करौली (राजस्थान): दादनपुर की महिलाएं न्याय की मांग करते हुए तख्तियां पकड़कर रो रही हैं. पुरुष एक अलग कोने में आपस में बातचीत कर रहे हैं. राजस्थान के करौली जिले का पूरा गांव 11 साल की बोलने और सुनने में अक्षम आदिवासी लड़की के साथ हुए कथित बलात्कार और हत्या को लेकर एकजुट है. उनका दुःख अब क्रोध में बदल गया है.
वे 9 मई को अपने गांव से लगभग 35 किलोमीटर दूर हिंडौन शहर में अपने माता-पिता के किराए के घर से दिखाई देने वाले एक मैदान में खेलने के लिए निकलीं थीं. दो लोगों ने कथित तौर पर 11-वर्षीय लड़की का बलात्कार किया, उन पर तेज़ाब फेंका और आग लगा दी. सोमवार (20 मई) को अपनी मौत से पहले पीड़िता ने अपने हमलावरों में से एक — शहर के एक ब्राह्मण ज़मींदार — की पहचान की थी.
सिस्टम ने उन्हें हर स्तर पर विफल किया.पुलिस ने भी निराश किया — हमले के दो दिन बाद एफआईआर दर्ज की गई और जिस व्यक्ति की पीड़िता ने पहचान की थी उसे अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया. अस्पतालों ने भी निराश किया. परिवार को सात घंटे बाद बेटी की मौत की सूचना दी गई.
अब, गांव में गुस्सा जंगल की आग की तरह फैल गया है. ग्रामीण चाहते हैं कि बलात्कारियों/हत्यारों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए. घटना ने पुलिस, जिला प्रशासन और ग्रामीणों के बीच भरोसे की कमी को उजागर कर दिया है.
लड़की की मृत्यु के बाद ही मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया और बलात्कार के मामले में राजस्थान का निराशाजनक रिकॉर्ड एक बार फिर चर्चा में है. लगातार चौथे साल राज्य में देश में सबसे अधिक बलात्कार के मामले दर्ज किए गए –– 2022 में 5,399 घटनाएं दर्ज की गईं थीं.
चारपाई पर लेटे हुए लड़की के पिता जिनके शरीर में पानी की कमी साफ दिखाई दे रही थी, ने कमज़ोर स्वर में कहा, “मेरी बेटी ज़िंदा थी. वो खा रही थी. हमने प्रार्थना भी की, हमने उन सभी को बुलाया जिन्हें हम जानते थे. उसे बचाया जा सकता था. पुलिस अधीक्षक से मिलने के लिए हमें कई घंटों तक इंतज़ार करना पड़ा.”
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परिवार के लिए बुरा सपना
17 मई तक 11-वर्षीय यह बच्ची इतनी सक्षम थी कि उन्हें दिखाई गई तस्वीरों से अपने हमलावरों में से एक को पहचान सकें. वो हिंडौन का रहने वाला है, उस ज़मीन का मालिक है जिस पर आदिवासी बच्ची खेल रही थी. वो एक दुकान चलाता है जिसके शटर अब गिरे हुए हैं, जिसके बराबर में उसका एक पुराना पीला पड़ चुका बंगला है. 30-वर्षीय व्यक्ति को एक रात के लिए हिरासत में लिया गया था.
करौली के पुलिस इंस्पेक्टर ब्रिजेश ज्योति उपाध्याय ने कहा, “हम यह तो नहीं कहेंगे कि वो पुलिस हिरासत में है, लेकिन हम उसे पूछताछ के लिए बुला रहे हैं. पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-307 (हत्या का प्रयास) और 34 (सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने के लिए कई व्यक्तियों द्वारा किया गया आपराधिक कृत्य) के तहत ‘अज्ञात व्यक्तियों’ के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. यह अपराध के दो दिन बाद 11 मई को दर्ज की गई.”
मां अपने गांव की महिलाओं से घिरी बैठी हैं. वे शायद ही कभी अपना घूंघट हटाती हैं, लेकिन उनका सबसे छोटा, एक साल का लड़का, ज़िद्द करता है. वे उन पर झपटता है और वो उसे शायद ही कभी अपने पीले रंग के घूंघट के नीचे आने की अनुमति देती हैं.
वे बताती हैं, “मैंने नहीं देखा कि क्या हुआ. मैं बस अपनी बेटी को देख सकती थी. मैं उसकी चीखें सुन सकती थी. वो मुझे बताने की कोशिश कर रही थी. मैंने उसे अंदर आकर लिटा दिया. उसके कपड़े पूरी तरह से फटे हुए थे. फिर, इशारों से उसने मुझे बताया कि क्या हुआ था.”
वे नग्न थीं – इसीलिए परिवार को शक था कि उनका बलात्कार किया गया था. सब कुछ टुकड़ों में था. केवल चप्पलें सही सलामत बची थीं. मां ने अपनी बेटी को एक पेड़ के पास देखा था.
इसके बाद अस्पताल के दौरों, देरी और आरोप-प्रत्यारोप का भयावह दौर गुज़रा और मामले के संबंध में अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई.
लड़की के माता-पिता उन्हें तुरंत हिंडौन के सरकारी अस्पताल ले गए, जहां उनकी हालत इलाज के लिए बहुत गंभीर बताई गई – उन्हें जयपुर के सरकारी सवाई मान सिंह अस्पताल ले जाने की ज़रूरत थी. उनके चाचा 10 मई को उनके साथ गए, जबकि पिता अपराध की रिपोर्ट करने के लिए हिंडौन के स्थानीय नई मंडी पुलिस स्टेशन गए.
उनका दावा है कि पुलिस का रवैया ढीला था और वे बार-बार उन्हें इग्नोर कर रहे थे.
पिता ने कहा, “मुझे एसपी से मिलने के लिए तीन घंटे तक इंतज़ार करना पड़ा. हमने उन्हें बयान दर्ज कराने के लिए बुलाने की बहुत कोशिश की. हम उन्हें बार-बार बुलाते रहे. आखिरकार वे आए. हालांकि, एफआईआर दर्ज की गई, लेकिन घटना के पांच दिन बाद 14 मई को लड़की का बयान दर्ज किया गया.”
यहां भी, हालांकि, अलग-अलग दावे हैं, लड़की के परिवार का कहना है कि उनकी बेटी अपना बयान दर्ज करा सकती थी, तो वहीं, पुलिस का दावा है कि वो ऐसा करने की स्थिति में नहीं थीं.
एसपी उपाध्याय ने कहा, “पीड़िता ने आरोपी की पहचान की – लेकिन साफ तौर से यह नहीं कहा कि उसने उनका बलात्कार किया था. उन्होंने स्पष्ट रूप से स्पष्ट किया कि कोई यौन हमला नहीं हुआ था.” उनका बयान सांकेतिक भाषा के जरिए लिया गया.
उपाध्याय ने दोहराया कि जिस व्यक्ति की उन्होंने पहचान की है उसके खिलाफ “कोई निर्णायक सबूत नहीं” है, यही कारण है कि जांच जारी है और उसे गिरफ्तार नहीं किया गया है.
सवाई मान सिंह अस्पताल के वरिष्ठ प्रदर्शक, मेडिकल ज्यूरिस्ट डॉ. किरण ने कहा, “अगर पुलिस को बलात्कार का शक है, तो फोरेंसिक टीम द्वारा पुलिस को एक नमूना दिया जाता है. हमारी राय फोरेंसिक साइंस लैब पर आधारित है, लेकिन रिपोर्ट नहीं आई है. हम इंतज़ार कर रहे हैं. इसका आना पुलिस जांच अधिकारी पर निर्भर करता है.”
पुलिस की चुप्पी से ग्रामीण गुस्से में हैं और मौत की सज़ा की मांग तेज़ हो रही है.
लड़की की चाची ने कहा, “उसे फांसी दी जानी चाहिए; यह एक ही रास्ता है. हमारी किसी और बेटी के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए.”
‘शत्रुतापूर्ण’ पुलिस बल
नई मंडी थाने के अंदर एक कमरे में तस्वीर बिल्कुल अलग है. पुलिस बचाव की मुद्रा में है और परिवार के आरोपों को खारिज कर रही है.
घटना के तुरंत बाद, जब पीड़िता की बची हुई त्वचा कच्ची थी और उसके शरीर का निचला हिस्सा जल रहा था, तो लड़की ने अपनी मां को बताया कि दो हमलावर थे, लेकिन उसका बयान लेने के बाद, पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि केवल एक ही व्यक्ति था.
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर आरोप लगाया, “उनका उद्देश्य अलग है; वे सरकार से समर्थन चाहते हैं. कुछ स्थानीय अखबारों ने बताया कि परिवार मुआवजे के तौर पर 50 लाख रुपये और सरकारी नौकरी की मांग कर रहा है. अधिकारी ने दावा किया, वही हैं जिन्होंने बहुत समय लिया. पीड़िता बयान देने की स्थिति में नहीं थी.”
परिवार इस तरह के दावों का सख्ती से खंडन करता है. द इंडियन एक्सप्रेस ने पिता के हवाले से कहा, “मैंने एक बेटी खो दी है; क्या मैं सरकार से पैसा मांगूंगा? हमें एक रुपया नहीं चाहिए, केवल न्याय चाहिए.”
दादनपुर में समर्थन के अलावा, साजिश के सिद्धांत सर्वोच्च हैं — यहां तक कि पुलिस स्टेशन में भी. उनमें से कई आदिवासी परिवार पर मुआवज़ा वसूलने के लिए मामले को “भुनाने” का आरोप लगा रहे हैं.
परेशान परिवार इस आरोप से स्तब्ध है. चाची ने कहा, “हम गरीब लोग हैं, लेकिन हमें कोई पैसा नहीं चाहिए. हम सिर्फ अपनी बच्ची के लिए न्याय चाहते हैं.”
बच्ची की मां पढ़-लिख नहीं सकतीं, जबकि पिता ने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है, लेकिन वे चाहते थे कि उनकी बेटी पढ़ाई करे. दरअसल, वे हिंडौन में अपने माता-पिता के साथ गर्मी की छुट्टियां बिता रही थीं. वरना, वे घर से दूर करौली जिले के दिव्यांग बच्चों के सरकारी स्कूल में होती.
वे अपनी दो भैंसों का दूध बेचकर अपना गुज़ारा करते हैं. कानून और मेडिकल व्यवस्था को संभालना शुरू से ही मुश्किल था.
बच्ची की मां फुसफुसाती हैं, “मैंने किसी भी पुलिसकर्मी से बात नहीं की और न ही कर सकती हूं. मुझे नहीं पता था कि डॉक्टर मेरी बच्ची को कौन सी दवा दे रहे हैं, उसके इलाज का क्या होगा. मुझे तीन और बच्चों की भी देखभाल करनी है.” उन्होंने नाक में चांदी की छोटी सी नोज़ पिन पहनी है. उन्हें अपनी बेटी की नाक की बालियों के प्रति दीवानगी की याद आती है. उसे हर रोज़ एक नया चाहिए होता था.
माता-पिता दोनों बार-बार फूट-फूटकर रोने लगते हैं — पिता ज़ोर से, मां दबी आवाज़ में. वे अपनी बेटी का शोक मना रहे हैं, लेकिन इसके साथ कई सवाल बिना जवाब के हैं.
पिता ने पूछा, “वो हमें यह क्यों नहीं बता रहे हैं कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्या है? हम उसका बयान क्यों नहीं देख सकते? हम कोर्ट कब जाएंगे? हमें अंधेरे में क्यों रखा जा रहा है?”
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‘बुद्धिमान, प्यारी, सेल्फी लेने वाली’
वे अपना फोन निकालते हैं और कैमरा रोल को स्क्रॉल करते हैं. उनकी बेटी सेल्फी लेने की शौकीन थीं और उनका फोन हर एंगल से बेटी की तस्वीरों से भरा पड़ा था.
वे मुस्कुराते हुए कहते हैं, “वो मेरे फोन में एक बार में 20 तस्वीरें खींच लेती थी. इतनी तस्वीरें हैं कि अब मुझे उन्हें हटाना होगा.”
माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के अनुसार, 11-वर्षीया बच्ची “बहुत बुद्धिमान” थी. बोलने में असमर्थ होने के बावजूद, वे एक प्रभावी संचारक थीं और उनके परिवार द्वारा उनकी बहुत सराहना की जाती थी.
दादी ने कहा, “हर कोई बेटा चाहता है, लेकिन हमारे लिए तो हमारी बेटी ही काफी थी. वे किसी भी लड़के से बेहतर थी.”
17 मई के बाद, जयपुर अस्पताल में भर्ती होने के एक हफ्ते बाद, उनकी हालत बिगड़ने लगी. उनका सिर हमेशा घूमता रहता था और उन्हें लगातार दर्द रहता था. उनके शरीर का लगभग 65 प्रतिशत हिस्सा जल चुका था. उनकी मां को उसके पैरों के तलवे याद हैं — क्योंकि वे अविवाहित थीं. उनका शरीर पट्टियों से ढका हुआ था. शरीर पर बहुत कम त्वचा बची थी.
उनके चाचा ने कहा, “वहां कुछ भी नहीं था. सब कुछ खत्म हो गया था.”
इलाज में आमतौर पर ड्रेसिंग, एंटीबायोटिक्स और घावों को साफ करना शामिल होता है, लेकिन एक सीमा के बाद, डॉक्टर और कुछ नहीं कर सकते.
अस्पताल के बर्न वार्ड के जूनियर रेजिडेंट डॉ. रवि ने बताया, “जब शरीर को इस प्रकार से घाव होते हैं, तो बचने की संभावना बहुत अधिक नहीं होती है. उनकी उम्र की बच्ची के बचने की संभावना केवल 20 प्रतिशत थी.”
मंगलवार देर रात 1:15 बजे उनकी मौत हो गई. सुबह 7 बजे परिवार को सूचना दी गई. अंतिम संस्कार और अंत्येष्टि उनके घर-करौली जिले के दादनपुर गांव में हुई.
उनके पिता उन्हें पिछली दीवाली के समय एक डॉक्टर के पास ले गए थे, जिन्होंने उन्हें बताया था कि उनकी बेटी की सर्जरी की जा सकती है और सुनने की क्षमता को बहाल किया जा सकता है. उन्हें बस इंतज़ार करना था.
लेकिन उनकी दिव्यांगता कभी भी ऐसी बाधा नहीं बनी जिससे उन्हें पार पाना ज़रूरी था. उन्होंने कहा, “यह कभी भी मुश्किल नहीं था. हम उसके बारे में सब कुछ जानते थे. उसने हमें सब कुछ बताया.”
‘हम ब्राह्मण हैं’
हिंडौन की संकरी, घुमावदार गलियों के बीच — जहां ज्यादातर सुस्ताती भैंसें रहती हैं — परिवार का किराए का घर है. वहां दो छोटे कमरे हैं जिन्हें नीले रंग से रंगा गया है और अंदर एक टेलीविजन, दो चारपाई और एक अस्थायी रसोईघर शामिल है, जो बर्तनों से अलग है.
पिता हर महीने 10,000-12,000 रुपये कमाते हैं. इससे वे अपने पांच लोगों के परिवार का भरण-पोषण करते हैं और अपने भाई और उसकी पत्नी के लिए भी कुछ रकम अलग रखते हैं.
दस मिनट की दूरी पर, कृष्णा मार्ग में एक चौड़ी सड़क पर, उस ब्राह्मण व्यक्ति का बंगला है जिसे लड़की ने अपनी मृत्यु से पहले पहचाना था. इस परिवार के पास हिंडौन में करीब तीन एकड़ ज़मीन है.
संदिग्ध, जिसका नाम पुलिस ने जारी नहीं किया है, लगभग 30 साल का है और तीन-दो बेटियों और एक बेटे का पिता है. उसकी पत्नी के मुताबिक, वो अपना सारा समय स्टोर पर बिताता है. जब आराम की ज़रूरत होती है तो वो उनके पड़ोस के मंदिर में भजन कीर्तन करता है.
आरोपी की पत्नी अपने घर के बाहर दिप्रिंट से बात करते हुए कहती हैं, “मैं जानती हूं कि वो निर्दोष हैं. मैं चाहती हूं कि सच्चाई जल्दी सामने आए. हमारे बच्चे बेहद तनाव में हैं और हर समय रोते रहते हैं. अब, मेरे पति पूरे दिन कुछ नहीं करते हैं.” कॉलोनी के जिज्ञासु बच्चे उनकी साड़ी पकड़कर उसके चारों ओर इकट्ठा हो जाते हैं.
ऐसा लगता है कि कृष्णा मार्ग दादनपुर गांव की तरह ही एक एकजुट समुदाय है, जहां पड़ोसी उस व्यक्ति के बचाव में कूदने और उसके चरित्र की पुष्टि करने के लिए उत्सुक और तत्पर हैं.
उनके पड़ोसी ने कहा, “मैंने अपनी ज़िंदगी में इतना मासूम, सीधा-सादा आदमी नहीं देखा और अब पुलिस उनसे पूछताछ कर रही है. (लड़की का) परिवार इसे राजनीतिक मामला बनाने की कोशिश कर रहा है. वे इतने गरीब, ईमानदार आदमी को कैसे निशाना बना सकते हैं?”
उन्होंने कहा, “वे केवल मंदिर जाते हैं. हम ब्राह्मण हैं, आप जानते हैं.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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