scorecardresearch
Thursday, 19 December, 2024
होमफीचर'हीलिंग ख्याल': शास्त्रीय संगीत को कैसे कम डरावना बना रही हैं पाकिस्तानी गायिका ज़ेब बंगश

‘हीलिंग ख्याल’: शास्त्रीय संगीत को कैसे कम डरावना बना रही हैं पाकिस्तानी गायिका ज़ेब बंगश

ज़ेब बंगश 'हीलिंग ख़याल' लॉन्च कर रहे हैं. यह चार महीने तक चलने वाली एक संगीतमय रेजीडेंसी होगी जहां छात्र ख़याल वादक गुरु उस्ताद नसीरुद्दीन सामी से प्रशिक्षण लेंगे.

Text Size:

लोकप्रिय पाकिस्तानी गायिका-गीतकार ज़ेबुन्निसा बंगश और जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के एक व्याख्याता के बीच आकस्मिक मुलाकात ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की भुला दी गई ‘ख्याल’ शैली को केंद्र में ला दिया. हाईवे (2014), फितूर (2016) और मद्रास कैफे (2013) जैसी फिल्मों में हिट गानों में अपनी आवाज देने वाली बंगश 10 साल से लाहौर में गुरु उस्ताद नसीरुद्दीन सामी से ख्याल की ट्रेनिंग ले रही हैं.

उनकी एक दशक लंबी संगीत यात्रा आत्म-खोज और उपचार की रही है, जिसे वह अब दुनिया के साथ साझा करना चाहती हैं.

बंगश ने कहा, “उस्ताद सामी ने मुझे जो सिखाया वह सिर्फ संगीत नहीं था. ख्याल के माध्यम से उपचार की एक बड़ी प्रक्रिया थी. मुझे एहसास हुआ कि मुझे जो सिखाया जा रहा था वह सैकड़ों वर्षों की वंशावली थी और इस संगीत में आध्यात्मिक स्वर थे.”

सामी 13वीं शताब्दी में अमीर खुसरो द्वारा स्थापित कव्वाल बच्चन का घराना या दिल्ली घराना से आते हैं, और ख्याल के आखिरी बचे दिग्गजों में से एक हैं. सामी के कुछ छात्र भारत से हैं और ज़ूम पर ऑनलाइन सत्रों के माध्यम से उनसे सीखते हैं. गायन की इस शैली को अलग बनाने वाली बात यह है कि पश्चिमी संगीत पैमाने के 12 स्वरों के विपरीत, ख़याल में 49 माइक्रोटोन हैं, जो 12 प्रमुख स्वरों के बीच होते हैं.

अलंकृता श्रीवास्तव की पुरस्कार विजेता फिल्म, लिपस्टिक अंडर माई बुर्का (2016) के संगीत के लिए प्रसिद्ध बंगश ने कहा, “ख्याल के भीतर अंतर्निहित उपचार परंपरा पिछले आठ दशकों में खत्म हो गई है.”

वह आखिरकार अपने प्रोजेक्ट, ‘हीलिंग ख्याल’ को लॉन्च करने के लिए रोमांचित हैं, जो कि एक चार महीने की रेजीडेंसी होगी जहां छह लोग जिन्होंने संगीत के इस रूप को कभी नहीं सीखा है, उस्ताद सामी के तहत प्रशिक्षण लेंगे. साथ ही, जॉन्स हॉपकिन्स से होमायरा ज़ियाद समूह के व्यक्तिगत और सांस्कृतिक कल्याण पर ख्याल सीखने के प्रभावों की जांच करेंगी. निष्कर्षों को विश्वविद्यालय में प्राचीन संगीत और धर्म की कक्षा में प्रस्तुत किया जाएगा.


यह भी पढ़ें: थिंक टैंक वॉर रूम की तरह हैं, भारतीय राजनीतिक दल 2024 की इन तैयारियों में जुटे


‘हीलिंग ख़याल’ का जन्म कैसे हुआ?

ज़ियाद और बंगश की मुलाकात 2018 में न्यूयॉर्क में डोरिस ड्यूक फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हुई थी. ज़ेब चुनिंदा कलाकारों में से एक थी और दोनों महिलाओं के बीच लगभग तुरंत ही ठन गई.

बंगश ने कहा, “हमने ख्याल और इसकी माइक्रोटोनल पेचीदगियों के बारे में विस्तार से बात की.”

दोनों महिलाओं ने ख्याल के उपचार गुणों की खोज पर उत्साह से चर्चा शुरू की. येल विश्वविद्यालय से धार्मिक अध्ययन में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने वाली ज़ियाद की अनुसंधान रुचियां सूफीवाद, कुरान की व्याख्या और संयुक्त राज्य अमेरिका में समकालीन इस्लाम से लेकर धर्म और कला सहित अन्य संबंधित क्षेत्रों तक फैली हुई हैं.

बंगश के अनुसार, व्याख्याता इसके चारों ओर एक अवलोकन अध्ययन करना चाहते थे. एक साथ काम करने का मौका मिलने से दिलचस्पी जगनी शुरू हो गई.

बंगश गीत और उपचार के इस प्राचीन रूप के इंटरसेक्शन का पता लगाने के लिए हीलिंग ख्याल को अमेरिका और मध्य पूर्व के देशों में ले जाने की योजना बना रही हैं. उन्होंने कहा, “ख्याल एक माइक्रोटोनल प्रणाली पर आधारित है जहां वे 12-नोट प्रणाली को लागू नहीं करते हैं बल्कि एक सप्तक के भीतर 49-नोट प्रणाली को नियोजित करते हैं. ये सभी माइक्रोटोन उपचार उद्देश्यों के लिए विशिष्ट रागों और भावनाओं पर आधारित है.”


यह भी पढ़ें: विश्वनाथन आनंद से लेकर मैग्नस कार्लसन तक — भारत में अब ग्लोबल शतरंज लीग है, यह गेम-चेंजर है


शास्त्रीय संगीत को वैश्विक बनाना

बंगश ने अपने लोक-प्रेरित फ़्यूज़न गीतों, दिलरुबा ना राज़ी और आजा रे मोरे सइयां के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की, जिसे उन्होंने 2016 में कोक स्टूडियो पाकिस्तान के लिए प्रस्तुत किया था. दोनों ट्रैक को यूट्यूब पर लाखों लोगों ने देखा है लेकिन दिलचस्प बात यह है कि जब तक उन्होंने सामी के साथ प्रशिक्षण शुरू नहीं किया, उससे पहले तक उनकी लोक या शास्त्रीय संगीत से कोई ताल्लुक नहीं था. वह पॉप और पश्चिमी संगीत सुनते हुए बड़ी हुईं.

उन्होंने कहा, “मैं संगीत परिवार से नहीं आती हूं और मुझे शुरुआत में एक शिक्षक के साथ जुड़ना बहुत मुश्किल लगता था, लेकिन फिर अचानक मुझे उस्ताद सामी से मिलवाया गया और मैंने उनसे सीखना शुरू कर दिया.”

हर गुजरते साल के साथ, बंगश को पता चला कि शास्त्रीय संगीत “मानव जाति की भलाई” के लिए है.

उन्होंने कहा, “लेकिन अब, यह केवल मनोरंजन बन गया है, या कुछ ऐसा जो श्रोता को डराता है. आप शास्त्रीय संगीत समारोहों में जाते हैं और भयभीत होकर बाहर आते हैं. आप प्रेरित, जुड़ा हुआ या बदला हुआ महसूस नहीं करते हैं.”

बदलाव का समय आ गया है. उन्होंने कहा कि वैश्विक दर्शक धीरे-धीरे संगीत, आवृत्तियों, आवाज सक्रियण और इसी तरह के अन्य उपकरणों के माध्यम से उपचार के विचार को व्यापकता दे रहे हैं.

अगला कदम हीलिंग ख्याल को दुनिया भर के विभिन्न शहरों में ले जाना है.

“मैं इसे भारत लाना पसंद करूंगी. भारत अद्भुत है और उस्ताद साहब को भी वहां से बहुत प्यार मिला है.”

(इस फीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: पुणे में पढ़ने की संस्कृति को वापस लाने का नया तरीका, लाइब्रेरी या कैफे नहीं बल्कि पार्क है नया बुक क्लब


 

share & View comments