scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमफीचरनेशनल म्यूज़ियम के गार्ड, गाइड सिर्फ कलाकृतियों के लिए फ़िक्रमंद नहीं — नौकरी बचाना भी है चुनौती

नेशनल म्यूज़ियम के गार्ड, गाइड सिर्फ कलाकृतियों के लिए फ़िक्रमंद नहीं — नौकरी बचाना भी है चुनौती

मोदी सरकार के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का एक हिस्सा, युगे युगीन भारत नेशनल म्यूज़ियम तीन महीने में खुलेगा, लेकिन राष्ट्रीय संग्रहालय में कलाकृतियों को ट्रांसफर करने का काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है.

Text Size:

नई दिल्ली: वीआईपी मेहमानों की एक टीम दिल्ली के नेशनल म्यूज़ियम में हड़प्पा गैलरी में प्रदर्शित डांसिंग गर्ल और देवी मां की मूर्ति को देखने आई हैं. म्यूज़ियम के गाइड वीआईपी मेहमानों की तरफ देख कर मुस्कुराते हैं, सिर हिलाते हैं और जवाब देते हैं, लेकिन वे अपने में चल रही उथल-पुथल को पूरी तरह छिपा नहीं पाते हैं. उन्हें पता चला है कि प्राचीन सभ्यता के इन प्रमुख प्रतीकों के साथ-साथ दो लाख कलाकृतियों और हज़ारों साल पुरानी कला से जुड़ी मुर्तियों को साल के अंत तक प्रतिष्ठित इमारत से एक नई जगह पर ट्रांस्फर किया जाएगा.

नेशनल म्यूज़ियम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर पूछा, “अगर आपको अपना घर छोड़ने के लिए कहा जाए तो आपकी क्या महसूस होगा?”, “मैंने अपनी ज़िंदगी के 34 साल इस म्यूजियम को दिए हैं; मैं यहां की हर दरार और दीवारों को जानता हूं.”

स्पष्टता की कमी के कारण गार्ड से लेकर गाइड तक हर कोई भ्रमित और चिंतित है कि अगले साल उनके पास नौकरी होगी या नहीं. क्यूरेटर यह सुनिश्चित करने के विचार से दबे हुए हैं कि मौर्य युग के मिट्टी के बर्तनों से लेकर लघु दशावतार मंदिर तक हर वस्तु को बिना किसी नुकसान के सुरक्षित स्थान पर ले जाया जाए. ब्रेक-रूम, बाथरूम और गैलरी में हर कोई इसी बारे में बात कर रहा है.

नेशनल म्यूज़ियम, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर्स फॉर दि आर्ट्स (आईजीएनसीए) और भारत के नेशनल आर्काइव ऑफ इंडिया के कॉन्ट्रैक्ट के साथ, नरेंद्र मोदी की सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत इस्तेमाल किए जाने की उम्मीद है. कलाकृतियों को युगे युगीन भारत नेशनल म्यूज़ियम में ट्रांसफर कर दिया जाएगा, जो रायसीना हिल पर उत्तर और दक्षिण ब्लॉक में स्थित 1.17 लाख वर्ग मीटर में फैला एक नया म्यूज़ियम परिसर है. यह वाशिंगटन डीसी के नेशनल मॉल के समान दुनिया का सबसे बड़ा म्यूज़ियम होगा.

राष्ट्रीय संग्रहालय का मुख्य प्रवेश द्वार | हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट
राष्ट्रीय संग्रहालय का मुख्य प्रवेश द्वार | हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

तीन महीने से भी कम समय बचे रहने के बावजूद, डिस्प्ले को ट्रांसफर करने का काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है. वास्तुकार गणेश बीकाजी देवलालीकर द्वारा डिजाइन की गई प्रतिष्ठित इमारत का भाग्य और भारत के इतिहास के टुकड़ों के लिए नया स्थान अनिश्चित बना हुआ है. हालांकि, ऊपर ज़िक्र किए गए वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि उन्होंने सुना है कि म्यूज़ियम की इमारत को गिराया नहीं जाएगा. म्यूज़ियम के गलियारे अफ़वाहों और परिवर्तन की सुगबुगाहट से भरे हुए हैं.

बंद कमरे में हो रही बैठकें अटकलों को हवा दे रही हैं. एक म्यूज़ियम हिस्टोरियन ने कहा कि संस्कृति मंत्रालय द्वारा विवरण तैयार किया जा रहा है. अधिकारी ने कहा कि उन्होंने “भंडारण के लिए उपयुक्त स्थान” खोजने और मौजूदा कर्मचारियों के भविष्य पर चर्चा करने के लिए केंद्रीय संस्कृति सचिव गोविंद मोहन से मुलाकात की.

म्यूज़ियम अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “हम जानते हैं कि यह होने वाला है, लेकिन हमारे पास अभी तक कोई संक्षिप्त जानकारी नहीं है. हमें नहीं पता कि यह कैसे होगा.”

दिप्रिंट ने संस्कृति मंत्रालय में संयुक्त सचिव मुग्धा सिन्हा और उप सचिव जीवन बच्चाव से फोन कॉल और ईमेल के जरिए संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. उनसे जवाब आने के बाद इस खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.


यह भी पढ़ें: ‘Adopt a Heritage 2.0’: स्मारकों का रखरखाव अब कॉरपोरेट्स के जिम्मे, ASI ने लॉन्च की नई पहल


भारत के इतिहास को सावधानी से संभालें

सबसे नाज़ुक काम लगभग दो लाख पुरावशेषों, पेंटिंग्स, टेपेस्ट्री, मिट्टी के बर्तनों के टुकड़ों, मध्यकालीन हथियारों, आभूषणों, सिक्कों और अन्य कलाकृतियों को सभी गैलरीज़ से होते हुए अस्थायी भंडारण तक ट्रांसफर किए जाने हैं.

अधिकारी ने आगे कहा, “कलाकृतियों के लिए एक खास वातावरण, तापमान और लाइट व्यवस्था की ज़रूरत होती है. हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि क्या प्रशासन ने स्थानांतरण की योजना बनाते समय इन सभी कारकों पर विचार किया है.”

कलाकृतियों को तीन अलग-अलग समूहों में बांटा गया है, जिनमें सबसे अहम है AA कैटेगरी. उन्होंने बताया “यह दुर्लभ से भी दुर्लभ है. इस कैटेगरी में अचल पुरावशेष (जिन्हें हटाया नहीं जा सकता है) शामिल हैं.” इसमें कुरान की एक दुर्लभ प्रति भी शामिल है.

हालांकि, वह नहीं जानते हैं कि इस कैटेगरी में कितनी वस्तुएं आती हैं. अधिकारी ने कहा, “हमारे पास पूरी लिस्ट नहीं है. इस डिपार्टमेंट में सेक्शन हेड का पद अभी भी खाली है.”

दूसरी कैटेगरी ‘ए’ है, जिसमें गुप्त काल (चौथी-छठी शताब्दी ईस्वी) से शिव और पार्वती के सिर जैसी दुर्लभ कलाकृतियां शामिल हैं और फिर जनरल कैटेगरी आती है.

अधिकारी ने कहा, “हम भारत के इतिहास को बदल देंगे. अगर इन पुरावशेषों को कोई नुकसान होता है तो हम नौकरियां खो सकते हैं.”

कर्मचारियों के पास चिंता करने का अच्छा कारण है — कुछ वस्तुओं में नाज़ुक कपड़े, ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियां और टेराकोटा का काम शामिल हैं. इतने बड़े काम के बारे में अंधेरे में रखे जाने के कारण उनकी चिंता में आक्रोश साफ़ नज़र आता है.

एक महिला क्यूरेटर ने कहा, “योजना बैठक में कोई भी कर्मचारी मौजूद नहीं था.”

भारत के इतिहास के संरक्षक यह अच्छी तरह से जानते हैं कि यह योजना चुनाव के नतीजे और राष्ट्र के मूड के आधार पर बदल सकते हैं. हालांकि, यह कोई पहली बार नहीं है उन्होंने अन्य देशों द्वारा इसी तरह म्यूज़ियम को शिफ्ट करते देखा है. 2021 में 22 प्राचीन मिस्र की शाही ताबूतों (ममी) को विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए कैप्सूल में काहिरा में एक नए म्यूज़ियम में ले जाया गया.

क्यूरेटर ने कहा, “हमने इस चुनौती के लिए पहले से ही खुद को तैयार कर लिया है, लेकिन क्यूरेटर दिव्य नहीं हैं. कुछ भी गलत हो सकता है.”

हालांकि, उनके सहयोगी को भरोसा है कि ट्रांसफर सुचारू रूप से आगे बढ़ेगा. उन्होंने बताया कि अतीत में पुरावशेषों को पेशेवर रूप से पैक किया गया है और अन्य म्यूज़ियम में भेजा गया है.

महिला क्यूरेटर ने कहा, “हर चीज़ योजना के अनुसार की जानी चाहिए. हमें पता चला है कि नई इमारत 2025 तक तैयार हो जाएगी. तब तक यह संग्रहालय गायब हो जाएगा.”


यह भी पढ़ें: पुराना किला के इतिहास को जानने में भारतीयों की बढ़ रही दिलचस्पी, पुरातत्वविदों ने कहा- अच्छा संकेत


‘क्या मेरी नौकरी सुरक्षित है?’

राष्ट्रीय संग्रहालय के शांत, भव्य हॉल में, लाठियों से लैस चार लोगों का एक समूह अचानक तीखी आवाज़ें निकालते हुए कोने में घूमता है. जिज्ञासु बंदरों के एक परिवार का पीछा करते हुए, वो गलियारे में तेज़ी से दौड़ते हुए दहाड़ते और चिल्लाते हैं.

लेकिन क्या होगा अगर नई जगह पर बंदरों की समस्या न हो, विपिन पूछते हैं, “उनके साथ क्या होगा?”

42 साल की उम्र में विपिन पिछले 20 वर्षों से म्यूज़ियम के बहुउद्देश्यीय सेवा विभाग में काम कर रहे हैं. उन्होंने 2003 में प्रतिदिन 80 रुपए कमाना शुरू किया और अब 18,000 रुपए प्रति माह कमाते हैं. उनके कर्तव्यों में बंदरों से निपटना शामिल नहीं है; वे फाइलों को छांटते हैं, कागज़ी कार्रवाई को अलग-अलग करते हैं और लिपिकीय विषम कार्यों को संभालते हैं. हालांकि, वे एक कॉन्ट्रैक्ट वर्कर हैं, स्थायी स्टाफ सदस्य नहीं. उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आती हैं क्योंकि वह सोच रहे हैं कि क्या उनकी नौकरी चली जाएगी.

विपिन कहते हैं, “इस उम्र में हमें नौकरियां कहां मिलेंगी? मेरा पूरा परिवार मुझ पर निर्भर है.”

गार्ड से लेकर वरिष्ठ अधिकारियों तक लगभग सभी ने कहा कि उन्हें और अधिक हाथों की ज़रूरत है.

म्यूज़ियम के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “लगभग 120 स्थायी कर्मचारी सदस्य हैं और म्यूज़ियम में साठ प्रतिशत पद खाली हैं.” इसमें विपिन जैसे कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स शामिल नहीं हैं.

अधिकारी ने कहा, “अगर किसी के पास शिक्षा विभाग में कॉन्ट्रैक्ट पर नौकरी है और मान लें कि उस डिपार्टमेंट के पास नए म्यूज़ियम में जगह नहीं है, तो क्या होगा?” अधिकारी ने कहा, “हमारे कई कर्मचारी आउटसोर्स किए गए हैं, इसलिए उनके कॉन्ट्रैक्ट किसी भी समय समाप्त किए जा सकते हैं.”

भव्य लेकिन समावेशी नहीं

साथ ही, इस बात को लेकर भी उत्साह है कि संभावित रूप से ये दुनिया का सबसे बड़ा म्यूज़ियम कैसे बन सकता है. म्यूज़ियम के अधिकारी और उनके सहयोगी एक बड़े स्थान की आवश्यकता को स्वीकार करते हैं.

मई में प्रधानमंत्री मोदी ने आगामी युगे युगीन भारत राष्ट्रीय संग्रहालय का एक वर्चुअल वॉकथ्रू के जरिए अनावरण किया, जो कई थीम वाले प्रभागों के माध्यम से भारत के 5,000 साल के इतिहास को प्रदर्शित करेगा.

म्यूज़ियम के अधिकारी ने कहा, “सरकार की वाशिंगटन डीसी की तर्ज़ पर इसे एक म्यूज़ियम के रूप में विकसित करने की भी योजना है. इससे नॉर्थ और साउथ ब्लॉक खाली हो जाएगा और उस जगह का उपयोग किया जा सकेगा.” हालांकि, यह स्थान सरकार के केंद्र में एक उच्च-सुरक्षा क्षेत्र में है और पर्यटकों को चिंता है कि यह वर्तमान स्थान की तरह आसानी से सुलभ नहीं हो सकता है.

अल्का (दाएं) राष्ट्रीय संग्रहालय में अपने पोते के साथ पेंटिंग करती हुईं | हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट
अल्का (दाएं) राष्ट्रीय संग्रहालय में अपने पोते के साथ पेंटिंग करती हुईं | हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

55-वर्षीय अल्का अपने पोते के साथ बुद्ध के चित्र पर रुकती हैं. वे गुजरात के अहमदाबाद से दिल्ली में छुट्टियां मनाने आए हैं और भारत के इतिहास की उनकी खोज नेशनल म्यूज़ियम में शुरू होती है. उन्होंने कहा, “म्यूज़ियम यहीं रहना चाहिए. इंडिया गेट पास में है, जिससे हम लोगों के लिए यहां आना आसान हो जाता है.”

विपिन और क्यूरेटर जैसे लोगों के लिए मौजूदा इमारत ही एकमात्र कार्यालय है जिसे वे जानते हैं. इसका इतिहास उतना ही महत्वपूर्ण है जितना इसमें मौजूद खज़ाना.

महिला क्यूरेटर ने कहा, “यह एक नेशनल म्यूज़ियम है. यह राष्ट्रीय गौरव है. इस भावना को संरक्षित किया जाना चाहिए.”

नया म्यूज़ियम उस भारत को प्रतिबिंबित करेगा जो अपनी ताकत दिखा रहा है. यह एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है — लेकिन पुराने म्यूज़ियम से हर किसी को इसका हिस्सा बनने का सौभाग्य नहीं मिल सकता है.

(इस ग्राऊंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें: ‘इतिहास की ढहती दीवारें’: क्या ASI को राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की नई सूची बनाने की जरूरत है


 

share & View comments