग उनकी तरफ दौड़ पड़ते हैं. अगर आप कतार में सबसे आगे खड़े होने वालों में शामिल होने के लिए भाग्यशाली हैं, तभी अपने परिवार के लिए कुछ खाने का इंतजाम कर पाएंगे. बाकी लोगों को अगले दिन सुबह तक नए चक्र का इंतजार करना पड़ता है.

“खेतों में इतना पानी भरा देख कर दिल दर्द से भर जाता है. सिर्फ हमारे घर ही नहीं, इस सीजन की धान की फसल भी बर्बाद हो गई है. यह हममें से कई लोगों के लिए बड़ा आर्थिक झटका होगा,” सुल्तानपुर लोधी के किसान हरजीत सिंह ने कहा. उनका चार लोगों का परिवार लगभग एक हफ्ते से राहत शिविर में रह रहा है.

पंजाब सरकार ने ब्यास और सतलुज के ऊपरी हिस्से में बने बांधों के गलत प्रबंधन को इन बाढ़ों की वजह बताया है. अधिकारियों और विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्रीय जल आयोग—जो भारत में जलाशयों के संचालन और नदी प्रवाह के लिए जिम्मेदार केंद्रीय एजेंसी है—ने ब्यास नदी के ऊपरी हिस्से में स्थित बांधों से बड़ी मात्रा में पानी छोड़ा. इससे निचले इलाकों में बाढ़ और बढ़ गई.

Relief camps for villages that were the worst impacted by Beas flooding this year | Soumya Pillai, ThePrint
इस साल ब्यास नदी की बाढ़ से सबसे ज़्यादा प्रभावित गांवों के लिए राहत शिविर | सौम्या पिल्लई, दिप्रिंट

उनका आरोप है कि पोंग, भाखड़ा और रंजीत सागर बांधों से पानी एक साथ, बिना किसी चेतावनी के छोड़ा गया.

ब्यास पर बना पोंग बांध, जो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित है, और सतलुज पर बना भाखड़ा बांध, जो बिलासपुर में स्थित है—दोनों ही भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (BBMB) नामक एक अंतर-राज्यीय एजेंसी द्वारा संचालित किए जाते हैं. यह एजेंसी 1966 में पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के तहत बनाई गई थी, ताकि नदियों के प्रवाह को नियंत्रित किया जा सके.

एजेंसी यह तय करती है कि कब और कितना पानी बांध के जलाशयों से छोड़ा जाए ताकि जलस्तर बांध की सीमा से अधिक न हो. यह निर्णय ‘रूल कर्व्स’ के आधार पर होता है, जो मूल रूप से मौसमी दिशानिर्देश होते हैं कि किस समय कितना पानी छोड़ा जाना चाहिए.

पंजाब ने आरोप लगाया कि ऊपरी हिस्से में बने बांधों से समय से पहले पानी छोड़े जाने से ही यह भीषण बाढ़ आई. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जुलाई में पोंग बांध में पानी जमा किया गया लेकिन छोड़ा नहीं गया, और जब बारिश तेज हुई तो एक साथ बड़ी मात्रा में पानी छोड़ दिया गया.

“पूर्वानुमानों में चेतावनी थी कि इस सीजन में सामान्य से ज्यादा बारिश होगी. फिर इतना पानी रोक कर रखने की क्या जरूरत थी?” अधिकारी ने कहा. उन्होंने यह भी जोड़ा कि इतनी बड़ी मात्रा में पानी छोड़ने से पहले कोई चेतावनी नहीं दी गई, जिससे पंजाब को अपने गांव खाली कराने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला.

BBMB ने इन आरोपों को सख्ती से खारिज किया है.

“जब पानी एक निश्चित स्तर से ऊपर चला जाता है तो हमें बांध से पानी छोड़ना ही पड़ता है. अगर हम ऐसा नहीं करते, तो बांध और उसके आसपास के लोगों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है,” BBMB के चेयरपर्सन मनोज कुमार त्रिपाठी ने दिप्रिंट को बताया.

त्रिपाठी ने जोर देकर कहा कि अगर BBMB ने पानी न छोड़ा होता, तो पंजाब को और पहले ही बाढ़ का सामना करना पड़ता.

पिछले हफ्ते एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में BBMB ने कहा कि इस मानसून, पोंग बांध में पानी का प्रवाह 2023 की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत अधिक था, जब पंजाब में आखिरी बार बाढ़ आई थी. भाखड़ा की स्थिति भी ऐसी ही थी.

Make shift embankment set up to control the flood water | Soumya Pillai, ThePrint
बाढ़ के पानी को नियंत्रित करने के लिए अस्थायी तटबंध स्थापित किया गया | सौम्या पिल्लई, दिप्रिंट

त्रिपाठी ने कहा, “पानी छोड़ने के सभी नियमों का पालन किया गया, लेकिन इस बार की बारिश अप्रत्याशित थी.”

पंजाब के पूर्व विशेष मुख्य सचिव केबीएस सिद्धू भी इससे सहमत हैं.

“बांधों से पानी कब छोड़ा जाना चाहिए, यह कुछ हाइड्रोलॉजिकल नियमों से तय होता है. अगर बांध भर जाता है, तो उसकी सुरक्षा के लिए पानी छोड़ना जरूरी है,” सिद्धू ने कहा.

सिद्धू ने यह भी कहा कि पंजाब की यह इच्छा कि वह अपना पूरा पानी खुद रखे, इस साल ‘अधिक पानी’ की समस्या का कारण बन सकती है.

उन्होंने कहा कि समय रहते कुछ पानी हरियाणा को दे दिया जाता, तो बाढ़ का असर कम हो सकता था.

उन्होंने कहा, “इस गर्मी में हरियाणा ने पंजाब से अतिरिक्त पानी मांगा था, लेकिन पंजाब उस समय अपनी नदियों का पानी मोड़ने को तैयार नहीं था.”

People tried to save their cattle to protect their livelihood | Soumya Pillai, ThePrint
लोगों ने अपनी आजीविका बचाने के लिए अपने मवेशियों को बचाने की कोशिश की | सौम्या पिल्लई, दिप्रिंट

राज्य का अपनी नदियों—ब्यास, सतलुज और रावी—के किनारे स्थित धुस्सी बांधों (तटबंधों) को समय पर मजबूत और मेंटेन न कर पाना, तथा स्थानीय नालों की समय पर सफाई न करना भी पंजाब की मुसीबतों में इस वर्ष इजाफा कर गया, सिद्धू ने कहा.

अविश्वसनीय पूर्वानुमान, वनों की कटाई

पंजाब में बार-बार आने वाली बाढ़ों की जड़ इससे भी गहरी है.

पिछले कुछ सालों में हिमालय में बिना सोचे-समझे विकास संबंधी गतिविधियां बढ़ी हैं. हिमाचल प्रदेश में हाईवे, हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट, होटल, लॉज और लकड़ी आधारित उद्योगों के विस्तार ने इस क्षेत्र की संवेदनशीलता बढ़ा दी है. इसका मुख्य कारण है बड़े पैमाने पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई.

पिछले महीने, जब हिमालयी नदियां उफान पर थीं, सोशल मीडिया पर पानी में बहती लकड़ियों के बड़े ढेरों के वीडियो और तस्वीरें वायरल थीं. हिमाचल प्रदेश के वन विभाग ने अवैध कटाई से इनकार किया, लेकिन स्थानीय लोगों ने राज्य में बड़े पैमाने पर चल रहे लकड़ी उद्योग की ओर इशारा किया.

नवीन जु़याल ने बताया कि 1950 से 1970 के बीच, हिमालयी जंगलों के 6,000 एकड़ से ज्यादा हिस्से को विकास और लकड़ी आधारित उद्योगों की ज़रूरतों के लिए काटा गया. इतना बड़ा जंगल नष्ट होने के बाद ही बाढ़ें ज्यादा बार और ज्यादा ताकत से आने लगीं.

अक्सर ऐसी वनों की कटाई बिना किसी पुनःरोपण के की जाती है.

“पूरा पारिस्थितिक चक्र बिगड़ रहा है. जितने अधिक पेड़ हम काटते हैं, क्षेत्र का सूक्ष्म जलवायु उतना ही बिगड़ता है. जब ऐसा होता है, तो हमें तीव्र मौसम प्रणालियों की बढ़ोतरी दिखती है, जैसे हाल की भारी बारिश,” जु़याल ने समझाया.

हिमालय के इस तरह के दुरुपयोग ने ब्यास के प्रवाह में भी बदलाव किए हैं.

इस वर्ष पहले प्रकाशित 2023 की बाढ़ों पर आधारित एक अध्ययन ने दिखाया कि ब्यास के पानी का प्रवाह और उसकी प्रकृति वर्षों में बदल गई है.

रिसर्चर्स ने पाया कि पिछले दो दशकों में नदी में मलबे की मात्रा बढ़ी है, और पानी में नई तरह की तलछट पाई जा रही है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह मृदा क्षरण और नदी के आसपास पारंपरिक वनस्पत्तियों के नुकसान का परिणाम हो सकता है. सरल शब्दों में, जब किसी क्षेत्र की मूल वनस्पति लंबे समय तक लगातार बदली जाती है, तो मिट्टी की प्रकृति और उसके आसपास की पारिस्थितिक प्रणालियां—जैसे नदी और जलवायु—भी बदलने लगती हैं.

“इसके लिए किसी एक कारण को नहीं ठहराया जा सकता. यह कई समस्याएँ हैं, जिन्हें बहुत लंबे समय तक अनदेखा किया गया है,” हिमांशु ठक्कर ने कहा.

उन्होंने कहा कि विकास संबंधी गतिविधियों के अलावा, अधिकारियों ने ब्यास के किनारे मलबा फेंकने पर भी नियंत्रण नहीं किया है.

“बाढ़ सिर्फ पानी नहीं लाती. जब आप नदी पर कब्जा करते हैं और उसे कचरा फेंकने की जगह बना देते हैं, तो बाढ़ आने पर वह सारा मलबा आपको ही मार करेगा,” उन्होंने कहा. “और यही बाढ़ के प्रभाव को और बढ़ाता है.”

विशेषज्ञों का कहना है कि नदी प्रणाली में आए ये सभी बदलाव बड़े स्तर पर असर डालते हैं—भीषण मौसम और और भी गंभीर आपदाओं के रूप में.

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की समय पर सटीक भविष्यवाणी न कर पाना भी एक चिंता का विषय है. मौसमी, साप्ताहिक और दैनिक पूर्वानुमानों के अलावा, IMD भारत के बांध अधिकारियों को एक विशेष सेवा देता है, जिससे उन्हें बांधों के द्वार खोलने और बंद करने की योजना बनाने में मदद मिलती है.

सितंबर के पहले सप्ताह में, पंजाब के जल संसाधन विभाग ने IMD को एक पत्र लिखा, जिसमें रंजीत सागर बांध के कैचमेंट क्षेत्र में IMD के पूर्वानुमान और वास्तविक बारिश के बीच बड़े अंतर की शिकायत की गई. और यह अंतर मामूली नहीं था.

रंजीत सागर बांध अधिकारियों के अनुसार, 22 अगस्त को कैचमेंट क्षेत्र में दर्ज वास्तविक वर्षा 39.5 मिमी थी, जबकि IMD ने केवल 7 मिमी का अनुमान लगाया था. इसी तरह, 23 अगस्त को वास्तविक वर्षा 163 मिमी थी, जबकि पूर्वानुमान सिर्फ 21 मिमी था.

“रंजीत सिंह बांध कैचमेंट के लिए वेबसाइट पर अपडेट किए जा रहे 24 घंटे और सात दिन के पूर्वानुमान भी गलत साबित हुए,” पंजाब के प्रमुख सचिव (जल संसाधन) कृष्ण कुमार ने IMD को लिखे पत्र में कहा.

IMD अधिकारियों ने माना कि पूर्वानुमान में खामियां हैं, खासकर अचानक और अत्यधिक मौसम संबंधी घटनाओं—जैसे स्थानीयकृत क्लाउडबर्स्ट से होने वाली बाढ़—के लिए. उन्होंने कहा कि एजेंसी अपनी प्रणालियों को मजबूत करने पर काम कर रही है.

मौसम पूर्वानुमान एजेंसी 2025 के अंत तक अपने रडार कवरेज को वर्तमान 37 स्थानों से बढ़ाकर 73 स्थानों तक ले जाने की योजना बना रही है. अगले वर्ष तक इसे लगभग 126 तक बढ़ाने का लक्ष्य है. केंद्र की पूर्वानुमान प्रणालियों में AI तकनीक जोड़ने की योजना भी आपदाओं से निपटने के लिए समय पर चेतावनी देने में बहुत मदद कर सकती है.

विशेषज्ञों का कहना है कि समस्या सिर्फ पूर्वानुमान की सटीकता में नहीं, बल्कि इस बात में भी है कि इन चेतावनियों का इस्तेमाल कितनी कुशलता से किया जाता है. एक बार पूर्वानुमान जारी होने के बाद, केंद्र और राज्य की एजेंसियों को स्थानीय लोगों को चेतावनी देने, निकासी सुनिश्चित करने और पहले से कदम उठाने—जैसे बांध से पानी छोड़ने—के लिए सक्रिय होना चाहिए, ताकि आपदाओं का असर कम किया जा सके.

जब तक अधिकारी इस बहु-स्तरीय समस्या का समाधान नहीं करते, ब्यास पंजाब के घावों की गवाह बनकर इसी तरह बहती रहेगी.

यह Angry Rivers सीरीज की पहली रिपोर्ट है. 

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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