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Thursday, 21 November, 2024
होमफीचरगरीबों को सपने बेचता है केरल का लॉटरी बाज़ार, महत्वाकांक्षा और लत को दे रहा है बढ़ावा

गरीबों को सपने बेचता है केरल का लॉटरी बाज़ार, महत्वाकांक्षा और लत को दे रहा है बढ़ावा

केरल के लॉटरी कारोबार से कम से कम 1.5 लाख लोगों की रोजी-रोटी चलती है. अगर कोई टिकट जीत जाता है, तो उसे बेचने वाले एजेंट को भी ईनाम की राशि का एक हिस्सा मिलता है.

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पिछले 15 साल से सत्यपाल श्रीधर ने केरल में हर लॉटरी टिकट का डिजाइन तैयार किया और उनमें सुरक्षा कोड लगाए है. वो राज्य के लॉटरी घोटालों के लिए जवाबदेह हैं.

मेज पर बिखरे रंगीन कागज़ों के बीच एक मैग्निफाइंग ग्लास पड़ा हुआ है, जहां एडोब फोटोशॉप के साथ एक बड़ा कंप्यूटर है. श्रीधर का करियर केरल में लॉटरी की बढ़ती उपस्थिति के ईर्द-गिर्द घूमता है.

साल भर में 7 साप्ताहिक टिकट और पांत बंपर ड्रॉ राज्य में दैनिक आधार पर लॉटरी चलाई जाती है. 2007 में जब श्रीधर एक ग्राफिक डिजाइनर के रूप में शामिल हुए, तो लॉटरी विभाग बढ़ते घोटालों से निपटने के लिए संघर्ष कर रहा था. चार साल बाद, उन्होंने इन मामलों को अपने हाथों में लिया और सुरक्षा उपाय लागू करना शुरू किया. अब, तिरुवनंतपुरम में लॉटरी के डायरेक्टर के कार्यालय के ठीक बगल में उनकी अपनी सिक्योरिटी डिजाइन लैब है.

केरल में मूल रूप से राज्य के राजस्व को बढ़ाने के मकसद से शुरू की गई लॉटरी इसका एक अमिट हिस्सा बन गई है. आर्थिक और शाब्दिक रूप से यह इतना महत्वपूर्ण बन गया है कि यहां हर 50 मीटर पर एक लॉटरी की दुकान देखी जा सकती है.

केरल में एक व्यक्ति के पास रंगीन लॉटरी टिकट | फोटो: वंदना मेनन/दिप्रिंट

कागज़ पर किस्मत बेचने के इस धंधे को राज्य में अच्छी तरह से भुनाय जा रहा है. लॉटरी डिपार्टमेंट के मुताबिक, केरल सरकार प्रतिदिन 1.8 करोड़ से अधिक टिकटों की छपाई करती है.

इसका मतलब है कि केरल में तीन में से एक व्यक्ति रोजाना लॉटरी टिकट खरीदता है. श्रीधर कोई अपवाद नहीं हैं – इन सुनहरे टिकटों की डिजाइनिंग और छपाई में उनकी भागीदारी के बावजूद, जैकपॉट जीतने का चमकदार आकर्षण फीका नहीं पड़ा है. वो अभी भी टिकट खरीदते हैं और इसके छोटे पुरस्कार घर लेकर जाते हैं.

वो अपने डेस्क पर एक प्रोटोटाइप टिकट को रखता है और अपने द्वारा डिज़ाइन किए गए सुरक्षा कोड को देखने के लिए इसे रोशनी के आगे रखता है. वह मुस्कुराते हुए कहता है, “यह सब मेरे भाग्य (किस्मत) में है.”


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मुश्किल यात्रा

यह सब दैनिक ड्रा के साथ शुरू होता है, जो लॉटरी डिपार्टमेंट से कुछ किलोमीटर दूर तिरुवनंतपुरम में रूसी सांस्कृतिक केंद्र में हर दिन दोपहर 3 बजे होता है.

गोर्की भवन के नाम से मशहूर हॉल के बीचो-बीच एक रंगीन लॉटरी मशीन रखी है. ड्रॉ की घोषणा रोजाना चार आधिकारिक टीवी चैनलों के साथ-साथ सरकारी विभाग के यूट्यूब चैनल पर की जाती है. हर दिन नई जूरी सेट की जाती है. इस पैनल में निर्वाचित अधिकारी या महत्वपूर्ण पंचायत/जिला स्तर के नेता शामिल होते हैं जिन्हें विशेष रूप से बजर दबाने के लिए आमंत्रित किया जाता है. बजर उंगली से धकेलने के फॉर्स के प्रति भी संवेदनशील होता है, इसलिए खराबी को रोकने के लिए इसे रोजाना रीसेट किया जाता है.

आधिकारिक घोषणा के बाद- धोखाधड़ी रोकने के मकसद से मशीन टेस्टिंग की एक लंबी प्रक्रिया की जाती है, जो घड़ी की तरह काम करती है. जज बारी-बारी से टेबल पर बजर को दबाते और पास करते हैं. डिपार्टमेंट के प्रतिनिधि बाज की निगाहों की तरह कार्यवाही पर नज़र बनाए रखते हैं और सब कुछ नोट करते हैं.

एक बार लकी नंबर निकल जाने के बाद, सूची को सरकार की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाता है, फिर इसे पूरे केरल में एजेंटों और विक्रेताओं द्वारा डाउनलोड और प्रिंट किया जाता है.

40-वर्षीय जयथि स्टेशनरी की दुकान पर अपनी सूची छपवाती हैं जो उनके लॉटरी स्टॉल पर भीड़ को बढ़ाएगा. उन्होंने कोच्चि के पलारीवट्टोम में लॉटरी टिकट बेचना शुरू किया, क्योंकि उनके पति के शरीर में नसों की ब्लॉकेज के कारण उनका काम करना मुश्किल हो गया है. दैनिक लॉटरी ईनामों में वृद्धि का उल्लेख करते हुए, जो संभावित विजेताओं के बीच जैकपॉट को और विभाजित कर रहा है, जयथि ने कहा, “इन दिनों ईनाम कम हो गए हैं, इसलिए लोग टिकट खरीदने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “मुझे लगता है कि लोग एक बड़ी ईनाम राशि जीतेंगे, लेकिन अगर कोई छोटी राशि जीतता है, तो वो निश्चित रूप से बड़ी राशि की संभावनाओं की खातिर लौटेंगे,” वो आगे बताती हैं, “दिन का ड्रॉ तय होने के बाद शाम तक उसकी बिक्री कम हो जाती है.”

जयथि ने बताया, “सरकार भी लॉटरी के बारे में छोटी-छोटी चीजें बदलती रहती है. ऐसे लोग हुआ करते थे जो नकली टिकटों को धोखा देने और बेचने की कोशिश करते थे, लेकिन अब यह चलन कम हो गया है.”

इस बदलाव का श्रेय श्रीधर और उनके द्वारा टिकटों में किए गए कई सुरक्षा जांचों को दिया जा सकता है. हर दिन एक अलग रंग – रविवार को लाल रंग, सोमवार को पीला, मंगलवार को गुलाबी, बुधवार को हरा, गुरुवार को सियान नीला, शुक्रवार और शनिवार को नारंगी और शनिवार बैंगनी रंग के टिकट बेचे जाते हैं. सुरक्षा बारकोड, क्यूआर कोड – विशिष्ट ड्रॉ नंबर भी लगाए जाते हैं. उन्होंने फ्लोरोसेंट मोटिफ्स भी शुरू किए हैं जिन्हें फोटोकॉपी या डुप्लिकेट नहीं किया जा सकता. प्रिंटिंग प्रक्रिया के दौरान टिकट नंबर जोड़े जाते हैं.

श्रीधर तिरुवनंतपुरम में लगभग दो महीने पहले टिकट डिजाइन करते हैं. ड्रॉ की तारीख से कम से कम दो सप्ताह पहले दैनिक ड्रॉ के टिकट विभाग के जिला कार्यालय में भेज दिए जाते हैं. जिला लॉटरी कार्यालय तब विक्रेताओं को थोक में दैनिक ड्रा टिकट वितरित करता है, जो जयथि जैसे एजेंटों को कम मात्रा में आपूर्ति करते हैं.

श्रीधर के लिए, यह सब खुद लॉटरी टिकट खरीदने से शुरू हुआ. संयोग से, 2007 में लॉटरी विभाग में नौकरी के इंटरव्यू के लिए जाते समय, एक लॉटरी विक्रेता ने उनसे संपर्क किया. उन्होंने सोचा कि वो संदर्भ के लिए दिन के टिकट के साथ इंटरव्यू के लिए बेहतर ढंग से तैयार होंगे, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह रही कि उन्होंने इसे एक संकेत के रूप में देखा. श्रीधर ने टिकट खरीदा और किस्मत से इसे साथ लेकर इंटरव्यू के लिए गए. उन्हें नौकरी मिल गई और उन्होंने 5,000 रुपये का ईनाम जीता. तब से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.


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केरल की लॉटरी सीढ़ी

लॉटरी सीढ़ी के चार मुख्य पायदान हैं: टिकट खरीदार, एजेंट, विक्रेता और सरकार- और इस पर चढ़ने के लिए आपको सिर्फ लक की ज़रूरत है.

व्यस्त कोच्चि चौराहे पर, 27-वर्षीय अखिल और उनके दो दोस्त एक लॉटरी स्टैंड की देखरेख करते हैं. उनके पिता द्वारा शुरू किया गया स्टॉल एक फूल की दुकान और 48-वर्षीय शाजी द्वारा चलाए जा रहे एक अन्य लॉटरी स्टैंड के बीच में बना है, लेकिन अखिल कहते हैं कि उनके बीच कोई मुकाबला नहीं है. दोनों ग्राहकों के लिए इंतज़ार करते हैं. आशावादी खरीदार दोनों दुकानों के बीच घूमते हैं, उन्हें विक्रेता टिकट नंबर चुनने की अनुमति देते हैं जो उनके जीवन को बदल सकता है.

असम का एक प्रवासी मजदूर हुसैन शाजी के स्टॉल से टिकट लेने का फैसला करते हैं. शाजी उनका स्वागत करते हैं और हुसैन को अपनी पसंद चुनने देने के लिए अपनी आंखे बंद कर लेते हैं. हुसैन एक दिन में दो टिकट खरीदते हैं और शाजी उनकी जटिल गणना और सावधानीपूर्वक चयन के लिए उन्हें चिढ़ाते हैं. हुसैन द्वारा 80 रुपये से अधिक दिए जाने के बाद शाजी कहते हैं, “जब मैं टिकट बेचता हूं तो मेरा दिल थोड़ा तेज धड़कता है.”

दैनिक लॉटरी के लिए एक टिकट की कीमत 40 रुपये होती है, जबकि विशेष बंपर की कीमत पुरस्कार पॉट के अनुसार बदलती रहती है. 10 करोड़ रुपये के बंपर टिकट को खरीदने के लिए 250 रुपये और प्रतिष्ठित ओणम बंपर के लिए 300 रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जो ईनाम राशि के रूप में 25 करोड़ रुपये तक दिलवा सकते हैं.

उन्होंने आगे कहा, “मुझे लगता है कि मैं छोटे लोगों को सपने बेच रहा हूं. मैं जब इसे बेचता हूं, तो प्रार्थना भी करता हूं.”

अखिल ने कहा, “टिकट खरीदने वाले लोग निम्न स्तर के गरीब लोग होते हैं. बहुत सारे दिहाड़ी मजदूर लॉटरी टिकट खरीदते हैं बड़े, अमीर लोग केवल बंपर टिकट खरीदते हैं क्योंकि वो अधिक महंगे होते हैं.”

शाम के पांच बजे अखिल अगले दिन के टिकटों का ढेर लगाने के लिए अपने स्टॉल के पीछे के छोटे से ऑफिस में जाता है – और दिन के टिकटों को कुचल कर कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है. केरल सरकार हर दिन दोपहर 3 बजे ड्रॉ निकालती है और लोग ये देखने के लिए अपनी सांस थामे रखते हैं कि कौन जीतने वाला है. स्टाल मालिक और विक्रेता जीतने वाले नंबरों की एक सूची प्रिंट करते हैं और उन्हें पढ़ने के लिए चस्पा करते हैं. हर शाम, अगले दिन की सफलता का वादा खत्म हो जाता है.

अखिल और शाजी के स्टॉल के पास वाला चौराहा सैकड़ों मजदूरों के लिए रोजाना मिलने का एक बिंदु है. पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के ड्राइवर सुदाम बर्मन अखिल से पांच टिकट खरीदते हैं. वो अपने मूड के हिसाब से रोजाना 200 से 250 रुपये खर्च कर इस पैसे से घर बनाने की योजना बनाते हैं. इस बीच, आंध्र प्रदेश के अनंतपुर के एक मजदूर के. आनंद को अपने द्वारा खरीदे गए चार टिकटों के साथ अपनी सरल महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की उम्मीद है. वो कहते हैं, “मैं इस पैसे का क्या करूंगा घर अनंतपुर) जाऊंगा.”

कुछ लोगों का कहना है कि लॉटरी सिस्टम ने एक ऐसी आबादी पैदा की है जो किस्मत पर निर्भर है. इससे पहले, टिकट विकलांग लोगों द्वारा बेचे जाते थे या जो शारीरिक श्रम नहीं कर सकते थे. आज, अखिल जैसे शिक्षित युवा – जिनके पास बीए की डिग्री है और वो ठीक-ठाक अंग्रेज़ी बोल सकते हैं ने भी अलग-अलग करियर बनाने के बजाय लॉटरी टिकट बेचने का विकल्प चुना है.

तिरुवनंतपुरम के गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड टैक्सेशन के पूर्व फैकल्टी और लॉटरी इकॉनमी पर बड़े पैमाने पर शोध करने वाले अर्थशास्त्री डॉ. जोस सेबेस्टियन कहते हैं, “लोगों की अपनी नियति खुद तय करने की संस्कृति होनी चाहिए.” उन्होंने कहा, “सरकार को इस गलत संदेश का प्रचार नहीं करना चाहिए कि भाग्य ही जीवन में मायने रखता है.”


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केरल लॉटरी पर निर्भर क्यों है?

सरकार के लिए, लॉटरी केवल मनोरंजन का एक रूप नहीं है बल्कि केरल की अर्थव्यवस्था की “रीढ़” है.

लॉटरी विभाग द्वारा प्रकाशित दिसंबर 2022 के पैम्फलेट में लिखा है, “लॉटरी टिकट एक व्यक्ति की उम्मीद है कि एक दिन उसके लिए सौभाग्य आएगा. लॉटरी जीवन का एक हिस्सा है.” आगे लिखा है, “जब कोई लॉटरी टिकट खरीदता है, तो यह न केवल भाग्य की परीक्षा है बल्कि राज्य के स्वास्थ्य और कल्याण में भी योगदान है.”

केरल सरकार लॉटरी की एकमात्र संचालक है, जिसका 1967 में राष्ट्रीयकरण किया गया था. सरकार ने वर्ष 2021-22 में कुल 7,145 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया, जिससे लगभग 560 करोड़ रुपये का लाभ हुआ. यह सरकार द्वारा कमाए गए प्रत्येक 100 रुपये पर 7 रुपये का लाभ है. 2023-24 के लिए लक्षित कारोबार 10,000 करोड़ रुपये है.

सेबेस्टियन के अनुसार, भारत में तेरह राज्य लॉटरी चलाते हैं, लेकिन अकेले केरल में इन टिकटों से राज्सव का कुल 90 प्रतिशत हिस्सा आता है.

लॉटरी विभाग के प्रचार अधिकारी बीटी अनिल कहते हैं, “केरल के पास पर्याप्त धन नहीं है – इसलिए लॉटरी राज्य के लिए कल्याण निधि विभाग के रूप में कार्य करती है. पैसा राज्य में लोगों की देखभाल करने में जाता है. साथ ही, जो लोग शारीरिक श्रम से कमाने में सक्षम नहीं हैं, वे टिकट बेचकर अपना जीवन यापन कर सकते हैं.”

लेकिन पैसे के इस खेल में भी शेयरिंग है. अनिल ने बताया, “सरकार सुनिश्चित करती है कि इस सीढ़ी पर चढ़ने वाला हर व्यक्ति लॉटरी से पैसा कमाए.”

सेबस्टियन के अनुसार, लगभग 1.5 लाख लोग केरल के लॉटरी व्यवसाय से जीविकोपार्जन करते हैं. यदि कोई व्यक्ति टिकट जीतता है, तो उसे बेचने वाले एजेंट को भी ईनाम राशि का एक हिस्सा मिलता है – जिससे पारिस्थितिकी तंत्र में उनकी भूमिका को प्रोत्साहन मिलता है.

उन्होंने कहा,“लॉटरी का प्राथमिक लक्ष्य लॉटरी पारिस्थितिकी तंत्र में काम करने वाले लोगों के लिए आजीविका सुनिश्चित करना है.”

लगभग दो साल पहले विभाग का कार्यभार संभालने वाले राज्य लॉटरी रेन अब्राहम के निदेशक कहते हैं. “ऐसा करने की प्रक्रिया में, राज्य को कुछ राजस्व भी मिलता है.”

अब्राहम के अनुसार, लॉटरी कागज पर बहुत पैसा कमाती है – लेकिन लगभग सभी को ईनाम और एजेंट को इसका पैसा दे दिया जाता है. विभाग के अधिकारियों के अनुसार, प्रतिदिन 1.8 करोड़ टिकटों की छपाई की लागत घटकर 80 लाख रुपये रह जाती है. अत: राजकोष में शेष बची राशि कम होती है.

टिकटों की बिक्री की मात्रा का जिक्र करते हुए अब्राहम कहते हैं, “लॉटरी शुरू होने के बाद से राज्य की संस्कृति का एक अभिन्न अंग रही है. बहुत सारे लोग हैं इस पर निर्भर हैं और पिछले कुछ वर्षों में इसमें रुचि बढ़ी है. यह लॉटरी के लिए अच्छा संकेत देता है.”


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जूरी अभी भी बाहर है

आलोचकों का कहना है कि लॉटरी की लत को प्रोत्साहित करने के लिए रोजगार प्रदान करना उचित नहीं है.

इसे “हास्यास्पद” बताते हुए, सेबेस्टियन कहते हैं, जब यह रोजगार प्रदान करता है, तो बहुत कम लोग ईनाम जीत पाते हैं, तो अगर तर्क यह है कि सरकार को इससे ज्यादा राजस्व नहीं मिल रहा है तो वो लॉटरी चला क्यों रही है? वे कहते हैं, “दांव बढ़ाने के बजाय, सरकार को गरीबों पर पड़ने वाले प्रभाव का आलोचनात्मक विश्लेषण करना चाहिए.”

सेबस्टियन का शोध इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि केरल समाज के सभी वर्ग समान रूप से लॉटरी के आदी नहीं हैं. अमीर बहुत अधिक टिकट नहीं खरीदते हैं. लॉटरी टिकटों पर प्रति व्यक्ति व्यय एकत्र किए गए आंकड़ों के अनुसार, उन्होंने पाया कि मलप्पुरम, कासरगोड, कोझिकोड और वायनाड जैसे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बिक्री अन्य जिलों की तुलना में कम है – संभवतः इसलिए कि लॉटरी को “हराम” के रूप में देखा जाता है. इसी तरह, ईसाई समुदाय के समृद्ध वर्ग भी लॉटरी पर ज्यादा खर्च नहीं करते हैं. उनका साक्ष्य-आधारित निष्कर्ष यह है कि हिंदुओं में गरीब तेजी से लॉटरी के आदी होते जा रहे हैं.

सेबस्टियन ने कहा, “मलयाली अधिक पढ़े-लिखे वामपंथी, राजनीतिक रूप से संगठित लोग हैं. इसके बावजूद लोग बड़ी संख्या में भाग्य के पीछे भाग रहे हैं. यह गरीबों के लिए कठिनाई पैदा कर रहा है और उनका शोषण किया जा रहा है. गरीबों के लिए प्रतिबद्ध सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए – यह उनकी ओर से अपकार है.”

भाग्य पर यह मनोवैज्ञानिक निर्भरता हजारों लोगों को इस उम्मीद में टिकट खरीदने के लिए उकसाती है कि उनके सपने सच होंगे. हर कोई – एजेंट, उप-एजेंट, विक्रेता और खरीदार – इस बात से आश्वस्त हैं कि एक दिन हालात उनके पक्ष में होंगे और अगर चीजें योजना के अनुसार नहीं होती हैं, तो उनकी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है, ठीक वैसे ही जैसे रद्दी टिकटों को हर दिन दोपहर 3 बजे के बाद या तो खोदकर निकाल लिया जाता है या फेंक दिया जाता है.

केरल की अर्थव्यवस्था लॉटरी, शराब और ज़मीन और यातायात उल्लंघन से एकत्रित धन पर चलती है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सेबस्टियन के शोध के अनुसार, राज्य के कुल राजस्व में लॉटरी और शराब का योगदान लगभग 37 प्रतिशत है. कोच्चि के सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रिसर्च के चेयरमैन डी. धनुराज ने बताया, अगर इनमें से कोई भी राजस्व जुटाने के ढांचे से बाहर जाता है, तो राज्य बड़ी मुसीबत में पड़ जाएगा.

धनुराज बताते हैं, “यह एक अदृश्य कराधान व्यवस्था की तरह है. राज्य अप्रत्यक्ष रूप से लॉटरी के गुणों को लोकप्रिय बनाकर जनता पर टैक्स लगा रहा है और इस प्रकार उन्हें अन्य सामान प्रदान करने के लिए लॉटरी खरीदने के लिए आकर्षित कर रहा है. अगर कराधान का विचार राज्य के खर्च को पूरा करने के लिए है, तो लॉटरी भी उसी उद्देश्य को पूरा कर रही है.”

उन्होंने जोर देकर कहा कि यह एक आदर्श समाजवादी दुनिया को बनाए रखने के लिए राज्य सरकार द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक टूल है.

उन्होंने आगे कहा, “यह शिक्षा या अन्य बुनियादी प्रावधानों की तरह नहीं है जो राज्य को प्रदान करना चाहिए. सरकार ईनाम राशि पर जीएसटी भी लगाती है जो एक अतिरिक्त उपकर और अतिरिक्त कराधान है. यह केवल भ्रमपूर्ण विचार को आगे बढ़ा रहा है कि लॉटरी जीतने से गरीबी दूर हो जाएगी.”

यहां विरोधाभास ये है कि जो राज्य अपने समाजवादी ढांचे पर गर्व करता है, लॉटरी जैसी मनमानी प्रणाली से राजस्व प्राप्त कर रहा है जो स्वेच्छा से इसमें भाग लेते हैं, उन्हें इससे नुकसान नहीं होता है.

तिरुवनंतपुरम के मन्नारकाड जंक्शन पर 6 विक्रेताओं में सबसे छोटे स्टॉल वाले 62-वर्षीय एजेंट मोहम्मद सलीम ने तीन साल पहले स्ट्रोक का सामना करने के बाद लॉटरी टिकट बेचना शुरू कर दिया. स्ट्रोक के कारण उनके हाथों में कंपन होने लगी, जिससे वह वेटर की नौकरी नहीं कर सकते थे.

उन्होंने कहा, “कभी-कभी यह तनावपूर्ण होता है, कभी-कभी ऐसा नहीं होता. यह कहना अजीब है कि मुझे लगता है कि इस नौकरी में कोई जोखिम नहीं है – मुझे पता है कि यह जोखिम और किस्मत का खेल है, लेकिन यह जोखिम रहित है क्योंकि हर कोई बेहतर जीवन चाहता है. मुझे पता है कि मुझे हर दिन कुछ पैसे मिलेंगे कोई न कोई मुझे उनकी जिंदगी बदलने का मौका देना चाहेगा.”

विजेता क्या करते हैं

लॉटरी के आकस्मिक विजेता – विशेष रूप से ओणम बंपर जैसे बड़े ईनाम, जिसमें 25 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा पुरस्कार है – उन्हें वित्तीय सहायता के लिए प्रतिदिन औसतन 4,000 संदेश आते हैं, कभी-कभी यह कर्ज के लिए होता है; कभी यह मेडिकल बिल के लिए होता है.

2022 के ओणम बंपर विजेता अनूप के पास मदद के लिए इतने अनुरोध आए कि उन्होंने कॉल और मैसेज का जवाब देना ही बंद कर दिया. उन्होंने और उनके भाई ने तिरुवनंतपुरम में एक लॉटरी की दुकान भी खोली है, ताकि उस व्यवस्था को ट्रिब्यूट दिया जा सके जिसने उन्हें इतना कुछ दिया.

2021 के विजेता, जयपालन पीआर, एक ऑटो चालक हैं, जो कोच्चि के मराडू में रहते हैं. उनका इनाम 12 करोड़ रुपये था और उन्हें 4 करोड़ रुपये से ज्यादा का टैक्स चुकाना था. उनकी जीत के बाद उनका जीवन ज्यादा नहीं बदला है. वे अपने बेटों, पत्नी और बुजुर्ग मां के साथ उसी घर में रहते हैं.

दो मंजिला घर सरल और सादा है – उन्होंने बंपर पैसे से इसे बनाने के लिए लिए गए कर्ज का भुगतान किया. जयपालन उन गिने-चुने लोगों में से एक हैं जिन्होंने अपनी ईनाम राशि का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग किया. उन्होंने कर्ज निपटाया, एर्नाकुलम में दो भूखंड खरीदे और अपनी पत्नी के ट्यूमर के लिए मेडिकल देखभाल उपलब्ध कराने में सक्षम बने. वह अभी भी एक ऑटो चलाते हैं, लेकिन उन्होंने और उनके बेटे ने बंपर के हिस्से का इस्तेमाल सूखे, ठीक किए गए झींगों को बेचने के लिए एक व्यवसाय शुरू करने के लिए किया, जिसके बारे में उनका कहना है कि वो बंद हो रहा है.

अपने बेटे के साथ बेठै जयपालन ने कहा, “नहीं, हमने सोने या अन्य फैंसी चीजों पर खर्च नहीं किया. हमारे पास पहले से ही वो सब है जिसकी हमें जरूरत है, भगवान और शुभकामनाओं का धन्यवाद.” परिवार खुश और सुरक्षित लग रहा है, हालांकि ईनाम जीतने के बाद उनकी तरफ बहुत अधिक ध्यान दिया गया – उन्हें याद है कि जीतने के तुरंत बाद अनूप ने उन्हें फोन करके पूछा कि इसे कैसे संभालना है.

सरकार चाहती है कि अधिक से अधिक लोग उनके उदाहरण का अनुसरण करें और वे इस उद्देश्य के लिए गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड टैक्सेशन में एक वित्तीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन करने की योजना बना रहे हैं. इसका उद्देश्य विजेताओं को अपने पैसे का बुद्धिमानी से उपयोग करने में मदद करना है – जैसे कि सरकार की ओर से ‘जिम्मेदारी से पीने’ का संदेश.

जो रकम बची थी, उसे जयपालन ने फिक्स्ड डिपॉजिट में डाल दिया, लेकिन कितना? वे शर्माते हुए मुस्कुराते हैं और कंधे उचका देते हैं. “पर्याप्त है.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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