आगरा: पहलगाम आतंकी हमले के 24 घंटे से भी कम समय बाद, स्ट्रीट लाइट की पीली रोशनी में 25 साल के मोहम्मद गुलफाम शाहिद अली चिकन बिरयानी रेस्तरां को रात के लिए बंद करने की तैयारी कर रहे थे, तभी मोटरसाइकिल पर सवार तीन लोग बाहर आकर रुके. वह देर से आए ग्राहक जैसे लग रहे थे. इससे पहले कि गुलफाम उन्हें बता पाते कि रेस्तरां बंद हो चुका है, उनमें से एक ने बंदूक उठाई और गोली चला दी. रात में दो गोलियां चलीं.
गुलफाम ने लाल आंखों से उलझन में शूटर की आंखों की तरफ देखा, मानो पूछ रहे हों, मैं ही क्यों? उन्होंने अपनी छाती पकड़ी और ज़मीन पर गिर गए और गिरते ही उनके खून का सैलाब फैल गया.
उनके चचेरे भाई सैफ अली के ज़ेहन में 23 अप्रैल की रात कुछ ऐसे बसी है. वह आगरा के ताजपुर में अपने फैमिली रेस्तरां का फर्श साफ कर रहे थे, तभी उन्होंने गोली चलने की आवाज़ सुनी. जैसे ही वह बाहर निकले, एक और गोली चली. वह छिपने के लिए नीचे झुके और एक गोली उनके कंधे को छूती हुई निकल गई.
हत्या के एक दिन बाद, सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया. इसमें नीली बनियान पहने एक व्यक्ति ने हमले की जिम्मेदारी ली है. उसने अपनी जींस में दो पिस्तौलें भी रखी हुई हैं. इस व्यक्ति ने आगरा में क्षत्रिय गौरक्षा दल का सदस्य होने का दावा किया है. उसने धमकी भी दी कि वह पहलगाम आतंकी हमले का बदला “26 (कश्मीर में मारे गए पर्यटकों) के बदले में 2,600 (मुसलमानों) को मारकर” लेगा.
अब, सैफ के चचेरे भाई की मौत हो चुकी है और उनके दाहिने हाथ पर पट्टी बंधी है. एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है और पुलिस ने बंदूकधारी की तलाश शुरू कर दी है.
शोकग्रस्त परिवार से घिरे 24 साल के सैफ ने कहा, “हत्यारों ने हमें बोलने नहीं दिया. कुछ नहीं पूछा. बस हम पर गोली चलाई. मैंने पड़ोस के लड़कों को बुलाया और गुलफाम भाई को अस्पताल पहुंचाया, लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गई.”
पहलगाम के बाद से ही उत्तर भारत के कई हिस्सों में तनाव बढ़ गया है. देहरादून में कश्मीरी मुस्लिम छात्रों को धमकाया गया और उन्हें राज्य छोड़ने के लिए कहा गया. हाथरस में कथित तौर पर दो मुस्लिम मजदूरों को मंदिर निर्माण स्थल पर काम करने से रोका गया.
शाहिद अली चिकन बिरयानी रेस्टोरेंट, जहां दोनों चचेरे भाई काम करते थे, बंद पड़ा है. पड़ोस में सन्नाटा पसरा है. दो सीसीटीवी कैमरे — एक नेम प्लेट पर लगा है, दूसरा भूरे रंग के शटर पर — ने रात के इस भयानक मंज़र को कैद किया, जबकि शहर सो रहा था. सीसीटीवी फुटेज फिलहाल पुलिस के पास है.

अब, परिवार न्याय के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर देख रहा है.
गुलफाम की मां जुबैदा ने कहा, “अगर उनको पहलगाम हमले का बदला ही लेना था, तो वह मारपीट कर लेते, हाथ-पैर तोड़ देते, कम से कम मेरा बच्चा ज़िंदा तो होता.”
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राजनीतिक संरक्षण?
हत्या के एक दिन बाद, 24 अप्रैल की शाम को जब सैफ के फोन पर कथित गौरक्षा दल के सदस्य की क्लिप आई, तो उन्होंने कथित तौर पर हत्यारे को पहचान लिया और तुरंत पुलिस को फोन किया. तब से सैफ आगरा की संजय कॉलोनी में घर से बाहर निकलने से डर रहे हैं.
उन्होंने कहा, “वह मुझे मारने के लिए वापस आ सकते हैं. क्या मैं डरूं नहीं.”
बीएनएस, 2023 की धारा 103 (1) (हत्या के लिए सज़ा) और 109 (1) (हत्या का प्रयास) के तहत ताजगंज थाने में एफआईआर दर्ज़ की गई है.
शिकायतकर्ता, पीड़ित के चाचा, मोहम्मद इस्लाम ने कहा कि पुलिस ने उनके सामने निजी तौर पर स्वीकार किया है कि हमला डर का माहौल बनाने के लिए किया गया था.
उन्होंने कहा, “मुझे समझ में नहीं आता कि पुलिस यह बात खुलकर क्यों नहीं कह रही है. हम आरोपी को नहीं जानते और पुलिस ने हमारे सामने धर्म के पहलू को स्वीकार कर लिया है. वह बस मामले को कमतर आंकने की कोशिश कर रहे हैं.”
शिकायत में कहा गया है कि अज्ञात लोगों ने रेस्टोरेंट में काम कर रहे लोगों पर गोलियां चलाईं.
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पुष्टि की कि वीडियो में दिख रहा व्यक्ति वही है जिसने गुलफाम की हत्या की और सैफ को घायल किया. हालांकि, पुलिस ने कहा कि वह गौरक्षा दल का हिस्सा नहीं है.
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “अगर आप वीडियो देखेंगे तो आपको पता लगेगा कि वह कह रहा है कि वह ‘क्षत्रिय गौरक्षा दल’ से जुड़ा है. आगरा में ऐसा कोई पंजीकृत संगठन नहीं है. वह किसी तरह का राजनीतिक संरक्षण पाने के लिए ऐसा कर रहा है.”
वीडियो में दिख रहे दो लोगों में से एक — जो घटना की जिम्मेदारी लेने वाले शूटर के बगल में खड़ा है, को शुक्रवार सुबह गिरफ्तार कर लिया गया.
पुलिस ने संवेदनशील इलाके में चौकसी बढ़ा दी है. एक दिन पहले आगरा आए अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के स्वागत में लगे बैनर तले पुलिस ताजपुर और आगरा के दूसरे इलाकों में गश्त कर रही है और ऐसी किसी भी चीज़ पर नज़र रख रही है जिससे स्थिति बिगड़ने की आशंका हो.
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‘उसे क्यों मारा?’
ताजमहल से महज़ दो किलोमीटर दूर, आगरा के ताजपुर में संजय कॉलोनी की संकरी गलियों में, गुलफाम के परिवार से मिलने के लिए आस-पास के लोग कतार में खड़े हैं. गली प्लास्टिक की थैलियों से भरी हुई है. इस्तेमाल किए गए बच्चे के डायपर के चारों ओर मक्खियां झुंड बनाकर बैठी हैं. खुले नाले से काले, सड़े हुए पानी की बास आ रही है. शोक मनाने वालों के लिए सख्ती से रखी गई आधा दर्जन लाल प्लास्टिक की कुर्सियां पहले से ही तंग रास्ते को रोक रही हैं.
गुलफाम की मां, 50 साल की ज़ुबैदा की चीखें हवा में गूंज रही थीं.
“मेरा बेटा एक सीधा-सादा लड़का था. उसे क्यों मारा?” वह छाती पीटते हुए रो पड़ीं. गुलफाम के तीन छोटे बच्चे उनके पास चुपचाप बैठे हैं. परिवार के पुरुष कब्र पर फातिहा पढ़ने गए हैं — मरने के बाद किया जाने वाला एक इस्लामिक रिवाज.
परिवार के लिए यह गर्मी बेहतर होने वाली थी. अभी दो हफ्ते पहले ही गुलफाम ने उनके लिए एक कूलर खरीदा था, जब उनकी मां ने तेज़ गर्मी की शिकायत की थी. हर रात, दस लोगों का परिवार — भाई, पत्नी, माता-पिता और बच्चे — बड़े हॉल में एक साथ सोते थे, जहां कूलर चलता था.
बगल के कमरे में गुलफाम की पत्नी, 22 साल की फ़िज़ा रो रही थीं, जबकि उनका तीन साल का बेटा उनके आसमानी नीले रंग के दुपट्टे को खींच रहा था. उन्होंने दुपट्टे को वापस अपने कंधे पर रख लिया, लेकिन बच्चा उसे खींचता रहा. यह सब कुछ मिनटों तक चलता रहा, जब तक कि, हताश होकर, उन्होंने अपने हाथ से गुस्से में इशारा नहीं किया. बच्चा रुक गया और ज़ोर से रोने लगा.

गुलफ़ाम और फ़िज़ा की शादी पांच साल पहले हुई थी. रेस्टोरेंट में काम करने से पहले, वह सड़क किनारे बिरयानी बेचा करते थे, लेकिन जब उनके चचेरे भाई, शाहिद अली ने रेस्टोरेंट खोला, तो गुलफाम उनके साथ वहां काम करने लगे.
संजय कॉलोनी के निवासियों ने उन्हें एक ऐसा व्यक्ति बताया, जो शांत, शर्मीला और कम बोलने वाला और आसानी से अपनी बात नहीं कह पाने वाला था. उनकी ज़िंदगी आम थी, जो काम और घर के इर्द-गिर्द घूमती थी.
शाहिद ने कहा, “वह हमारे परिवार में अकेला कमाने वाला था. उसका सपना था कि उसके बच्चे अच्छे से पढ़ाई करें और अच्छी ज़िंदगी जिएं. उसने कभी इसके आगे नहीं सोचा.”
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न्याय की इंतज़ार
एक युवा लड़के ने फैमिली रेस्तरां के पास खड़ी स्कूटी की ओर इशारा किया. फिर, अपने सामने दो उंगलियां दिखाते हुए, उसने गोली चलाने की हरकत की नकल की. इसके बाद, उसने अपनी गर्दन पर हाथ फेरा, अपनी जीभ बाहर निकाली और अपनी आंखें बंद कर लीं — यह मौत का इशारा था। लड़का शाहिद चिकन बिरयानी रेस्तरां के बाहर खड़े लोगों और उत्सुक निवासियों के सामने यह क्रम दोहरा रहा है।
बिरयानी, कबाब और भुने चिकन का एक कोलाज लाल बोर्ड पर बना है, जिस पर पीले अक्षरों में “शाहिद अली चिकन बिरयानी रेस्तरां” लिखा है.
मालिक, शाहिद अली, अपने चचेरे भाई की देखभाल न कर पाने के लिए खुद को दोषी मान रहे हैं. जब यह घटना हुई, तब वह एक दोस्त की मां को पैसे देने के लिए 10 मिनट के लिए बाहर गए थे.
शाहिद ने सीसीटीवी फुटेज देखी है, लेकिन वह उस भयानक मंज़र को भूल नहीं पा रहे हैं. हर बार, वे चिल्लाते हैं, “हम हिंदू-मुस्लिम नहीं मानते. हम संविधान के साथ खड़े हैं — हिंदू मेरे भाई हैं!” उनके आस-पास के लोगों ने उन्हें संबल दिया और शांत रहने के लिए कहा. वे कुछ मिनट के लिए रुक गए.
फिर उन्होंने कहा, “मेरे पास मुसलमानों से ज़्यादा हिंदू ग्राहक आते हैं. हम भारत से प्यार करते हैं.”
इस घटना को लेकर स्थानीय निवासियों की नाराज़गी के कारण ताजपुर में तनाव है. हिंदू निवासियों का एक वर्ग इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि बिरयानी की दुकान में गायों को काटा जाता था और उसका मांस बेचा जाता था. कुछ का कहना है कि यह दो समूहों के बीच लंबे समय से चली आ रही दुश्मनी का नतीजा है. मुस्लिम निवासी इसे पूरी तरह से नफरत से प्रेरित अपराध के रूप में देखते हैं.
सैफ ने कहा कि उन्होंने नीली बनियान पहने आदमी को पहचान लिया, लेकिन जब भी उन्होंने इस बारे में बात की, शाहिद ने उन्हें बीच में ही रोक दिया.
उन्होंने झल्लाकर कहा, “बस कर! तुझे अपनी जान की परवाह नहीं है? पुलिस को जांच करने दो.” सैफ चुपचाप अपने सामने की दीवार को देखते रहे.
शाहिद ने कहा, “हम योगी सरकार से न्याय की मांग कर रहे हैं. अगर एक हफ्ते में कोई कार्रवाई नहीं हुई तो हम सड़क पर उतरेंगे और विरोध करेंगे.”

यह पुराना भारत नहीं
ताजपुर में, जहां मुस्लिमों की अच्छी खासी आबादी है, गौरक्षा दल का वीडियो चर्चा का विषय बना हुआ है. चाय की दुकानों, बिरयानी कॉर्नर और यहां तक कि ताजमहल की छोटी-छोटी पत्थर की मूर्तियां बेचने वाली दुकानों पर भी इस पर चर्चा हो रही है.
मोहम्मद कामरान, जो अब अपने पिता सरताज की दुकान संभालते हैं, उन्होंने भी वीडियो देखा है, लेकिन घर पर उनकी पत्नी और मां ने उन्हें चुप रहने को कहा है.
उन्होंने ताजमहल की छोटी-छोटी मूर्तियों को कपड़े से साफ़ करते हुए कहा, “मेरी बीवी ने मुझे साफ-साफ कहा है: काम पर जाओ, घर वापस आओ और पहलगाम या आगरा में हुई गोलीबारी के बारे में किसी से बात मत करना.”
उन्होंने कहा, “हम डरे हुए हैं.” और फिर धीमी आवाज़ में कहा, “जब तक मामला शांत नहीं हो जाता, मुसलमानों के लिए खुद को शांत रखना बेहतर है.”
लगभग 200 मीटर आगे, सफेद टोपी पहने दो आदमी अपने घर के बाहर प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठे हैं. पहले तो उन्होंने हत्या से अनजान बनने की कोशिश की, लेकिन जब एक की पत्नी चाय का कप लेकर बाहर आईं तो बातचीत बदल गई.
उन्होंने कहा, “मैंने आज सुबह हिंदी अखबार में इसके बारे में पढ़ा. मैंने अपने बेटे के फोन पर वीडियो भी देखा. यह बहुत बुरा है.” वह घर की ओर भागीं और एक मुड़ा हुआ अखबार लेकर लौटीं.
लाइव हिंदुस्तान का दूसरा पेज पलटते हुए उन्होंने जोर से पढ़ा: “बाइक सवारों ने फिल्मी अंदाज़ में की वारदात. सौहार्द बिगड़ने की कोशिश पर पुलिस सख्त.”
उनके पति ने बीच में टोका. “क्या तुम चुप रह सकती हो? बिना सोचे-समझे बोलती हो. यह पुराना भारत नहीं है.”
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