नई दिल्ली: काले बाइकर ग्लव्स — पहन लिए. घुटनों और कोहनियों पर पैड — पूरी तरह फिट. काली जैकेट, मिरर वाले चश्मे और थोड़ा सा स्वैग — सब तैयार, लेकिन असली कहानी तो हेलमेट से शुरू होती है, जिसके पीछे लगा स्टिकर सब कुछ बयां कर देता है: “गलत फैसले ही तो सबसे बढ़िया कहानियां बनाते हैं.”
मार्च में अपने 50वें जन्मदिन के मौके पर चित्रा चक्रवर्ती ने खुद को एक रॉयल एनफील्ड हंटर 350 तोहफे में दी और यह कोई बुरा फैसला नहीं था. उन्होंने न केवल खुद को एक बाइक गिफ्ट की थी बल्कि एक आज़ादी तोहफे में दी जिसके साथ ही वह भारतीय महिला बाइकर्स की बढ़ती इस फेहरिस्त में शामिल हो गईं.
बड़े शहरों में महिला बाइकर्स के लिए ट्रेनिंग एकेडमी तेज़ी से बढ़ रही हैं और इसी तरह बाइकर्स का ग्रुप भी. यह राइडर्स रोड सेफ्टी, गियर, बाइक चलाना सिखाने और वर्कशॉप देने के अलावा, अलग-अलग उम्र, बिजनेस और पृष्ठभूमि वालीं महिलाओं को एक मंच पर साथ लाते हैं.
वह ऐसे रिश्ते जोड़ते हैं जो हेलमेट उतार देने के बाद भी कायम रहते हैं. वह नए दोस्त बनाते हैं, साथ में ट्रिप प्लान करते हैं और कॉफी और लंच के दौरान एक-दूसरे की कहानियां शेयर करते हैं.

चित्रा, जो कि एक बैंकर हैं, अब एक वाइल्ड और बोल्ड ज़िंदगी जी रही हैं. शुक्रवार को सुहाने मौसम में उन्होंने अपने नए जुनून को खुले अंदाज़ में जीया — जब वह दिल्ली से आगरा तक की 360 किलोमीटर की यात्रा पर निकलीं. उनके साथ, दस अन्य महिला बाइकर्स ने यमुना एक्सप्रेसवे पर हवाओं से बातें की. ताजमहल तक पहुंचना उनका उस दिन का टारगेट था.
ग्रुप में शामिल ज़्यादातर महिलाओं के लिए यह इस तरह की और इतनी लंबी पहली राइड थी. 20 से 50 उम्र की इन महिलाओं के चेहरे पर खुशी और साहस साफ झलक रहा था.
चक्रवर्ती ने अपने छोटे बालों को लहराते हुए कहा, “50वां जन्मदिन हमेशा मील का पत्थर होता है. मैं लोगों को दिखाना चाहती थी कि अपने पैशन को फॉलो करने और कुछ नया स्टार्ट करने की कोई उम्र नहीं होती.” चक्रवर्ती अब अपने बाल बढ़ा रही हैं क्योंकि वह चाहती हैं कि जब वह सड़के पर अपनी बाइक लेकर उतरें तो लोग उनके लहराती जुल्फों को देख कर समझ जाएं कि यह बाइक एक महिला चला रही है.

रोमांच और उतार-चढ़ाव
राइड का पहला पड़ाव यमुना एक्सप्रेसवे पर मसाला रेस्टोरेंट था. जैसे ही महिलाएं ब्रेक लेने के लिए रुकीं, एक जोरदार धमाके ने सभी को चौंका दिया. 47-वर्षीय नीलम सिंह अपनी बाइक से गिर गईं. हर कोई उनकी तरफ दौड़ा, लेकिन उनके कोच कुलदीप शर्मा ने उन्हें रोक दिया: नीलम को अपनी बाइक खुद ही उठानी पड़ी.
फरवरी में लेट्सराइड एकेडमी में बाइक चलाना सीखने वालीं नीलम ने कहा, “शुरुआत में, मैं गिरने के बाद होश में आ जाती थी और मुझे मदद की ज़रूरत पड़ती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है.”
उन्होंने आगे कहा, “सभी तकनीकें सीखने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि अगर गिरने से आप अपने सपनों की मंजिल तक पहुंच सकते हैं, तो इसमें कोई शर्म की बात नहीं है.”

उनके जैसे सपने अब इतने असामान्य नहीं हैं. पिछले 10 साल में भारत में महिला बाइकर्स की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है, साथ ही महिलाओं के लिए बाइकिंग समुदाय और राइडिंग स्कूल भी खोले गए हैं.
लेट्सराइड, फर्स्ट गियर विमेंस मोटरसाइकिल राइडिंग स्कूल, एनफील्ड राइडर्स, द बाइकरनी, राइडरनी, लेडी राइडर्स ऑफ इंडिया, बाइकिंग क्वींस और बाइकर बेबीज़ — ये कुछ ऐसे ट्रेनिंग स्कूल हैं जो पिछले दशक में उभरे हैं. वह शुरुआती लोगों को सिखाते हैं, ट्रिप प्लान करते हैं और महिला बाइकर्स की कम्युनिटी बनाते हैं.
लेट्सराइड द्वारा आयोजित दिल्ली-आगरा राइड में, टीम का नेतृत्व को-फाउंडर और कोच शर्मा ने किया, जो कि एक पुरुष हैं, लेकिन उनकी टैगलाइन में कोई शक नहीं है: ‘Women in Front’.
मेरे लिए बाइकिंग के लिए तैयार होना किसी शादी में जाने के लिए तैयार होने जैसा है, जिससे मुझे बहुत अच्छा महसूस होता है
-51 साल की बाइकर मीनाक्षी धिमानी
47-साल के शर्मा ने कहा, “बाइक को नहीं पता कि उसे कौन चला रहा है- पुरुष या महिला.”
उन्होंने कहा,“महिलाएं हवाई जहाज उड़ा सकती हैं या चांद पर जा सकती हैं, तो उनका बाइक चलाना कोई खास बात नहीं है.”
इंडियन बाइकिंग में महिलाओं के इस टैलेंट को पंख देने वाले पहले संगठनों में से एक एनफील्ड राइडर्स था. 2012 में मुंबई में शुरू हुआ यह संगठन अब दिल्ली, बेंगलुरु, पुणे, चेन्नई, कोच्चि, चंडीगढ़, जयपुर, हैदराबाद और अहमदाबाद सहित 12 शहरों में ट्रेनिंग स्कूल चलाता है. पिछले 10 साल में इसने अपने महीने भर चलने वाले प्रोग्राम्स के ज़रिए से 20,000 से अधिक महिलाओं को ट्रेनिंग दी है.
लेट्सराइड में चार-दिवसीय प्रोग्राम के लिए ट्रेनिंग की फीस 8,400 रुपये है, जिसमें बाइक, गियर, ट्रेनर फी और फ्यूल शामिल है. नाश्ता या रोड ट्रिप करने के लिए 500 रुपये ज्यादा देने होंगे. एनफील्ड राइडर्स 8,475 रुपये में दो दिवसीय कोर्स देता है. ट्रिप के लिए बाइक किराए पर देते हैं, जिनकी लागत अलग-अलग होती है.

एनफील्ड राइडर्स की संस्थापक बलजीत गुजराल ने कहा, “पिछले पांच या छह सालों में महिलाओं की बाइकिंग में रुचि काफी बढ़ गई है. इसका मुख्य कारण उनकी बढ़ती वित्तीय आज़ादी, अपने फैसले खुद लेने की क्षमता और अन्य महिला समुदायों से मिलने वाला समर्थन और प्रेरणा है.”
उनका मानना है कि ट्रेनिंग एक ऐसी चीज़ है, जिसमें महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ता है और वह डर या शर्मिंदगी को अपने रास्ते में नहीं आने देतीं.
उन्होंने कहा, “परिणामस्वरूप, सभी तरह की महिलाएं — गृहिणियां, कामकाज़ी महिलाएं, 20, 40 या 60 की उम्र की महिलाएं — अब बाइक चला रही हैं और एक तरह से अपने जुनून, सपनों और आज़ादी को फिर से खोज रही हैं.”
सुरक्षा आपत्तियों पर सवारी
गाजियाबाद की रहने वाली उपासना बिष्ट ने छह साल घर पर रहकर गुज़ारे, इस दौरान वह सोचती रहीं कि खुद को फिर से खोजने के लिए वह और क्या कर सकती हैं. इसका जवाब दिसंबर 2024 की एक सर्द रात को मिला, जब वह इंस्टाग्राम पर स्क्रॉल कर रही थीं.
एक रील सामने आई, जिसमें एक महिला ट्रेनर दूसरी महिला को बाइक चलाने और बॉडी पोस्चर बता रही थीं. अगली रील में, महिलाओं के एक ग्रुप ने धमाकेदार साउंडट्रैक के साथ इंजन स्टार्ट किया और बाइक के लिए लंबे समय से दबा हुआ उनका जुनून जाग उठा.
यह महसूस करते हुए कि वह अपनी लाइफ में क्या मिस कर रही थीं, 34 साल की उपासना ने अपने पति से कहा कि वह ट्रेनिंग लेना चाहती हैं. उन्होंने तुरंत उनका साथ दिया और जब उन्होंने कुछ हफ्तों तक साइन अप करने में देरी की, तो उन्हें उकसाया भी. आखिरकार, फरवरी में, उन्होंने LetsRyde के साथ रजिस्टर्ड किया.

लेकिन घर में हर कोई इतनी आसानी से तैयार नहीं था.
एक शनिवार को, उन्होंने अपनी सास राखी गोंसाई से कहा कि उनकी एक क्लास है. उन्होंने पहले तो सोचा कि यह उपासना की छह साल की बेटी के लिए होगी, लेकिन जब उपासना ने बताया कि वह बाइक चलाना सीख रही हैं, तो गोंसाईं चौंक गईं.
उन्होंने पूछा, “क्यों? क्या ज़रूरत है?” वह अपनी बहु को रोकना नहीं चाहती थीं, बस उनके मन में डर था फैसले से नहीं बल्कि बाइक बुरी यादें वापस ले आती हैं, इसलिए.
55 साल की गोंसाई ने याद किया, “एक बार, मैं और मेरे पति बाइक चला रहे थे, तभी अचानक बाइक दो ट्रकों के बीच फंस गई, जिससे वह हिलने लगी. हम गिरने ही वाले थे और तब से, मुझे बाइक चलाने में डर लगता है.”
पिछले पांच या छह सालों में महिलाओं की बाइकिंग में रुचि काफी बढ़ गई है. इसका मुख्य कारण उनकी बढ़ती वित्तीय आज़ादी, अपने फैसले लेने की क्षमता और अन्य महिला समुदायों से मिलने वाला समर्थन और प्रेरणा है
— बलजीत गुजराल, एनफील्ड राइडर्स की संस्थापक
परिवार में आखिरी व्यक्ति जिन्होंने उनकी बाइकिंग क्लास के बारे में जाना, वह उपासना के ससुर हरेंद्र सिंह थे. उन्होंने उन्हें दूसरी क्लास के बाद ही उन्हें बताया.
दिल्ली पुलिस के सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर सिंह ने कहा, “मैंने अपने काम के दौरान कई बार बाइक दुर्घटनाएं देखी हैं और यह हमेशा मुझे डरा देती है. मुझे यह खतरनाक लगता है और सुरक्षा चिंताओं के कारण, मैं नहीं चाहता था कि वह बाइक चलाएं.”
उनकी आशंकाएं निराधार नहीं हैं. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की नवीनतम उपलब्ध ‘भारत में सड़क दुर्घटनाएं’ रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में दुर्घटनाओं में सबसे अधिक हिस्सेदारी दोपहिया वाहनों की थी. वह 44.5 प्रतिशत मौतों का भी सबसे अधिक हिस्सा बनाते हैं.
6 अप्रैल को गुरुग्राम के लेपर्ड ट्रेल में अपने लेट्सराइड समूह के साथ जा रहीं 28 साल की महिला की एक कार से टक्कर में मौत हो गई. वह बीएमडब्लू स्पोर्ट्स बाइक पर थी. उनके माता-पिता ने लेट्सराइड के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज कराई, सह-संस्थापक कुलदीप शर्मा ने इसे “हमें दोष देना लाज़मी था” कहा और बताया कि कार ड्राइवर की गलती थी.

हालांकि, उपासना के मामले में, परिवार ने यह देखने के बाद अपने डर को दूर कर दिया है कि वह वीडियो में कितनी खुश दिख रही हैं, उनका चेहरा खिल उठता है और वह आराम से बाइक चला पाती हैं.
गोंसाई ने कहा, “जब भी हम पार्क में मिलते हैं, तो मैं उपासना के बाइकिंग वीडियो अपने दोस्तों को दिखाती हूं. वह सभी पूछते हैं और हैरान होते हैं, जिससे मुझे गर्व महसूस होता है.”
अब, बाइक डिनर-टेबल पर चर्चा का हिस्सा है. परिवार का 4 बीएचके फ्लैट पहले से ही पारिवारिक तस्वीरों, फूलों और हरेंद्र सिंह के पुलिस पुरस्कारों से भरा हुआ है. जल्द ही, दीवार पर एक और उपलब्धि होगी: उपासना की बाइक वाली तस्वीर. वह अभी अपनी बाइक किराए पर लेती हैं, लेकिन जल्द ही खरीदने की योजना बना रही हैं.
गोंसाई ने कहा, “हम उनकी बाइकिंग फोटो दीवार पर लगाएंगे. वह पूरे परिवार में मेरे लिए सबसे अच्छी राइडर हैं. अब, मैं उनके साथ बाइक पर घूमने जाऊंगी. ऐसा कुछ जो मैंने सदियों से नहीं किया है.”

उपासना के पति अंकित सिंह जो कि भारतीय मर्चेंट नेवी में हैं और ज़्यादातर वक्त समुद्र में बिताते हैं, हमेशा से ही उनकी बाइक में रुचि के बारे में जानते थे, लेकिन उन्हें कभी एहसास नहीं हुआ कि यह कितनी गहरी है.
उन्होंने कहा, “शादी से पहले, मुझे पता था कि मेरी पत्नी को बाइक चलाना पसंद है, लेकिन यह मेरे लिए सिर्फ जानकारी थी. हालांकि, जब उन्होंने मुझे बताया कि यह उनका पैशन है और प्रोफेशनली बाइक चलाना सीखने की इच्छा जताई, तो मैंने उनका सपोर्ट किया.”
दंपति ड्राइविंग की ज़िम्मेदारी शेयर करते हैं, लेकिन जब बाइक की बात आती है, तो वह पीछे बैठना पसंद करते हैं.
उपासना ने कहा, “मैं कार चलाती हूं, लेकिन सटीक गियर के साथ बाइक चलाना सीखने से ऐसा लगता है जैसे मुझे अपनी आत्मा और खुशी मिल गई है.”
ट्रैक पर महिलाएं
नोएडा के सेक्टर-135 में 40 बीघा ज़मीन पर 38 साल की रिनचिन रॉयल एनफील्ड हिमालयन पर बैठी थीं, जबकि कोच सिफर उनके बगल में खड़े थे और शांति से समझा रहे थे कि स्पीड बढ़ाने और कम करने के लिए हैंडल को कैसे घुमाना है. कुछ मीटर दूर, एक और महिला होंडा सीडी 110 ड्रीम पर प्रैक्टिस कर रही थीं.
एडोब में प्रोग्राम मैनेजर रिनचिन ने कहा, “मेरा सपना है कि मैं दिल्ली से अरुणाचल प्रदेश, अपने गृहनगर तक अपनी बाइक चलाऊं.”
इस साल अपने जन्मदिन पर उन्होंने खुद को बाइकिंग की ट्रेनिंग दी. “अब मेरे पास मौका है और मैं अपने माता-पिता को भी इस यात्रा पर ले जाऊंगी.”

LetsRyde में रिनचिन का आज दूसरा दिन है. पहले दिन सही पोस्चर में बैठना और हैंडल को सही तरीके से पकड़ना सीखने के बाद, अब वह बाइक को तेज़ और धीमा करने के लिए हैंडल को घुमाना सीख रही है.
उस रविवार को, लगभग आठ महिलाएं पांच ट्रेनर्स के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग ले रही थीं. महिलाएं मैदान पर पहुंचीं, अपने ट्रेनर्स को हैलो बोला और अपने गियर में आने के लिए चेंजिंग रूम में चली गईं. ब्रेक के दौरान, उन्होंने अपने एक्सपीरियंस के बारे में बातचीत की. कुछ ने बाइक पर बहुत देर तक बैठने से पीठ दर्द का ज़िक्र किया, कुछ ने थ्रॉटल को संभालने से उंगलियों में दर्द की बात कही.

2016 में शुरू हुआ LetsRyde का यह चार दिन का प्रोफेशनल ट्रेनिंग प्रोग्राम है, जो कुल 16 घंटे का होता है.
को फाउंडर शर्मा ने कहा, “हम हर महीने 70-80 महिलाओं को बाइक चलाना सिखा रहे हैं.”
कोर्स में बुनियादी मैकेनिक समझ से लेकर मुश्किल सड़कों और पहाड़ी रास्तों पर बाइक चलाने के लिए ज़रूरी स्किल को बेहतर बनाने तक सब कुछ सिखाया जाता है.
पहले दिन, “ब्रेक द आइस थ्योरी” नाम के सेशन में बाइक को संभालने की बुनियादी तकनीकों और मशीन से जुड़ने के तरीके को सिखाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है. दूसरे दिन, “रॉक एंड रोल प्रैक्टिस” में गियर वर्क, एक्सेलेरेटर और क्लच प्रैक्टिस, थ्रॉटल कंट्रोल और स्टार्ट-स्टॉप ड्रिल शामिल हैं. तीसरे दिन, “मैन्युवरिंग प्रैक्टिस” में राइडर्स गड्ढों, स्पीड ब्रेकर और ऑब्सटेकल ट्रैक पर जाते हैं. लास्ट सेशन, “ऑब्सटेकल ट्रैक प्रैक्टिस” में लेन बदलना, यू-टर्न, सड़क जागरूकता, बुनियादी मोटरसाइकिल रखरखाव और असल ज़िंदगी में रोड पर आने वालीं परिस्थितियों के लिए तैयारी करना शामिल है.
24 साल की प्रिया डे ने कहा, “मैं लेट्सराइड से इसलिए जुड़ी क्योंकि यहां महिला ट्रेनर्स हैं.” उन्होंने आगे कहा, “सबसे अच्छी बात यह है कि वह आपको पीछे की सीट पर बैठकर नहीं बल्कि आपके बगल में खड़े होकर सिखाती हैं.”

दिल्ली की रहने वाली ब्यूटीशियन डे रेगुलर प्रोग्राम के लिए शहर भर में घूमती हैं. बाइक पर ट्रैफिक के बीच से गुज़रना उन्हें पसंद है.
उन्होंने कहा, “मैंने हमेशा अपने भाई को बाइक चलाते देखा है. जब भी उसका मन करता है, वह बाइक लेकर निकल जाता है. बाइकिंग सीखने के बाद, मैं अपनी ड्रीम बाइक, रॉयल एनफील्ड खरीदूंगी और उसे दिल्ली की सड़कों पर चलाऊंगी.”

नौसिखिया से लेकर राइड करने तक
लेट्सराइड के ट्रेनिंग मैदान का लेआउट एक ऑब्सटेकल कोर्स जैसा लगता है. एक हिस्से में मिट्टी पर टायर बिखरे हैं, दूसरे में मिट्टी से बना एक छोटा ब्रेकर है और राइडर्स को धीमी गति से, फोकस के साथ गोल चक्कर में चलने के लिए एक छोटा ट्रैक दिया गया है, लेकिन यही एकमात्र ट्रेनिंग का तरीका नहीं है. उदाहरण के लिए एनफील्ड राइडर्स का कोई तयशुदा ठिकाना भी नहीं है.
2012 में लॉन्च होने के बाद से दो साल तक, एनफील्ड राइडर्स ने विशेष रूप से पुरुष राइडर्स के लिए बाइकिंग टूर आयोजित किए. पत्नियां, बहनें या गर्लफ्रेंड कभी-कभी साथ आती थीं, लेकिन केवल यात्री के रूप में. जब को-फाउंडर्स ने एक बात नोटिस की, तो संगठन ने गियर बदल दिया: बहुत सी महिलाएं भी बाइक चलाना चाहती थीं.
फाउंडर बलजीत गुजराल ने कहा, “जब भी हम इन टूर पर महिलाओं से पूछते थे कि क्या वह बाइक चलाना चाहती हैं, तो वह हां कहती थीं, लेकिन उन्हें चलाना नहीं आता था — उनके पास उन्हें बाइक चलाना सिखाने वाला कोई नहीं था..”
“इसलिए, 2014 में, हमने भारत की पहली एकेडमी शुरू की जो महिलाओं को उचित बाइक चलाने की ट्रेनिंग देती है..”
इस एकेडमी की शुरुआत मुंबई में छोटे स्तर पर हुई थी, जहां एनफील्ड राइडर्स ने शुरुआत में दो साल तक केवल 15 से 20 महिलाओं को ट्रेनिंग दी. 2017 तक, उन्होंने चार शहरों तक इसे बढ़ाया, अगले तीन सालों में इसे दोगुना करके आठ और अब 12 कर दिया है.

वह एक तय शिड्यूल की बजाय इज़ी तरीके से ट्रेनिंग देते हैं. ट्रेनर्स उन जगहों पर जाते हैं जो सीखने वालों को सुविधाजनक लगती हैं — जैसे कोई खुला मैदान या शांत सड़क — और वहां वीकेंड में 5-6 महिलाओं के छोटे ग्रुप्स को ट्रेनिंग देते हैं. दो छह घंटे की क्लास होती हैं, लेकिन कुछ महिलाएं इसे चार रविवारों में बांटना पसंद करती हैं. ट्रेनिंग पूरी करने के बाद हर महिला को एक सर्टिफिकेट मिलता है — और हाईवे पर चलने का आत्मविश्वास भी.
गुजराल ने कहा, “हमारी एकेडमी में सत्तर प्रतिशत महिला बाइकर्स ने पहले कभी साइकिल भी नहीं चलाई थी.”
उन्होंने कहा कि सभी का एक ही सपना है वह बाइक से लेह तक जाएं.
सोशल मीडिया मेरी (बाइकिंग) यात्रा पर नज़र रखने का एक तरीका है. हर बार जब मैं इसे खोलती हूं और अपने वीडियो और फोटो देखती हूं, तो यह देखकर और भी खुशी होती है कि मैं कितनी दूर आ गई हूं
— नीलम
लेकिन हर कोई सूर्यास्त के बाद अकेले राइड नहीं करना चाहता. यहीं पर बाइकरनी एसोसिएशन ऑफ विमेन मोटरसाइकिलिस्ट्स की भूमिका आती है. 2011 में पुणे में स्थापित, यह भारत का पहला और सबसे बड़ा ऑल-वुमन मोटरसाइकिल कलेक्टिव है—राइडर्स के लिए एक मंच जहां वह एक-दूसरे से जुड़ सकती हैं, साथ में राइड कर सकती हैं और धूल उड़ा सकती हैं.

बाइकरनी की को-फाउंडर 36 साल की उर्वशी पटोले ने कहा, “बाइकरनी हर उस क्षेत्र की महिलाओं को साथ लाती है, जो बाइक चलाने के लिए जुनूनी हैं. यह उन्हें ग्रुप्स में राइड करने, ट्रेनिंग सेशन और बाइकिंग से जुड़ी एक्टिविटी में शामिल होने का मौका देती है.”
उन्होंने 14 साल की उम्र में बाइक चलाना सीखा था.
बाइकरनी के अब 14 शहरों में 3,000 से ज़्यादा रजिस्टर्ड मेंबर्स हैं. कुछ मेंबर्स ने थाईलैंड, वियतनाम, नेपाल और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी बाइक चलाई है.
बाइकरनी ने बॉलीवुड का भी ध्यान खींचा है. 2023 में चार महिलाओं पर “धक-धक” फिल्म बनाई गई, जो लद्दाख की मोटरसाइकिल यात्रा पर निकलती हैं. इसकी कहानी से प्रेरित होकर फिल्म का सीक्वल “धक-धक 2” बनाया जा रहा है.
स्वतंत्रता का दिखावा
मोटरबाइकिंग करने वाली महिलाएं सोशल मीडिया पर भी अपनी पकड़ बना रही हैं. पहले राइड करना, सर्टिफिकेट लेना और यहां तक कि स्लो-मो भी रील्स के लिए मसाला है, जिसमें ट्रेंडी सॉन्ग्स, फिल्टर और ग्लैमरस पोज़ शामिल हैं.
दिल्ली से आगरा तक की अपनी पहली लंबी यात्रा पर निकलीं नीलम सिंह ने इंस्टाग्राम मोंटाज में हर हाइलाइट को रिकॉर्ड किया है — अपने कोच, बाकी महिला बाइकर्स, सोलो शॉट्स के साथ तस्वीरें, सभी इलाही गाने पर सेट. उनके कैप्शन में लिखा है, “First bike trip, endless thrill! Freedom, joy, and a deeper connection with my soul. Can’t wait for the next adventure.”
एक अन्य पोस्ट में, वह यमुना एक्सप्रेसवे पर चलती हुई दिखाई दे रही हैं, बैकग्राउंड में परदेस का गाना “ये दिल दीवाना” बज रहा है. कैप्शन में लिखा है- “It feels like I have found my inner self” — इसके साथ एक लाल दिल वाला इमोजी भी है.

उन्होंने कहा, “सोशल मीडिया मेरी ट्रेवल हिस्ट्री पर नज़र रखने का एक तरीका है. जब भी मैं इसे खोलती हूं और अपने वीडियो और फोटो देखती हूं, तो यह देखकर और भी ज़्यादा खुशी होती है कि मैं कितनी दूर आ गई हूं.”
30 साल की कमल जैसे कुछ लोगों के लिए, राइडिंग मन की शांति और आज़ादी है.
51 साल की मीनाक्षी धिमानी के लिए गियरिंग एक पूजा की तरह है. दस्ताने, चश्मा, हेलमेट, जैकेट और जूते सभी उन्हें महंगे गहनों से कम नहीं लगते.
उन्होंने कहा, “मेरे लिए, बाइकिंग के लिए तैयार होना किसी शादी में जाने के लिए तैयार होने जैसा है, जो मुझे सुंदर महसूस कराता है.”

लेकिन शुक्रवार को 10 महिलाओं की राइड बिल्कुल योजना के अनुसार नहीं हुई. वह ताजमहल के सामने अपनी बाइक के साथ बेस्ट शॉट नहीं ले पाईं.
सूरज तप रहा था, दिल्ली में पारा 32 डिग्री सेल्सियस के करीब था और एनर्जी कम हो रही थी. अपनी मंजिल से महज़ 30 मिनट की दूरी पर, शर्मा ने सुरक्षा कारणों से वापस लौटने का फैसला किया.
उन्होंने कहा, “यह आखिरी राइड नहीं थी, यह सिर्फ शुरुआत थी.”
कई लोगों के लिए, यह उनकी पहली लंबी राइड थी और उनकी हिम्मत पहले ही साबित हो चुकी थी. यह सिर्फ किलोमीटर या मंजिल तक पहुंचना नहीं था.
थकी मांदी महिला बाइकर्स के ग्रुप से आवाज़ आई, “यह सिर्फ एक पॉज़ है, आगे बढ़ने और भविष्य में और भी अधिक हासिल करने के लिए एक कदम है.”
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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