पटना: हर हफ्ते 34 साल के आकाश कुमार न्याय की तलाश में छह घंटे लगाकर सुपौल से पटना आते हैं ताकि कानून उस व्यक्ति पर नकेल कस सके जिसने उनकी ज़िंदगी भर की बचत लूट ली और कथित तौर पर उनकी पत्नी को परेशान किया. राज्य की राजधानी में यह बैंकर हर संभव दरवाज़ा खटखटाता है — पुलिस, कोर्ट, यहां तक कि राजनेताओं के भी.
पटना के बाहरी इलाके दानापुर सब-डिवीजन में 1.5 करोड़ रुपये की कीमत का तीन कट्ठा का प्लॉट कुमार और उनकी पत्नी के लिए विवाद का कारण बन गया है. 1.44 करोड़ रुपये के लोन और रजिस्ट्री और बाड़ लगाने के लिए एक्स्ट्रा 30 लाख रुपये खर्च होने के कारण कुमार और उनकी पत्नी लंबे समय तक ईएमआई चुकाने के लिए इस जाल में फंसे हुए थे, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि वह भू-माफिया के जाल में फंस रहे हैं.
जैसे ही ज़मीन पर निर्माण शुरू हुआ, संतोष कुमार भारती — जिसने सौदे में मदद की थी और उसके आदमी जेसीबी लेकर साइट पर आए और बाउंड्री वॉल को गिरा दिया. उन्होंने दावा किया कि यह प्लॉट दंपति का नहीं है. ऑनलाइन रिकॉर्ड चेक करने पर दंपत्ति को पता चला कि वह भू-माफिया के गठजोड़ का शिकार हो गए हैं. प्लॉट नवीन कुमार के नाम पर भी नहीं था, जिसने उन्हें इसे बेचा था.
रातों-रात बैंकर दंपत्ति का घर बनाने का ख्वाब एक दुःस्वप्न में बदल गया. कुमार ने कहा, “हम एक ऐसे घर के लिए पैसे देंगे जिसे हम शायद कभी बनते नहीं देख पाएंगे.”
बिहार उन शीर्ष राज्यों में से एक है जहां ज़मीन से जुड़े मामलों की वजह से हत्याओं की संख्या सबसे ज़्यादा है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया आंकड़ों के अनुसार, राज्य ज़मीन विवाद से जुड़ी हत्याओं की सूची में सबसे ऊपर है, जिसमें 2021 में कुल 815 मामले दर्ज किए गए. बीते कुछ साल में ज़मीन विवाद से संबंधित हत्याओं का चलन चिंताजनक रूप से स्थिर रहा है, 2020 में 800 मामले, 2019 में 782, 2018 में 1016 और 2017 में 939 मामले दर्ज किए गए.
वैकल्पिक बड़े शहरी केंद्र की अनुपस्थिति ने पटना में अत्यधिक भीड़भाड़ पैदा कर दी है, जिससे राज्य में ज़मीन की कीमतें आसमान छू रही हैं, जहां व्यापार की मौजूदगी बहुत कम है. यह राजनीतिक संरक्षण और बाहुबल वाले लोगों के लिए इसे एक बड़े अपराध करने के मौके में बदलने का एक आदर्श साधन है, जो सैकड़ों लोगों को ज़मीन के सौदों में उनकी मेहनत की कमाई से ठगते हैं. बिहार के भू-माफिया सौदों में खून-खराबा होता रहता है, बावजूद इसके कि पुलिस इस खतरे को रोकने के लिए सख्त कदम उठाती है. यह फर्ज़ी किराए की रसीदें, विवादित ज़मीन रिकॉर्ड और लंबी मुकदमेबाजी का एक जटिल खेल है, जो अक्सर माफिया द्वारा संचालित कंगारू कोर्ट में समाप्त होता है.

पटना स्थित बिल्डर बबलू कुमार ने काम के इस तरीके को समझाते हुए कहा कि बिहार में डेवलपर्स का व्यवसाय अक्सर भू-माफियाओं की उपस्थिति से प्रभावित होता है.
उन्होंने कहा, “वह बस एक फर्ज़ी किराए की रसीद दाखिल करते हैं, जिस पर प्रोजेक्ट चल रहा है, उस ज़मीन के मालिकाना हक का झूठा दावा करते हैं. एक बार सीआरपीसी की धारा 144 या 145 लागू होने के बाद, ज़मीन को विवादित करार दिया जाता है. देरी के हर दिन से बिल्डर को लाखों रुपये का नुकसान हो सकता है. अगर मामला एक महीने में ठीक नहीं होता, तो वित्तीय नुकसान करोड़ों में बढ़ सकता है. नतीजतन, ज़्यादातर बिल्डर्स मामले को अदालत से बाहर निपटाना पसंद करते हैं.”
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खामियां
बिहार के प्रमुख रियल एस्टेट डीलरों में से एक डी.एन. सिंह ने दो दशक पहले सगुना मोरे में स्थानीय किसान से 80 कट्ठा ज़मीन खरीदी थी. उनका सपना इलाके में सबसे बड़े मॉल में से एक बनाने का था और उन्होंने इसका आर्किटेक्चरल प्लान भी तैयार कर लिया था. हालांकि, जैसे ही वह कंस्ट्रक्शन शुरू करने वाले थे, उसी ज़मीन पर एक और पार्टी ने अपना दावा पेश कर दिया.
राज्य से हस्तक्षेप की मांग करते हुए सिंह ने 2013 में प्रशासन की निगरानी में बाउंड्री को सुरक्षित करने में कामयाबी हासिल की और इसे लॉक करवा दिया. हालांकि, दूसरे पक्ष ने मामले को कोर्ट में पहुंचा दिया और तब से ज़मीन मुकदमेबाजी में फंसी हुई है.
पिछले 15 साल में, सिंह ने एक ऐसे प्रोजेक्ट पर वक्त और लगभग 100 करोड़ रुपये गंवाए हैं जो कभी शुरू ही नहीं हुआ.
और यह सिर्फ उनके व्यावसायिक हित ही नहीं हैं जो प्रभावित हुए हैं. सिंह को एक अन्य भू-माफिया केदार राय की हत्या में भी आरोपी बनाया गया है.
“जब केदार राय की हत्या हुई, तब मैं लंदन में बिल्डर्स मीटिंग में शामिल हो रहा था, फिर भी मेरा नाम एफआईआर में दर्ज़ था. अब, मैं न केवल ज़मीन के लिए लड़ रहा हूं, बल्कि एक कथित हत्या के आरोप से भी जूझ रहा हूं.”
सिंह के अनुसार, असली मुद्दा फर्ज़ी, पुरानी तारीख वाले ज़मीन के दस्तावेज़ का अस्तित्व और सालो-साल चलने वाली मुकदमेबाजी का है, जो उनके जैसे बिल्डरों को हतोत्साहित करता है.
वह बस एक फर्ज़ी किराए की रसीद दाखिल करते हैं, जिस पर प्रोजेक्ट चल रहा है, उस ज़मीन के मालिकाना हक का झूठा दावा करते हैं. एक बार सीआरपीसी की धारा 144 या 145 लागू होने के बाद, ज़मीन को विवादित करार दिया जाता है. देरी के हर दिन से बिल्डर को लाखों रुपये का नुकसान हो सकता है. अगर मामला एक महीने में ठीक नहीं होता, तो वित्तीय नुकसान करोड़ों में बढ़ सकता है. नतीजतन, ज़्यादातर बिल्डर्स मामले को अदालत से बाहर निपटाना पसंद करते हैं
— बबलू कुमार, पटना स्थित बिल्डर
ज़मीन हड़पने के ज्यादातर मामलों में, प्लॉट/फ्लैट कई पक्षों को बेचे जाते हैं. पहला पक्ष, जिसका नाम सेल डीड और रेवेन्यू और भूमि विभाग के साथ भूमि रिकॉर्ड में म्यूटेशन पर दर्ज है, अपना दावा बरकरार रखता है. जब विवाद शुरू होता है, तो राजस्व विभाग बाद की सेल डीड को रद्द कर देता है, जिससे पहला पक्ष ही असली मालिक बन जाता है.
दानापुर सर्किल अधिकारी चंद्र कुमार ने लैंड रिकॉर्ड्स में इस गंभीर खामी की ओर ध्यान दिलाया.
उन्होंने कहा, “समस्या रजिस्ट्री ऑफिस में है. उनके पास रजिस्ट्री, म्यूटेशन और सेल डीड के रिकॉर्ड हैं. वह इन मुद्दों को पहले चरण में ही आसानी से रोक सकते हैं, जब एक साल के भीतर दूसरा पक्ष उसी ज़मीन की रजिस्ट्री के लिए आता है.”
हालांकि, दानापुर सब-रजिस्ट्रार ऑफिस की सब-रजिस्ट्री स्विती सुमन इससे असहमत हैं. “हमारे पास सेल डीड को वेरीफाई करने या म्यूटेशन रिकॉर्ड की समीक्षा करने और विवादों को हल करने के लिए पर्याप्त मैनपावर नहीं है. जांच के बाद रजिस्ट्री की वैधता तय करना कोर्ट का काम है. हमारी जिम्मेदारी रेवेन्यू इकट्ठा करना है.”
ज़मीनी स्तर पर, यह विभिन्न विभागों में दोषारोपण का एक क्लासिक मामला है. पुलिस अक्सर ज़मीन और रेवेन्यू डिपार्टमेंट पर उन खामियों को दूर न करने के लिए उंगली उठाती है जो भू-माफियाओं को पनपने देती हैं. इस बीच, ज़मीन और रेवेन्यू अधिकारी जिम्मेदारी को वापस अदालतों पर डाल देते हैं और कहते हैं कि ज़मीन के दावों की वैधता निर्धारित करना न्यायपालिका पर निर्भर है.
आधुनिक वक्त के भू-माफिया की उत्पत्ति एक बुनियादी दोष है: ज़मीन का मालिकाना हक किराए की रसीदों के ज़रिए से स्थापित किया जाता है, जिससे यह एक बड़ा बाज़ार बन जाता है, जहां कोई भी किसी भी ज़मीन के टुकड़े के लिए किराए की रसीद पेश कर सकता है
— बिहार रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) के प्रमुख विवेक सिंह
अपर्याप्त ज़मीन के रिकॉर्ड भी भू-माफियाओं के पनपने के लिए उपजाऊ ज़मीन तैयार करते हैं. बिहार में आखिरी व्यापक भूमि सर्वेक्षण भारत की आज़ादी से पहले हुआ था. 1902 में, ब्रिटिश सरकार ने कैडस्ट्रल सर्वेक्षण किया, जिसे 1965 में बिहार सरकार द्वारा संशोधित किया गया था, लेकिन अभी भी बड़ी खामियां और अशुद्धियां बरकरार है, जो वर्तमान ज़मीन से जुड़े मुद्दों में योगदान दे रही हैं.
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राजधानी का माफिया
एक किसान परिवार की दो विवाहित बेटियां अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर उनकी दो कट्ठा ज़मीन में से अपना हिस्सा बेचने के लिए बेताब हैं. पिता, जिनका बेटा अभी नाबालिग है, अपने और अपने बेटे के हिस्से को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं. परिवार का संघर्ष, जिसमें एक पक्ष अपना हिस्सा बेचना चाहता है और दूसरा इसका विरोध कर रहा है, जल्द ही भू-माफिया के प्रवेश का सही नुस्खा बन जाएगा और पटना के एक ज़मीन डीलर 30 साल के धीरज कुमार की नज़र इस तीन करोड़ रुपये के लेन-देन पर है.
कुमार ने कहा, “मेरा काम दोनों पक्षों — पिता और बेटियों को एक बात पर लाना और दो करोड़ रुपये में सौदा पक्का करना है.” उसने कहा कि एक बार समझौता हो जाने के बाद दस दिनों में खरीदार ढूंढ लिया जाएगा जो एक बार में तीन करोड़ रुपये देने को तैयार हो, “लेकिन अगर पिता मना कर देते है और बेटियां फिर भी अपना हिस्सा बेचती हैं, जिससे यह विवादित ज़मीन बन सकती है क्योंकि पिता इसे चुनौती देंगे और स्थगन आदेश लाएंगे.”
उन्होंने बताया कि अगर वे पिता को बेचने के लिए नहीं मना पाएंगे, तो कोई और करेगा.
जब अपने काम को समझाने की बात आती है, तो कुमार अक्सर खुद को फाइनेंसर बताते हैं, तो कभी प्रॉपर्टी डीलर, लेकिन उसके पोर्टफोलियो में और भी बहुत कुछ है. वह रूपसपुर थाने में हिस्ट्रीशीटर है, जिसके खिलाफ कई एफआईआर दर्ज हैं. अक्टूबर 2024 में, उसे आर्म्स एक्ट के तहत एक मामले में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन दिसंबर के अंत तक उसे ज़मानत मिल गई.
वह राज्य RERA में भी अपराधी है, लेकिन हैरानी है कि वह वहां केवल सम्मन से बच जाता है. उन्होंने कबूल किया कि RERA की स्थापना के बाद से बिल्डरों को कड़े नियमों का सामना करना पड़ा है, लेकिन रेजिडेंशियल या बिजनेस के काम के लिए खेती की ज़मीन की प्लॉटिंग सभी के लिए एक खुला खेल है. यहीं से वह अब काम करते हैं.

उन्होंने कहा, “कोई भी किसान अपनी ज़मीन सीधे बिल्डरों को नहीं बेचता और कोई भी बिल्डर दलालों के बिना सौदा नहीं कर सकता. इसलिए हर खरीद-फरोख्त के लिए हमें जैसे लोगों के पास आना पड़ता है.” उन्होंने कहा कि कुछ बिल्डर जिन्होंने किसानों के साथ स्वतंत्र रूप से कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए थे, वह कभी भी प्रोजेक्ट पूरा नहीं कर पाए और कंस्ट्रक्शन का काम बीच में ही छोड़ दिया.
उनकी आवाज़ में आत्मविश्वास उनके इलाके में मौजूद ताकत की वजह से है.
पटना के जलालपुर गांव में उनके दफ्तर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित कुमार के घर पर पांच से ज़्यादा सीसीटीवी कैमरे लगातार नज़र रखते हैं. दलाल अक्सर संभावित ग्राहकों को लेकर आते हैं या फिर पीड़ित पक्ष अपने विवादों को सुलझाते हैं.
यह दफ्तर कभी-कभी शादी या समारोहों के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. दफ्तर में एक जर्मन शेफर्ड भी बंधा है,जो सिक्योरिटी की एक एक्स्ट्रा लेयर देता है. दानापुर इलाके के आरजेडी विधायक और कुख्यात भू-माफिया रीत लाल यादव के साथ कुमार की फ्रेम्ड फोटो दीवार पर अलग-अलग हिंदू देवताओं की बड़ी तस्वीरों के साथ टंगी है.
कुमार ने दावा किया कि संतोष कुमार भारती के लोगों ने धमकाने के लिए रीत लाल यादव के नाम का भी इस्तेमाल किया था. वे चाहते हैं कि वह लोग अदालत के बाहर मामले को सुलझा लें.
उन्होंने कहा, “संतोष कुमार भारती ने दावा किया कि रीत लाल यादव उनके बड़े भाई हैं और उन्हें कुछ नहीं होगा. भारती और उनके समूह ने शुरू में अदालतों और थाने के बाहर मामले को सुलझाने की कोशिश की, लेकिन हमने अपनी कानूनी लड़ाई जारी रखी.”
कोई भी किसान अपनी ज़मीन सीधे बिल्डरों को नहीं बेचता और कोई भी बिल्डर दलालों के बिना सौदा नहीं कर सकता. इसलिए हर खरीद-फरोख्त के लिए हमें जैसे लोगों के पास आना पड़ता है
— धीरज कुमार, पटना स्थित लैंड डीलर
पहली नज़र में धीरज कुमार पिछली पीढ़ी के आम भू-माफिया के जैसे नहीं लगते. अनंत सिंह, रीत लाल यादव या स्वर्गीय सत्य नारायण सिंह और स्वर्गीय केदार राय के विपरीत, उसके इर्द-गिर्द सशस्त्र सुरक्षाकर्मी या चमचमाती काली एसयूवी नहीं होती.
बिहार के डीजीपी विनय कुमार ने दिप्रिंट से कहा, “आज के भू-माफिया साइबर अपराधियों की तरह ही परिष्कृत तरीके से काम करते हैं. उनका एकमात्र तरीका ज़मीन का विवाद पैदा करना है. यह एक नकली फेसबुक प्रोफाइल बनाने जितना ही आसान है.”
पिछले साल दिसंबर में कार्यभार संभालने के बाद से ही डीजीपी विनय कुमार की सार्वजनिक बातचीत में ज़मीन से जुड़ी पैरवी (सिफारिशें) हावी रही हैं. एक आम पैटर्न सामने आया है — या तो ऐसे मामलों में कोई एफआईआर दर्ज़ नहीं की जाती है, या अगर दर्ज़ की भी जाती है, तो कोई कार्रवाई नहीं की जाती. बिहार में डीएम, एसपी, डीजीपी, रेरा आदि के दफ्तरों के बाहर भू-माफियाओं द्वारा ठगे गए लोगों का इंतज़ार करना आम बात है.
हालांकि, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि पुलिस की निगरानी बढ़ने, माफियाओं के खिलाफ राज्य की मशीनरी, रेरा की स्थापना और ज़मीन के डिजिटलीकरण के साथ, स्थानीय अखबारों में अब “ज़्यादा की औकात” वाली खबरें आम नहीं रह गई हैं.
आज के भू-माफिया साइबर अपराधियों की तरह ही परिष्कृत तरीके से काम करते हैं. उनका एकमात्र तरीका ज़मीन का विवाद पैदा करना है. यह एक नकली फेसबुक प्रोफाइल बनाने जितना ही आसान है
— बिहार के डीजीपी विनय कुमार
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बिहार में औद्योगिकीकरण की कमी के कारण ज़मीन सोना
एक दशक पहले तक धीरज कुमार LARA की साइट पर बतौर सप्लायर काम कर रहे थे — एक महत्वाकांक्षी परियोजना जिसे बिहार का सबसे बड़ा मॉल कहा जाता है, दिलचस्प बात यह है कि इसका नाम पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के नाम पर रखा गया था. विवादों में आने के बाद यह प्रोजेक्ट जल्द ही बिलबोर्ड से गायब हो गया.
आरोप सामने आए कि मॉल के प्लॉट से खोदी गई मिट्टी को 90 लाख रुपये के मिट्टी-भरने के टेंडर की आड़ में पटना चिड़ियाघर ले जाया गया, जिसे लालू के बेटे तेज प्रताप यादव ने दिया था, जो उस समय पर्यावरण और वन मंत्री थे.
नतीजतन, धीरज का सप्लायर के तौर पर समय खत्म हो गया. हालांकि, उन्हें एक ऐसी संपत्ति मिली जो रिकॉर्ड गति से बढ़ रही थी, खासकर राज्य की राजधानी में — ज़मीन के सौदे.
दानापुर के रूपसपुर इलाके में रेलवे लाइन के बगल में अपने दफ्तर में भूरे रंग के सोफे पर बैठे धीरज कुमार ने कहा,, “बिहार की पहली गेटेड सोसाइटी, जलालपुर सिटी, हमारे गांव में स्थापित की गई थी. अचानक, ज़मीन महंगी हो गई. युवा लोग दलाल बन गए और मैं भी इसमें कूद पड़ा.”
कुमार ने पूरे यकीन के साथ भविष्यवाणी की, “दानापुर का सगुना मोड़ अगला डाक बंगला (पटना के केंद्र में स्थित) होगा. कुछ ही वक्त में, पूरी जगह बोरिंग रोड जैसी बन जाएगी.”
बता दें कि बोरिंग रोड वह जगह है जहां पटना के अभिजात वर्ग के लोग रहते और काम करते हैं.
दानापुर, जो कभी पटना से बहुत दूर था और जंगली घास और नालियों की बदबू से भरा हुआ था, वहां अब कॉन्वेंट स्कूल, अस्पताल, लक्जरी सैलून, ज्वैलर्स, खाने-पीने की दुकानें और होटल वगैरह बन गए हैं, जो पटना का सबसे महंगा और सबसे पसंदीदा इलाका बन गया है. बिहार में किसी दूसरे बड़े शहर की अनुपस्थिति का मतलब है कि हर कोई पटना में बसना चाहता है, जिससे यह एक प्रमुख रियल एस्टेट बन गया है. शहर की रियल एस्टेट बहुत ज़्यादा है, खासकर जब खरीदारों को भारत के दूसरे बड़े शहरों में निवेश करने पर जो मिलता है, उसकी तुलना में.
यह नोएडा, गुरुग्राम या दूसरे महानगरीय इलाकों से ज़्यादा महंगा है.
पटना के लैंड डीलर धीरज कुमार
स्थानीय निवासियों के अनुसार, 2000 के दशक की शुरुआत में दानापुर में एक कट्ठा की कीमत 10 लाख रुपये से ज़्यादा नहीं थी. आज, यह रेजिडेंशियल उद्देश्यों के लिए एक करोड़ रुपये से ज़्यादा में बिकता है और बिजनेस के काम के लिए इसकी कीमत 1.5 से दो करोड़ रुपये तक हो सकती है.
धीरज कुमार ने 2017 में स्थापित अपनी कंस्ट्रक्शन कंपनी अनुष्का सिटी प्राइवेट लिमिटेड के ऑफिस के लिए दो कट्ठा का प्लॉट खरीदने के बारे में बताते हुए कहा, “यह नोएडा, गुरुग्राम या अन्य महानगरीय क्षेत्रों की तुलना में अधिक महंगा है.”
एक दशक से भी कम समय में, उन्होंने रूपसपुर इलाके में अपने पांच घरों को किराए पर दे दिया है, एक रेस्तरां खोला है और ज़मीन के कारोबार में उतरने के बाद से लगभग 50 कट्ठा ज़मीन बेची है.
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गठजोड़: पुलिस, क्लर्क, दबंग
बिहार में भू-माफिया दो स्तंभों पर खड़ा है — भ्रष्ट नौकरशाही और राजनीतिक संरक्षण, जो अक्सर धीरज कुमार और संतोष कुमार भारती जैसे लोगों तक फैला हुआ है. ऐसे राज्य में जहां मुश्किल से कोई उद्योग बचा है, ज़मीन के सौदों का मतलब है बड़े सौदे-विभिन्न हितधारकों के लिए अपना हिस्सा पाने का मौका.
कथित धोखाधड़ी के कई मामलों में, एक तय स्क्रिप्ट का पालन किया जा रहा है. खरीदार को एक विश्वसनीय स्रोत द्वारा विक्रेता/दलाल से मिलवाया जाता है. लेन-देन हो जाता है, लेकिन दलाल रजिस्ट्रेशन के वक्त नहीं आता है, जब पीड़ित पक्ष सेल डीड कॉपी के रिकॉर्ड की जांच करता है, तो अक्सर पाया जाता है कि ज़मीन किसी तीसरे पक्ष को बेची गई है और चूंकि मुकदमेबाजी का रास्ता लंबा और थकाऊ है, इसलिए पीड़ित अक्सर मामले को अदालत से बाहर सुलझा लेते हैं या जैसा कि धीरज दावा करते हैं, उन्हें “मेज पर आने” के लिए मजबूर किया जाता है.
बिहार रेरा के प्रमुख विवेक सिंह ने कहा, “अदालती मामले आपकी ज़िंदगी से ज़्यादा लंबे समय तक चलते हैं.” उन्होंने आगे कहा कि मामले आखिरकार माफिया द्वारा संचालित कंगारू कोर्ट्स में निपटाए जाते हैं और इन कंगारू कोर्ट्स में विक्रेता से लेकर खरीदार और बिल्डर तक सभी आत्मसमर्पण कर देते हैं. भारतीय सेना में सूबेदार 42-वर्षीय कन्हैया सिंह वर्तमान में भी यही कर रहे हैं.

सिंह पटना में घर खरीदने की योजना बना रहे थे, ताकि उनके स्कूल जाने वाले बच्चे राजधानी में रह सकें और अच्छे से पढ़ाई कर सकें.
कन्हैया ने कहा, “मैंने सियाचिन और अन्य कठिन इलाकों में सर्विस की है. मुझे अपने परिवार को पटना में बसाना था. मेरे भाई राजेश कुमार, जो बिहार पुलिस में एएसआई हैं, ने दूसरे पुलिसकर्मी सुधीर कुमार सिंह से संपर्क किया, जिन्होंने रूपसपुर में एक कट्ठा ज़मीन खरीदी.”
कन्हैया, उनके भाई राजेश कुमार और उनके दोस्त प्रवीण कुमार, जो भारतीय स्टेट बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर हैं, ने एएसआई सुधीर कुमार सिंह से जांच करने के बाद धीरज कुमार से प्लॉट खरीदने में रुचि दिखाई. एएसआई ने धीरज कुमार से प्लॉट खरीदा था और उनके लिए ज़मानत दी थी. 16 लाख रुपये से 10 लाख रुपये के बीच एडवांस पैसे दिए गए.
कन्हैया ने कहा, “उसने इतनी अच्छी जगह पर 45 लाख रुपये प्रति कट्ठा के हिसाब से प्लॉट बेचे. प्लॉट मां तारा सिटी अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स के ठीक पीछे थे और हमने कागज़ चैक किए थे, जिससे पता चला कि वह धीरज कुमार के थे.”
लेकिन धीरज रजिस्ट्री के लिए कभी नहीं आया और बाद में दानापुर रजिस्ट्री ऑफिस में तैनात महाबली भामा नामक रजिस्ट्री क्लर्क को वही ज़मीन बेच दी, जैसा कि ऑनलाइन रिकॉर्ड से पता चला.
अपनी जांच-पड़ताल करने के बाद कन्हैया ने प्लॉट की रजिस्ट्री के लिए महाबली भामा को 2.11 लाख रुपये दिए. उन्हें मालूम नहीं था कि सरकारी अधिकारी भू-माफियाओं के साथ मिला हुआ है.
कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद धीरज ने कन्हैया से लिए गए 13.8 लाख रुपये वापस करने पर सहमति जताई. हालांकि, उसने जो चेक दिए वह बाउंस होते रहे. कोर्ट, थाना और यहां तक कि उच्च अधिकारियों के चक्कर लगाने से थककर सिपाही ने हार मान ली और “मेज” पर आ गए.
धीरज कुमार ने छोटी-छोटी किश्तों में पैसे चुकाने शुरू किए, कभी 25,000 रुपये, कभी 10,000 रुपये. कन्हैया ने निराश होकर कहा, “मुझे छोटी-छोटी किश्तों में केवल 8.5 लाख रुपये मिले हैं.”
और कन्हैया को धीरज के गुंडों से धमकियां मिल रही हैं, जो अक्सर स्थानीय विधायक के नाम का इस्तेमाल करके उनकी आवाज़ दबाते हैं. कन्हैया ने कहा, मुझे बताया गया है कि किसी को मरवाने में इतना खर्च भी नहीं आएगा.”
लेकिन 8.5 लाख रुपए वसूलना भी आसान नहीं था.
कन्हैया ने आरोप लगाया, “रूपसपुर थाने के जांच अधिकारी नवीन कुमार ने मेरी मेहनत की कमाई वापस पाने के लिए मुझसे एक लाख रुपए मांगे.”
उन्होंने दावा किया कि रजिस्ट्री क्लर्क, पुलिस और राजनेताओं के गुंडों का एक फलता-फूलता नेटवर्क धीरज कुमार जैसे माफियाओं को दंड से मुक्त होकर काम करने में सक्षम बनाता है.
धीरज को अपने खिलाफ मामलों की कोई चिंता नहीं है, वह सभी को धोखाधड़ी के रूप में खारिज करते हैं.
दानापुर रजिस्ट्री कार्यालय में काम का बोझ इतना ज़्यादा है कि 2022 में इसे दो विंग — दानापुर और बिहटा में बांट दिया जाना चाहिए. 2024 में इन कार्यालयों में संसाधित रजिस्ट्री की कुल संख्या 16,000 से ज़्यादा हो गई, जो ज़मीन के लेन-देन में भारी मांग और गतिविधि को दर्शाता है.
उन्होंने पूरे यकीन से कहा, “अदालती मामले 20-25 साल तक चलते हैं. कोई भी कामकाजी व्यक्ति, चाहे वह बैंक में हो, पुलिस में हो या प्राइवेट सेक्टर में, दो दशकों तक लड़ने का जोखिम नहीं उठा सकता.”
दानापुर और बिहटा के रजिस्ट्री कार्यालयों में एजेंट कतार में खड़े रहते हैं और किसी भी विवादित ज़मीन के लिए फर्ज़ी पिछली तारीख वाली किराया रसीदें पेश करते हैं. इनकी कीमत 10,000 से 20,000 रुपये के बीच होती है.
एक बार जब इन जाली रसीदों के साथ कई दावे सर्किल अधिकारी के कार्यालय में जमा हो जाते हैं, तो मामला और मुश्किल हो जाता है. सर्किल अधिकारी चंदन कुमार ने दिप्रिंट को बताया, “2018 से हमें 71,307 मामले मिले हैं, जिनमें से हमने 68,544 का निपटारा कर दिया है. हम अभी भी बाकी बचे मामलों पर काम कर रहे हैं.”
कुमार ने कहा, “यही कारण है कि बिहार में सर्किल अधिकारी की कुर्सी सबसे ज़्यादा पसंद की जाने वाली और सबसे ज़्यादा नफरत की जाने वाली पोस्ट में से एक है, जो लोग हमारे फैसलों से संतुष्ट नहीं होते हैं, वह अक्सर डीसीएलआर (उप कलेक्टर ज़मीन सुधार कार्यालय) अधिकारी के पास अपील करते हैं और अपने मामलों के फैसलों को चुनौती देते हैं.”
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जनता दरबार, कार्रवाई
हर शनिवार को पूरे राज्य में सर्किल ऑफिसर (सीओ) और स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) जनता दरबार लगाते हैं, खास तौर पर ज़मीन के विवादों को सुलझाने के लिए.
डीजीपी विनय कुमार ने कहा, “हमारी लड़ाई में हमने एक हज़ार से ज़्यादा भू-माफियाओं की पहचान की है. हम उनकी संपत्ति कुर्क करेंगे और उन्हें एक उदाहरण के तौर पर पेश करेंगे.”
2021 बैच के आईपीएस अधिकारी भानु प्रताप सिंह, जिन्हें हाल ही में दानापुर के एएसपी के तौर पर तैनात किया गया था, इस गठजोड़ पर कार्रवाई कर रहे हैं, गिरफ्तारियां और छापेमारी कर रहे हैं.
सिंह ने कहा, “हम हथियार, या फर्ज़ी किराए की रसीदें, या ज़मीन से जुड़े स्टाम्प पेपर बरामद करते हैं.” उन्होंने कहा कि वे इलाके के बिल्डरों के साथ बैठकें कर रहे हैं और उनसे भू-माफियाओं की रंगदारी मांगों को अस्वीकार करने का आग्रह कर रहे हैं.
पटना के एक बिल्डर ने कहा कि रियल एस्टेट में होने वाले भारी मुनाफे से यह सुनिश्चित होता है कि कई बार जेल जाने के बाद भी कोई माफिया संत नहीं बनने वाला है और बाहर निकलकर वही काम फिर से शुरू कर देगा.
राज्य ने भू-माफियाओं के मामलों में रोकथाम के उपाय के तौर पर 2024 में अपराध नियंत्रण अधिनियम की कुछ धाराओं में संशोधन भी किया है.
एएसपी सिंह ने बताया, “पहले, माफियाओं को ज़मानत मिल जाती थी और वह अपने इलाकों में काम करते रहते थे, लेकिन संशोधित धारा 3 एक निश्चित अवधि के लिए उन्हें जिलों में प्रवेश करने से रोक देगी.”
एएसपी सिंह ने कहा, “हमें पता चला है कि कई बिल्डरों को जबरन वसूली के पैसे देने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिसे स्थानीय तौर पर ‘रंगदारी’ भी कहा जाता है.”
राज्य के रेरा प्रमुख विवेक सिंह पहले रेवेन्यू और भूमि सुधार विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद पर कार्यरत थे. अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने 2022 में लैंड रिकॉर्ड्स का डिजिटलीकरण शुरू किया.
उन्होंने दावा किया, “डिजिटलीकरण ने भले ही भानुमती का पिटारा खोल दिया हो, लेकिन कम से कम रिकॉर्ड्स को ऑनलाइन तो कर दिया है.” बिहार में डिजिटलीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से ही सिविल कोर्ट में ज़मीन विवाद के मामले बढ़ गए हैं. रिकॉर्ड डिजिटल होने के बाद, उन्हें हमेशा के लिए अंतिम रूप दे दिया गया. यहां तक कि छोटी-मोटी गलतियों, जैसे कि वर्तनी की गलतियों या प्लॉट मैपिंग में अशुद्धियों को भी ठीक करना पड़ा. इसके कारण बिहार में ज़मीन संबंधी मुकदमेबाजी बढ़ी.
राजस्व और भूमि सुधार विभाग के वर्तमान सचिव आईएएस जय सिंह ने इस उथल-पुथल को स्वीकार किया, लेकिन वे आशावादी बने रहे. उन्होंने भविष्यवाणी की कि अराजकता जल्द ही शांत हो जाएगी, उन्होंने कहा कि 67 प्रतिशत लैंड रिकॉर्ड पहले ही डिजिटल हो चुके हैं. उन्होंने अनुमान लगाया कि बाकी रिकॉर्ड्स अगले सात से आठ महीनों में पूरे हो जाएंगे.
उन्होंने कहा, “हमने पिछले एक साल में विभिन्न जिलों में लगभग 100 सर्कल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की है.” इसमें निलंबन, सैलरी रोकना और भ्रष्टाचार के लिए सज़ा देना शामिल है. उन्होंने बताया कि लैंड रिकॉर्ड अक्सर निचले स्तर के अधिकारियों द्वारा प्रबंधित किए जाते हैं, जिससे व्यापक भ्रष्टाचार और चुनौतियों में योगदान मिला है.
ज़मीन और बदला
बिहार के ज़मीन विवाद अक्सर खूनी युद्ध में बदल जाते हैं और प्रॉपर्टी डीलर भी ऐसी हिंसा से अछूते नहीं हैं. 28 नवंबर 2024 को पटना में सगुना नया टोला स्थित अपने घर के बाहर 60-वर्षीय पारस राय पर छह गोलियां चलाई गईं.
पुलिस जांच में पता चला कि सगुना मोड़ में विवादित 22 कट्ठा ज़मीन को लेकर उनकी हत्या की गई थी. पारस राय के बेटे प्रमोद कुमार द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में नौ लोगों के नाम शामिल हैं, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उनके पिता की हत्या शंभू राय के इशारे पर की गई थी, जिसमें कुछ बिल्डरों का सहयोग था, जो उनके घर को हड़पने की कोशिश कर रहे थे. शंभू राय एक और भू-माफिया है और पारस राय से जुड़ा है.
एएसपी सिंह, जिनकी टीम ने मामले को सुलझाया, ने कहा, “हमें पता चला कि पारस राय ने जबरन उनकी ज़मीन हड़पने का दावा करने वाले परिवार ने बदला लेने की कोशिश की थी.”
पारस राय का बड़ा भाई केदार राय भी एक खूंखार भू-माफिया था, जो पॉश बेली रोड और दानापुर उपनगर के बीच सक्रिय था और उसका भी यही हश्र हुआ. 2018 में उसकी हत्या कर दी गई.

पारस राय की हत्या के एक महीने से भी कम वक्त में, भू-माफिया की दुनिया के एक और बड़े नाम की हिंसक तरीके से हत्या कर दी गई. रंजीत यादव उर्फ दही गोप की 21 दिसंबर 2024 को रात करीब 8 बजे दानापुर कैंटोनमेंट इलाके के पेठिया बाज़ार में अपने घर लौटते समय हत्या कर दी गई.
दही गोप ने बिहार के सबसे कुख्यात भू-माफियाओं में से एक, दानापुर इलाके पर राज करने वाले रीत लाल यादव को चुनौती देकर पटना के अपराध परिदृश्य पर अपना दबदबा बनाया. गोप ने रीत लाल के आदमियों से परिवारों को उनकी ज़मीन वापस दिलाने में मदद करके सम्मान अर्जित किया था.
उसकी पत्नी ने दावा किया कि दही गोप इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट की उम्मीद में था. आरजेडी विधायक रीत लाल ने दानापुर इलाके में बाहुबल, पैसे और ज़मीन हड़पने के जरिए राजनीति में तरक्की की. उसे धीरज कुमार और संतोष कुमार भारती जैसे भू-माफियाओं का गॉडफादर माना जाता है, जो अक्सर बिल्डरों से पैसे ऐंठने के लिए उसके नाम का इस्तेमाल करते हैं.
एक समय था जब पटना में पूरी कॉलोनियां बंदूकधारी भू-माफियाओं द्वारा बनाई जाती थीं, जो सहकारी समितियों के जरिए नई बस्तियां बनाते थे और अपना साम्राज्य खड़ा करते थे. दानापुर का वर्तमान राजीव नगर और नेपाली नगर का अतीत है. यह राजधानी के विस्तार का एक शुरुआती चरण था. 1980 और 1990 के दशक में, ये इलाके किसानों की ज़मीन पर बने थे.
दही गोप की पत्नी 36-वर्षीय प्रियंका कुमारी ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में दावा किया, “उन्होंने मतदाताओं के मामले में राजनीतिक संपत्ति अर्जित की थी. अगले विधानसभा चुनाव में, अगर वे चुनाव लड़ते, तो वे रीत लाल को बाहर कर देते.” हालांकि उन्होंने एफआईआर में किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उन्होंने आरोप लगाया कि रीत लाल यादव, बंटी गुप्ता और सुभाष यादव (दोनों भू-माफिया) ने उनके पति की हत्या की साजिश रची.
कुमारी ने दुख जताते हुए कहा, “माफिया को चुनौती देने वाले हर व्यक्ति का यही हश्र होता है.”
अतीत वर्तमान है
एक समय पटना में बंदूकधारी भू-माफियाओं ने पूरी कॉलोनियां बना ली थीं, जो सहकारी समितियों के ज़रिए नई बस्तियां और अपना साम्राज्य बनाते थे. दानापुर का वर्तमान राजीव नगर और नेपाली नगर का अतीत है. यह राजधानी के विस्तार का शुरुआती चरण था. 1980 और 1990 के दशक में, ये क्षेत्र किसानों की ज़मीन पर बने थे.
राज्य सरकार ने कॉलोनियां बनाने के लिए हज़ारों एकड़ ज़मीन ली थी और ज़िले के खजाने में राशि जमा कर दी थी. किसानों ने भुगतान से इनकार कर दिया, अपना मामला सुप्रीम कोर्ट में ले गए, लेकिन 1984 में केस हार गए. उनके सालों के विरोध का कोई नतीजा नहीं निकला.
1977 में सत्यनारायण सिंह द्वारा स्थापित निराला सहकारी समिति ने राजीव नगर में प्रवेश किया.

सत्यनारायण सिंह के बेटे सुनील सिंह ने कहा, “यह वही वक्त था जब राज्य सहकारी समितियों को बढ़ावा दे रहा था और शहरीकरण तथा कॉलोनियों का समर्थन कर रहा था.” उन्होंने कहा कि उनके पिता ने बिजली बोर्ड में काम किया था, फिर शिक्षक रहे और अंततः समाज सेवा के लिए सहकारी संस्था स्थापित करने से पहले एक पोस्टमास्टर का काम किया. सत्यनारायण सिंह का 2022 में 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया, लेकिन तब तक उन्हें एक खूंखार भू-माफिया के रूप में जाना जाता था. सिंह को पटना के इस हिस्से में हुई काफी हिंसा और खून-खराबे के पीछे का व्यक्ति कहा जाता है. उन पर सरकारी ज़मीन हड़पने, हत्या और जबरन वसूली के मामले दर्ज हैं.
सुनील सिंह ने दावा किया, “सत्यनारायण सिंह दिल से एक भोजपुरी कवि थे” जो पहले करणी सेना के बिहार प्रमुख के रूप में काम कर चुके थे. सुनील को भी 2022 में सरकारी ज़मीन हड़पने के आरोप में जेल भेजा गया था. उन्होंने दिवंगत बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या मामले की सीबीआई जांच की मांग में भी अहम भूमिका निभाई थी. उनकी पत्नी कांग्रेस की सदस्य हैं.
राजीव नगर में अपनी तीन मंजिला सफेद हवेली में बैठे सुनील ने कहा, “लोग हमें माफिया कहते हैं, लेकिन असली भू-माफिया तो सरकार है, जो किसी की भी ज़मीन जबरदस्ती ले सकती है और पैसे भी नहीं देती.”
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