करनाल: 65 साल के तेजपाल के खाते में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और वृद्धावस्था पेंशन आती थी, लेकिन पिछले साल एक दिन उनके फोन पर 2,750 रुपये आए. यह रकम उनकी पेंशन नहीं थी, बल्कि उनके घर के एक और बुजुर्ग को मिली थी—एक आम का पेड़, जिसे उनकी मां ने 78 साल पहले लगाया था.
यह भुगतान हरियाणा की प्राण वायु देवता योजना के तहत हुआ था. यह 75 साल से ज़्यादा उम्र वाले पेड़ों के लिए एक अनोखी सालाना पेंशन है. इसे 2023 में शुरू किया गया ताकि हरियाणा के कम होते जा रहे इन पुराने और बड़े पेड़ों को बचाया जा सके.
तेजपाल ने कहा, “जब यह रकम बैंक में आई तो हम सब बहुत खुश थे. जब हमने इस योजना के लिए आवेदन किया था, तो हमें उम्मीद नहीं थी कि हमें पैसे मिलेंगे.” परिवार ने यह पैसा पेड़ के लिए खाद और कीटनाशक खरीदने में खर्च किया. यह पेड़ बूढ़ा ज़रूर है, लेकिन अब भी इसमें आम लगते हैं, जिन्हें परिवार हर गर्मी में बेचता है.
करनाल के पुंडरक गांव में तेजपाल के यहां पांच पेड़ों को पेंशन मिल रही है, दो निजी ज़मीन पर और तीन मंदिर परिसर में. अब लोग पेंशन मिलने की वजह से पुराने पेड़ों को काटने से पहले सोचने लगे हैं.
फरीदाबाद के पास अरावली की रक्षा करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता सुनील हरसाना ने कहा, “यह छोटी सी पहल है लेकिन लक्ष्य बड़ा है. पहले लोग पुराने पेड़ों को काट देते थे और उनका महत्व नहीं समझते थे. अब लोग जागरूक हो रहे हैं और आवेदन कर रहे हैं. रकम भले ही कम है, लेकिन संदेश बड़ा है.”

हरियाणा, जो भारत का सबसे कम हरा-भरा राज्य है, इस समय 22 जिलों में 3,876 पेड़ों को पेंशन दे रहा है. इस साल राशि 2,750 रुपये से बढ़ाकर 3,000 रुपये कर दी गई है. यह योजना पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शुरू की थी. इसके तहत 75 साल या उससे ज्यादा उम्र के स्वस्थ और वन भूमि से बाहर के पेड़ों की देखभाल करने वाले लोगों को सालाना अनुदान दिया जाता है. राज्य सरकार ने 40 देशी प्रजातियों को चुना है, जिनमें आम, नीम, पीपल, बरगद, पिलखन और कैम्ब शामिल हैं. गिरे हुए, खोखले या बीमार पेड़ इस योजना के योग्य नहीं हैं.
अधिकांश पेंशन वाले पेड़ पंचायत की ज़मीन पर हैं, फिर निजी, सरकारी, संस्थागत और धार्मिक भूमि पर.
अक्टूबर 2023 में योजना की शुरुआत पर खट्टर ने कहा था, “हरियाणा इस तरह की योजना लागू करने वाला देश का पहला राज्य है.” उन्होंने लोगों से अपील की थी कि जिनके घरों के पास 75 साल से ज्यादा पुराने पेड़ हैं, वे जिला वन विभाग में जाकर आवेदन करें. तेजपाल के परिवार ने भी ऐसा ही किया था.
तेजपाल के बेटे रवि कुमार (27) पेड़ के नीचे चारपाई पर बैठे हुए बताते हैं, “यह योजना हमें हमारे दशकों पुराने पेड़ की सही देखभाल करने में मदद करती है.”

लेकिन हर किसी को रकम नहीं मिल पाई है.
अनंगपुर निवासी जगदीश सिंह ने कहा, “मैंने अधिकारी को पेड़ की जानकारी दी और बैंक खाते का विवरण भी, लेकिन महीनों बीत गए और मुझे पेंशन की रकम नहीं मिली.”
ये पुराने पेड़ सिर्फ समय के गवाह नहीं हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भी अहम हैं. ये नए पेड़ों की तुलना में ज्यादा कार्बन सोखते हैं. इनकी गहरी जड़ें मिट्टी का कटाव रोकती हैं और बारिश के पानी को धीरे-धीरे ज़मीन में उतारती हैं.
हरियाणा के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक पंकज गोयल ने कहा, “शहरीकरण और विकास की वजह से पुराने पेड़ खतरे में हैं. जलवायु परिवर्तन के असर ने इस खतरे को और बढ़ा दिया है.”
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यह योजना प्रतीकात्मक ज़रूर है, लेकिन पर्यावरण की जागरूकता बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाती है. योजना के नियमों में साफ लिखा है कि कटाई, ज़मीन के उपयोग में बदलाव और आवास खत्म होने की वजह से पुराने पेड़ों की संख्या घट रही है.
भारतीय वन सेवा के अधिकारी विपिन कुमार ने कहा, “75 साल से ज्यादा उम्र के लोग अब अपने घर के पास पेड़ नहीं काट रहे, बल्कि पेंशन के लिए आवेदन कर रहे हैं.” अब ग्रामीण पर्यावरण दिवस पर इन पेंशन पाने वाले पेड़ों की पूजा करते हैं, उन्हें तिलक लगाते हैं और फूलों की माला पहनाते हैं.
हालांकि, वन विभाग के पास सैकड़ों आवेदन अभी लंबित हैं. अगले कुछ सालों तक यही स्थिति रहेगी. योजना की पांच साल बाद समीक्षा होगी और तब तक 4,000 पेड़ों की सीमा रखी गई है.
लंबा इंतज़ार
यह अनोखी और सोचने लायक योजना अब लालफीताशाही और देरी में फंसती जा रही है. कई गांवों में लोग, जिन्होंने महीनों पहले अपने पुराने पेड़ों का पंजीकरण कराया था, वे अब भी पेंशन आने का इंतज़ार कर रहे हैं.
पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील अरावली की तलहटी में बसे गांवों में भी यही हाल है. इनमें फरीदाबाद जिले के अनंगपुर और मांगर बानी जैसे गांव शामिल हैं, जहां इस योजना के तहत 53 पेड़ आते हैं. जून में जिला प्रशासन ने निवासियों से नए पंजीकरण करने को कहा था, लेकिन पुराने पंजीकरण कराने वालों को भी अब तक पैसा नहीं मिला है.

इस साल की शुरुआत में मांगर बानी में चार पेड़ों—आम, नीम और पीपल—के लिए भुगतान स्वीकृत हुआ था, लेकिन 2,750 रुपये की एक भी रकम अभी तक खातों में नहीं आई है.
अनंगपुर में, एक साल पहले वन अधिकारी बड़वाली चौपाल पर खड़े एक विशाल बरगद के पेड़ का विवरण लिखने आए थे. पेड़ की छांव कई घरों तक जाती है और इसके नीचे हमेशा कोई न कोई हुक्का पीता दिखाई देता है.

दिल्ली के पहले शासक अनंग पाल तोमर से जुड़े इस गांव के निवासी जगदीश सिंह ने कहा, “मैंने अधिकारियों को पेड़ की सारी जानकारी दी और बैंक खाते का विवरण भी दिया, लेकिन महीनों बीत गए, मुझे पेंशन की रकम नहीं मिली. यह इस इलाके के सबसे पुराने पेड़ों में से है और पेंशन पाने का हकदार है.”
सिंह का दावा है कि यह पेड़ 700 साल से भी ज्यादा पुराना है, लेकिन इसके महत्व को दिखाने वाला एकमात्र नया संकेत वह बेंच है, जो फरीदाबाद नगर निगम ने इसके नीचे रखी है.
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कागज़ों में दर्ज पेड़
दो साल पहले, करनाल के वन अधिकारी इस योजना का प्रचार करने पुंडरक गांव आए थे. तेजपाल ने आवेदन किया और जल्द ही अधिकारी उनके खेत में पहुंच गए. उन्होंने आम के पेड़ का निरीक्षण किया, सवाल पूछे और सारी जानकारी लिखी.
तेजपाल ने कहा, “वन अधिकारी ने हमारे आम के पेड़ को देखा और पूछा कि यह कितना पुराना है, किसने लगाया था और पेड़ की सेहत कैसी है.”

तेजपाल के आम के पेड़ को 2023-24 के लिए पेंशन मिल गई है. हालांकि, इस साल भुगतान में देर हो रही है.
यह पेड़ उनके परिवार के लिए हमेशा कमाई का भरोसेमंद साधन रहा है. अपने बेटे के साथ मिलकर दूध का काम करने के अलावा, तेजपाल हर साल इस पेड़ से आम बेचकर 10,000 रुपये से ज़्यादा कमा लेते हैं. यह पेड़ उनकी मां ने भारत की आज़ादी के तुरंत बाद लगाया था.
पेड़ों की उम्र का अंदाज़ा आंखों से देखकर और गांव के बुज़ुर्गों से पूछकर लगाया गया. साथ ही स्वामित्व, पेड़ का मोटापा (छाती की ऊंचाई पर व्यास), शाखाओं की चौड़ाई, जगह, पेड़ की सेहत आदि का भी रिकॉर्ड रखा गया.
विपिन कुमार, वन सेवा अधिकारी
करनाल में इस योजना के तहत 112 पेड़ आते हैं, जिनमें से ज़्यादातर गांवों में हैं. इस साल और 54 पेड़ों का निरीक्षण किया गया है और उन्हें भी पेंशन देने की प्रक्रिया जारी है.
वन विभाग हर पेड़ के लिए 21 कॉलम वाला एक फॉर्म भरता है, जिसमें पेड़ का मालिक, जगह, प्रजाति, ऊंचाई, शाखाओं की चौड़ाई, सेहत, उम्र और यह भी कि पेड़ आर्थिक या औषधीय रूप से कितना काम का है, सब लिखा जाता है. हर आवेदन को पांच सदस्यीय जिला समिति जांचती है. इस समिति में वन अधिकारी, उपायुक्त, पंचायत प्रतिनिधि, राज्य जैव विविधता बोर्ड और रेंज अधिकारी होते हैं.

आईएफएस अधिकारी विपिन कुमार ने कहा, “पेड़ों की उम्र का अंदाज़ा देखने और गांव के बुज़ुर्गों से बात करके लगाया गया. इसके अलावा स्वामित्व, पेड़ का आकार, शाखाओं की चौड़ाई, भौगोलिक स्थिति और सेहत जैसे विवरण भी लिखे गए.”
उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे बुज़ुर्गों की पेंशन बढ़ती है, वैसे-वैसे पेड़ों की पेंशन भी बढ़ाई जाएगी. हर पेड़ पर सरकार एक हरी पट्टी लगाती है, जिसमें उसकी प्रजाति, उम्र, गांव और योजना में शामिल होने का साल लिखा होता है.

पुंडरक के शिव मंदिर में तीन बरगद के पेड़ हैं—90, 230 और 290 साल पुराने. पिछले साल उनकी पेंशन 8,000 रुपये थी, जो सरपंच नरेश कुमार के खाते में आई.
उन्होंने कहा, “मैंने पूरा पैसा मंदिर को दे दिया. उससे पेड़ों की देखभाल और मंदिर के काम किए जा रहे हैं.”
पूरे हरियाणा में सबसे ज़्यादा पेंशन पाने वाले पेड़ रेवाड़ी (680) में हैं, उसके बाद यमुनानगर (536) और फ़तेहाबाद (335) का नंबर आता है. अधिकारियों के मुताबिक अब तक किसी भी आवेदन को खारिज नहीं किया गया है.

योजना के नियमों के हिसाब से यह पांच साल तक चलेगी और उसके बाद इसकी समीक्षा होगी. इस दौरान 4,000 पेड़ों तक को इसमें शामिल करने की सीमा तय है.
एक वरिष्ठ वन अधिकारी ने बताया कि हरियाणा इस कार्यक्रम पर हर साल करीब 1 करोड़ रुपये खर्च करता है.
उन्होंने कहा, “एक बार जब कोई पेड़ पेंशन में आ जाता है, तो समिति की मंज़ूरी के बिना उसे काटने या नुकसान पहुंचाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती.”
पेंशन वाले ‘देवता’
सरकारी पेंशन पाने के अलावा, “पेंशन वाले पेड़” साल में एक बार खास मौके पर मशहूर हो जाते हैं. प्राण वायु देवता के नाम से इन पेड़ों को माला पहनाई जाती है और उनकी पूजा की जाती है.
विश्व पर्यावरण दिवस पर हरियाणा सरकार पूरे राज्य में कार्यक्रम करती है. इन आयोजनों में वन अधिकारी, उपायुक्त और यहां तक कि प्रधान मुख्य वन संरक्षक भी गांवों में आकर इन पुराने हरे-भरे पेड़ों को सम्मान देते हैं. 5 जून के कार्यक्रम से पहले वन विभाग हर जगह “विश्व पर्यावरण दिवस प्राण वायु देवता” के पोस्टर लगाता है.
पिछले साल, सिर्फ यमुनानगर ज़िले में 507 पेड़ों की पूजा की गई थी. गांव वालों ने पेड़ों की परिक्रमा की, आरती उतारी और उन्हें सिंदूर का तिलक लगाया. इस साल फतेहाबाद में, जहां 335 पेड़ों को पेंशन मिलती है, वहां लोगों ने ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाने और बिजली-पानी बचाने की कसम खाई.

हरियाणा के वन्यजीव मंत्री राव नरबीर सिंह ने नारनौल में एक कार्यक्रम में कहा, “प्राण वायु देवता योजना का मकसद पेड़ों की कटाई रोकना और पर्यावरण की सुरक्षा को बढ़ावा देना है.”
पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक पंकज गोयल भी पिछले साल पंचकूला के पिंजौर में एक ऐसे ही कार्यक्रम में शामिल हुए थे. उन्होंने लोगों से ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाने की अपील की.
उन्होंने कहा, “इस राज्यव्यापी पूजा के ज़रिए हमारे प्राण वायु देवता पेड़ों का सम्मान किया जाता है. यह न सिर्फ उनके पर्यावरणीय महत्व को मान्यता देता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हरियाणा की प्राकृतिक धरोहर को बचाने की हमारी प्रतिबद्धता भी दिखाता है.”
लेकिन अनंगपुर गांव में लोग अपने 700 साल पुराने बरगद के पेड़ की पेंशन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं. हाल की आंधी और लगातार बारिश के बाद उन्हें डर है कि जब तक पेंशन मिलेगी, कहीं देर न हो जाए.
अनंगपुर के निवासी गौतम भड़ाना ने कहा, “गांव में हर कोई इस पेड़ को जानता है. सबकी बचपन की यादें इससे जुड़ी हैं और यह सदियों से गांव के बीचों-बीच खड़ा है. इसे तुरंत पेंशन मिलनी चाहिए.”
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