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Monday, 4 November, 2024
होमफीचर'यातना, भूख, मौत, इस्लामी प्रार्थनाएं' - पंजाब और हरियाणा के 18 लोग लीबिया में किस नरक से गुज़रे

‘यातना, भूख, मौत, इस्लामी प्रार्थनाएं’ – पंजाब और हरियाणा के 18 लोग लीबिया में किस नरक से गुज़रे

उन्हें बेईमान एजेंट द्वारा लीबिया भेज दिया गया, जहां उन्हें गुलामी करने के लिए बेच दिया गया. उनसे उनके दस्तावेज़ छीन लिए गए, उन्हें अलग कर दिया गया, आंखों पर पट्टी बांध दी गई और उनके 'मालिकों' को बेच दिया गया.

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संदीप कुमार और उनके 21 वर्षीय भतीजे टोनी शानदार नौकरियों, ढेर सारे पैसे और एक नई जिंदगी के सपने के साथ फरवरी में इटली के लिए रवाना हुए. छह महीने की दुबई, फिर बेनगाज़ी, ज़ुवाराह और अंत में लीबिया के त्रिपोली कष्टदायक यात्रा के बाद, कुमार 20 अगस्त को पंजाब में अपने गांव लौट आए. और फिर परिवार ने उसे बताया कि टोनी की मृत्यु हो गई है. अब, परिवार हर दिन भुखरी गांव में अपने घर के पास कृष्ण मंदिर में जाता है और शव वापस लाने की प्रार्थना करता है.

मंदिर के प्रांगण में बिछाए गए कई गद्दों में से एक पर बैठी उसकी दादी चीखती-चिल्लाती और रोती हुई कहती है, “टोनी हमारे पास वापस आओ,”. उन्हें नहीं पता कि उसकी मौत कैसे हुई. जिस एजेंट ने उनके नए जीवन के लिए पेपरवर्क की व्यवस्था की, उसने दावा किया कि यह आत्महत्या थी. एजेंट जेल में है. और किसी के पास जवाब नहीं है.

संदीप और टोनी कुमार उन 18 लोगों में से थे, जिन्होंने हरियाणा और पंजाब भर में फैले अपने गांवों और कस्बों में बेरोज़गारी और निराशाजनक संभावनाओं से भागने की कोशिश की. लेकिन वे कभी इटली नहीं पहुंचे. इसके बजाय, उन्हें बेईमान एजेंट द्वारा लीबिया भेज दिया गया, जहां उन्हें गुलाम के रूप में बेच दिया गया. उनसे उनके डॉक्युमेंट्स छीन लिए गए, उन्हें अलग कर दिया गया, आंखों पर पट्टी बांध दी गई और लीबिया में उनके ‘आकाओं’ को बेच दिया गया. उन्हें प्रताड़ित किया गया, भूखा रखा गया और महीनों तक निर्माण कार्य (Construction Work) में धकेला गया. रेस्क्यू किए जाने के बाद भी, नए पासपोर्ट प्राप्त करने से पहले उन्होंने लीबिया के त्रिपोली में तीन महीने जेल में बिताए.

चमचमाते यूरोप के सपने के शिकार, अधिकांश पुरुष निम्न मध्यम वर्ग और गरीब परिवारों से आते हैं, जो अवैध ‘डॉन्की’ (Donkey) मार्ग के माध्यम से विदेशों में उम्मीद जगाने वाले एजेंटों पर विश्वास करने के लिए बेताब हैं. मानव तस्करी के खतरे किसी दूसरे देश में स्थायी रूप से बस जाने की सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए चुकाई जाने वाली एक छोटी सी कीमत है. जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें प्रशंसा की दृष्टि से देखा जाता है. जो पैसा वे अपने परिवारों को वापस भेजते हैं, उसका दिखावा फैंसी घरों, फ्लैट स्क्रीन टीवी और आईफ़ोन के ज़रिए किया जाता है.

टोनी के पिता रविंदर कुमार की आंखें आंसुओं और रातों की नींद न पूरी होने की वजह से ख़ून जैसी लाल हो रखी हैं. उनका बेटा उन्हें उस फोन से कॉल करने में सक्षम था जिसे कैद में रखे गए लोगों में से एक ने अपने ‘मालिक’ से छुपाने में कामयाबी हासिल की थी.

“टोनी रो रहा था. उसकी सांसें थम चुकी थीं. उसने कहा कि पापा वे मुझे प्रताड़ित कर रहे हैं. वे मुझे हर दिन पीटते थे. कृपया कुछ करो. मैं वापस आना चाहता हूं. मैं अब कभी भारत छोड़ने के बारे में सोचूंगा भी नहीं,” 43 वर्षीय रविंदर ने कहा. उनके बेटे ने उन्हें बताया कि फोन एक पाकिस्तानी व्यक्ति का था जो उनके साथ फंसा हुआ था.

ग्रामीणों का एक समूह उसके चारों ओर इकट्ठा होता है, चाय की चुस्की लेता है और “वाहेगुरु” के लंबे नारे के साथ बातचीत करता है.

रविंदर अपने फोन पर छवि फ़ोल्डर के माध्यम से स्वाइप करता है, और एक तस्वीर निकालता है जिसे टोनी ने उस गुप्त फोन से भेजा था. काली पगड़ी और शर्ट पहने एक युवक दीवार के सहारे खड़ा है. वह पीला है, लेकिन अपने पिता के लिए एक फीकी मुस्कान रखता है.

Family members of Tony who died in Libya. | Sagrika Kissu | ThePrint

उम्मीद, सपना

इसकी शुरुआत पासपोर्ट, टिकट और दुबई के वीज़ा से हुई और उसके बाद एक पार्टी हुई.

टोनी और उसके चाचा के दुबई और फिर इटली के लिए रवाना होने के एक दिन पहले, कुमार, उनके परिवार और रिश्तेदारों व करीबी दोस्तों ने 5 फरवरी को दो-स्तरीय वनिला केक काटा. संदीप कहते हैं, “मैंने सोचा था कि टोनी और मैं इटली में कार और ट्रक चलाकर मोटी रकम कमाएंगे और हर महीने घर पैसे भेजेंगे. उस दिन, ऐसा लगा कि गरीबी हमसे बहुत पीछे रह गई है,”

उनके एजेंट-जिन्हें उन्होंने 12-12 लाख रुपये का भुगतान किया था-परिवार के साथ अमृतसर हवाई अड्डे तक गए. वहां संदीप की मुलाकात हरियाणा के चार लोगों से हुई जो इटली जाने के दौरान मदन के ग्राहक भी थे.

रविंदर कुमार के पास अमृतसर हवाई अड्डे में प्रवेश करते समय अपने पासपोर्ट दिखाने वाले लोगों का एक वीडियो है. टोनी और विमान में मौजूद अन्य लोगों का एक और वीडियो है जिसमें वे विजय चिन्ह (Victory Sign) के लिए ‘वी’ का निशान दिखा रहे हैं और खुल के मुस्कुरा रहे हैं. एक सप्ताह में वे लीबिया में फंसे हुए और अकेले होंगे.

एजेंट ने उन्हें आश्वासन दिया कि उन्हें दुबई में इटली का वीजा मिल जाएगा. पांच दिनों तक, वे लोग दुबई के एक डॉरमेट्री में बिना किसी संदेह के प्रतीक्षा करते रहे. तभी मदन ने उन्हें बुलाया. वे इटली के बजाय वे लीबिया जाएंगे.

संदीप कहते हैं, “उन्होंने हमसे कहा कि इटली पहुंचने से पहले हमें कुछ महीनों तक लीबिया में काम करना होगा. हमने उनसे कोई सवाल नहीं किया.”

जब वे लोग बेनगाज़ी हवाई अड्डे पर उतरे, तो कथित तौर पर उन्हें एक साइड गेट से बाहर धकेल दिया गया.

“हमें हवाईअड्डे के मुख्य निकास द्वार तक कभी नहीं ले जाया गया. एक एजेंट आया, उसने हमें वर्क परमिट देने के बहाने हमारे पासपोर्ट ले लिए, और हमें पिछले दरवाजे से बाहर निकलने के लिए उसका पीछा करने के लिए कहा. हमें एक कार में बिठाया गया, हमारी आंखों को काले कपड़े से ढक दिया गया. हमारे हाथ पीछे की ओर बंधे हुए थे.” इन बातों को याद करते हुए संदीप का गला बीच-बीच में रुंध जा रहा था और बोलना बंद हो जा रहा था. बेनगाजी में एक निर्माण स्थल या कॉन्सट्रक्शन साइट पर महीनों तक काम करने के बाद उसकी हालत यह हो गई थी कि वह मुश्किल से चल पा रहा था.

वे तीन दिनों तक कार में फंसे रहे. याद करते हुए वह बताते हैं, “हम केवल तीन बार पानी के लिए रुके.”

इन लोगों को लीबिया के ज़ुवाराह ले जाया गया, जहां संदीप का कहना है कि उन्हें एके-47 बंदूकों से लैस खरीददारों को बेच दिया गया था. वह उन्हें “माफिया” कहते हैं. तभी वह टोनी से अलग हो गए. उनके फोन छीन लिए गए और उन्हें एक छोटे से अंधेरे कमरे में रखा गया.

संदीप के साथ रेस्क्यू किए गए हरियाणा और पंजाब के चार लोगों की भी ऐसी ही कहानियां थीं. हरियाणा के कुरूक्षेत्र का रहने वाला चालीस वर्षीय परमजीत सिंह मदन का एक और ग्राहक था. वह 25 मार्च को दिल्ली हवाई अड्डे से निकले, कुमारों की तरह दुबई में रुके और एक सप्ताह के भीतर, उनके सपने एक दुःस्वप्न में बदल गए.

सिंह ने कहा, “वे हमें प्लास्टिक पाइप से पीटते थे. हमारे साथ पाकिस्तान, नाइजीरिया, इथियोपिया के लोग थे जिनके साथ भी उसी तरह का व्यवहार किया जा रहा था.”

उनसे प्रतिदिन 12-14 घंटे निर्माण स्थलों पर काम कराया जाता था. उन्हें कई दिनों तक खाना नहीं दिया जाता था और शौचालय का पानी पीना पड़ता था.

संदीप ने कहा, “हम मेहनत करने के कारण पसीने से गीली हुई अपनी टी-शर्ट निचोड़ते थे और अपनी प्यास बुझाने के लिए उसी नमकीन-पसीने वाले पानी को पी लेते थे.” उसे उस दिन का बहुत पछतावा है जब उसकी मुलाकात मदन लाल से हुई जो एक तरह से उसका फैमिली फ्रेंड था.

“वह हमारी कम्युनिटी से था, हमारी तरह एक दलित था. हमने उस पर पूरा भरोसा किया.”


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हरियाणा के कुरूक्षेत्र के रहने वाले परमजीत सिंह मदन के एक और क्लाइंट थे। वह 25 मार्च को दिल्ली हवाई अड्डे से निकले, कुमारों की तरह दुबई में रुके और एक सप्ताह के भीतर, उनके सपने एक बुरे सपने में तब्दील हो गए | सागरिका किस्सू | दिप्रिंट
हरियाणा के कुरूक्षेत्र के रहने वाले परमजीत सिंह मदन के एक और क्लाइंट थे। वह 25 मार्च को दिल्ली हवाई अड्डे से निकले, कुमारों की तरह दुबई में रुके और एक सप्ताह के भीतर, उनके सपने एक बुरे सपने में तब्दील हो गए | सागरिका किस्सू | दिप्रिंट

ट्रैवल एजेंट, एक फैमिली फ्रेंड मित्र

हर साल, पंजाब और हरियाणा से हजारों पुरुष विदेशों में ‘डॉन्की रूट’ अपनाते हैं. कनाडा और ऑस्ट्रेलिया पसंदीदा स्थान हैं लेकिन इसकी लागत प्रति व्यक्ति कम से कम 30-35 लाख रुपये है. इटली कम बजट वाला एक विकल्प है और मदन लाल पसंदीदा एजेंट हैं.

वह मानव तस्करी के बहुराष्ट्रीय कारोबार का एक छोटा सा हिस्सा है और लोगों को इटली भेजने में माहिर है, हालांकि उसके अधिकांश क्लाइंट्स की अंतिम परिणति लीबिया में मजदूर के रूप में होती है.

जहां मदन लाल की ट्रैवल एजेंसी, सीबीआर ट्रैवल्स है उसी मामले से जुड़े कुरूक्षेत्र के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “हमें संदेह है कि उसने पिछले दो वर्षों में पंजाब और हरियाणा के लगभग 500 लोगों को धोखा दिया है और उन्हें लीबिया भेजा है.”

हरियाणा में मदन लाल जैसे दर्जनों एजेंट हैं. अकेले हरियाणा में इमीग्नेशन का सालाना कारोबार 1,500 करोड़ रुपये का होने का अनुमान है. इमीग्रेशन धोखाधड़ी पर नकेल कसने के लिए सरकार ने अप्रैल में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया. एक महीने में उसने 23 गिरफ्तारियां कीं और 138 एफआईआर दर्ज कीं.

मई में, एसआईटी ने प्रस्ताव दिया कि इमीग्रेशन एजेंट अपने संबंधित जिला पुलिस अधीक्षक (एसपी) को 25 लाख रुपये की बैंक गारंटी जमा करें. धोखाधड़ी के मामले में, धन का उपयोग परिवार को मुआवज़ा देने के लिए किया जाएगा. इससे पुलिस को एजेंटों पर नज़र रखने में भी मदद मिलेगी.

इंटरनेट पर, सीबीआर ट्रेवल्स को 2007 में शुरू किया गया दिखाया गया है जो वर्क और टूरिस्ट वीज़ा दिलाने का वादा करता है. यह सब कुछ एक गंदे कमरे में चलता है जो अब बंद है. पुलिस ने उस साइनबोर्ड को ज़ब्त कर लिया है जिस पर ‘सीबीआर ट्रैवल्स’ लिखा था और बैकग्राउंड में एफिल टॉवर के साथ एयर इंडिया के एक हवाई जहाज़ को उड़ते हुए दिखाया गया था.

मदन लाल को पिछले महीने पेहोवा की पूजा कॉलोनी स्थित उनके घर से आईपीसी की धारा 406, 420, 120-बी के तहत गिरफ्तार किया गया था और वह ट्रायल का इंतज़ार कर रहे कुरुक्षेत्र जेल में हैं.

एसएचओ पिहोवा कुलदीप सिंह कहते हैं, “उसने हरियाणा और पंजाब के सैकड़ों युवाओं को धोखा दिया है. उसकी जांच चल रही है.”

उनकी एजेंसी रजिस्टर्ड नहीं है और ज्यादातर मदन लाल के आदमी थे जो वहां जाने का सपना देखने वाले उम्मीदवारों को संभालते थे. मामले से जुड़े एक स्थानीय पुलिस अधिकारी का कहना है, ”ऐसे मामलों में जहां वीज़ा फाइनल हो जाता था, मदन लाल कार्यालय आता था और परिवारों से बात करते थे.”

रविंदर कुमार और उनके भाई संदीप और छह अन्य ग्रामीण पिछले साल दिसंबर में किराए पर ली गई स्विफ्ट कार में सवार होकर मदन लाल से मिलने गए थे.

निराशा में अपना सिर पकड़ते हुए कुमार कहते हैं, “उन्होंने हमसे प्रति व्यक्ति 12 लाख रुपये मांगे और आश्वासन दिया कि मेरे बेटे और भाई को इटली में नौकरी दी जाएगी और वे हर महीने एक या दो लाख रुपये घर वापस भेज सकेंगे.”

कुमार को अपने भाई और बेटे को इटली भेजने के लिए 24 लाख रुपये का इंतजाम करना था. उन्होंने अपनी आधा एकड़ ज़मीन बेच दी, जिससे उन्हें 13 लाख रुपये मिले और उन्होंने रिश्तेदारों और ग्रामीणों से इस वादे के साथ कर्ज लिया कि जैसे ही उनके भाई और बेटे कमाना शुरू करेंगे, वे उन्हें वापस कर देंगे.

जब कुमार को टोनी का फोन आया, तो उन्हें अहसास हुआ कि विदेश जाने का सपना एक बुरे सपने में तब्दील हो रहा है. लेकिन जब भी वह मदन लाल के पास जाता, एजेंट उसे छोड़ने के लिए और पैसे की मांग करता. यह उसके काम करने का तरीका था.

परमजीत सिंह के परिवार ने एजेंट को और पैसे भेजे. सिंह की पत्नी रजनी ने और 15 लाख रुपये पाने के लिए अपना घर गिरवी रख दिया और अपना सारा सोना बेच दिया, लेकिन यह काफी नहीं था.

किराए के कमरे में एक खाट पर अपने पति के बगल में बैठी रजनी कहती हैं, “मैं मदन लाल से मिला और उसे पैसे दिए लेकिन उसने और मांगना बंद नहीं किया. वह हमें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देता रहा.’ हमारे पास यहां कुछ भी नहीं बचा है.”

पुलिस लीबिया-पंजाब-हरियाणा मानव तस्करी सांठगांठ और इसमें मदन लाल की कथित भूमिका से अवगत है. कुमार, सिंह और अन्य के भारत लौटने से पहले ही, उन्होंने 31 जुलाई को बारह लोगों को बचाए जाने और वापस लाए जाने के बाद जांच शुरू कर दी थी.

ऊपर जिस वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का ज़िक्र किया गया उनका कहना है, ”पश्चिमी देश में काम करने का सपना पंजाब से हरियाणा तक पहुंच गया है और बेईमान, गैर रजिस्टर्ड एजेंट कुरूक्षेत्र, अंबाला और सिरसा जिलों में उभर रहे हैं.”

पंजाब में, सरकार फ्लाई-बाय-नाइट एजेंटों पर नकेल कसने के लिए विशेष अभियान चलाती है. अगस्त में अपने नवीनतम अभियान में, एनआरआई मामलों के मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल के तहत जिलों के एसडीएम की एक टीम ने 3,547 एजेंसियों पर जांच की, जिनमें से 271 अवैध पाई गईं.

“ये एजेंट अपने नाम पर लाइसेंस नहीं लेते हैं. उनमें से कई लोग घरों से और कारों में काम करते हैं. उन्हें किसी कार्यालय की भी आवश्यकता नहीं है. वे फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया अकाउंट पर विज्ञापन देंगे. वे विदेशी धरती के सपने बेचकर अशिक्षित, गरीब लोगों को फंसाते हैं जो पढ़े-लिखे नहीं हैं. एसोसिएशन ऑफ लाइसेंस्ड इमिग्रेशन एंड एजुकेशन कंसल्टेंट्स के अध्यक्ष जतिंदर बेनीपाल कहते हैं, ”ये एजेंट कुछ पैसों के लिए गांवों में मध्यस्थ या मीडिएटर्स रखते हैं और इस तरह यह अंधेरगर्दी काम करती है.”


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बचाव

1 जुलाई को रविंदर कुमार को मदन लाल का फोन आया कि वह शाम को उनके घर के पास भुखुरी गांव में उनसे मिलेंगे. कुमार को कुछ अशुभ होने का संदेह हुआ और उसने अपने सरपंच को बुलाया. पंचायत हुई. जब मदन लाल गांव पहुंचे तो उन्होंने टोनी के निधन की खबर साझा की.

क्रोधित होकर, कुमार और अन्य ग्रामीणों ने मदन लाल के साथ मारपीट की, लेकिन वह माफी मांगते रहे और कहा कि उनके बेटे ने तीसरी मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली है. कुमार ऐसा नहीं मानते.

कुमार कहते हैं, “मेरा बेटा मुझसे लम्बा था. वह एक मजबूत आदमी थे. वह आत्महत्या क्यों करेगा? मुझे पता था कि मदन लाल कुछ छिपा रहे हैं,”

उस शाम, कुमार ने अपने भाई, संदीप को फोन करने की कोशिश की, जिसके पास भी एक छिपा हुआ फोन था, लेकिन वह उससे संपर्क करने में असमर्थ था. उसकी हताशा बढ़ती गई और आखिरकार उसने हंडेसरा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई.

परिवार ने आप के राज्यसभा सांसद विक्रमजीत सिंह साहनी से भी संपर्क किया और उन्हें उस पाकिस्तानी व्यक्ति का संपर्क नंबर दिया, जिसके फोन का इस्तेमाल उनसे संपर्क करने के लिए किया गया था.

आम आदमी पार्टी सांसद विक्रमजीत सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “हमने उस पाकिस्तानी व्यक्ति से बात की जिसने कहा कि माफिया की यातना से बचने के लिए तीसरी मंजिल से कूदने के बाद टोनी की मौत हो गई थी. सिर पर चोट लगने के कारण उनकी मौके पर ही मौत हो गई थी और उनका शव बेनगाज़ी में है, जहां से हम उसे वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं.”

ऐसा हुआ कि सांसद से किसी अन्य व्यक्ति ने संपर्क किया था, जिसके बाद उन्हें पता चला कि वह संदीप के ग्रुप के बंदियों में से कोई था. 27 मई को, सिंह को राहुल शर्मा नाम के एक व्यक्ति का फोन आया, जिसमें कहा गया कि उन्हें पीटा जा रहा है और लीबिया में काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. यह सिद्ध करने के लिए कि यह नकली नहीं था, सांसद ने उन्हें वीडियो कॉल किया और अन्य फंसे हुए लोगों से बात की जो भयानक परिस्थितियों में रह रहे थे.

लीबिया में कोई भारतीय दूतावास नहीं है. सिंह कहते हैं, ”मैंने ट्यूनीशिया में भारतीय दूतावास को लीबिया में फंसे लोगों का विवरण देते हुए लिखा और इस तरह वापसी की प्रक्रिया शुरू हुई.”

सांसद कहते हैं, “राहुल शर्मा एकमात्र व्यक्ति थे जो अंग्रेजी बोल सकते थे. वह हमें गूगल लोकेशन भेजते थे जिसे हम ट्यूनीशिया में भारतीय दूतावास को भेज देते थे,”

उन्होंने लीबिया में एक अज्ञात स्थान पर एक सुरक्षित होटल की पहचान की जहां वे लोग भारत लौटने से पहले रुक सकते थे. लेकिन होटल तक पहुंचने का रास्ता कठिन था. हर रात, मुखबिरों की मदद से कुछ लोग अपने बैरक की एक छोटी खिड़की से नीचे उतरते थे और होटल तक खतरनाक यात्रा करते थे.

लीबियाई पुलिस ने न सिर्फ हस्तक्षेप किया, बल्कि उन लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया क्योंकि उनमें से किसी के पास पासपोर्ट नहीं था.

साहनी कहते हैं, “लीबिया में कोई कानून-व्यवस्था नहीं है. हमने, भारत में उनके परिवारों की मदद से, एक व्हाइट पासपोर्ट की व्यवस्था की और इसे ट्यूनीशिया में भारतीय दूतावास को भेज दिया,”

इन लोगों ने त्रिपोली की एक जेल में तीन महीने बिताए जहां उन्हें 15 अन्य कैदियों के साथ एक छोटे से कमरे में रखा गया था. साहनी कहते हैं, ”जेल में राहुल शर्मा एक नाइजीरियाई व्यक्ति के फोन से हमें कॉल करता था और इस तरह हम दूतावास को अपडेट रखते थे.”

पासपोर्ट बन जाने के बाद वे लीबिया से निकलकर तुर्की और बहरीन के रास्ते भारत पहुंचे.

कुरुक्षेत्र के पिहोवा के 31 वर्षीय राहुल कुमार जो लीबिया में फंसे हुए थे, कहते हैं, “मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि हमने लीबिया छोड़ दिया है. मैं हवाई जहाज में खुद को थप्पड़ मारता रहा और खुद को चुटकी काटता रहा.’ मैं डर गया. क्या वे हमें कहीं और ले जा रहे हैं? मैं हवाई अड्डे पर अन्य लोगों से पूछता रहा.”

ज़िंदगी भर का सदमा

राहुल कुमार अपनी पत्नी और बच्चों तथा अपनी बहन और जीजाजी के साथ कुरूक्षेत्र के पिहोवा शहर में वापस आ गए हैं, लेकिन उनका मन लीबिया में फंसा हुआ है. वह अपनी बहन के घर के आसपास घूमते रहते हैं, रात को सो नहीं पाते और दिन में आराम नहीं कर पाते.

वह जहां भी जाते हैं, उनकी तीन बेटियां – सभी 10 साल से कम उम्र की – उनके साथ पीछे-पीछे जाती हैं. उन्होंने सात महीनों से अपने पिता को नहीं देखा था.

राहुल कुमार, टोनी और संदीप को जानते थे. वह उन लोगों में से एक थे जिनसे वे फरवरी में अमृतसर हवाई अड्डे पर मिले थे. हवाई जहाज़ में लिए गए वीडियो में – टोनी के पिता के फ़ोन में – वह संदीप के ठीक बगल में बैठे हैं.

राहुल ने कहा, “मैं अपनी बेटियों के लिए कमाना चाहता था. उनके बेहतर भविष्य के लिए. ताकि वे अच्छे स्कूलों में जा सकें.”

भाई-बहनों ने अपने माता-पिता को कई साल पहले खो दिया था, और 28 वर्षीय सोनिया (राहुल की बहन) ने उनकी देखभाल करने वाली बड़ी बहन की भूमिका निभाई है. कुमार की पत्नी ने मीडिया से बात करने से इनकार कर दिया और जब राहुल अपने अनुभव के बारे में बात करते हैं तो वह चुपचाप रोती हैं.

अपनी यादों के बीच में कुमार बेदम हो जाते हैं. वह खुद को चुटकी काटता है और ज़ोर-ज़ोर से रोता है.

“यह काफी डरावना था. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं वापस लौटूंगा,” कुमार अपने आंसू पोंछते हुए कहते हैं. लोकल फिज़ीशियन, जो हर दिन उन्हें देखने आते हैं, इस बात पर ज़ोर देते हैं कि वह शारीरिक रूप से ठीक हो गए हैं, हालांकि उनका वज़न अभी भी कम है.

राहुल के ऊपर दूसरी रोटी खाने का दबाव बनाते हुए सोनिया ने कहा, “जब वह यहां से जाने को तैयार हुए थे तो उनका वज़न 95 किलो था. लेकिन अब उनका वज़न सिर्फ 60 किलो रह गया है.” लेकिन हर बार जब वह दो से अधिक चपाती खाते हैं, तो उन्हें उल्टी हो जाती है.

राहुल लीबिया की आपबीती दिन में कई बार दोहराते हैं. उनके परिवार के सदस्य चुपचाप उनकी बात सुनते हैं, यह जानते हुए भी कि उन्हें इस सदमे से उबरने में समय लगेगा.

“वे खरीददारों की कैद में हमें रोटी परोसते थे. और जेल में हमें एक प्लेट में मैक्रॉनी दी जाती थी जिसे हमें दस लोगों के बीच शेयर करना होता था. कोई व्यक्ति हर दिन मैक्रॉनी कैसे खा सकता है?”

राहुल ने दावा किया कि उन्हें और अन्य लोगों को उन्हें खरीदने वाले लोगों ने इस्लामी धार्मिक प्रार्थना पढ़ने के लिए कहा था. जिस कमरे में उन्हें रखा गया था, वहां एक छोटी सी खिड़की थी जहां से वे समुद्र को देख सकते थे.

राहुल याद करते हुए कहते हैं, “लेकिन हम ऐसी कहानियां सुनते थे कि आदेशों का पालन न करने के कारण फंसे हुए लोगों को कैसे मार दिया गया और समुद्र में फेंक दिया गया. लिबीज़ यानी लीबिया के लोग अरबी में बात करते थे. उनके साथ एक पाकिस्तानी आदमी भी था जो हिंदी में बात करता था. उन्होंने हमारे साथ फंसे पाकिस्तानी साथियों को भी नहीं बख्शा.”

फैमिली फिज़ीशियन चाहते हैं कि राहुल थिरैपी करवाएं और सोनिया ने एक मनोचिकित्सक या सायकैट्रिस्ट के साथ अप्वाइंटमेंट बुक कर दिया है. वह इलाज की प्रक्रिया या हीलिंग प्रोसेस को शुरू करने के लिए उत्सुक हैं.

वह कहते हैं, “मेरे कान फिर से बज रहे हैं. मेरे दिल तेज़ी से धड़क रहा है. मुझे थोड़ा पानी दीजिए. मैं सांस नहीं ले सकता.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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