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रविवार, 20 अप्रैल, 2025
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इबादत, सभाएं और चर्चा: कैसे महिलाओं के लिए दिल्ली की मस्जिदें बदल रही हैं

जमात-ए-इस्लामी हिंद मरकज के महिला सेक्शन में 51 वर्षीय अमीना बानो ने कहा, ‘अल्लाह ने महिलाओं को हर जगह जाने की इजाजत दी है, तो मस्जिद में क्यों नहीं?’

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नई दिल्ली: ज़्यादातर दिनों में, 55 वर्षीय अकीला एम्स या सफदरजंग अस्पताल की गलियारों में लंगड़ाते हुए इलाज के लिए भागती हैं—घुटनों और पीठ के पुराने दर्द से राहत की तलाश में. लेकिन जो दर्द उन्हें सबसे ज़्यादा सताता था, वो शारीरिक नहीं था. उन्हें नमाज़ पढ़ने के लिए कोई जगह नहीं मिलती थी. इस गुनाह से बचने के लिए उन्हें अब रास्ता मिल गया है.

एम्स से सिर्फ़ 10 मिनट की पैदल दूरी पर उन्होंने ग्रीन पार्क मस्जिद को खोज निकाला है. और वहां उन्हें एक कीमती चीज़ मिली: महिलाओं के लिए एक अलग जगह, जिसमें वॉशरूम और वुज़ू (अज़ान से पहले की जाने वाली पवित्र धुलाई) की अलग व्यवस्था थी.

महिलाओं के लिए किसी धार्मिक स्थल में प्रवेश करना हमेशा एक संघर्ष रहा है. चाहे वह सनातन धर्म हो या इस्लाम, पवित्र स्थानों ने सीमाएं तय की हैं. कुछ पुराने सामाजिक नियम हैं, तो कुछ नए नियम पुरुषों द्वारा बनाए गए हैं. केरल में, हिंदू महिलाओं ने सबरीमाला मंदिर में प्रवेश को लेकर एक कानूनी लड़ाई लड़ी, जो 2018 के एक ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले में जाकर समाप्त हुई, जिसने महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी. दिल्ली में, जामा मस्जिद प्रशासन ने “अश्लील गतिविधियों” को रोकने के लिए अकेली महिलाओं और लड़कियों के प्रवेश पर रोक लगा दी थी.

अब मुस्लिम महिलाएं भी विरोध कर रही हैं. भारत में महिलाओं का बड़ी संख्या में मस्जिदों में जाकर नमाज़ अदा करना अभी भी एक नया दृश्य है. लेकिन अब ज़्यादा मस्जिदें उनके लिए जगह बना रही हैं.

दिल्ली की 500 से ज़्यादा मस्जिदों में से कुछ ही मस्जिदों में अब महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था है. ये ऐसे स्थान हैं जहां महिलाएं बिना किसी अपराधबोध के अंदर जा सकती हैं—चाहे जुमे की नमाज़ के लिए हों या फिर जब भी वे अपनी आस्था का पालन करना.

Woman's section at Green Park masjid
सीलमपुर की 55 वर्षीय अकिला ग्रीन पार्क मस्जिद में नमाज़ पढ़ती हैं. फोटो: मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

ग्रीन पार्क मस्जिद, मोती मस्जिद, कनॉट प्लेस की औलिया मस्जिद और जमाअत-ए-इस्लामी हिंद द्वारा संचालित इशाअत-ए-इस्लाम मस्जिद उनमें से कुछ हैं. कुछ मस्जिदें एक पूरा फ्लोर देती हैं, तो कुछ सिर्फ़ एक कमरा—लेकिन जो बात इन्हें एकजुट करती है, वह यह संदेश है कि महिलाओं का स्वागत है.

“घर पर और मस्जिद में नमाज़ पढ़ने का अनुभव बिलकुल अलग होता है. और ये हमारा हक है,” 21 वर्षीय फराह शकील ने कहा, जो हर शुक्रवार को अपनी पढ़ाई से समय निकालकर जमाअत-ए-इस्लामी हिंद मस्जिद में जुमा की नमाज़ पढ़ने जाती हैं. “जब जगह सही हो, तो महिलाओं को आकर नमाज़ पढ़नी चाहिए. ताकि मस्जिदों में महिलाओं के नमाज़ पढ़ने की परंपरा को सामान्य बनाया जा सके.”

Green Park Mosque
दिल्ली में ग्रीन पार्क मस्जिद का ऐंट्री गेट | फोटो: अलमीना खातून | दिप्रिंट

ग्रीन पार्क मस्जिद का पता चलने के बाद से अकिला दूसरी महिलाओं को भी इसके बारे में बताने लगी हैं. मस्जिद के इमाम, मुफ्ती निज़ामुद्दीन ने बताया कि इलाके से गुज़रने वाली महिलाएं अक्सर नमाज़ के लिए रुक जाती हैं.

“यहां आसपास के अस्पतालों में काम करने वाली महिला डॉक्टरें भी नमाज़ के वक़्त मस्जिद आती हैं,” उन्होंने कहा.

आध्यात्मिक स्थान से कहीं अधिक

बच्चे इधर-उधर दौड़ते हैं, हंसते और खेलते हैं, जबकि करीब दर्जनभर महिलाएं सफेद संगमरमर पर बिछे गहरे लाल रंग के कारपेट पर बैठती हैं. कुछ तस्बीह फेर रही हैं. कुछ फोन की स्क्रीन पर कुरान की आयतें पढ़ रही हैं, धीरे-धीरे लफ्ज़ दोहराते हुए. कुछ की गोद में छोटे बच्चे हैं, जिन्हें वे इबादत के तरीके सिखा रही हैं.

यह जमात-ए-इस्लामी हिंद की मस्जिद, मरकज़ का रोज़ का नज़ारा है. शुक्रवार को यहां भीड़ बढ़ जाती है. सौ से ज़्यादा महिलाएं जुमा की नमाज़ के लिए यहां इकट्ठा होती हैं—दूर-दराज़ से आती हैं. वे नमाज़ पढ़ती हैं, दीनी बातें करती हैं और एक-दूसरे से मेलजोल बढ़ाती हैं.

Women and children at Jamaat-e-Islami Hind Markaz
जमात-ए-इस्लामी हिंद मरकज़ में महिलाएं और बच्चे नमाज़ पढ़ते हुए | फोटो: मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

“इस बात से कि मस्जिद में औरतों के लिए जगह है, और इतनी महिलाएं लगातार आ रही हैं, यह साफ़ दिखता है कि वे कब से ऐसे स्थानों की तलब रखती थीं,” 51 साल की अमीना बानो ने कहा, जो मस्जिद से पांच मिनट की दूरी पर रहती हैं. “अल्लाह ने औरतों को हर जगह जाने की इजाज़त दी है, तो मस्जिद क्यों नहीं?”

मस्जिदों में महिलाओं के लिए जगह की यह मांग हाल के वर्षों में ही सामने आई है. ऑल इंडिया मुस्लिम वुमेन्स एसोसिएशन (AIMWA) की अध्यक्ष डॉ. असमा ज़हरा ने बताया कि यह मांग तब तेज़ हुई जब भारत की ज़्यादा महिलाएं उमरा और हज के लिए सफर करने लगीं. मक्का और मदीना में उन्होंने देखा कि हर मस्जिद में औरतों के लिए अलग जगह होती है—जो भारत में कम ही दिखाई देती थी. इसके बाद भारत में भी इस तरह की जगहों की मांग उठने लगी.

“परंपरागत रूप से, भारत में औरतें नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद नहीं जाती थीं. लेकिन ग्लोबलाइजेशन के साथ, महिलाओं के मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की संस्कृति मध्य पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे देशों से भारत में भी आ रही है,” ज़हरा ने कहा.

Women in a delhi mosque
जमात-ए-इस्लामी हिंद मरकज़ में महिलाएं अपने जूते दरवाज़े पर छोड़ जाती हैं. यह सिर्फ़ प्रार्थना करने की जगह नहीं है बल्कि सामाजिक मेलजोल और चिंताओं को साझा करने की जगह भी है . फोटो: मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

2019 में, कुछ महिलाओं ने मिलकर मुस्लिम वीमेन मस्जिद प्रोजेक्ट (MWMP) की शुरुआत की, जो मुस्लिम वीमेन स्टडी सर्कल (MWSC) की एक पहल है—यह एक घरेलू स्तर का कलेक्टिव है. इसकी स्थापना सानिया मरियम ने की थी. इस संगठन का मुख्य उद्देश्य यह है कि लोगों को जागरूक करना और ज़्यादा मस्जिदों को महिलाओं के लिए समावेशी बनने के लिए प्रेरित है.

ज़हरा बताती हैं कि इस विचार का समुदाय में कोई व्यापक विरोध नहीं है. कुछ मस्जिदें पहले से ही महिलाओं के लिए जगह मुहैया कराती हैं, और जो नई मस्जिदें बन रही हैं, वे इस सुविधा को पहले से ही शामिल कर रही हैं.

शुक्रवार दोपहर 1 बजे, मरकज़ की ग्राउंड फ्लोर हॉल में पुरुष सफ में खड़े हैं. जैसे ही इमाम माइक के पास पहुंचते हैं, सभी को सलाम करते हैं.

Muslim men at a mosque in Delhi
दिल्ली के जामिया नगर में जमात-ए-इस्लामी हिंद मरकज मस्जिद में शुक्रवार की नमाज के दौरान मुस्लिम पुरुष। फोटो: मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

मुख्य नमाज़ स्थल के ठीक ऊपर पहली मंज़िल पर महिलाएं भी सफ सीधी करती हैं. इमाम अपना बयान (ख़ुत्बा) शुरू करते हैं. आज का विषय विवादास्पद है: वक्फ़ बिल. अगले एक घंटे तक वे इसे विस्तार से समझाते हैं—वक्फ़ संपत्ति क्या होती है, यह क्यों अहम है, और हाल ही में पारित वक्फ़ संशोधन विधेयक मुस्लिम समुदाय के लिए क्यों चिंता का विषय है. वे इसे सरकार की एक ग़लती बताते हैं, जो देशभर में मुसलमानों के अधिकारों और संपत्तियों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है.

“हम मस्जिद सिर्फ़ जगह देखने या नमाज़ पढ़ने के लिए नहीं आते,” बानो कहती हैं. “मस्जिद केवल इबादत की जगह नहीं है. हर हफ्ते यहां सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मुद्दों पर अहम चर्चा होती है. ये बातचीत हमें हमारे आस-पास हो रही चीज़ों को गहराई से समझने का मौका देती हैं—जो हमें शायद घर पर न मिल सके, या जिसके लिए हमारे पास समय ही न हो.”

शांति की खोज

मरकज़ मस्जिद एक शांत और हरे-भरे परिसर के भीतर स्थित है, जहां पेड़, फूलों की क्यारियां और साफ-सुथरी इमारतें हैं. यहां पुरुष और महिलाएं हर समय आते-जाते रहते हैं—कुछ नमाज़ के लिए, तो कुछ सामुदायिक कार्य या क्लासेस के लिए.

इस मस्जिद का संचालन जमात-ए-इस्लामी हिंद करती है, जो देशभर में मस्जिदों और संस्थानों का संचालन करने वाला एक संगठन है और मुस्लिम समुदाय के उत्थान और कल्याण पर केंद्रित एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा है.

रहमतुन्निसा ए, जमात-ए-इस्लामी हिंद की महिला विभाग की राष्ट्रीय सचिव, अक्सर यहां मौजूद रहती हैं. वे यहां महिलाओं के लिए चलने वाली पहलों का संचालन करती हैं, जिनमें सुरक्षा, स्वास्थ्य पर सत्र और हज की तैयारी कर रही महिलाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी शामिल हैं.

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जमात-ए-इस्लामी हिंद की महिला विभाग की राष्ट्रीय सचिव रहमतुन्निसा ए, मरकज़ में महिलाओं के लिए सुरक्षा और स्वास्थ्य से लेकर हज की तैयारी तक सामुदायिक सत्र चलाने में मदद करती हैं। फोटो: मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

रहमतुन्निसा ने कहा, “मस्जिद आना अपने समुदाय से जुड़ने और लोगों से संपर्क बनाने का एक तरीका है. यह एक ज़रूरत है और एक अधिकार भी, जो महिलाओं और पुरुषों दोनों को समान रूप से प्राप्त है.”

शांत मरकज़ मस्जिद से लगभग 14 किलोमीटर दूर, कनॉट प्लेस की मोती मस्जिद में एक बिल्कुल अलग नज़ारा देखने को मिलता है.

सीपी की हलचल भरी गलियों में, जहां किताबों की दुकानें, कपड़ों के स्टॉल और जूते बेचने वाले दुकानदारों की भीड़ रहती है, एक छोटा-सा बोर्ड “मोती मस्जिद” लिखा हुआ दिखाई देता है; इसके ठीक नीचे एक और हरा साइनबोर्ड है, जिस पर बहुत ही छोटे उर्दू और हिंदी अक्षरों में लिखा है: “महिलाएं पहली मंज़िल पर नमाज़ अदा कर सकती हैं.”

अंदर प्रवेश करने पर एक तरफ जूते रखने की अलमारी है। इसके ठीक आगे एक विशाल हॉल है, जो आमतौर पर पुरुषों द्वारा नमाज़ अदा करने के लिए इस्तेमाल होता है.

Moti Masjid signboards inside
कनॉट प्लेस की मोती मस्जिद के अंदर एक बोर्ड महिलाओं को नमाज़ के लिए पहली मंजिल की ओर जाने का डायरेक्शन देता है | फोटो: अलमीना खातून | दिप्रिंट

ऊपरी मंज़िल पर एक कालीन बिछा हुआ हॉल है, जहां वुज़ू के लिए नलियों की एक कतार लगी है. वहां माहौल शांत है, सिर्फ कुछ महिलाएं ध्यान में बैठी हुई हैं. इस महिलाओं के लिए बने हिस्से के एक कोने में 26 साल की अनम जहां बैठी हैं, जो अपने रेस्टोरेंट के काम से थोड़ा सुकून पाने के लिए यहां आती हैं.

उन्होंने कहा, “यह जगह मुझे सुकून देती है. मैं यहां नमाज़ पढ़ने के लिए आती हूं, ज़ाहिर है, लेकिन कई बार जब कोई ख़ास वजह नहीं भी होती, अगर मेरे पास थोड़ा वक़्त होता है, तो मैं बस आकर एक कोने में चुपचाप बैठ जाती हूं.”

कानूनी चुनौती

कनेक्ट प्लेस में स्थित औलिया मस्जिद में महिलाओं के लिए विशेष प्रार्थना स्थान का कोई साइनबोर्ड नहीं है, जो मोती मस्जिद से लगभग पांच मिनट की दूरी पर है. हालांकि, पहले फ्लोर को अक्सर खाली रखा जाता है ताकि महिलाओं को यहां स्थान मिल सके.

इमाम अहमद ने कहा कि क्योंकि मस्जिद एक व्यस्त व्यापारिक क्षेत्र में स्थित है, इसलिए महिलाएं नियमित रूप से यहां नहीं आतीं. लेकिन रमज़ान में, और विशेष रूप से शुक्रवार को, जब वे अज़ान सुनती हैं, तो बहुत सी महिलाएं यहां आती हैं, नमाज़ अदा करती हैं और फिर चली जाती हैं.

Namaz in delhi mosque
दिल्ली की एक मस्जिद में महिलाओं के लिए बने विशेष खंड में नमाज अदा करती एक मुस्लिम महिला। कई महिलाएं प्रार्थना और शांति के लिए ऐसी जगहों को पसंद करती हैं | फोटो: मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

“मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं है,” 46 वर्षीय अहमद ने कहा. “क्या उनके लिए विशेष स्थान उपलब्ध है या नहीं, यह अक्सर मस्जिद की भौतिक संरचना और स्थान पर निर्भर करता है, न कि धार्मिक विश्वासों या विचारधारा पर.”

उन्होंने कहा कि अधिकांश मस्जिदों, विशेषकर पुराने और भीड़-भाड़ वाले इलाकों में स्थित मस्जिदों को कम स्थान के साथ बनाया गया था, जिससे महिलाओं के लिए अलग से व्यवस्था करना कठिन हो जाता है.

2023 में, पुणे की एक्टिविस्ट और वकील फरहा अनवर हुसैन शेख ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें कुछ मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं को रोकने की प्रथा को गैरकानूनी बताया.

इसके जवाब में, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने कोई सामान्य प्रतिबंध लगाने से इंकार किया. उन्होंने कहा कि इस्लाम महिलाओं को मस्जिदों में नमाज़ अदा करने की अनुमति देता है, लेकिन पुरुषों और महिलाओं के सामान्य स्थानों में मिलकर बैठने को मना करता है.

woman in a mosque
नमाज़ खत्म करने के बाद क़ुरान को अपने पास पकड़े एक महिला | फोटो: मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

“हालांकि महिलाओं को मस्जिद में नमाज़ अदा करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन उनके लिए सभाएं (इमाम के पीछे एक साथ नमाज़ पढ़ने) अनिवार्य नहीं है, जैसा कि पुरुषों के लिए है. यही कारण है कि महिलाओं ने सामान्यत: पैगंबर के समय मस्जिद की सभाओं में भाग नहीं लिया,” AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी हलफनामा में कहा.

AIMPLB ने बाद में कहा कि वे मस्जिदों में महिलाओं के नमाज़ अदा करने के अधिकार पर अदालत से स्पष्टता चाहते हैं, और मुसलमानों से आग्रह किया कि जब भी नई मस्जिदें बनाई जाएं, तो महिलाओं के लिए उचित स्थान सुनिश्चित किया जाए.

ग्रीन पार्क मस्जिद के इमाम निजामुद्दीन ने कहा कि यह स्थिति हर जगह नहीं हुई है, क्योंकि “महिलाएं नियमित रूप से मस्जिद में बड़ी संख्या में नहीं आतीं.”

लेकिन मोती मस्जिद में, अनाम जहां ने कहा कि महिलाओं के लिए निर्धारित स्थान महत्वपूर्ण हैं, भले ही वे हमेशा भरे न हों.

“इस तरह का स्थान, हमारे घरों के अलावा, हमें एक ऐसा वातावरण प्रदान करता है जहां हम अपनी पूजा पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं,” उन्होंने कहा. “यह मुझे एक प्रकार की शांति प्रदान करता है, जो मुझे घर पर नहीं मिलती.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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