नई दिल्ली: जनकपुरी बी-ब्लॉक के इस डीडीए पार्क में 71 वर्षीय राजकुमार भागचंदानी हर रविवार को अपने अंदर के रफी को बाहर निकालते हैं. अपनी ब्राउन और ब्लैक राजेश खन्ना स्टाइल कैप में, वह माइक पर एक बॉलीवुड क्लासिक से दूसरे पर जाते हुए दिखाई देते हैं.
भागचंदानी उन 92 लोगों के ग्रुप का हिस्सा हैं — जिनमें से ज़्यादातर वरिष्ठ नागरिक हैं — जिसका नाम है ‘धूम मचालो ग्रुप’. उन्होंने लाफ्टर क्लब, भजन और सुबह की आरती की जगह कराओके का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. पुराने बॉलीवुड और पंजाबी हिट गानों पर नाचना और गाना रविवार का नया मनोरंजन है.
और हां, वह इसमें अकेले नहीं हैं जो पार्क में होने वाले इस रोज़ाना के फन में थोड़ी मस्ती जोड़ना चाहते हैं. वरिष्ठ नागरिकों के एक और समूह ने हैप्पी एनवायरनमेंट टी क्लब बनाया है, जहां वह हर रोज़ चाय और समोसे पर मिलते हैं.

थिएटर कलाकार भागचंदानी ने कहा, ‘‘मैं जगराता और भजन के लिए बहुत जवां हूं.’’ हाथ में कराओके माइक लेकर वे मुकेश के 1964 के गीत, ‘तेरी निगाहों पे मर मर गए हम’ शुरू करते हैं.
यहां कोई मंच नहीं, कोई स्पॉटलाइट नहीं, बस एक पोर्टेबल माइक, एक टैबलेट और एक स्पीकर — डीडीए के इस पार्क में आने वालों का एक ही एजेंडा है: दिल खोलकर गाना.
राकेश बब्बर (52) ने कहा, ‘‘हम इसे कराओके कहते हैं, लेकिन यह उससे कहीं बढ़कर है,’’ जिन्होंने पिछले साल बसंत पंचमी पर अपने दोस्तों के साथ 50,000 रुपये के साथ इस ग्रुप को शुरू किया था.

उनके यहां मंजू शर्मा जैसी मशहूर रेजिडेंट मेंबर भी हैं, जिन्होंने फिल्म विक्की डोनर (2012) में मिसेज भाटिया की भूमिका निभाई थी. एक्टर-सिंगर रोहित खन्ना, जो हाल ही में नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ एक फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं, वह भी इस ग्रुप को शुरू करने वाले मेंबर्स में से एक हैं.
बब्बर ने कहा, ‘‘यह सिर्फ एक रुटीन नहीं, यह एक थेरेपी है. यह हमारी लाइफलाइन है.’’

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मुंबई ड्रीम
‘शो’ से पहले, सैर करने वाले लोग फिटनेस रूटीन, योगा और बाकी एक्सरसाइज करते हैं.
सीपी चौहान आज के मेंबर्स के लिए सॉन्ग्स की लिस्ट बना रहे हैं, बब्बर साउंड सिस्टम सेट कर रहे हैं, म्यूज़िक शुरू करने के लिए अपने फोन के ब्लूटूथ को कनेक्ट करते हैं और ठीक 7:30 बजे, लता मंगेशकर के ‘लग जा गले’, किशोर कुमार के ‘ये शाम मस्तानी’ और ‘चौदहवीं का चांद हो’ जैसे गीत इस पार्क के कोने से सुने जा सकते हैं.
अपनी पत्नी के साथ कराओके मॉर्निंग के लिए आने वाले रिटायर्ड इंजीनियर ने कहा, “इस उम्र में, ज़्यादातर लोग सोचते हैं कि हम बस घर पर बैठकर टीवी देखते होंगे, लेकिन हम यहां पेड़ों के नीचे म्यूज़िक शो कर रहे हैं.”

ग्रुप के एक मेंबर ने माइक उठाया और गाना शुरू किया, ‘ज़िंदगी एक सफर है सुहाना’. लोग तालियां बजाते हैं. उनमें से कुछ उठकर नाचने लगते हैं. पास से गुज़र रही एक महिला जो अपना कुत्ता घुमाने लाई थीं, अपने फोन पर इस पल को कैद करने के लिए दौड़ पड़ती हैं.
67-वर्षीय रिटायर्ड टीचर सुनीता ने कहा, ‘‘हमारे लिए यह हमारी चिंता दूर करने का तरीका है. हम अपनी चिंताओं को पीछे छोड़ देते हैं और संगीत में खो जाते हैं.’’
अगले गाने के लिए उनका नंबर है और वह ‘इक परदेसी मेरा दिल ले गया’ गाना चाहती है. हर सेशन में लगभग 50 से 60 गाने होते हैं.
‘धूम मचालो ग्रुप’ में शामिल होने के लिए कोई फीस नहीं है, लेकिन लाइन लंबी है. कभी-कभी मेंबर्स को अपनी बारी के लिए हफ्तों तक इंतज़ार करना पड़ता है. यह ग्रुप के शुरुआती दिनों से बहुत अलग है जब बब्बर और उनके दोस्त चंद्रप्रकाश चौहान ने इस क्लब को शुरू करने और अपने दोस्तों के साथ म्यूजिक के प्रति अपने प्यार को शेयर करने का फैसला किया था.
बब्बर ने याद किया, ‘‘शुरुआत में, लोग रुकते थे, एक मिनट सुनते थे और चुपचाप आगे बढ़ जाते थे, लेकिन धीरे-धीरे वह लंबे समय तक रुकने लगे. फिर अगले हफ्ते वापस आए और फिर उसके एक हफ्ते बाद.’’
उन्होंने कहा, ‘‘आज, हमें टैगोर गार्डन और तिलक नगर से निमंत्रण मिलते हैं. हमारा सपना इस शो को मुंबई तक ले जाना है. यह हमें पुराने ऑर्केस्ट्रा के दिनों की याद दिलाता है.’’
चाय, राजनीति और यादें

जिस पार्क में ‘धूम मचालो’ के मेंबर्स इकट्ठा होते हैं, उसी पार्क में ‘हैप्पी एनवायरनमेंट टी क्लब’ भी हर सुबह इकट्ठा होता है. यह बिजनेसमेन, रिटायर्ड सरकारी अधिकारियों और प्रोफेशनल्स का पुरुष ग्रुप है जो सेशन को बहुत गंभीरता से लेते हैं.
बातचीत परिवार से क्रिकेट और राजनीति की ओर बढ़ जाती है. मोनू सच्चर (50) अपने दुबई से लौटे दोस्त रूप कुमार गरीबदासानी को चाय की केतली गैस स्टोव पर रखते हुए चिढ़ाते हैं.
उन्होंने पंजाबी में उन्हें छेड़ा, “ऐवें जे कोई नार नहीं, जेड़ी ऐदी यार नी.…(ऐसी कोई महिला नहीं है जो उनकी दोस्त न हो)”.

हर हफ्ते, एक सब-ग्रुप, कलर-कोडित शिड्यूल — हरा, नारंगी, पीला या नीला — के आधार पर चुटकुलों से लेकर नाश्ते तक की कमान संभालता है. इसमें सर्दियों में छोले भटूरे से लेकर गर्मियों में ताज़ा ठंडाई और फलों की चाट और बॉम्बे सैंडविच और पोहा तक शामिल हो सकते हैं.
महामारी से ठीक पहले शुरू हुआ यह टी क्लब धूम मचालो से प्रभावित है. दोनों ग्रुप अक्सर मिलकर काम करते हैं. अब, कराओके मेनू में है और युवा मेंबर्स इसमें शामिल होना चाहते हैं.
28-वर्षीय ताइक्वांडो टीचर आशीष ने ग्रुप को प्रभावित करने के लिए शाहरुख खान की फिल्म ‘कल हो ना हो’ के गाने गाए. एक अन्य निवासी, रिटायर्ड प्रोफेसर ने आरडब्ल्यूए से नई दिल्ली में इन पहलों का विस्तार करने का मामला बनाया और सिर्फ म्यूजिक नहीं — वह कविता पाठ और बहस के भी प्रोग्राम चाहते हैं.
जैसे ही दो घंटे खत्म होते हैं, मेंबर्स अनिच्छा से अपने माइक्रोफोन पैक करते हैं, लेकिन हंसी और गुनगुनाहट बंद नहीं होती. मेंबर्स में 73-वर्षीय मीना, एक रिटायर्ड टीचर हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘हम बूढ़े हो सकते हैं, लेकिन हमने जीना नहीं छोड़ा है.’’
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