माया देवी 80 साल की हैं और वो इतिहास रचने के लिए तैयार हैं, वो कुछ ऐसा करने वाली हैं जो किसी ने पहले नहीं किया है. वो बरसाने में मौजूद राधा रानी के मंदिर में मुख्य सेवादार के पद पर पहुंची है. इस मंदिर में यहां तक पहुंचने वाली वो पहली महिला सेवादार हैं. लेकिन इसी के साथ उन्हें ढ़ेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है..
फिलहाल वो एक पारिवारिक और कानूनी लड़ाई में उलझी हुई हैं. लड़ाई 400 साल पुराने राधा रानी मंदिर में सेवादार के पद को लेकर है. सेवादार यानी मंदिर का मुख्य पुजारी. इस लड़ाई के नतीजे मंदिर में परुषों के ही सेवादार बनने की परंपरा के लिए बड़ा बदलाव साबित हो सकती है.
सफेद साड़ी में मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी माया देवी कहती हैं, ‘मैं एक औरत हूं और मेरे परिवार में कोई नहीं इसलिए वे मुझे टारगेट कर रहे हैं.’ माया देवी फिलहाल अपने पति हरिवंश गोस्वामी की जगह सेवा कर रही हैं, जिनकी मृत्यु 1999 में हो गई थी . माया देवी उनकी दूसरी पत्नी हैं. हरिवंश गोस्वामी जी के बच्चे नहीं थे तो सारे अधिकार माया देवी के पास आ गए. लेकिन जब माया देवी ने अपने अधिकार मांगने के लिए मंदिर में सेवादार का पद संभाला तो हरिवंश के परिवार वाले माया देवी को फ्रॉड बताने लगे.
‘माया देवी इस पर कहती हैं, इस पद पर आना मेरा अधिकार है. मैं 60 साल से श्री लाडली जी की सेवा कर रही हूं. अब मेरे पास उनके करीब रहने का मौका है तो मैं ये किसी और को क्यों दूं?’
हरिवंश के परिवार के सदस्यों का दावा है कि माया देवी के दिवंगत पति का भतीजा पद का असली उत्तराधिकारी है, और अदालत में यह शिकायत भी की है कि मायादेवी छल से पद हड़पना चाहती हैं.
हालांकि, कर्नाटक और केरल जैसे कुछ दक्षिणी राज्यों में, कुछ महिलाएं पुजारी के रूप में काम कर रही हैं, लेकिन उत्तर भारत में यह दुर्लभ है. मथुरा के मंदिरों में पुरुष पुजारियों की पकड़ है. पिछले साल तमिलनाडु में एमके स्टालिन ने कहा था कि पुजारी होने की शिक्षा पाने वाली महिलाओं और गैर-ब्राह्मणों को मंदिरों में तैनात किया जाना चाहिए.
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चेंजमेकर सेवादार
माया देवी राधा रानी के मंदिर में बदलाव भी कर रही हैं. अब वहां थोड़ी ज्यादा महिलाएं नजर आती हैं. माया देवी के भतीजे की पत्नी हेमा शर्मा मंदिर की गतिविधियों पर नजर रखती हैं और इस बात का खास ध्यान रखती हैं कि सब कुछ सुचारू रूप से चलता रहे. लोगों की भीड़ से लेकर प्रसाद वितरण तक.
इसके अलावा अब ज्यादा लोगों को मंदिर में विराजमान श्री लाडली जी महाराज की प्रतिमा के करीब जाने का मौका मिलता है.
अपने बच्चे के जन्मदिन पर उसे राधा रानी का आशीर्वाद दिलाने लाई एकता कहती हैं, ‘ऐसा पहली बार है जब मैंने इतने करीब से लाडली जी के दर्शन किए हैं. मुझे नहीं पता यह महिला सेवादार के आने से है या नहीं लेकिन देखकर अच्छा लगता है कि महिलाएं हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. यह महिलासशक्तिकरण है.’
एकता ने दर्शन करने के लिए भीड़ से काफी जद्दोजहद की, एक पंडित ने भी उनकी मदद की.
लेकिन मंदिर में हुए ये बदलाव और मायादेवी की नियुक्ति का विरोध भी हो रहा है. रासबिहारी और उनके समर्थकों ने मंदिर के बाहर कुछ दिनों तक प्रदर्शन भी किया और अदालत में केस भी दर्ज कराया. पुलिस ने प्रदर्शन को खत्म करा दिया और उन्हें वहां से हटा दिया.
माया देवी मंदिर में पूजा नहीं करती हैं, पुरुष सेवादार करते हैं. लेकिन इसके अलावा दर्शन, प्रसाद और फंड से जुड़े सारे फैसले माया देवी ही लेती हैं.
मथुरा के एक मंदिर के पुजारी, छोटू गोस्वामी कहते हैं, ‘मुझे यहां कुछ भी गलत नहीं दिख रहा है. अगर समाज ने उन्हें हरिवंश गोस्वामी की पत्नी के रूप में स्वीकार किया है तो उन्हें वहां रहने का अधिकार है. जब तक मंदिरों में सेवा करने वाला व्यक्ति गोस्वामी है, सब कुछ ठीक है.’
भूलभुलैया विरासत
कुछ लोगों को यकीन है कि सब कुछ ठीक है. यह मंदिर परंपरा, महत्वाकांक्षा और एक संयुक्त परिवार की एक जटिल कहानी है. और एक 80 साल की महिला सबके लिए कुछ ज्यादा ही जंजाल साबित हो रही है.
माया देवी के पति हरिवंश लाल गोस्वामी को 27 अप्रैल 2020 तक राधा रानी मंदिर के सेवादार (सेवारत पुजारी) के रूप में काम करना था, जो परिवार के पुरुष परिवार के सदस्यों के लिए उत्तराधिकार की एक विस्तृत परंपरा के हिस्से के रूप में था. केवल गोस्वामी समुदाय के पुरुषों को ही मंदिर के सेवादार (पुजारी) बनने की अनुमति है, और समय के साथ केवल एक परिवार के पास यह अधिकार है. परिवार को तीन भागों में बांटा गया है और प्रत्येक सदस्य को पुजारी होने का मौका मिलता है.
लेकिन 1999 में ही हरिवंश गोस्वामी की मृत्यु हो गई. इसलिए 2020 में समय आने पर उनके भाई के पोते रासबिहारी गोस्वामी को नियुक्त करने का समझौता हुआ.
रासबिहारी की नियुक्ति को लेकर परिवार में कोई विवाद नहीं था और उन्होंने अप्रैल में समय पर कार्यभार भी संभाला था. और फिर माया देवी ने हरिवंश लाल गोस्वामी की विधवा के रूप में मंदिर के सेवादार होने का दावा किया. इसे लेकर वह कोर्ट चली गईं और छाता कोर्ट ने भी कह दिया उन्हें सेवादार का पद मिलना चाहिए.
रासबिहारी भी इस मामले को लेकर छाता कोर्ट पहुंचे. कोर्ट ने माया देवी की सेवादार के पद पर नियुक्ति को गलत माना. अदालत ने कहा कि उन्होंने गलत इरादे से पद संभाला था. रासबिहार के परिवार के सदस्यों ने भी यह कहते हुए आपत्ति जताई कि माया न समाज से हैं तो पुरुष है और न ही गोस्वामी, और इसलिए, सेवादार के पद के लिए नियुक्ति नहीं दी जा सकती. परिवार ने यह भी दावा किया था कि उन्होंने माया देवी को हरबंस लाल की पत्नी के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया था और उन पर झूठे दावे करने का आरोप लगाया था.
इस मामले को लेकर इलाहबाद हाई कोर्ट पहुंचे रास बिहारी कहते हैं, ‘सेवा का उनका कोई अधिकार नहीं है लेकिन उन्होंने कुछ सेटिंग से सेवा हासिल की है. कोर्ट भी कह चुका है कि उन्होंने गलत इरादों से यह पद हासिल किया है, लेकिन पुलिस उन्हें मंदिर से हटा ही नहीं रही है. मैं न्याय के लिए कोर्ट जा रहा हूं.’
रास बिहारी के वकील आशुतोष शर्मा का कहना है कि जिला मथुरा की छाता अदालत ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया है लेकिन मायादेवी मंदिर की सेवा छोड़ने को तैयार नहीं हैं.
‘छाता कोर्ट के सिविल जज के पास सीपीसी 144 के तहत एक अर्जी दाखिल की गई है, जिसमें हमने पुलिस से इसमें दखल देने का अनुरोध किया है.’
राधा रानी मंदिर के आसपास की खेत गोस्वामी परिवार की है और केवल जिनके नाम पर खेत हैं, वे ही पुजारी हो सकते हैं. परिवार के सदस्य सेवा के समय को आपस में एक तरीके से बांटते हैं – किसी को सेवा के 15 दिन मिलते हैं, किसी को आधा दिन मिलता है, किसी को सिर्फ तीन घंटे ही मिलते हैं.
आशुतोष शर्मा का कहना है कि मायादेवी को जमीन के कागजात में उनके नाम के आधार पर मंदिर की सेवा मिली और लेकिन उन्होंने गलत तरीके से यह जमीन अपने नाम करवाई है.
400 साल पुराना मंदिर
राधा रानी मंदिर राधा के जन्म स्थान बरसाना में स्थित है, जो भगवान कृष्ण की प्रिय थीं. 250 सीढ़ियों के ऊपर मौजूद इस मंदिर को ओरछा के राजा ने करीब 400 साल पहले बनवाया था. राधा रानी की जय और भक्तिमय मंत्रों के बीच विशाल लटके हुए झूमरों वाले हॉल में मौजूद है राधा रानी की मूर्ति.
राधा रानी के मंदिर के देखभाल गोस्वामी समुदाय के तीन ठोक करते हैं- सेवायत बाबा ठोक, लक्ष्मण ठोक और अक्षय राम ठोक.
अकेली लड़ रही हैं लड़ाई
हर कोई मायादेवी के खिलाफ नहीं है. उनके समर्थक भी हैं. उसके भतीजे की पत्नी हेमा शर्मा, जो उसकी देखभाल करती है और मंदिर के काम में मायादेवी की मदद करती है. उनका कहना है कि इस पूरे कानूनी विवाद के दौरान मायादेवी की तबीयत कई बार बिगड़ी. ऐसे में मायादेवी घबरा जाती हैं और उनका बीपी बढ़ जाता है.
हेमा कहती हैं, ‘उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है, उनके पति के बाद सभी अधिकार उनके हो जाते हैं.’
मंदिर में मौजूद एक पुजारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब से मायादेवी को सेवा मिली है, मंदिर में महिलाओं की संख्या में इजाफा हुआ है. राधा रानी की मूर्ति को झूला झूलने से लेकर प्रसाद बांटने तक हर चीज में महिलाएं हिस्सा लेती नजर आती हैं.
हेमा शर्मा का कहना है कि माया देवी ने अपने पति से अधिकार कर लिया है. मंदिर में एक छोटी सी झोंपड़ी है जिसमें माया देवी रहती हैं, लेकिन हाल ही में उनकी तबीयत खराब हो गई है, इसलिए अब वह उन्हें रोज सुबह मंदिर और शाम को गांव ले आती हैं. माया देवी द्वारा चुने गए पुजारी ही मंदिर में मौजूद राधा रानी की मूर्ति के कपड़े पहनते हैं. दिन भर आरती करें.
‘मायादेवी के आने से कई महिलाओं को उम्मीद जगी है, सेवादार के पद तक पहुंचने के दरवाजे खुले हैं. उन्हें देखकर अन्य महिलाएं भी प्रेरणा ले रही हैं.’ आरती के बाद लोगों में प्रसाद बांटने का काम करने वाली हेमा शर्मा कहती हैं. मंदिर की देखभाल से लेकर माया देवी की सेवा तक, हेमा हर चीज का ख्याल रखती हैं.
हेमा शर्मा का कहना है कि यह इस मंदिर की सबसे ऊंची पोस्ट है. वह इस मंदिर की गोसाईं हैं. सारा पैसा उसके पास आया, वह सभी निर्णय लेती है कि कौन क्या करेगा.
कई मोर्चों पर चल रही है लड़ाई
वहीं रासबिहारी के एक रिश्तेदार दुर्गेश गोस्वामी कोर्ट के आदेश को हाथ में लेकर बताते हैं कि किस तरह प्रशासन उनके साथ अन्याय कर रहा है. उनका कहना है कि दीवानी अदालत ने माया देवी की सेवा को गलत बताया है और कहा है कि वह गलत इरादे से यहां पहुंची हैं, लेकिन इसके बावजूद पुलिस उन्हें वहां से नहीं हटा रही है.
माया देवी के स्थान पर सेवा करने का दावा करने वाले रास बिहारी इस समय इलाहाबाद में हैं और एक अदालत के माध्यम से माया देवी की सेवा को बर्खास्त कराने की कोशिश कर रहे हैं.
रासबिहारी के रिश्तेदार दुर्गेश कहते हैं, ‘ अदालत ने माया देवी को भी उस पद पर होना गलत बताया है, लेकिन पुलिस उन्हें मंदिर से नहीं हटा रही है. पुलिस ने रासबिहारी को अदालत से एक लिखित पत्र प्राप्त करने के लिए कहा ताकि माया देवी को मंदिर से हटाया जा सके.’
रासबिहारी के चचेरे भाई, मोहन गोस्वामी दुर्गेश के साथ बैठे हैं वह कहते हैं, ‘माया देवी ने मंदिर व्यवस्था को भ्रष्ट कर दिया है. बहुत कम लोगों को श्री जी [राधा रानी] की मूर्ति के पास जाने की अनुमति थी, लेकिन अब सभी को अनुमति है.’
सितंबर की दोपहर में माया देवी राधा रानी मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी हैं. वह कई मोर्चों पर लड़ाई लड़ रही हैं. और अभी उनका न तो समय अच्छा है और न ही स्वास्थ्य. उनके चेहरे से गुस्सा साफ झलक रहा था.
माया देवी से पूछती है, ‘लोग राधा रानी जी को करीब से देखना चाहते हैं और मैं ऐसा करती हूं, तो इसमें गलत क्या है?’ वह कहती हैं, ‘लोग सकारात्मक बदलाव से डरते हैं, वे सिर्फ मेरा मजाक उड़ाना चाहते हैं, लेकिन वे मुझे रोक नहीं सकते. मैं अदालत में लड़ूंगी, और जो मेरा है उसे नहीं छोड़ूंगी.’
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