नई दिल्ली: तमिलनाडु के मीनाक्षी मंदिर से लेकर उत्तर प्रदेश के महाकुंभ मेले तक, गारमेंट एक्सपोर्टर अनीता शिवदासानी एक अनुभवी और समर्पित तीर्थयात्री हैं. लेकिन उत्तराखंड की हरी-भरी घाटियों और बर्फ से ढके पहाड़ों को दिखाने वाली हेलीकॉप्टर सवारी ने उनके मन पर गहरा असर डाला.
हेलीकॉप्टर अब दशकों पुराने तीर्थ मार्गों पर परिवहन का पसंदीदा साधन बन गए हैं, जो भारत के कुछ सबसे पवित्र मंदिरों तक जल्दी पहुंचने की सुविधा देते हैं. लेकिन पिछले डेढ़ महीने में हुए कई हादसों ने इस तेजी से बढ़ते क्षेत्र में सुरक्षा की खामियों को उजागर कर दिया है. 15 जून को केदारनाथ में हुई हालिया दुर्घटना जिसमें सात लोगों की जान चली गई, ने इस ओर ध्यान दिलाया कि इस क्षेत्र में रेगुलेटरी निगरानी और हवाई यातायात नियंत्रण (एटीसी) जैसी उड़ान अवसंरचना और रियल-टाइम मौसम अपडेट की कमी है.
“कोविड से पहले, हमारे धार्मिक यात्रा कारोबार का 80 प्रतिशत हिस्सा बस से यात्रा करने वाले ग्राहकों का होता था,” थॉमस कुक और एसओटीसी के कार्यकारी उपाध्यक्ष नीरज सिंह देव ने कहा. “आज, हमारे 80 प्रतिशत ग्राहक हेलीकॉप्टर से यात्रा करते हैं. यह अनुपात पूरी तरह बदल गया है.”
15 और 16 जून को केदारनाथ में हेलीकॉप्टर सेवाओं को दो दिन के लिए निलंबित करने के बाद भी, लोग सवारी के लिए कतार में खड़े दिखे. जम्मू-कश्मीर के वैष्णो देवी से लेकर आंध्र प्रदेश के तिरुपति तक, श्रद्धालु लंबे पैदल रास्तों और असहज खच्चर की सवारी से बचने के लिए हेलीकॉप्टर से यात्रा कर रहे हैं. 6,000 रुपये से 10,000 रुपये तक की कीमत वाले ये सफर रूट के अनुसार तय होते हैं और समय की बचत के सस्ते विकल्प माने जा रहे हैं.
सबसे लोकप्रिय रूट केदारनाथ है, लेकिन यह सबसे खतरनाक भी है. चार धाम यात्रा के मार्ग में शामिल यह मंदिर शहर पिछले डेढ़ महीने में पांच हेलीकॉप्टर सुरक्षा घटनाओं का गवाह रहा—तीन इमरजेंसी लैंडिंग और दो क्रैश. DGCA ने 15 और 16 जून को हेलीकॉप्टर संचालन को निलंबित किया और उत्तराखंड नागरिक उड्डयन विकास प्राधिकरण (UCADA) को एक समग्र समीक्षा करने और वास्तविक समय के संचालन की निगरानी के लिए कमांड-एंड-कंट्रोल रूम स्थापित करने का निर्देश दिया.
इसके एक महीने पहले ही, छह लोग उस समय मारे गए जब गंगोत्री मंदिर की ओर जा रहा एक हेलीकॉप्टर ऊंचाई से एक खाई में गिर गया. अक्टूबर 2022 में केदारनाथ हेलिपैड पर हुए एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना की जांच विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) ने की थी, जिसने अपनी रिपोर्ट में UCADA को एटीसी और एक एविएशन मौसम स्टेशन स्थापित करने की सिफारिश की थी ताकि मौसम की स्थिति के बारे में अधिक सटीक जानकारी मिल सके. लगभग तीन साल बाद भी, इनमें से कोई भी सिफारिश लागू नहीं की गई है.
उत्तराखंड के सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणीय संगठन ‘सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज फाउंडेशन’ के संस्थापक अनुप नौटियाल ने कहा, “यह हवाई मार्ग देश के सबसे खतरनाक रास्तों में से एक है। यहां न एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) है, न रडार अलर्ट और न ही मौसम की जानकारी का कोई सिस्टम. मतलब यह कि पायलट लगभग बिना किसी गाइडेंस के उड़ान भर रहे हैं.”

हेली यात्रा में बढ़ोतरी
इस यात्रा का आखिरी हिस्सा केदारनाथ मंदिर तक 16 किलोमीटर का मुश्किल पैदल सफर होता है, जिसे कई लोग अपनी आस्था की परीक्षा मानते हैं. पहले, गोरिकुंड से मंदिर तक जाने के लिए दो ही रास्ते थे—पैदल या खच्चर की सवारी. आज पहाड़ी मंदिरों के ऊपर आसमान में हेलीकॉप्टर उड़ते दिखाई देते हैं.
“SOTC के डेप्यूटी मैनेजर विकास बिष्ट ने बताया, ‘हम प्वाइंट-टू-प्वाइंट हेलीकॉप्टर सेवाएं देते हैं,’ और कहा कि ये पैकेज ज्यादातर बुजुर्गों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं. ‘हमारे ज्यादातर ग्राहकों को आराम चाहिए—वे घंटों पैदल नहीं चलना चाहते.’”
मल्टीकलर पोस्टर जयपुर के ऑफिस की दीवारों पर लगे हैं—ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और यूरोप के पैकेज तो खूब एड किए गए हैं, लेकिन ‘हेलीकॉप्टर से चार धाम यात्रा’ पैकेज की सबसे अधिक बिक्री हो रही है.
प्रति व्यक्ति 2.2 लाख रुपये के सभी इनक्लूसिव पैकेज में पांच रात का ठहराव, सभी भोजन और चार उत्तराखंड तीर्थस्थलों—यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ—तक हेलीकॉप्टर यात्रा शामिल है. बड़े बजट वाले ग्राहक लंबी लाइनों से बचने और तीर्थस्थलों तक तेज़ पहुंच पाने के लिए इसका चढ़-चढ़कर उपयोग कर रहे हैं.
राज्य सरकारों ने पहुंच बढ़ाने और टैक्स राजस्व बढ़ाने के प्रयास में निजी ऑपरेटरों के साथ मिलकर हेलीकॉप्टर शटल सेवाएं शुरू की हैं. थॉमस कुक जैसी कंपनियों वाली चार्टर सेवाओं से अलग, ये शटल तय मार्गों पर तीर्थयात्रियों को किफायती दरों पर ले जाती हैं.
2013 में, एक बादल फटने से उत्तराखंड में भारी बाढ़ और भूस्खलन हुआ था. उस समय भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर राहत कार्यों में शामिल हुए, लेकिन पहाड़ी इलाकों और कम दृश्यता की वजह से हादसे हुए। 2000 के दशक की शुरुआत में निजी हेलीकॉप्टर सेवाएं शुरू हुईं, लेकिन UCADA ने पहली बार 2018 में टेंडर प्रक्रिया शुरू की थी.
राज्य के नागरिक उड्डयन प्राधिकरण ने चार रास्तों पर निजी ऑपरेटरों से बोलियां स्वीकार की थी—तीन मार्ग केदारनाथ के लिए (गुप्तकाशी, फाटा और सिरसी से), और चौथा गोविंदघाट से घांगरिया तक। बाद के UCADA टेंडरों में भी ये रास्ते वही रहे.
आज इन चार रूटों पर नौ निजी ऑपरेटर सेवा देते हैं. सबसे हालिया हादसे वाला ऑपरेटर, आर्यन एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और ट्रांस भारत एविएशन प्राइवेट लिमिटेड, गुप्तकाशी–केदारनाथ रूट पर उड़ान भरते हैं. सभी ऑनलाइन बुकिंग भारतीय रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉर्पोरेशन (IRCTC) की वेबसाइट ‘हैली यात्रा’ के ज़रिए होती है.
“पिछले साल केदारनाथ आने वाले 19–20 लाख श्रद्धालुओं में से लगभग 5 प्रतिशत ने हेलीकॉप्टर सेवा ली थी,” उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के जिला पर्यटन विकास अधिकारी (DTDO) राहुल चौबे ने कहा, जहां केदारनाथ स्थित है. “इस सेक्टर में बहुत दबाव है. लोग हेलीकॉप्टर से जाना चाहते हैं और कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं.”
चौबे ने आगे कहा कि हेलीकॉप्टर सेवाओं की मांग, उपलब्धता से तीन से चार गुना अधिक है. इस असंतुलन के कारण टिकट की ब्लैक मार्केटिंग और साइबर अपराधियों द्वारा नकली टिकट बेचने की घटनाएं बढ़ गई हैं. फाटा से केदारनाथ के रूट पर उड़ान भरने वाले पवन हंस लिमिटेड और ग्लोबल वेक्ट्रा हेलीकॉर्प लिमिटेड की वेबसाइट्स पर बड़े पॉप-अप लगे हैं, जो ग्राहकों को नकली वेबसाइटों और एजेंटों से सावधान रहने की चेतावनी देते हैं.
चार धाम यात्रा के दौरान, केदारनाथ क्षेत्र में रोज़ाना औसतन 250–300 हेलीकॉप्टर उड़ानें होती हैं. मौसम सही रहने पर यह संख्या 400 तक पहुंच सकती है, लेकिन कम बादल और अप्रत्याशित मौसम के कारण कई बार कुछ घंटों के लिए उड़ानें रोक दी जाती हैं.
“जब हम पहुंचे, उस दिन पहले की बारिश के कारण उड़ानें रद्द हो गई थीं और उस दिन के लिए बैकलॉग था,” अनीता शिवदासानी ने कहा, जिन्होंने गुप्तकाशी से राउंड-ट्रिप के लिए ₹8,000 चुकाए थे. “बुकिंग बूथ पर लंबी लाइन थी, लेकिन हम सुबह जल्दी पहुंच गए थे ताकि भीड़ से बच सकें.”
शिवदासानी ने याद किया कि उन्होंने गुप्तकाशी के पास एक छोटे पहाड़ी इलाके से उड़ान भरी और केदारनाथ में ‘एक बड़े, खुले हेलीपैड’ पर लैंड किया. उन्हें मंदिर तक पहुंचने के लिए पैदल चलना पड़ा, लेकिन हेलीकॉप्टर की सुविधा से वे प्रभावित हुईं.
सभी धार्मिक स्थलों पर शटल सेवाएं राज्य नागरिक उड्डयन प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित नहीं होतीं. वैष्णो देवी में हेलीकॉप्टर सेवा श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड (श्राइन बोर्ड) के ज़रिए दी जाती है, जिसे 1986 में यात्रा का प्रबंधन और मंदिर के संचालन के लिए स्थापित किया गया था.
श्राइन बोर्ड ने दो निजी ऑपरेटरों—ग्लोबल वेक्ट्रा हेलीकॉर्प और हिमालयन हेली सर्विसेज—के साथ साझेदारी की है, जो कटरा से संजीछत्त के बीच शटल सेवा देते हैं. 4,420 रुपये की राउंड-ट्रिप कीमत पर, दिन भर में कई स्लॉट उपलब्ध हैं, जिनमें उसी दिन या अगले दिन वापसी का विकल्प होता है.
एक अधिक प्रीमियम, सभी सुविधाओं से युक्त पैकेज भी उपलब्ध है. ‘जम्मू – भवन – जम्मू’ रूट की कीमत 35,000 रुपये से 60,000 रुपये के बीच है, जिसमें भोजन, ठहरने की व्यवस्था, प्रसाद बॉक्स और वीआईपी दर्शन शामिल होते हैं—एक ऐसा विकल्प जिससे श्रद्धालु कतार से बच सकते हैं.
कोर्डिनेशन की कमी
कोविड-19 के बाद तीर्थ यात्रा में तेजी आने से हेलीकॉप्टरों के ज़रिए ज्यादा यात्रियों को ले जाया जाने लगा, और बार-बार उड़ानें भरनी पड़ीं ताकि बढ़ती मांग पूरी हो सके. केदारनाथ जैसे क्षेत्रों में, जहां मौसम पल भर में बदल सकता है, हर उड़ान में जोखिम बहुत ज़्यादा होता है.
“इनमें से ज़्यादातर हेलीकॉप्टर हादसे खराब मौसम की वजह से होते हैं,” फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट्स के अध्यक्ष कैप्टन सीएस रंधावा ने कहा. उन्होंने याद दिलाया कि तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री वाई.एस. राजशेखर रेड्डी की मौत भी मौसम के कारण हुए हेलीकॉप्टर हादसे में हुई थी. “उत्तराखंड का इलाका बहुत पहाड़ी है, घाटियों में बादल बहुत नीचे होते हैं, और मानसून स्थिति और खराब कर देता है.”
केदारनाथ में पायलट दृश्य मौसम स्थितियों (वीएमसी) के तहत उड़ान भरते हैं, यानी उन्हें दूसरे विमानों और इलाके से दूरी बनाए रखने के लिए दृश्य संकेतों पर निर्भर रहना पड़ता है. इस क्षेत्र में कोई आधुनिक नेविगेशन सिस्टम या एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) नहीं है.
“एटीसी का काम होता है समन्वय करना,” एयरो स्पोर्ट्स स्काई वेंचर के ऑपरेशन्स डायरेक्टर और फ्लाइट सेफ्टी एक्सपर्ट कैप्टन संजय चक्रवर्ती ने कहा. “लेकिन एटीसी की भी कुछ किलोमीटर की सीमा होती है. जब आप दूसरे एयरस्पेस में जाते हैं, तो आपको नए एटीसी से संपर्क करना होता है। जैसे दिल्ली से देहरादून के बीच दो या तीन अलग-अलग एटीसी होते हैं.”
अक्टूबर 2022 में केदारनाथ हेलीपैड पर हेलीकॉप्टर क्रैश के बाद, विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) ने एटीसी, मौसम केंद्र और हेलीपैड्स पर सीसीटीवी लगाने की सिफारिश की थी. 2023 में डीजीसीए ने हेलीपैड और अलग-अलग जगहों पर मौसम कैमरे लगाए ताकि मौसम की स्थिति का रीयल टाइम मॉनिटरिंग हो सके. डीजीसीए ने सीसीटीवी और अतिरिक्त पायलट प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की, लेकिन एटीसी आज तक नहीं बनाया गया.
चक्रवर्ती के अनुसार सभी पायलट लाइसेंसधारी हैं और कई तो पूर्व सैनिक हैं जिनके पास उड़ान का वर्षों का अनुभव है. उनके अनुसार असली समस्या है—डीजीसीए, यूकाडा और हेलीकॉप्टर ऑपरेटरों के बीच समन्वय की कमी. और लालच.
“हेलीकॉप्टर ऑपरेटर ये सेवाएं दान में नहीं दे रहे,” उन्होंने कहा. उन्होंने बताया कि ऑपरेटरों को भी अपने व्यवसाय चलाने के लिए सरकार को टैक्स देना पड़ता है. “पायलट शायद ऑपरेटर को ‘ना’ कहने की हिम्मत न करें, क्योंकि वही उनकी तनख्वाह देते हैं.”
यूकाडा वेबसाइट पर 2023 के ऐडेंडम के मुताबिक, ऑपरेटरों को केदारनाथ हेलीपैड पर हर लैंडिंग पर 5,000 रुपये और घांघरिया हेलीपैड पर 3,000 रुपये का शुल्क देना होता है. यात्रा सीजन में रोजाना औसतन 250-300 उड़ानों के हिसाब से सरकार सिर्फ केदारनाथ से 12.5 लाख रुपये से 15 लाख रुपये रोज कमाती है. यात्रियों के टिकट पर जीएसटी भी लगता है, जिसका एक हिस्सा राज्य सरकार को जाता है.
“चार धाम यात्रा की सबसे बड़ी खामी ये है कि सरकार सिर्फ रिकॉर्ड बनाने पर ध्यान दे रही है,” नौतियाल ने कहा. उन्होंने बताया कि सरकार की प्रेस विज्ञप्तियों और मीडिया में तीर्थयात्रियों की संख्या की ही चर्चा होती है. “दृष्टिकोण सुरक्षा और टिकाऊपन का होना चाहिए — न कि बेवकूफी भरे आंकड़ों के पीछे भागना.”
चक्रवर्ती और रंधावा जैसे एविएशन एक्सपर्ट भी मानते हैं कि डीजीसीए, यूकाडा और ऑपरेटरों के बीच तालमेल की कमी है. “हर चीज़ नियमों में साफ-साफ लिखी है, लेकिन डीजीसीए को अपनी निगरानी बढ़ानी होगी,” रंधावा ने कहा. उन्होंने बताया कि 15 जून को जो हादसा हुआ, उसमें मौसम जांच नहीं हुई थी — अगर प्रोटोकॉल का पालन होता तो शायद हादसा टल जाता.
रुद्रप्रयाग के जिला पर्यटन अधिकारी राहुल चौबे ने बताया कि यूकाडा शटल सेवा का संचालन देखता है, लेकिन नियम लागू करने की ताकत डीजीसीए के पास है. उन्होंने कहा कि डीजीसीए सीजन शुरू होने से पहले पायलटों और उपकरणों की जांच करता है, लेकिन दिल्ली में स्थित होने की वजह से जब भीड़ बढ़ती है, डीजीसीए की भूमिका कम हो जाती है.
अगस्त 2023 में संसद में सरकार से पूछा गया था कि वह यात्रियों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठा रही है. तब नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जनरल वी.के. सिंह ने लिखित जवाब में कहा था कि डीजीसीए पूरे देश में हेलीकॉप्टर संचालन की सुरक्षा देखता है. नियमों और उल्लंघनों पर कार्रवाई उसी के ज़रिए होती है. यानी जवाबदेही डीजीसीए की ही है.
इतिहास में डीजीसीए ने हर बड़े हादसे के बाद ही एक्शन लिया है — नए नियम लागू किए, लाइसेंस सस्पेंड किए. हाल ही में इसने चार धाम रूट पर प्रति घंटे सिर्फ 9 उड़ानों की सीमा तय कर दी — सिरसी से 4, फाटा से 3 और गुप्तकाशी से 2 उड़ानें. इससे रोजाना की कुल उड़ानें घटकर 150 रह गईं. यह कदम 7 जून को सिरसी से केदारनाथ जाते समय हुए हेलीकॉप्टर हादसे के बाद उठाया गया.
डीजीसीए ही उन सभी निजी हेलीकॉप्टर ऑपरेटरों को प्रमाणित करता है जो देशभर में शटल सेवाएं देते हैं. आईआरसीटीसी और श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की वेबसाइट्स पर सूचीबद्ध सभी कंपनियां डीजीसीए से प्रमाणित हैं, जिनकी विमान मॉडल, रजिस्ट्रेशन नंबर और लाइसेंस वैधता की जानकारी वेबसाइट पर दी गई है.
एयरक्राफ्ट रूल्स 1937 के तहत डीजीसीए पायलट लाइसेंस जारी करने की पूरी प्रक्रिया भी वेबसाइट पर बताता है — उम्र कम से कम 17 साल, 10वीं पास, लिखित परीक्षा और कम से कम 40 घंटे की उड़ान का अनुभव, जिसमें 15 घंटे की सोलो उड़ान शामिल है.
“सब कुछ कागज़ों पर लिखा है, लेकिन अमल नहीं हो रहा,” नौतियाल ने कहा. उन्होंने बताया कि हर दिन 20,000 से ज्यादा लोग केदारनाथ आते हैं, लेकिन मंदिर के बाहर चप्पलों की व्यवस्था तक नहीं है.
उन्होंने सवाल उठाया, “अगर ये सिस्टम चप्पलों को नहीं संभाल सकता, तो हेलीकॉप्टरों को कैसे संभालेगा?”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: हरियाणवी यूट्यूबर्स के लिए पाकिस्तान की यात्रा जड़ों से जुड़ने जैसी है. ज्योति मल्होत्रा अकेली नहीं हैं