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Tuesday, 7 May, 2024
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रामग्राम, देवदह- भारत और नेपाल पेश कर रहे हैं बुद्ध के अवशेषों को लेकर अपने-अपने दावे

यूपी के महाराजगंज से इन दो स्थलों की खुदाई करने के लिए कहा गया है. इन जगहों पर भगवान बुद्ध का ननिहाल और वहां एक स्तूप होने का दावा किया जाता रहा है. उधर नेपाल ने भी अपने रामग्राम में खुदाई शुरू कर दी है.

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प्राचीन शहर कपिलवस्तु पर भारत और नेपाल दोनों ही अपना-अपना दावा करते आए हैं. अब इस कड़ी में देवदह और रामग्राम साइटों का भी नाम जुड़ गया है. दरअसल महाराजगंज जिला प्रशासन ने जिले के इन दोनों स्थानों पर खुदाई और विकास का काम शुरू के लिए एक प्रस्ताव भेजा है.

माना जाता है कि बुद्ध ने अपने बचपन के कुछ साल देवदह में बिताए थे और यह उनकी मां माया देवी और चाची महाप्रजापति गौतमी की जन्मभूमि है. बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, ‘रामग्राम’ वह जगह है जहां बुद्ध के अवशेषों के आठवें हिस्से को रखा गया था. यह स्तूप अभी तक अपने मूल रूप में है और उसके साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं की गई है.

उधर नेपाल ने भी अपने देवदह नगरपालिका क्षेत्र के कुछ इलाकों में खुदाई की है. यूके और नेपाल के पुरातत्व विभाग के पुरातत्वविदों की एक टीम ने रामग्राम साइट का दो बार 1997 और 1999 में जियोफिजिकल इवैल्यूशन किया था.

नेपाल सरकार ने लुंबिनी यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के आसपास के क्षेत्रों को विकसित करने की योजना बनाई है और रामग्राम साइट को विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध करने का भी प्रस्ताव दिया है.


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बुद्ध के पवित्र अवशेष और उनका ननिहाल

1899 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पूर्ण चंद्र मुखर्जी ने नेपाल के तिलौराकोट में खुदाई का नेतृत्व किया था. इसे व्यापक रूप से प्राचीन कपिलवस्तु माना जाता रहा है, जहां बुद्ध सांसारिक सुखों को त्यागने से पहले अपने माता-पिता राजा शुद्धोदन और रानी माया के साथ रहा करते थे. बाद में एएसआई ने जब खुदाई की तो उसने भारत के उत्तर प्रदेश में पिपराहवा को कपिलवस्तु के रूप में इंगित किया था.

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चीनी यात्रियों फा हेन और ह्वेन त्सांग ने भी अपने यात्रा वृतांत में देवदह और रामग्राम स्थलों के साथ कपिलवस्तु का जिक्र किया हुआ है.

लुंबिनी डेवलपमेंट ट्रस्ट की आधिकारिक वेबसाइट ‘देवदह’ का जिक्र रानी माया, बुद्ध की चाची गौतमी और बुद्ध की पत्नी यशोधरा की जन्मभूमि के रूप में करती है. वेबसाइट में इस जगह को ‘कोलिया साम्राज्य की प्राचीन राजधानी’ बताया गया है, जहां सिद्धार्थ ने अपने बचपन के कुछ साल बिताए थे.

वेबसाइट के मुताबिक, ‘1996 में यूनेस्को की विश्व धरोहर संपत्ति की टेंटेटिव लिस्ट में सूचीबद्ध, रामग्राम पुरातात्विक और तीर्थ स्थल के तौर पर जाना जाता है. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहां मौजूद स्तूप, एकमात्र ऐसा स्तूप है जिसे तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक ने छेड़ा नहीं था और यहां भगवान शाक्यमुनि बुद्ध के शरीर के अवशेष अभी भी मौजूद हैं. बुद्ध के आठ अवशेष स्तूपों में से यह एकमात्र ऐसा स्तूप है जो अभी भी अपने मूल रूप में है.’

नेशनल ट्रस्ट फॉर प्रमोशन ऑफ नॉलेज, लखनऊ द्वारा प्रकाशित इंडियन जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजी में लिखा है कि ह्वेन त्सांग के 7वीं शताब्दी में भारत की उनकी यात्रा वृत्तांत में रामग्राम का जिक्र किया गया था.

पत्रिका के मुख्य संपादक विजय कुमार महाराजगंज जिले में पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्यरत थे. उन्होंने 1996 में, कृष्णानंद त्रिपाठी, क्यूरेटर, पुरातत्व संग्रहालय, प्राचीन इतिहास, पुरातत्व और संस्कृति विभाग, दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के साथ मिलकर, जिले भर में पाए गए विभिन्न पुरातात्विक स्थलों और पुरावशेषों की सूची तैयार की.

पत्रिका में उल्लेख दिया गया है, ‘बुद्ध के जन्म स्थान से पूर्व की ओर पंच योजन यात्रा करते हुए रामग्राम नामक एक देश पड़ता था, जिसके राजा ने बुद्ध की राख से अवशेषों का एक हिस्सा (एक-आठवां) प्राप्त किया और वहां एक पगौड़े का निर्माण करवाया.’

इसमें आगे रामग्राम में स्तूप से अवशेषों को फिर से खोजने के अशोक के असफल प्रयास का भी जिक्र किया गया है. इसमें लिखा है कि एक सांप या अजगर इस स्तूप की रक्षा करते थे.

महाराजगंज पर्यटन स्थल

पिछले दो दशकों से स्थानीय लोग मांग करते आ रहे हैं कि बनारसीहन कलां गांव (जिसे वे देवदह होने का दावा करते हैं) और धर्मौली गांव (जिसे वे रामग्राम होने का दावा करते हैं) की खुदाई और विकास किया जाए. यहां देवदह बौद्ध विकास समिति और रामग्राम बौद्ध विकास समिति का गठन किया गया है.

The road to Ramgram: from the Chowk nagar panchayat to site of Ramgram ‘stupa’ | Shikha Salaria, ThePrint
रामग्राम की सड़क: चौक नगर पंचायत से रामग्राम के स्तूप स्थल तक जाने का रास्ता/ फोटो: शिखा सलारिया/दिप्रिंट

महाराजगंज के जिलाधिकारी सतेंद्र कुमार ने दोनों स्थलों की खुदाई के लिए राज्य के पुरातत्व विभाग को पत्र लिखा है.

गोरखपुर के क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी रवींद्र कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘इससे पहले भी, बनारसीहन कलां के एक स्थल में कुछ खुदाई की गई थी. तब यहां से कई प्राचीन वस्तुएं मिलीं थीं.’

अपने हिस्से का काम करते हुए यूपी राज्य पुरातत्व विभाग ने बनारसीहन कलां स्थल को ‘संरक्षित’ घोषित किया और इसकी खुदाई के लिए एएसआई को एक प्रस्ताव भी भेजा है.

यूपी पुरातत्व विभाग की निदेशक रेणु द्विवेदी ने कहा, ‘1991 में एएसआई की पटना के एक्सकैवेशन विभाग ने बनारसीहन कलां स्थल पर एक ट्रायल ट्रेंचिंग की थी. खुदाई के दौरान उन्हें एक ईंट से बना स्तूप, टेराकोटा वस्तुएं, सीलिंग, पशुओं की मूर्तियां, मोती, गेंद, मोल्ड, चूना पत्थर से बना बोधिसत्व के सिर का एक हिस्सा, और शुंग-कुषाण काल के सिक्के आदि मिले थे. लाइसेंस मिलने के बाद, अब हम आगे और खुदाई करने के बारे में विचार बना रहे हैं. इसके लिए प्रस्ताव रखा गया है.’

एएसआई का कहना है कि स्थानीय लोगों के दावों को मान्यता तभी दी जा सकता है जब खुदाई से ठोस सबूत मिलेंगे.

एक अधिकारी ने बताया, ‘नेपाल ने अपने देवदाहा और रामग्राम स्थलों को पहले विकसित किया था और उसके बाद यूनेस्को टेंटेटिव लिस्ट ऑफ वर्ल्ड हेरिटेज प्रॉपर्टी में सूचीबद्ध करने के लिए कदम बढ़ाए. पुरातत्व साक्ष्य पर आधारित है और अब तक हमारे पास महाराजगंज निवासियों के दावों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं.’

यूपी पुरातत्व विभाग के सूत्रों ने बताया कि स्टाफ की कमी के चलते फिलहाल वे अभी धर्मौली का सर्वे नहीं कर पाएंगे.

हालांकि, जिला प्रशासन ने यूपी-पर्यटन विभाग इन दो जगहों को पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित करने के लिए कुल 11 करोड़ रुपये – रामग्राम के लिए 8 करोड़ रुपये और देवदहा के लिए 3 करोड़ रुपये- के लिए एक प्रस्ताव भेजा है.

15 नवंबर को जिला प्रशासन ने सोहागी बरवा वन्यजीव अभयारण्य और आसपास के स्थानों को कवर करते हुए जंगल सफारी शुरू की और दो रास्तों पर आवाजाही शुरू कर दी है. इनमें से एक में रामग्राम साइट भी शामिल है.

यूपी पर्यटन विभाग के निदेशक प्रखर मिश्रा ने कहा कि प्रपोजल का अध्ययन किया जाएगा और उसी के आधार पर अनुमानित उचित राशि अप्रूव की जाएगी.’

बुधवार को यूपी सरकार ने नई पर्यटन नीति को मंजूरी दी थी, जिसमें रामायण सर्किट, कृष्णा सर्किट और बौद्ध सर्किट की परिकल्पना की गई है.

बौद्ध सर्किट उन शहरों के विकास का गवाह बनेगा जहां गौतम बुद्ध को अपने जीवन के कुछ हिस्से बिताने के लिए जाना जाता है. इनमें कपिलवस्तु, सारनाथ, कुशीनगर, कौशाम्बी, श्रावस्ती और रामग्राम शामिल हैं.

उन्होंने कहा, ‘पिलर जमीन के नीचे काफी गहराई में है. अगर इस इलाके को खोदा जाता है, तो हमें और भी बहुत कुछ मिल सकता है. बौद्ध ग्रंथों के मुताबिक, रामग्राम का स्तूप लगभग 2500 वर्ष पुराना है. पाँच तालाबों की उपस्थिति त्सांग द्वारा दिए गए विवरण से मेल खाती है. दो तालाब सूख गए हैं, जबकि बाकी में पानी भरा है.’

महाराजगंज डीएम ने कहा कि जिस जंगल के अंदर रामग्राम स्तूप स्थित है, उसके आस-पास पर्यटक सुविधाओं को विकसित करने का प्रस्ताव दिया गया है. मंजूरी मिलने पर कॉटेज, मेडिटेशन सेंटर, गेस्ट हाउस, तालाब और एक जलस्रोत का निर्माण कराया जाएगा.

उन्होंने बताया, ‘रामग्राम में दो भूखंडों में लगभग तीन एकड़ जमीन है- एक भूखंड में ध्यान केंद्र होगा और दूसरा जंगल सफारी के लिए होगा.’

शिव, कृष्ण, बुद्ध

महाराजगंज के सोहागी बरवा वन्यजीव अभयारण्य से लगभग 58 किलोमीटर दूर धर्मौली गांव के जंगल के अंदर एक टीले पर एक श्लीचेरा पेड़ के नीचे स्थित, ‘स्तूप’ एक फीट लंबा काला ढांचा है.

मिट्टी के अंदर गहरे दबे हुए एक प्राचीन ढांचे के अवशेष नजर आते हैं जो संभवत: ईंटों से बने हैं. स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह पर्यावरण और बाढ़ सहित प्राकृतिक आपदाओं से क्षतिग्रस्त हो गया है.

पास के एक गांव में रहने वाले त्रिलोकीनाथ ने कहा, ‘पहले स्थानीय लोग कहते थे कि इस जगह पर एक शिवलिंग है और यह पिलर (स्तूप) भगवान शिव से जुड़ा है. करीब 10 साल पहले एक स्वयंभू साधु ने यहां एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर लोगों को बताया था कि यह स्थान कृष्ण से जुड़ा है. बुजुर्ग इसे कन्हैया बाबा का स्थान कहते थे. जब लोगों को पता चला कि उनका इरादा जमीन पर अवैध कब्जा करने का है, उनकी झोपड़ी में आग लगा दी गई. लेकिन अब हम जान गए हैं कि यह बुद्ध ननिहाल है.’

आस-पास की बस्तियों से गांव के लोग फूल चढ़ाने के लिए यहां आते हैं. यहां पूरे साल बौद्ध भक्तों खासतौर पर कुशीनगर, महाराजगंज और गोरखपुर जिलों से आने वालों का सिलसिला लगा रहता है.

रामग्राम बौद्ध विकास समिति के अध्यक्ष फिरोज कुमार भारती ने कहा कि पुराने ढांचे के अवशेषों में बुद्ध के अवशेषों के साथ मुख्य कलश (बर्तन) है.

लेकिन वरिष्ठ पुरातत्वविद इस बारे में कुछ भी कहने से पहले खुदाई के जरिए सबूत मांगते हैं.

बिहार हेरिटेज डेवलपमेंट सोसाइटी में पुरातात्विक परियोजनाओं के समन्वयक डॉ अरुण कुमार, जो बौद्ध स्थलों से जुड़ी कई परियोजनाओं का हिस्सा रहे हैं, ने कहा कि चूंकि भारत प्राचीन काल में एक बहुत बड़ा देश था और वर्तमान में नेपाल भी भारत का हिस्सा था, ऐसे दावे पैदा होना बड़ी बात नहीं है.

‘जब हम पुरातात्विक नजरिए से बात करते हैं, तो हमें यह देखना होगा कि उस समय नेपाल भारत का हिस्सा था. हमारे पास ऐसे दावों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है. इसी कारण कुशीनगर का स्थान अभी भी विवादित है. जब तक खुदाई पूरी नहीं हो जाती और हमें सबूत नहीं मिलते, ऐसे दावों को साबित कर पाना असंभव है.’

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या)

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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