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Saturday, 15 November, 2025
होमफीचरकैसी है सिंगल महिलाओं के लिए दिल्ली — RWA के अनकहे नियम से लेकर अपने घर तक का सफर

कैसी है सिंगल महिलाओं के लिए दिल्ली — RWA के अनकहे नियम से लेकर अपने घर तक का सफर

सजाए-संवारे लॉन और सिक्योरिटी गेट्स के पीछे, RWAs चुपचाप तय कर रही हैं कि शहर और उनके सोसाइटियों में किसे ‘सभ्य महिला’ माना जाए.

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नई दिल्ली: अगस्त की एक सुबह 8 बजे, दिल्ली के सरिता विहार में नए किराए पर लिए गए फ्लैट में रह रहीं यूपीएससी एस्पिरेंट आरुषि तिवारी के दरवाज़े पर ज़ोर-ज़ोर से थपथपाने की आवाज़ें आने लगीं. आरुषि और उनकी दो रूममेट्स ठीक से जाग भी नहीं पाई थीं कि पड़ोसियों की तरफ से आरोपों की बौछार शुरू हो गई. इस बार मामला था बिल्डिंग के पास कुछ दिनों से जमा कचरे का; इससे पहले कभी बालकनी में सूखने डाले गए कपड़ों को लेकर टोकाटाकी हुई थी.

“लड़कियों को घर देना ही नहीं चाहिए”, “लड़कों को साथ ज्याद किच-किच नहीं करना पड़ता है”—ऐसी बातें राजधानी के इस साउथ दिल्ली वाले रेजिडेंशियल सोसाइटी में पड़ोसियों की तरफ से आम तौर पर सुनने को मिलती हैं.

यह पैटर्न दिल्ली के कई पॉश RWA सोसाइटियों में देखा जाता है. दिल्ली में सिंगल महिला के लिए रहना आसान नहीं है. उन्हें अनकहे नियमों के तहत जीना पड़ता है. RWA और पड़ोसी उन्हें शक की नज़र से देखते हैं और अक्सर उन्हें “नैतिक जिम्मेदारी” मानकर निगरानी में रखते हैं. पड़ोसी घूरते हैं, टोका-टोकी करते हैं. प्रॉपर्टी डीलर भी खाली फ्लैट दिखाने से पहले महिलाओं के बैकग्राउंड और लाइफस्टाइल पर सवाल उठाते हैं.

इन सोसाइटियों में, चाहे महिला घर की मालिक हो या किराए पर रहती हो, उनकी आज़ादी अक्सर पड़ोसियों द्वारा अनौपचारिक रूप से थोपे गए नियमों के साथ आती है. RWA के लिए, अकेली महिला की समस्याएं परिवारों की तुलना में कम महत्वपूर्ण मानी जाती हैं.

यह रोज़-रोज़ का नियंत्रण अब महिलाओं को मजबूर कर रहा है कि वे बड़े घरों की बजाय छोटे कमरों, शेयर्ड फ्लैटों और अलग-अलग तरह की तरकीबों का सहारा लें.

आरुषि की दिल्ली: इनकार, निगरानी और अनकहे नियम

25 साल की आरुषि तिवारी 2022 में पोस्टग्रेजुएट पढ़ाई के लिए लखनऊ से दिल्ली आईं, लेकिन फ्लैट ढूंढना जल्दी ही एक मुश्किल समस्या बन गई. ब्रोकर ने सीधे कह दिया: “लड़कों को देंगे, लड़कियों को नहीं. ज्यादा दिक्कत होती है.”

सरिता विहार में एक मकान मालिक ने उन्हें इसलिए फ्लैट नहीं दिया क्योंकि आरुषि एक मुस्लिम दोस्त के साथ रहना चाहती थीं. दूसरे ने कहा कि अकेली महिलाओं के साथ “बहुत दिक्कतें रहती हैं.” उनका उच्च जाति का उपनाम जहां कभी-कभी दरवाजे खोल भी देता हो, लेकिन उनका जेंडर उन्हें बंद कर देता था.

जब अंततः उन्हें फ्लैट मिला, तो पड़ोसियों की निगरानी और बढ़ गई. उनके कपड़े, टाइमिंग, मिलने वाले दोस्त – सब पर नज़र रखी जाती थी.

आरुषि ने बताया कि “एक दिन जब वह ब्लैक ड्रेस पहनकर बाहर जा रही थीं, तो पड़ोसन ने उन्हें देखकर अपनी बेटी के साथ धीमे-धीमे कुछ फुसफुसाना शुरू कर दिया. उनकी बेटी और मैं एक ही उम्र के हैं, फिर भी वे मुझे एक अलग नज़र से घूरती रहती हैं.”

हफ्ते-दर-हफ्ते आरोप बदलते रहते थे – लाउड म्यूज़िक, दोस्तों का आना, देर रात तक बाहर जाना, सफाई को लेकर शिकायतें. आरुषि बताती हैं कि उनसे पहले इसी फ्लैट में लड़के रहते थे, लेकिन उन पर सफाई या दूसरी चीज़ों को लेकर कोई सख्त नियम नहीं थोपे जाते थे, क्योंकि उनसे ऐसी उम्मीद ही नहीं की जाती थी, लेकिन अब, क्योंकि यहां महिलाएं रहती हैं, तो उन पर साफ-सफाई का ध्यान रखने और सबके साथ “अच्छे से बात करने” जैसे दबाव डाले जाते हैं — जैसे यह सब सिर्फ महिलाओं की ज़िम्मेदारी हो.

आरुषि ने कहा, “असल दिक्कत यह है कि हम महिलाएं हैं और अपने दम पर रह रही थीं.”

कई तरह के आरोप

पूर्वी दिल्ली में 29 साल की एक महिला के फ्लैट में 50 की उम्र की महिला अचानक आती हैं, चिल्लाने, गाली देने लगी और आरोप लगाया कि वह उनके पति को “लुभाने” की कोशिश कर रही हैं. पड़ोसी इकट्ठा हो गए और महिला बस खड़ी रह गईं, यह देखती हुई कि कुछ मामूली बातचीत की वजह से उनका चरित्र कैसे खराब किया जा रहा है.

महिला ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “सोसाइटी के लोग, खासकर परिवार, यह मानते थे कि चूंकि मैं अकेली हूं, मैंने कुछ गलत ही किया होगा.”

कुछ ही दिनों में वह शांति बनाए रखने के लिए सोसाइटी छोड़कर जामिया नगर चली गई.

माधुरी उन समस्याओं के बारे में बात करती हैं जिनका सामना उन्हें आरडब्ल्यूए सोसायटियों में एक अकेली महिला के रूप में करना पड़ा | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट
माधुरी उन समस्याओं के बारे में बात करती हैं जिनका सामना उन्हें आरडब्ल्यूए सोसायटियों में एक अकेली महिला के रूप में करना पड़ा | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट

माधुरी की दिल्ली ‘एडजेस्ट’ करने वाली

31-वर्षीय पॉडकास्ट मेकर माधुरी ने 2020 में दिल्ली आने पर वही पैटर्न देखा.

माधुरी ने कहा, “RWA सोसाइटियां परिवारों के लिए बनाई जाती हैं. जब भी आप घर ढूंढना शुरू करते हैं, पहला सवाल होता है – ‘कितने लोग रहेंगे?’ इससे पता चलता है कि अकेले रहने की अवधारणा को समाज ने अभी स्वीकार नहीं किया है.”

माधुरी से उनके माता-पिता के बारे में पूछा गया और यह भी कि क्या उन्हें कॉल करके उनका वेरिफिकेशन किया जा सकता है. ब्रोकर हमेशा छोटे घर बताते थे क्योंकि अकेली महिला “एडजेस्ट करेगी” ऐसी धारणा आम है.

आखिरकार उन्होंने वसंत कुंज में एक छत वाला मकान किराए पर लिया. वहां उन्होंने चार साल तक डांस स्टूडियो और लिविंग रूम की तरह उसे यूज़ किया, लेकिन जब उन्होंने हाल ही में नया घर देखा, तो परिस्थितियां और सवाल लगभग एक जैसे थे– मकान मालिक पूछते थे कि कौन आएगा, शराब पीती हैं या नहीं, काम से देर से आती हैं या नहीं.

माधुरी ने कहा, “भारतीय समाज अभी भी इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि कोई महिला स्वतंत्र रूप से रह सकती है, एक पुरुष और महिला का एक साथ घर शेयर करना तो दूर की बात है.” वे बताती हैं कि कभी-कभी उन्हें अपने दोस्त को अपना मंगेतर बताने का नाटक करना पड़ता है, खासकर तब जब मकान मालिक उनकी निजी ज़िंदगी में दखल देने लगता है.

उन्होंने यह भी कहा कि सिक्योरिटी गार्ड तक उनसे देर रात लौटने पर सवाल करते हैं, “वे कभी किसी पुरुष से ऐसे सवाल नहीं पूछते.”

घर आने वालों पर निगरानी

माधुरी की तरह ही, 23 साल की असिस्टेंट एडिटर रिशिता मंडल भी ऐसी ही परेशानियों से गुज़रती है. वे ईस्ट ऑफ कैलाश में दो बेडरूम का फ्लैट सिर्फ इसलिए किराए पर लेती है क्योंकि वहां शांति मिलती है, लेकिन फिर भी लोगों की नज़रें और सवाल पीछा नहीं छोड़ते.

पड़ोसी अक्सर पूछते रहते हैं कि वे कहां जा रही हैं, उनके पास कौन आता है और वे कितनी देर से घर लौटती हैं. एक पड़ोसी तो उनके दोस्तों को गेट पर ही रोककर पूछते है कि “किस काम से आए हैं?” इन सब से बचने के लिए वे न तो घर पर किसी को बुलाती हैं, न ज़्यादा आवाज़ करती हैं और हर नियम का पालन करती हैं—फिर भी शिकायतें जारी रहती हैं.

लेकिन जब वह रोज़मर्रा की दिक्कतें ठीक कराने के लिए—जैसे टूटा हुआ ताला या जमा हुआ कचरा—मकान मालिक से कहती हैं, तो हर बार सिर्फ एक ही जवाब मिलता है: “कल कर देंगे.”

माधुरी का मानना है कि अगर उनकी जगह कोई पुरुष होता तो काम तुरंत हो जाता.

रिशिता कहती है, “लेकिन जब मैं शिकायत करती हूं, तो वे मुझे हल्के में लेते हैं और मेरी समस्याओं को नज़रअंदाज़ कर देते हैं.”

दक्षिण दिल्ली में एक आरडब्ल्यूए सोसायटी | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट
दक्षिण दिल्ली में एक आरडब्ल्यूए सोसायटी | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट

क्यों नहीं देते बैचलर्स को घर

प्रॉपर्टी डीलरों का कहना है कि मकान मालिक अक्सर जानबूझकर अपने घर महिलाओं को किराए पर देने से बचते हैं, क्योंकि उनकी धारणा होती है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज़्यादा डिमांड्स करती हैं—चाहे बात सुविधाओं की हो, सुरक्षा की हो या इलाके की.

साउथ दिल्ली के प्रॉपर्टी डीलर सनी ने कहा, “महिलाएं चाहती हैं कि सब कुछ ठीक-ठाक हो और अगर कुछ गलत हो तो वे शिकायत करती हैं, जबकि पुरुष आमतौर पर इन बातों की अनदेखी कर देते हैं.”

यह पक्षपात सिर्फ अकेली महिलाओं तक सीमित नहीं है.

41-वर्षीय सनी बताते हैं कि कई घर मालिक बैचलर्स — चाहे वे पुरुष हों या महिलाएं—को भी घर किराए पर देने में हिचकिचाते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसे किराएदार “अनावश्यक परेशानियां” खड़ी करेंगे, जिनसे मालिक को ही निपटना पड़ेगा.

सनी ने कहा, “अकसर मालिक सिर्फ महिलाओं को ही नहीं, पुरुष बैचलर्स को भी घर देने से मना कर देते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उन पर कोई रोक-टोक नहीं होगी और वे अपनी मर्ज़ी से कुछ भी करेंगे.”

मकान मालिकों को किराएदारों के देर रात तक काम करने, बार-बार पार्टियां होने, या दोस्तों के अक्सर आने जैसी चीज़ों से भी दिक्कत होती है—उन्हें डर रहता है कि इससे पड़ोसी परेशान होंगे और शिकायतें उन्हीं तक पहुंचेंगी.

सनी यह भी बताते हैं कि महिलाएं जब घर खोजती हैं तो उनके पास सुरक्षा, सुविधा, बजट और कमरे के डिज़ाइन जैसी कई ज़रूरतें और स्टैंडर्ड होते हैं.

उनका कहना है, “उनकी सारी शर्तों के हिसाब से और बजट में घर मिलना मुश्किल होता है. ज़्यादातर अकेली महिलाएं छोटे लेकिन खुले और आरामदायक घर चाहती हैं और ऐसे घर अधिकांश सोसायटियों में मिलना आसान नहीं है.”

उन्होंने आगे कहा कि महिलाएं आमतौर पर सुरक्षित, अच्छी तरह रोशन और पर्याप्त जगह वाले घर ढूंढती हैं, लेकिन बहुत-सी सोसायटियां इतनी सुविधाएं किफायती दामों में नहीं देतीं.

सनी ने कहा, “वे छोटे लेकिन खुले घर चाहती हैं, लेकिन ज़्यादातर सोसायटियां परिवारों के लिए बनी होती हैं, किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं.”

सबके लिए एक जैसा नियम

जहां एक ओर महिला किरायेदार अपनी परेशानियां खुलकर बता रही हैं, वहीं पॉश इलाकों की कई आरडब्ल्यूए की प्रेसिडेंट्स ने इस बात से इनकार किया कि किसी भी सोसाइटी में बैचलर किरायेदारों—खासकर महिलाओं—के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता है.

वसंत कुंज की एक आरडब्ल्यूए की अध्यक्ष अमीना तलवार ने कहा, “समाज के नियम सबके लिए एक जैसे हैं, चाहे वह परिवार हो या कोई अकेला रहने वाला व्यक्ति. अगर कोई घर मालिक अपना फ्लैट किराए पर नहीं देना चाहता, तो यह पूरी तरह उसकी मर्ज़ी है.”

उन्होंने यह भी बताया कि उनकी सोसायटी में कई सिंगल महिलाएं सालों से रह रही हैं और उन्हें कभी इस तरह की कोई समस्या नहीं हुई.

घर मालिक भी नहीं बचते

पक्षपात केवल किरायेदारों तक सीमित नहीं है. अकेले रहने वाले कई घर मालिक भी बताते हैं कि उन्हें भी नज़रअंदाज़ किया जाता है.

47-साल की वंदना शर्मा, जो संत नगर में अपने घर से टिफिन सर्विस चलाती हैं, पिछले दो साल से आरडब्ल्यूए से एक झुके हुए पेड़ को हटाने की अपील कर रही हैं, जो उनकी बालकनी को पूरी तरह ढक देता है.

लेकिन हर बार जवाब वही मिलता है: “ये कोई बड़ी प्रॉब्ल्म नहीं है.”

वंदना ने कहा, “अगर मेरे में कोई पुरुष होता और आरडब्ल्यूए दफ्तर में जाकर ज़ोर से बोलता, तो ये काम एक हफ्ते में हो जाता.”

उनकी सोसायटी की आरडब्ल्यूए में एक भी महिला सदस्य नहीं है और वंदना के अनुसार, उम्रदराज़ पुरुषों से भरे कमरे में जाकर बात करना अजीब लगता है.

दिल्ली में ज्यादातर किराए के घर दो तरह के होते हैं – सीजीएचएस (कोऑपरेटिव ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी) के फ्लैट और अलग-अलग मालिकों के व्यक्तिगत फ्लैट, जैसे प्लॉटेड कॉलोनियों या डी.डी.ए. इलाकों में.

सीजीएचएस सोसायटी में मालिक और किरायेदार—दोनों को सोसायटी के नियम मानने पड़ते हैं.

इसके अलावा, पर्सनल फ्लैटों में ज़्यादातर नियम मकान मालिक ही तय करता है और वहां की स्थानीय आरडब्ल्यूए (अगर हो भी) की शक्तियां काफी सीमित होती हैं.

लिपिका मलिक अपनी सोसाइटी की महिला अध्यक्ष को श्रेय देती हैं कि उन्होंने एक अकेली महिला के रूप में अपना जीवन अधिक सुरक्षित और आसान बना दिया | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
लिपिका मलिक अपनी सोसाइटी की महिला अध्यक्ष को श्रेय देती हैं कि उन्होंने एक अकेली महिला के रूप में अपना जीवन अधिक सुरक्षित और आसान बना दिया | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

सपॉर्टिव आरडब्ल्यूए

कुछ महिलाएं यह भी बताती हैं कि इसी बीच सपॉर्टिव आरडब्ल्यूए भीमौजूद हैं, जिसने कई तरह से उनकी मदद भी की है.

58 साल की लिपिका मलिक, जो 2017 से अकेले रह रही हैं, बताती हैं कि उनके साउथ दिल्ली सोसायटी की आरडब्ल्यूए और पड़ोसी हमेशा मददगार और सहयोगी रहे हैं.

उन्होंने कहा, “वे हमेशा और सपॉर्टिव और जब भी ज़रूरत हुई, मदद के लिए तैयार रहे.”

लिपिका यह भी बताती हैं कि वक्त बदल रहा है और अब एक नई पीढ़ी की महिलाएं हैं जो लगातार एक-दूसरे का समर्थन कर रही हैं और एक-दूसरे को सशक्त बना रही हैं.

सोहिनी मिश्रा (ब्लैक ड्रैस) 'वुमेन इन द हूड' चलाती हैं - यह अकेले रहने वाली महिलाओं का एक समुदाय है | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
सोहिनी मिश्रा (ब्लैक ड्रैस) ‘वुमेन इन द हूड’ चलाती हैं – यह अकेले रहने वाली महिलाओं का एक समुदाय है | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

नए सपोर्ट ग्रप्स

आरडब्ल्यूए से आगे, नई सपोर्ट नेटवर्क उभर रही हैं.

गुरुग्राम में, सोहिनी मिश्रा “वीमेन इन द हूड” चलाती हैं, जो उन महिलाओं के लिए एक समुदाय है जो अकेले या परिवार से दूर रहती हैं. वह “सिंगल वूमन” का लेबल पसंद नहीं करतीं और उन्हें “अनअटैच्ड” यानी अलग जीवन जीने वाली कहती हैं.

41 साल की मिश्रा ने कहा, “हमारा सामाजिक ढांचा, आर्थिक हालात और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य उन महिलाओं के लिए यह रास्ता चुनना बहुत मुश्किल बना देते हैं जो स्वतंत्र रूप से रहना चाहती हैं.” वह बताती हैं कि जैसे-जैसे महिलाएं हर तरह का काम कर रही हैं और अधिक आत्मनिर्भर बन रही हैं, कई महिलाएं अकेले रहने का विकल्प चुन रही हैं.

उनकी संस्था अब पड़ोस की महिलाओं को जोड़ने, सलाह देने, सुरक्षा टिप्स साझा करने और स्वयं के लिए आवाज़ उठाने में मदद करती है.

मिश्रा ने कहा, “अनअटैच्ड रहने वाली महिलाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए एक नया और बेहतर जगह बना रही हैं.”

जब महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर दिखाई देती हैं—चलते हुए, पढ़ते हुए या बस मौजूद होकर—तो शहर अधिक सुरक्षित और समान महसूस होते हैं. सुरक्षा अब केवल निगरानी का मामला नहीं है, बल्कि यह सहानुभूति और एकजुटता का मामला है.

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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