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Sunday, 22 December, 2024
होमफीचरप्रदूषण कोई समस्या नहीं — दिल्ली की झुग्गियों में रहने वाले माता-पिता चाहते हैं बच्चे जाएं स्कूल

प्रदूषण कोई समस्या नहीं — दिल्ली की झुग्गियों में रहने वाले माता-पिता चाहते हैं बच्चे जाएं स्कूल

हाशिये पर रहने वालों के लिए ज़हरीली हवा उनकी सबसे बड़ी दुश्मन नहीं बल्कि उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी की कड़वी सच्चाई है.

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नई दिल्ली: दिल्ली सरकार द्वारा पिछले दो हफ्तों से राष्ट्रीय राजधानी में फैले खतरनाक वायु प्रदूषण के कारण स्कूल की कक्षाओं को ऑनलाइन करने के बाद सीलमपुर के एक स्लम में स्थित यह एक कमरे का मकान अब दो किशोरों के लिए उनका क्लासरूम बन गया है. 13-वर्षीय विधि उटवाल एक क्वीन साइज़ के बिस्तर के कोने पर हेडफोन लगाकर बैठीं अपनी सोशल साइंस की क्लास ले रही थीं, जबकि पास में बैठे उनके पिता महाराष्ट्र चुनाव के बारे में टीवी पर पूरी आवाज़ में समाचार देख रहे थे. दाईं ओर, उनकी 15-वर्षीय बहन पूजा कर रही थीं. आखिरकार उन्हें ऑनलाइन क्लास को छोड़ना पड़ा.

परिवार के पास सिर्फ एक स्मार्टफोन है. इस शोरगुल के बीच, विधि की मां शीतल उटवाल चूल्हे पर उनकी सुबह की चाय बना रही हैं.

आम दिनों में, यह घर थोड़ा खाली-खाली लगता है क्योंकि विधि और उनकी बहन आमतौर पर स्कूल जाती हैं.

सीलमपुर में इस एक बेडरूम वाले घर के अंदर दोनों बहनों को अपनी क्लास लेने के लिए मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं. वहीं दिल्ली के कई गरीब पृष्ठभूमि के बच्चे बिना मास्क के झुग्गियों में घूमते और खेलते देखे जा सकते हैं. बच्चों को सुरक्षित रखने की दिल्ली सरकार की योजना ठीक से काम नहीं कर रही है.

सीलमपुर के पीली बिल्डिंग सीनियर सेकेंडरी स्कूल की छात्रा विधि ने कहा, “मुझे स्कूल में पढ़ना अच्छा लगता है क्योंकि वहां ध्यान भटकाने वाली चीज़ें कम होती हैं और मैं अपने टीचर्स और दोस्तों से बातें कर सकती हूं. मेरे लिए इस फोन की छोटी सी स्क्रीन पर पढ़ना मुश्किल है.”

हाशिये पर ज़िंदगी जीने वालों के लिए जहरीली हवा उनकी सबसे बड़ी दुश्मन नहीं है. यह उनकी रोज़मर्रा की सच्चाई और गरीबी है.

54-वर्षीय उमा सिंह ने सीलमपुर में अपने घर के सामने के क्षेत्र में झाड़ू लगाते हुए कहा, “हम खुले सीवर और कूड़े के ढेर के सामने रहते हैं. प्रदूषण हमारे लिए चिंता की एक छोटी सी समस्या है — इससे कहीं बड़ी समस्याएं हैं जिनका हम हर दिन सामना करते हैं.”

13-वर्षीय विधि उटवाल अपनी ऑनलाइन सोशल साइंस क्लास लेती हुईं | फोटो: अनीषा नेहरा/दिप्रिंट
13-वर्षीय विधि उटवाल अपनी ऑनलाइन सोशल साइंस क्लास लेती हुईं | फोटो: अनीषा नेहरा/दिप्रिंट

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ऑनलाइन क्लास का मतलब : छुट्टी

दक्षिण दिल्ली के मसूदपुर के जय हिंद कैंप में अलग-अलग उम्र के बच्चों के एक बड़े ग्रुप को खुले मैदान में खेलते हुए देखा जा सकता है. कुछ माता-पिता पास में बैठे हैं और पानी की कमी के मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं, जबकि कुछ ऑनलाइन क्लास के दौरान आने वाली चुनौतियों के बारे में बात कर रहे हैं. झुग्गी बस्ती के ज़्यादातर छात्रों के लिए स्कूल बंद होना छुट्टी जैसा लगता है — पूरे दिन खेलने और मौज-मस्ती करने का मौका. उनमें से कुछ को तो यह भी नहीं पता कि स्कूल क्यों बंद हैं.

मसूदपुर के एमसीडी प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वालीं 10-वर्षीय रूहाना खातून और 9-वर्षीय अयान मियां के लिए स्कूल के बिना कोई भी दिन हमेशा खेलने और पड़ोस में घूमने का दिन होता है.

5वीं कक्षा की छात्रा रूहाना खातून ने कहा, “सर (टीचर) स्कूल के व्हाट्सएप ग्रुप में आते हैं और कहते हैं कि इंटरनेट कनेक्शन नहीं है, इसलिए वे ऑनलाइन क्लास नहीं ले सकते. स्कूल बंद होने का मतलब है पढ़ाई नहीं.”

रूहाना की मां रिहाना बीबी ने भी कहा कि स्कूल जाना हमेशा ऑनलाइन क्लास से बेहतर होता है क्योंकि उनके बच्चे उनकी बात नहीं सुनते और कई दिनों से पढ़ाई नहीं कर रहे हैं. रिहाना बीबी ने कहा कि मसूदपुर में एमसीडी प्राइमरी स्कूल में पिछले तीन दिनों से टीचर्स की ओर से इंटरनेट से संबंधित समस्याओं के कारण ऑनलाइन क्लास नहीं चल रही हैं.

रिहाना बीबी अपनी बेटी के स्कूल के व्हाट्सएप ग्रुप को स्क्रॉल करती हैं ताकि होमवर्क या स्कूल से कोई अपडेट देख सकें | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट
रिहाना बीबी अपनी बेटी के स्कूल के व्हाट्सएप ग्रुप को स्क्रॉल करती हैं ताकि होमवर्क या स्कूल से कोई अपडेट देख सकें | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट

30-वर्षीय रिहाना बीबी ने कहा, “हम पूरे दिन बाहर काम करते हैं और हमेशा बच्चों की पढ़ाई पर नज़र नहीं रख पाते. साथ ही, ऑनलाइन क्लास ठीक से नहीं हो रही हैं; टीचर बस ग्रुप में कुछ काम भेजते हैं और उन्हें इसे पूरा करके वापस भेजने के लिए कहकर चले जाते हैं.”

संजू सिंह, जो लगभग 20 वर्षों से सीलमपुर में रह रहे हैं, के तीन बच्चे पास के सरकारी स्कूल में तीसरी, पांचवीं और आठवीं क्लास में पढ़ते हैं. हालांकि, परिवार के पास सिर्फ एक स्मार्टफोन है. अगर एक बच्चा ऑनलाइन क्लास लेता है, तो बाकी बच्चे अपनी क्लास से चूक जाते हैं.

आठ-वर्षीय लीजा खातून अपनी मां के स्मार्टफोन का इस्तेमाल अपने स्कूल के ग्रुप को देखने और ऑनलाइन क्लास के दौरान अपना होमवर्क पूरा करने के लिए करती हैं | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट
आठ-वर्षीय लीजा खातून अपनी मां के स्मार्टफोन का इस्तेमाल अपने स्कूल के ग्रुप को देखने और ऑनलाइन क्लास के दौरान अपना होमवर्क पूरा करने के लिए करती हैं | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट

सोमवार को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने आनंद विहार (487), चांदनी चौक (444), आईजीआई एयरपोर्ट-टी3 (494) और द्वारका (499) में “गंभीर” श्रेणी में AQI स्तर दर्ज किया. राजधानी में बिगड़ती वायु गुणवत्ता के जवाब में, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने रविवार को ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के चौथे चरण को लागू किया.

संघर्ष करते टीचर्स

सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के लिए ऑनलाइन क्लास उन्हें महामारी के दिनों की याद दिलाती हैं और अटेंडेंस सुनिश्चित करना और खराब इंटरनेट कनेक्शन से निपटना उनकी सबसे बड़ी चुनौती है.

एक सरकारी स्कूल के टीचर ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “हमें इन क्लास को चलाने के लिए स्कूल आना पड़ता है और इसके अलावा, 30 से 40 छात्रों को वर्चुअली मैनेज करना हमेशा मुश्किल होता है.”

टीचर्स के लिए धीमी इंटरनेट कनेक्टिविटी एक और चिंता का विषय है, जो 40 से अधिक छात्रों की क्लास से जुड़ने के लिए निजी कनेक्शन्स का यूज़ कर रहे हैं. वे छात्रों को होमवर्क देने के लिए ज़ूम और व्हाट्सएप की मदद लेते हैं. चूंकि, स्कूल में वाई-फाई नहीं है, इसलिए टीचर्स अपने फोन इंटरनेट को यूज़ करते हैं. फोन और लैपटॉप का एक साथ इस्तेमाल करने से बफरिंग में देरी होती है, स्क्रीन अटक जाती है और क्लास अक्सर डिस्कनेक्ट हो जाती हैं.

टीचर ने कहा, “कभी-कभी, हमें स्टूडेंट्स को क्लास में उपस्थित होने के लिए याद दिलाने के लिए कॉल करना पड़ता है और कनेक्टिविटी की समस्या हमेशा सभी के लिए मुश्किल बना देती है क्योंकि हम अपने निजी कनेक्शन्स का इस्तेमाल कर रहे होते हैं. सरकार या अधिकारियों से कोई मदद नहीं मिलती है.”

नवंबर 2023 में भी, शहर में बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली के स्कूल कई दिनों के लिए बंद कर दिए गए थे और क्लास को ऑनलाइन मोड में शिफ्ट कर दिया गया था. पिछले साल भी ऐसा ही हुआ था. हालांकि, ऑनलाइन क्लास से जुड़ी चुनौतियों का अभी तक समाधान नहीं किया गया है.

आईटीओ के अन्ना नगर झुग्गी में अपने घर के बाहर खड़ीं 17-वर्षीय पिंकी पाल बस स्कूल वापस जाना चाहती हैं क्योंकि घर पर स्मार्टफोन न होने के कारण वे ऑनलाइन क्लास नहीं ले पा रही हैं. उनके घर में केवल एक ही स्मार्टफोन है और उनके पिता, जो कि एक ऑटो चालक हैं, उसका इस्तेमाल करते हैं.

पिंकी ने कहा, “मुझे बस उम्मीद है कि स्कूल जल्द ही खुल जाएगा और प्रदूषण के लिए वे मास्क पहनना अनिवार्य कर सकते हैं क्योंकि मुझे स्कूल के बारे में कोई अपडेट या जानकारी नहीं मिल पा रही है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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