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Saturday, 21 December, 2024
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शिलांग के दलित सिख कहां जाएंगे? खासी से अनबन के बाद स्थानांतरण और पुनर्वास बना बड़ा मुद्दा

मज़हबी सिख 19वीं सदी में शिलांग आए थे. अब उन्हें शहर के प्रमुख व्यावसायिक क्षेत्र में रहने वाले बाहरी लोग माना जाता है.

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शिलांग: शिलांग के वाणिज्यिक केंद्र बारा बाजार के हलचल और भीड़ के बीच, एक चमकदार, नया, सफेद और सुनहरा गुरुद्वारा एकता और विश्वास के प्रतीक के रूप में खड़ा है. लेकिन इसकी ओर जाने वाली सड़क पांच साल से अधिक समय से वाहनों के लिए बंद है. यहां लगें बैरिकेड 2018 में हुए सिख-खासी झड़पों की दर्दनाक यादों को ताज़ा करते हैं.

शिलांग समाज में कोई पारंपरिक जाति व्यवस्था नहीं है, लेकिन 300 से अधिक दलित सिख परिवार वर्ग और जातीय विभाजन की कहानी बताते हैं, जो कि दंगे, भूमि स्थानांतरण, कागजी कार्रवाई की लंबी लड़ाई और बारा बाजार के सौंदर्यीकरण पर बहस से जुड़ी हुई है. इसके मूल में मध्य शिलांग के गरीब इलाके को लेकर शहर के खासी निवासियों के बीच बढ़ती बेचैनी है. यह शहर के शहरी नवीनीकरण के सपने के आड़े आ रहा है.

पंजाब विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रोंकी राम ने कहा, “जब दलित सिखों की सेवाओं की आवश्यकता थी, तो उन्हें घर बनाने के लिए ज़मीन दी गई. लेकिन दी गई जमीन पर 160 साल से अधिक समय तक रोक लगाने के बाद, अब उन्हें बाहरी माना जा रहा है.”

रोंकी राम ने कहा, “इन तथाकथित बाहरी लोगों (दलित सिखों) की पीड़ा और बढ़ गई है क्योंकि उन्हें आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जाति समुदाय के रूप में मान्यता दी गई है.”

राम ने कहा कि सिर्फ बाजार क्षेत्र को सजाने-संवारने के लिए पंजाबी लेन में रहने वाले निवासियों को उनके बुनियादी मानवाधिकारों की उपेक्षा नहीं की जा सकती.

पंजाबी लेन में, 3.5 एकड़ का एक बंद क्षेत्र है, जो दलित सिखों के वंशज पुनर्वास के सामाजिक रूप से संवेदनशील मुद्दे पर मेघालय सरकार के साथ खुद को एक कड़वी कानूनी लड़ाई में फंसा हुआ पाते हैं. इन दलित सिखों को 19वीं सदी में अंग्रेज़ों द्वारा शिलांग लाया गया था.

यह क्षेत्र, जिसे हरिजन कॉलोनी के नाम से भी जाना जाता है और बोलचाल की भाषा में स्वीपर कॉलोनी कहा जाता है, एक सदी पहले उभरा था. यह मूल रूप से दलित सिख या मज़हबी सिख समुदाय का निवास स्थान है, जो पारंपरिक रूप से शिलांग नगर पालिका में सफाई कर्मचारियों के रूप में कार्यरत है, लेकिन अब यह एक घने आवासीय क्षेत्र में विकसित हो गया है, जिसमें 220 घरों में 342 पंजाबी परिवार रहते हैं.

विवादास्पद भूमि खराब प्रशासन की एक कहानी है जिसने छोटे क्वार्टरों को कंक्रीट और लकड़ी के डुप्लेक्स घरों के अनियोजित, ढेर में बदलने की अनुमति दी. यह गाथा जेंट्रीफिकेशन की जटिल गतिशीलता का खुलासा करती है, जहां एक हाशिए पर रहने वाला समुदाय ऐतिहासिक भाग्य के मोड़ के कारण एक प्रमुख वाणिज्यिक अचल संपत्ति पर कब्जा करने के लिए आया था.

मेघालय सचिवालय में सफ़ाईकर्मी के रूप में काम करने वाली आशा कौर ने सवाल किया, “काम से घर आने के बाद हम पड़ोसियों से इसी बारे में बात करते हैं. हम अगली अदालती सुनवाई को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं. अगर हमारे पास रहने के लिए घर नहीं होगा तो हम अपने परिवार के साथ कहां जाएंगे?”

A newly renovated gurudwara is situated in the heart of the colony | Photo: Monami Gogoi, ThePrint
एक नव पुनर्निर्मित गुरुद्वारा कॉलोनी के मध्य में स्थित है | फोटो: मोनामी गोगोई, दिप्रिंट

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पुराना और गहरा विवाद

दलित सिख समुदाय का स्थानांतरण शिलांग के आदिवासी खासी और गैर-आदिवासी निवासियों के बीच चल रहे विवाद और संघर्ष की तस्वीर पेश करती है.

गुरुद्वारे की बंद की गई सड़क, जिस पर अब केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवान तैनात हैं, उस हिंसा की याद दिलाती है जो सिख पड़ोस में बस पार्किंग की जगह पर एक छोटे से विवाद के बाद भड़की थी, जो बाद में खासी के साथ पूर्ण संघर्ष में बदल गया था.

मई 2018 के आखिरी दिन कॉलोनी की एक सिख महिला और मेघालय राज्य परिवहन निगम की बस के खासी ड्राइवर के बीच पार्किंग स्थल को लेकर झगड़ा हो गया था. तभी से विरोधाभासी कहानियां सामने आने लगी. मजहबी सिख समुदाय ने दावा किया कि एक सिख महिला को खासी पुरुषों द्वारा परेशान किए जाने के बाद, उसने और कॉलोनी की चार अन्य महिलाओं ने मिलकर उनकी पिटाई की. खासी समुदाय ने पंजाबी लेन के लोगों पर पार्किंग को लेकर हुए विवाद के बाद पिटाई करने का आरोप लगाया है.

लेकिन इस झगड़े का इतिहास बहुत गहरा है.

हिमाद्रि बनर्जी ने कहा, “दलित सिखों को जानबूझकर वहां बसाया गया क्योंकि यह उनके कार्यस्थल के करीब था.”

मेघालय हाई कोर्ट में दलित सिखों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील रितेश खत्री ने कहा कि समुदाय 1863 से पहले ही इस क्षेत्र में बस गया था, जिसे थेम ल्यू मावलोंग के नाम से भी जाना जाता है.

सेवानिवृत्त प्रोफेसर और ‘बियॉन्ड पंजाब: सिख्स इन ईस्ट एंड नॉर्थईस्ट इंडिया’ पुस्तक की लेखिका हिमाद्रि बनर्जी ने कहा, “अंग्रेजों द्वारा इस समुदाय को बारा बाजार क्षेत्र में बसाने का मुख्य कारण इसकी शिलांग म्यूनिसिपल बोर्ड से निकटता थी.”

उन्होंने कहा कि अन्य सिख समूह – रामगढ़िया और सोनार – भी 1947 के बाद शिलांग पहुंचे और अन्य व्यवसायों में लगे रहे.

उन्होंने कहा, “बड़ा बाज़ार अब एक प्रमुख स्थान है. लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि उन्हें (दलित सिखों को) जानबूझकर वहां बसाया गया था क्योंकि यह उनके कार्यस्थल के करीब था.”

ये कोई प्रवासी झुग्गियां नहीं थीं. समय के साथ सरकार ने इसे स्थायी घर का दर्जा दे दिया.

4 जनवरी 1954 को, हेमा माइलीम के सियेम (खासी प्रथागत प्रमुख) और शिलांग नगर बोर्ड के बीच एक समझौता हुआ. तदनुसार, बड़ा बाजार में स्वीपर कॉलोनी का भूमि पार्सल औपचारिक रूप से मज़हबी सिखों को सौंप दिया गया था.

तब से, भूमि हरिजन पंचायत समिति के सदस्यों के कब्जे और नियंत्रण में रही. 1964 में, इसी भूमि पर गुरु नानक उच्च प्राथमिक विद्यालय की स्थापना की गई, जिससे समुदाय की उपस्थिति और मजबूत हुई.

वर्षों तक कोई विवाद नहीं हुआ. खत्री ने कहा कि 1992 में तनाव तब बढ़ गया जब बड़ा बाजार में पंजाबी लेन पर हमले शुरू हुए.

खत्री ने कहा, “वर्ष 1994 में, अचानक शिलांग नगर निगम बोर्ड ने कुछ निवासियों को बेदखली के आदेश जारी किए.”

इसने कानूनी कार्रवाई को प्रेरित किया. गौहाटी हाई कोर्ट की शिलांग खंडपीठ ने शिलांग नगर बोर्ड सहित अधिकारियों के खिलाफ निर्देश जारी करने के लिए हस्तक्षेप किया, ताकि उन्हें विध्वंस और बेदखली से रोका जा सके.

खत्री ने कहा कि पंजाबी लेन को खासी उपद्रवियों ने आग लगा दी थी, जिसके कारण 1996 में धारा 144 लागू की गई थी. तब से, क्षेत्र में घरों और दुकानों का पुनर्निर्माण किया गया है.

The no-entry sign at the entrance of Punjabi Colony | Photo: Monami Gogoi, ThePrint
पंजाबी कॉलोनी के प्रवेश द्वार पर नो-एंट्री का साइन | फोटो: मोनामी गोगोई, दिप्रिंट

स्थानांतरण और पुनर्वास का मुद्दा

मेघालय ने 2018 में अपने राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव देखा. जातीय संघर्ष शुरू होने से तीन महीने पहले मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा की सरकार सत्ता में आई थी.

शिलांग में हफ्तों तक नाइट कर्फ्यू लगा रहा. इस बीच, मेघालय सरकार ने कॉलोनी में लोगों के पुनर्वास से संबंधित सभी प्रासंगिक रिकॉर्ड और दस्तावेजों की जांच करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया.

हरिजन पंचायत समिति के अध्यक्ष ने कहा, “स्थानांतरण का मुद्दा 2018 में शुरू हुआ. उससे पहले पुनर्वास को लेकर ही चर्चा होती थी.”

हरिजन पंचायत समिति के अध्यक्ष गुरजीत सिंह ने कहा, “मुझे याद है कि 1990 के दशक की शुरुआत से, सरकार स्थानांतरण के बारे में बात करने के लिए कभी-कभार हमें बुलाती थी. पिछली सरकारें इसे कभी-कभी करती थीं लेकिन वर्तमान सरकार लगातार ऐसा कर रही है.”

उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों के साथ बातचीत समुदाय को उसी क्षेत्र में फिर से बसाने पर केंद्रित होगी.

सिंह ने कहा, “स्थानांतरण का मुद्दा 2018 में शुरू हुआ. उससे पहले, चर्चा पुनर्वास के आसपास होती थी. उसी क्षेत्र में नई इमारतें बनाने की बात चल रही थी.”

लेकिन संगमा की सरकार आने के बाद चीजें बदल गईं.

उन्होंने कहा, “मौजूदा सरकार सख्ती से चाहती है कि समुदाय को किसी भी तरह से यहां से स्थानांतरित किया जाए.”

निवासी और राज्य सरकार वर्तमान में यह तय करने के लिए बातचीत की प्रक्रिया में हैं कि 340 से अधिक परिवार कहां और कैसे बसेंगे.

कॉलोनी के एक निवासी ने कहा, “हर क्षेत्र की एक कीमत होती है और यह क्षेत्र, जो शहर के केंद्र में है, बिल्कुल अमूल्य है. इसलिए, सरकार हमें दूसरी जगह ले जाकर यहां दुकानें बनाना चाहती है, यह कहते हुए कि यह क्षेत्र वर्तमान में एक झुग्गी या बस्ती है.”

निवासियों ने कहा कि जब उन्हें जमीन आवंटित कर दी जाएगी और अपने घर बनाने की लागत स्वयं दे दी जाएगी तो वे स्थानांतरित हो जाएंगे.

सिंह ने कहा, “सरकार इस पर सहमत नहीं है. वे कह रहे हैं कि वे हमें छोटे फ्लैट उपलब्ध कराएंगे.”

मज़हबी शिलांग के यूरोपीय वार्ड में प्रत्येक परिवार के लिए 200 वर्ग मीटर के भूखंड की मांग कर रहे हैं, जो राज्य के भूमि-खरीद नियमों के अपवाद है. सिंह ने कहा कि सरकार ने पिछले साल एक खाका साझा किया था जिसमें समुदाय को समायोजित करने के लिए सात मंजिला इमारत का प्रस्ताव दिया गया था.

समुदाय के नेता ने कहा, “लेकिन मेघालय में, कोई भी 4 मंजिला से अधिक निर्माण नहीं कर सकता क्योंकि यह भूकंप-प्रवण क्षेत्र है. हमारे समुदाय में कोई भी इस पर सहमत नहीं हुआ.”

29 सितंबर को मामले की नवीनतम सुनवाई में, राज्य सरकार ने कहा कि उसने “आवंटन की सीमा और यहां तक कि व्यक्तिगत भूखंड के आकार में भी वृद्धि की है.”

हालांकि, खत्री ने कोई संशोधित खाका या कोई समझौता होने से इनकार किया.

 A tiny lane to reach houses on the upper reaches of the colony | Photo: Monami Gogoi, ThePrint
कॉलोनी के ऊपरी हिस्से में घरों तक पहुंचने के लिए एक छोटी सी गली | फोटो: मोनामी गोगोई, दिप्रिंट

एक लंबा संघर्ष

मुकदमेबाजी से दूर, चल रहे झगड़े के नतीजों ने हाल के वर्षों में पड़ोस के भाग्य को आकार दिया है. पैदल चलने वालों और वाहनों के लिए बंद सड़क, सामान्य स्थिति का भ्रम पैदा कर सकती है. हालांकि, किराने की दुकानों, फर्नीचर की दुकानों, बिजली के आउटलेट और मोबाइल ठीक करने की दुकानों सहित क्षेत्र में एक समय में अच्छी चलने वाली दुकानों को नुकसान हुआ है. और लगभग 40-50 दुकान बंद हो गए हैं.

जगह एक विलासिता है जिसे इस भीड़भाड़ वाले इलाके में बहुत कम लोग ही वहन कर सकते हैं.

आशा कौर ने अपने घर के प्रवेश द्वार पर स्थित किराना की दुकान को बेडरूम में बदल दिया है. 57 वर्षीया अपने जर्जर घर को परिवार के कई सदस्यों के साथ साझा करती है, जहां एक कमरे को सरलता से डुप्लेक्स में बदल दिया गया है.

कौर ने कहा, “मेरे दादाजी अंग्रेजों के समय यहां आये थे. मेरे पिता पहले शिलांग नगर पालिका में काम करते थे और ड्राइवर के रूप में काम करने के लिए उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी. उन्होंने कहा कि वे छह भाई-बहन थे, जिनमें से दो की मौत हो चुकी है.”

उन्होंने कहा, “मेरा एक भाई है जिसके तीन बच्चे हैं. वे पहली मंजिल पर रहते हैं. मैं यहां अपनी मां, बेटे, बहू और पोते के साथ रहती हूं. मेरी एक बहन नीचे गली में रहती है.” उन्होंने बताया कि गुवाहाटी में एक भाई को छोड़कर बाकी लोग हरिजन कॉलोनी में रहते हैं.

A narrow wooden staircase leads to the top floor of Asha Devi's house | Photo: Monami Gogoi, ThePrint
आशा देवी के घर के ऊपरी मंजिल तक जाने के लिए एक पतली सी लकड़ी की सीड़ी | फोटो: मोनामी गोगोई, दिप्रिंट

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मातृभूमि से स्थानांतरण

शिलांग के खासी लोग इस क्षेत्र को अपनी आंखों की किरकिरी मानते हैं और कहते हैं कि मजहबी सिख समुदाय को कहीं और स्थानांतरित हो जाना चाहिए. एक खासी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, सिखों को अपनी भलाई के लिए स्थानांतरित होना चाहिए. उन्होंने कहा, “वर्तमान में, वे इतनी भीड़भाड़ वाली जगह पर रह रहे हैं, बेहतर होगा कि वे दूसरी जगह चले जाएं.”

खासी छात्र संघ (केएसयू) भी पंजाबी लेन निवासियों के स्थानांतरण के लिए दबाव बना रहा है.

प्रोफेसर वी बिजुकुमार ने कहा, उन्हें दूसरी जगह स्थानांतरित करने का मतलब “उन्हें उनके रहने की जगह और मातृभूमि से बेदखल करना है.” 

केएसयू अध्यक्ष लामोक एस मार्गर ने दोहराया, “यह एक लंबे समय से लंबित मुद्दा रहा है. हम सरकार से लोगों को दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने का सुझाव और मांग करते हैं.”

उन्होंने कहा कि छात्र संघ इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए सरकार पर दबाव डालता रहेगा, उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कॉलोनी के श्रमिकों के लिए आवास प्रदान करना राज्य का “कर्तव्य” है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वी. बिजुकुमार ने कहा कि दलित सिखों को “अपनी भूमि और बस्ती से भावनात्मक लगाव” है. और उन्हें दूसरी जगह स्थानांतरित करना “उन्हें उनके रहने की जगह और मातृभूमि से बेदखल करना” है.

प्रोफेसर, जो कि जेएनयू के राजनीतिक अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष हैं, ने कहा, “इन दोनों समुदायों के बीच परस्पर विरोधी संबंध अक्सर सामाजिक पिछड़ेपन की व्यापक चेतना को कमजोर करते हैं जो जातीय अस्तित्व के एक सामान्य कारण के लिए उनके बीच गठबंधन बनाने में सक्षम हो सकते हैं.”

उन्होंने कहा कि स्वदेशी के दावों को शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और आजीविका के लिए बसने वालों के अधिकारों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए

Houses in Punjabi lane of Shillong | Photo: Monami Gogoi, ThePrint
शिलांग के पंजाबी लेन में मकान | फोटो: मोनामी गोगोई, दिप्रिंट

कोई सांप्रदायिक मुद्दा नहीं

एक मानवाधिकार समर्थक ने कहा, इस क्षेत्र में रहने वाला किसी भी समुदाय से हो सकता है.

स्थिति की अधिक समग्र तस्वीर देते हुए, शिलांग में जन्मे और पले-बढ़े एक मानवाधिकार वकील ने कहा कि मुख्य मुद्दा यह था कि स्वीपर कॉलोनी क्वार्टर में रहने वाले सरकारी कर्मचारियों को बेहतर स्थान पर स्थानांतरित करने की आवश्यकता है.

1990 के दशक में, समुदाय के लगभग 800 सदस्य शिलांग नगर पालिका में कार्यरत थे, जो पिछले कुछ वर्षों में कम हो गए हैं. गुरजीत सिंह ने बताया कि आज उनके समुदाय के 20 प्रतिशत से भी कम लोग नगर पालिका या अन्य सरकारी विभागों में कार्यरत हैं.

नाम न छापने की शर्त पर वकील ने कहा, ”विस्थापन के खिलाफ असली जमीन ने बिल्कुल अलग रंग, बिल्कुल अलग रूप ले लिया है.”

2018 की घटना ने “भयानक रूप” ले लिया और इसे “सांप्रदायिक रंग” मिल गया क्योंकि “लोगों की भावनाएं बहुत कच्ची थीं.” वकील ने यह भी बताया कि “आदिवासी और गैर-आदिवासी की अंतर्निहित लड़ाई हमेशा से रही है लेकिन यह सिख समुदाय के लिए विशिष्ट नहीं है.”

तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद, खासी और सिख स्कूलों, कार्यालयों में मिलते-जुलते हैं और कुछ तो एक-दूसरे से शादी भी करते हैं. अधिवक्ता ने कहा, “ज्यादातर सिख पुरुषों ने खासी महिलाओं से शादी की है. यह खासी समाज की मातृसत्तात्मक प्रकृति के कारण इतना प्रतिबिंबित नहीं हो सकता है, जहां बच्चों को अपनी मां का उपनाम विरासत में मिलता है.”

नए क्षेत्र में बेहतर आवास उपलब्ध कराना सरकार की मौलिक जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा, इन कारकों के अभाव में, स्थानांतरण प्रक्रिया “विस्थापन और मानवाधिकारों के उल्लंघन का मामला बन जाएगी.”

प्रोफ़ेसर बनर्जी ने याद किया कि बड़ा बाज़ार क्षेत्र की पुनर्गठन योजना शिलांग नगर पालिका बोर्ड के एक बड़े विकास कार्यक्रम का हिस्सा थी – जिसे उन्होंने 2007-2008 में अपनी क्षेत्रीय यात्राओं के दौरान देखा था.

हिमाद्री बनर्जी का कहना हैं कि (2018) की घटना के बाद उन्होंने जो एकजुटता दिखाई, वह सबाल्टर्न के कट्टरपंथीकरण के समान थी, इसने उनके लिए स्थिति बदल दी.

शिलांग में पहले दलित सिखों के आगमन के बाद से 150 वर्ष से अधिक समय बीत चुका है. 5-6 से अधिक पीढ़ियां पहले ही उस भूमि पर रह चुकी हैं जिस पर उनके पूर्वज सबसे पहले काम करने आए थे.

समुदाय अपनी मांगों के लिए लड़ने और बेहतर पुनर्वास सौदा पाने के लिए प्रतिबद्ध है. वे कमज़ोर पड़ने और कम पर समझौता करने का कोई संकेत नहीं दिखाते हैं.

बनर्जी ने कहा, “वे अपनी सर्वश्रेष्ठ आवाज़ें जुटाने में कामयाब रहे. (2018) की घटना के बाद उन्होंने जो एकजुटता दिखाई, वह सबाल्टर्न का कट्टरपंथ था, इसने उनके लिए पासा पलट दिया.”

दलित सिख समुदाय खुद को शहरी सौंदर्यीकरण परियोजना के बीच में फंसा हुआ पाता है, लेकिन मानवाधिकार समर्थक इस बात पर जोर देते हैं कि इस संघर्ष को गलत तरीके से आदिवासी बनाम गैर-आदिवासी विवाद के रूप में पेश किया गया है. दलित सिखों के पुनर्वास के मुद्दे पर विचार करना “उन्हें जाति-आधारित धार्मिक समुदाय की श्रेणी में रखता है”. बल्कि, इस स्थिति को स्वीपर कॉलोनी के निवासियों के सामने आने वाली एक चुनौती के रूप में देखा जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, “इसका समुदाय या स्थान से कोई लेना-देना नहीं है. यह क्षेत्र में रहने वाला कोई भी समुदाय हो सकता है.”

(संपादन: अलमिना खातून)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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