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Sunday, 22 December, 2024
होमफीचर‘कुछ भी नया नहीं’, बेटी बचाओ का नारा हरियाणा में हो रहा है नाकामयाब, फिर गिरा राज्य का Sex ratio

‘कुछ भी नया नहीं’, बेटी बचाओ का नारा हरियाणा में हो रहा है नाकामयाब, फिर गिरा राज्य का Sex ratio

हरियाणा में 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' सिर्फ एक और सरकारी कार्यक्रम बनकर रह गया है. एक अधिकारी ने कहा कि पहले कार्यक्रम का प्रबंधन सीएमओ द्वारा किया जाता था, लेकिन अब कोई नियमित बैठक नहीं होती है.

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रोहतक: महिलाएं अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाकर एक पंक्ति में खड़ी हैं और वे कन्या भ्रूण हत्या न करने का संकल्प ले रही हैं.

हरियाणा के रोहतक जिले के समर गोपालपुर गांव के एक आंगनवाड़ी केंद्र में महिलाओं ने एकजुट होकर शपथ ली कि “अगर हमारे सामने कन्या भ्रूण हत्या के मामले आएंगे तो हम आंगनवाड़ी को रिपोर्ट करेंगे.”

पिछले दो वर्षों से, आशा कार्यकर्ता हर रोज पुरुषों और महिलाओं दोनों को यह प्रतिज्ञा लेने के लिए प्रेरित कर रही हैं. इसकी शुरुआत हरियाणा सरकार की महत्वाकांक्षी ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ पहल के रूप में हुई. इसे एक ऐसे अभियान के रूप में प्रदर्शित किया गया जो बालिकाओं के प्रति राज्य के दृष्टिकोण को बदल रहा है. अब, यह हर सुबह ली जाने वाली प्रतिज्ञा बन गई है, और अब लोगों को सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रेरित नहीं किया जा रहा है. क्योंकि इससे इस गांव के लिंगानुपात में सुधार नहीं हो रहा है, जो कि 666 है. और ग्रामीण स्वास्थ्य वितरण कार्यकर्ताओं, आशा और आंगनवाड़ी के पास देने के लिए कोई जवाब नहीं है.

हरियाणा में विषम लिंगानुपात और कन्या भ्रूण हत्या पर नकेल कसने के लिए तीन दशकों के सरकारी और सामाजिक हस्तक्षेप के पहले परिणाम दिखे. जो बाद में फिर गिर गए. यह सिर्फ एक और सरकारी कार्यक्रम बनकर रह गया है और लक्ष्य, नारे, प्रोत्साहन सभी केवल भारतीय नौकरशाही की आत्मसंतुष्टि के लिए हैं.

हरियाणा के 22 में से नौ जिलों, जिनमें रोहतक, सिरसा, फतेहाबाद, सोनीपत, यमुनानगर, जिंद, चाखरी दादरी शामिल हैं, में लिंगानुपात में गिरावट दर्ज की गई है. राज्य का समग्र लिंग अनुपात भी 2022 में 942 से घटकर 2023 में 921 हो गया है. पिछले चार वर्षों में जन्म के समय लिंग अनुपात में उतार-चढ़ाव चिंता का विषय है – यह 2019 में 923 से बढ़कर 2021 में 914 हो गया, इससे पहले 2022 में मामूली वृद्धि के साथ 917 हो गई.

57 वर्षीय बिमला देवी ने कहा, उनके हाथ में एक बड़ा पोस्टर है जिस पर ”बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का नारा लिखा है, “हम शपथ ले रहे हैं, घर-घर जा रहे हैं और लोगों से बात कर रहे हैं. हम सब कुछ कर रहे हैं लेकिन लिंगानुपात में अभी भी सुधार नहीं हो रहा है.”

छह साल के प्रचार-प्रसार और राष्ट्रीय सुर्खियों के बाद, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अब किसी के लिए अनजान नहीं है. पिछले आधे दशक में हरियाणा में लिंगानुपात में सुधार में कड़ी मेहनत और प्रभावशाली सफलता के बावजूद, इसमें उल्लेखनीय गिरावट आई है. और जमीनी कार्यकर्ता, आईएएस अधिकारी और मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी चुपचाप अभियान में बढ़ती सुस्ती को स्वीकार करते हैं.

हरियाणा में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के परियोजना समन्वयक गिरधारी लाल सिंघल ने कहा, “एक समय लिंग जन्म अनुपात 800 से नीचे था. लेकिन अब हम रेड जोन से बाहर आ गए हैं. यह सच है कि बहुत अधिक सुधार नहीं हुआ है और लिंगानुपात में उतार-चढ़ाव हो रहा है, लेकिन सरकार सुधार सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास कर रही है. मोबाइल अल्ट्रासाउंड मशीनों ने इसे वास्तव में चुनौतीपूर्ण बना दिया है. लोगों ने इसे रोजगार का जरिया बना लिया है. लेकिन कम से कम हम दिल्ली और पंजाब जैसे नहीं हैं. हम इस पर काम कर रहे हैं.”

पिछले आधे दशक में हरियाणा में लिंगानुपात में सुधार में कड़ी मेहनत के और प्रभावशाली सफलता के बावजूद, इसमें उल्लेखनीय गिरावट आई है। जमीनी कार्यकर्ता, आईएएस अधिकारी और मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी चुपचाप अभियान में बढ़ती सुस्ती को स्वीकार करते हैं। | सागरिका किस्सू | दिप्रिंट

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सरकार की प्राथमिकताएं बदल गई हैं

हरियाणा यह सब पहले भी देख चुका है. यह इसके कारणों को भी अच्छी तरह से जानता है, और सदियों से चली आ रही पुत्र-वरीयता का मुकाबला करने के लिए कई उपायों की कोशिश की है. इसने खरीदी गई दुल्हनों से लेकर लुटेरी दुल्हनों तक के दौर को देखा है. लेकिन इन सबके बीच, विशेषज्ञों का मानना था कि राज्य ने स्थिति बदल ली है और संख्या नियंत्रण में है. 2019 में, राज्य ने प्रभावशाली लिंगानुपात की सूचना दी. वास्तव में, 920 पर दिल्ली 2019 में हरियाणा से भी खराब हालत में थी.

42 वर्षीय दीपिका सैनी ने पिछले साल रोहतक में जिला कार्यक्रम अधिकारी का पद संभाला. वह एक नए ‘पुराने’ संकट के बीच में आ खड़ी हुई. तब से, सैनी लिंगानुपात में हालिया गिरावट के कारण को समझने के लिए गांवों का दौरा कर रही हैं. अपनी यात्राओं के माध्यम से, सैनी ने तीन मुद्दों की पहचान की है कि ग्रामीण अभी भी लड़कियों के बजाय लड़कों को तरजीह देते हैं, और सरकार का अभियान ठहराव पर पहुंच गया है क्योंकि परिवार में बेटा पैदा होने के बाद, वह बच्चे पैदी करने भी बंद कर रहे हैं.

उन्होंने पहले के मुकाबले दोगुने प्रयास किए और उन सभी तरीकों को आजमाया जो पहले काम कर चुके थे.

पिछले एक साल में सैनी ने रोहतक शहर में कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ दस होर्डिंग्स लगवाए हैं और गांवों में सौ से अधिक दीवारों को नारों से रंगवाया है. रोहतक में 2023 में सबसे कम लिंगानुपात 883 दर्ज किया गया है और तब से जिला अधिकारी इस चिंताजनक स्थिति से निपटने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं.

कार्यकर्ताओं और अधिकारियों के साथ अपनी एक बैठक के दौरान, वह एक नया नारा भी लेकर आईं, जो एक चेतावनी की तरह था – “बेटी नहीं बचाओगे तो बहू कहां से लाओगे”. ये नारे हरियाणा के हर गांव तक पहुंच गए हैं और हर महीने अभियान के दौरान गाए जाते हैं. इन सभाओं में स्कूली लड़कियां सफेद शर्ट और टोपी पहनकर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारे लगाते हुए शहर में घूमती हैं.

उन्होंने कहा, लेकिन इन सभी प्रयासों का कोई ठोस परिणाम नहीं निकल रहा है. और यह सब देखने वालों में सैनी अकेली नहीं हैं. हरियाणा के कई जिलों के उपायुक्तों और अतिरिक्त उपायुक्तों ने अभियान को प्रभावित करने वाले दो महत्वपूर्ण मुद्दों की ओर इशारा किया, जिसमें इनोवेशन की कमी और कार्यक्रम का सरकार की प्राथमिकताओं में से प्रमुखता खोना शामिल हैं.

बेटी पढ़ाओ अभियान पर करीब से काम कर रहे एक अधिकारी ने कहा कि पहले कार्यक्रम का प्रबंधन सीधे सीएमओ द्वारा किया जाता था, लेकिन अब कोई नियमित बैठक नहीं हो रही है.

इससे पहले जिला आयुक्तों और सीएम मनोहर लाल खट्टर के पूर्व प्रधान सचिव राकेश गुप्ता के बीच बैठक में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ पर लगातार चर्चाएं हाती रही है. लेकिन अधिकारियों ने कहा कि पिछले एक साल में ऐसी कोई नियमित बैठक नहीं हुई. सरकार की प्राथमिकताएं बदल गई हैं और अभियान पिछड़ गया है.

हरियाणा के दक्षिणी जिलों में से एक में तैनात एक आईएएस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “कोई नियमित निगरानी नहीं हो रही है. पहले हर महीने एक बैठक होती थी. अब, यह कई महीनों तक नहीं होती है. सरकार द्वारा ध्यान न देने के कारण, योजनाएं अब मानों इवेंट मैनेजमेंट कार्यक्रम बन गए हैं.”

दिप्रिंट ने कई उपायुक्तों (डीसी) से बात की, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर खुलासा किया कि उन्हें लगता है कि सरकार उनकी सराहना नहीं कर रही है और इसलिए, कई लोगों ने कार्यक्रम पर काम करने के अपने प्रयास बंद कर दिए हैं. अधिकारियों ने यह भी कहा कि सीएमओ कर्मचारियों के साथ बैठकों के दौरान अगर वे बताते हैं कि उनके कई दिन बेटी बचाओ को लागू करने में बीत गए, तो उन्हें अक्सर डांटा जाता है और उनके काम की गिनती तक नहीं की जाती है. अधिकारियों से कहा गया है कि वे केवल कार्यक्रम के दस्तावेजीकरण कार्य पर ध्यान केंद्रित करें और दौरों में समय बर्बाद न करें.

एक अन्य डीसी ने कहा, “जब एक आईएएस अधिकारी को एक जिले का प्रभार दिया जाता है, तो उन्हें उस क्षेत्र को समझने और नई रणनीतियों के साथ आने में कुछ महीने लगते हैं. किसी भी काम पर मेहनत करते हैं और जब परिणाम का समय आता है तो उनका तबादला कर दिया जाता है. इससे अधिकारी निराश महसूस कर रहे हैं.”

लेकिन सैनी ने रोहतक में लिंगानुपात में बदलाव लाने की ठान ली है. सैनी ने कहा, “मैंने भी पुत्र-वरीयता संस्कृति को करीब से देखा है. मेरी मां मुझे टीका लगवाना चाहती थीं, लेकिन मैं जॉइंट फैमिली में रहती थी और घर के बुजुर्ग इस विचार के खिलाफ थे.” जैसे-जैसे वह बड़ी हुई, उन्हें चलने में दिक्कत होने लगी और बाद में वह आंशिक रूप से विकलांग हो गई.

वह अब उस क्षेत्र की ओर रुख कर रही है जिसमें निगमों से लेकर सरकारों और राजनीतिक दलों तक हर कोई इन्फ्लुएंसर्स को शामिल कर रहा है.

रोहतक के जिला विकास भवन में अपने कार्यालय में, वह हरियाणा में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की एक सूची तैयार कर रही है.

सैनी कॉमेडियन राखी लोहचब और हिमांशी जांगड़ा जैसे नामों को अपने साथ जोड़ना चाहती हैं. हालांकि सैनी इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि उनके विचार को स्वीकार किया जाएगा या नहीं.

लड़कियों को प्रोत्साहित करना

यादव-गुर्जर बहुल जिले महेंद्रगढ़ में लिंगानुपात 2023 में घटकर 887 हो गया है.

महेंद्रगढ़ जिले के नारनौल उपमंडल में अपने कार्यालय में, उपायुक्त मोनिका गुप्ता बधाई प्रमाणपत्रों पर हस्ताक्षर कर रही हैं और नवजात शिशुओं के लिए दिए गए गिफ्ट हैंपर की गिनती कर रही हैं. सात परिवारों ने बेटी को जन्म दिया है. परिवारों को डीसी द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रमाण पत्र और नवजात शिशुओं के लिए आवश्यक वस्तुओं के साथ उपहार दिया जा रहा है.

गुप्ता “मेरी लाडो, मेरी शान” अभियान चला रही हैं जिसके तहत पारंपरिक रूप से लड़कों के लिए किया जाने वाला कुआं पूजन अब लड़की के जन्म पर भी मनाया जा रहा है. यह उन सदियों पुरानी रीति-रिवाजों को उलटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिनमें लड़कों को ही महत्व दिया जाता था. गुप्ता बाल एवं महिला विकास अधिकारियों के साथ कार्यक्रम स्थल पर पहुंचती हैं और बालिकाओं के महत्व पर भाषण देती हैं. वह ग्रामीणों तक संदेश पहुंचाने के लिए नुक्कड़ नाटक भी आयोजित करती हैं. नाटकों का आयोजन कुरूक्षेत्र के Wahfoundation द्वारा किया जाता है और ये हास्यप्रद प्रकृति के होते हैं.

महेंद्रगढ़ की उपायुक्त मोनिका गुप्ता मेरी लाडो, मेरी शान अभियान चला रही हैं, जिसके तहत पारंपरिक रूप से लड़कों के लिए की जाने वाली कुआं पूजन उत्सव अब लड़की के जन्म पर भी मनाया जाता है। | सागरिका किस्सू | दिप्रिंट

नाटकों में से एक है सपने की सच्चाई. नाटक का नायक (एक आदमी) जब अपने सपने में गर्भवती हो जाता है और बच्चे का गर्भपात कराने की कोशिश करता है, तो उसे समझ में आता है कि उसने अपनी पत्नी को किस दर्द से गुज़रने पर मजबूर किया था. जागने पर, वह गर्भपात नहीं करने का विकल्प चुनता है और दूसरों को शिक्षित करने को अपने जीवन का मिशन बनाता है.

हरियाणा में महिला अधिकारी व्यक्तिगत रूप से लिंगानुपात की समस्या को हल करने में लगी हुई हैं और ग्रामीणों से जुड़ने के लिए अपने स्वयं के अनुभवों का उपयोग कर रही हैं.

उनके सभी भाषणों में एक बात आम है, “मैं एक लड़की और एक डीसी हूं, कल आपकी लड़की भी डीसी बन सकती है.”

गुप्ता ने एक अन्य बधाई प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कहा, “मैं उनमें सिर्फ उम्मीद जगाने की कोशिश कर रही हूं. हम केवल दो दृष्टिकोण अपना सकते हैं – एक नियामक दृष्टिकोण जो PCPNDT के अंतर्गत आता है और एक प्रेरक दृष्टिकोण जो सामाजिक व्यवहार को बदलने का प्रयास करना है. समाज में बनाए गए सामाजिक ताने-बाने को बदलने में कुछ समय लगता है.” लेकिन ये सारे उपहार सरकार के फंड से नहीं हैं, गुप्ता ने सामाजिक संगठनों को शामिल किया है जो इस उद्देश्य के लिए स्वेच्छा से दान करते हैं.

हरियाणा में कम लिंगानुपात के कारण न केवल पुरुष दूसरे राज्यों से पत्नियां खरीदते हैं. यहां तक कि परिवारों को लुटेरी दुल्हनों की परेशानी से भी गुजरना पड़ा. जिसके बाद वे “शर्मिंदगी” के कारण पुलिस को रिपोर्ट भी नहीं करते है. फ्लाई-बाय-नाइट ऑपरेटरों द्वारा भारी कीमतें, अल्ट्रासाउंड उपकरण और कीमत को लेकर लड़ाई जिसने दलालों और नीम-हकीमों को पनपने पर मजबूर कर दिया, जबकि उनका पता नहीं चलना भी सरकार के लिए एक चुनौती बन गई है.

तभी अधिकारियों ने स्वास्थ्य विभाग और पुलिस द्वारा गर्भवती महिलाओं को उनके दूसरे तिमाही में (जब भ्रूण की पहचान की जा सकती है) तैनात करने के बारे में सोचा.

एक जिले की निगरानी के साथ आने वाली कई जिम्मेदारियों के साथ, गुप्ता महेंद्रगढ़ में लिंग निर्धारण रैकेट पर भी कड़ी नजर रखती हैं. उनके साथ मुख्य चिकित्सा अधिकारी, डिकॉई और अन्य लोग भी हैं.

लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि इन दिनों एक प्रलोभन प्राप्त करना और उन्हें प्रशिक्षित करना कठिन है. डिकॉई के लिए 1 लाख रुपये का पुरस्कार आरक्षित होने के बावजूद, वे आगे नहीं आ रहे हैं. डिकॉई में गर्भवती महिलाएं होनी चाहिए और उन्हें प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि क्लिनिक में कैसे कार्य करना है.

गुप्ता ने इसके लिए राजस्थान और पंजाब की सीमाओं पर छोटे DIY मशीनों और आसानी से उपलब्ध अप्रशिक्षित दलालों को जिम्मेदार ठहराया.

वह नए-नए आइडिया के साथ एक्सपेरिमेंट भी कर रही हैं. नवंबर 2023 में, उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या पर जागरूकता बढ़ाने के लिए एक सेमिनार का आयोजन किया. उन्होंने 374 गांवों के सरपंचों, पंचों, आगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया और एक कागज देकर उनसे लिंग परीक्षण में शामिल क्लीनिकों और लोगों के नाम लिखने को कहा. गुप्ता ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनका नाम उजागर नहीं किया जाएगा.

“हमें 500 चिटें मिलीं. कई चिटों पर एक ही नाम था और इस तरह हमने छापेमारी शुरू की.”

दिसंबर में, गुप्ता की टीम राजस्थान के कोटपूतली में एक क्लिनिक पर छापा मारने जा रही थी, लेकिन डॉक्टर को कुछ गड़बड़ी का आभास होने पर आखिरी मिनट में अपॉइंटमेंट कैंसल कर दी गई.

गुप्ता ने कहा, “जब टीम क्लिनिक पहुंची, तो वह बंद था और बाद में उन्हें पता चला कि डॉक्टर किसी अन्य जिले में शिफ्ट हो गई, जिस कारण हमने एक बहुत महत्वपूर्ण मौका गवा दिया है, और यह कई चुनौतियों में से एक है.”

हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री ने कम लिंगानुपात के पीछे अवैध लिंग जांच सुविधाओं को भी जिम्मेदार ठहराया है.

अनिल विज ने हरियाणा में एसआरबी में गिरावट के बाद संवाददाताओं से कहा, “पड़ोसी राज्यों में अवैध लिंग पहचान सुविधाओं की उपलब्धता के कारण ‘बेटी बचाओ’ कार्यक्रम असफल हो रहा है. हरियाणा के लोग अब पड़ोसी राज्यों में लिंग परीक्षण कराना पसंद करते हैं.”

2023 में, हरियाणा में स्वास्थ्य विभाग ने 36 सफल अंतर-राज्य छापेमारी और इतनी ही एफआईआर कीं. 2023 में लगभग 85 एफआईआर दर्ज की गईं और 2022 में प्री-नेटल डायग्नोस्टिक तकनीक (पीएनडीटी) और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम के तहत 105 एफआईआर दर्ज की गईं.


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बेटे के बिना कैसा होगा जीवन

कैथल में रहने वाली आशा तीन माह की गर्भवती है. अपनी पहली दो गर्भावस्थाओं में उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया. वह एक बेटे के लिए बेचैन है और यहां तक कि पड़ोस के पंडित के पास भी गई है, जिसने सूर्योदय से पहले पीने के लिए राख दी थी.

उन्होंने अपने पेट को छूते हुए कहा, “पंडित ने कहा था कि अगर गर्भ में बच्चा लड़की होगी तो लिंग बदल जाएगा.”

आशा आश्वस्त नहीं है. वह और उनके पति राकेश उत्तर प्रदेश में एक सस्ते लिंग परीक्षण डॉक्टर की तलाश में हैं. उनके वॉट्सऐप पर उन्हें पंजाब और राजस्थान से डॉक्टरों की जो लिस्ट मिली वो काफी महंगी हैं. उन्होंने कहा कि उनके डॉक्टर ने उनके गिरते स्वास्थ्य के कारण तीसरे बच्चे के बारे में सोचने से बचने के लिए कहा.

“समाज आपको जीने नहीं देता, बेटा न होने के कारण परिवार हेय दृष्टि से देखता है. एक महिला को काफी आलोचनाओं और तानों का सामना करना पड़ता है. और मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि बेटे के बिना हम अपना बुढ़ापा किसके साथ बिताएंगे.”

सरकार का महिलाओं के साथ व्यवहार

जज्जर के बादली गांव में, रीता देवी की रोजमर्रा की दिनचर्या में घर-घर जाकर लोगों को लिंगानुपात और लड़कियों के महत्व के बारे में शिक्षित करना शामिल है. लेकिन उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है, गुस्से भरी निगाहों से देखा जाता है और लोग अक्सर उनकी बात सुनने को तैयार नहीं होते हैं.

देवी ने कहा कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की मुहिम कमजोर हो रही है. गांव के लोग उनकी बात सुनने को तैयार नहीं हैं और केवल एक ही सवाल पूछते हैं, “अगर सरकार को लड़कियों की इतनी ही चिंता है, तो उन्होंने हमारी महिला पहलवानों को विरोध क्यों करने दिया? उन्होंने पूर्व मंत्री संदीप सिंह और बृजभूषण के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं की?”

लेकिन देवी के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं है. देवी ने कहा, “मैं उनसे इन सवालों को सीएम विंडो के माध्यम से मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से पूछने के लिए कहती हूं. इन सवालों का जवाब देना मेरा अधिकार क्षेत्र नहीं है.”

उन्हें एक बैठक के दौरान तत्कालीन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से यह सवाल पूछना याद आया. हर महीने ग्रामीण स्वास्थ्य वितरण कार्यकर्ताओं के साथ स्वास्थ्य विभाग की दो बैठकें होती हैं और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ भी इनमें से एक विषय है. लेकिन कार्यकर्ताओं ने कहा कि सरकार के समर्थन के बिना, योजना के कार्यान्वयन में ज्यादा प्रगति नहीं हुई है.

देवी ने कहा, “अधिकारियों को कोई जानकारी नहीं थी और उन्होंने हमसे किसी तरह काम निपटाने को कहा और इस मुद्दे को वरिष्ठों के सामने उठाने की सलाह दी, लेकिन तब से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.”

एक अन्य आशा कार्यकर्ता बंटी ने कहा कि ‘बेटी बचाओ कार्यक्रम’ ने आवश्यक तात्कालिकता खो दी है और कार्यकर्ता और अधिकारी प्रेरित नहीं हैं.

उन्होंने कहा, “यह एक दिनचर्या बन गई है. हम वही चीज़ बार-बार कर रहे हैं. शपथ ले रहे हैं, महिलाओं को शिक्षित कर रहे हैं, नारे लगा रहे हैं. अब इसमें कुछ भी नया नहीं है.”

बंटी के घर पर महिलाएं ‘बेटी बचाओ’ अभियान के लिए आगे की रणनीति पर चर्चा करने के लिए एकत्र हुई हैं. बंटी आशावादी है कि बदलाव आएगा लेकिन उमरेश आश्वस्त नहीं है. उन्होंने कहा कि महिलाओं की संख्या कम होने के कारण गांवों में पुरुष दूसरे राज्यों की महिलाओं को खरीदते हैं लेकिन परिवार और पुरुष इसे नहीं समझते हैं. बंटी ने पलटवार करते हुए कहा कि स्थिति दस साल पहले से बेहतर है.

उमरेश के पूरे गांव ने पहलवानों को फोन पर विरोध करते और रोते हुए देखा. जब ग्रामीण फोन पर पहलवानों के वीडियो देख रहे थे, तो उमरेश ने उन्हें यह कहते हुए सुना कि “राज्य ने उनकी महिलाओं अकेले छोड़ दिया है.”

उमरेश पूछते हैं, “सरकार चाहती है कि हमारी बेटियां हों और फिर वे उनकी रक्षा नहीं करेंगी. हमारी महिला पहलवानों से विरोध और इस्तीफा दिलवाकर सरकार ने खुद महिलाओं की जगह पुरुषों को चुना है.”

“वे ज़मीनी स्तर पर लोगों को क्या संदेश दे रहे हैं? कि तुम लड़कियों को जन्म दो और जब वे मुसीबत में होंगी तो हम उन्हें अकेला छोड़ देंगे.”

हर तरफ चुप्पी छा जाती है.

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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